To hamse wafa kaise kar sakte hain in Hindi Short Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | तो हमसे वफ़ा कैसे कर सकते हैं  

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तो हमसे वफ़ा कैसे कर सकते हैं  

शहर से कुछ ही दूरी पर एक छोटी सी पहाड़ी थी, जहां सुंदर वृक्षों की घनी आबादी थी। शहर के लोग अक्सर छुट्टी के दिन अपनी शाम गुजारने उस पहाड़ी पर आकर वृक्षों के नीचे बैठकर जीवन का और उन पलों का आनंद लिया करते थे। कई प्यार के पंछी भी वहां आकर अपने प्यार को दूसरों से छुपाते हुए एक-दूसरे के नज़दीक आते थे। वृक्षों के ऊपर अपनी यादों को भविष्य में ताजा करने के लिए कुछ ना कुछ चिन्ह अवश्य बना दिया करते थे।  
  
उन्हीं वृक्षों के बीच एक विशालकाय वृक्ष था जिसका नाम इस कहानी में संजीवनी है। अपनी विशाल शाखाओं और घनी छाया देने के कारण लोगों को वह वृक्ष बेहद पसंद था। पूरी पहाड़ी का सबसे खूबसूरत वृक्ष था वह। संजीवनी की शाखा से उसके फूलों के अंदर से एक बीज नीचे धरती की कोख में समा गया। धरती माँ ने उस बीज को जन्म भी दे दिया और उसका लालन-पालन भी करने लगी। धीरे-धीरे वह बीज अंकुरित होने लगा और फ़िर वह एक नन्हा पौधा बन गया। संजीवनी को ही वह अपना सब कुछ समझता था। उसकी छत्रछाया में वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था।  
  
एक दिन नन्हे पौधे ने वृक्ष से पूछा, “पिताजी क्या भगवान ने हमें इंसानों की सेवा करने के लिए बनाया है? हम ही तो उन्हें फल, सब्जी, ठंडी शीतल पवन  सब कुछ देते हैं। प्राण वायु भी हम ही देते हैं ना पिताजी ?"  
  
"हाँ बेटा, यह तो हमारा कर्त्तव्य है और ये जवाबदारी भगवान ने हमें सौंपी है, जिसे हमें निष्ठा से निभाना चाहिए।"  
  
जिज्ञासा वश नन्हे पौधे ने आगे पूछा, “पिताजी इंसान हमारे लिए क्या करते हैं, धरती माता हमें स्थान देती है  और पालन पोषण करती है, बादल हमें पानी देते हैं, सूरज दादा धूप और चंदा मामा शीतलता देते हैं, किंतु इंसान क्या देते हैं?”  
 
वृक्ष अपने नन्हे पौधे के सवाल का कोई उत्तर ना दे पाया।  
  
तभी दूर से इंसानों की एक टोली आती दिखाई दी रात का वक़्त था, अंधेरी रात थी नन्हा पौधा ख़ुश हो गया बोला, “देखो पिताजी इंसान आ रहे हैं वे ज़रूर हमारे लिए कुछ ना कुछ अच्छी चीज ला रहे होंगे।”  
  
संजीवनी इंसानों के हाथों में कुल्हाड़ी देखकर घबरा गया, वह अभी भी नन्हे पौधे के सवाल का कोई जवाब ना दे पाया। वृक्ष के नज़दीक पहुंचते ही इंसानों ने संजीवनी पर हमला कर दिया। उसकी मजबूत शाखाओं को वे काटने लगे ।  
  
नन्हा पौधा घबरा गया वह जोर से चीखने लगा, “पिताजी यह इंसान आपको मार क्यों रहे हैं ? आपके अंगों को काट क्यों रहे हैं ?”  
  
वृक्ष तब भी अपने बच्चे के सवालों का कोई जवाब ना दे पाया। संजीवनी की आँखों में आँसू थे। नन्हा पौधा अपने पिता संजीवनी के बहते आँसुओं को देखता रहा। धीरे-धीरे संजीवनी को पूरा ही उन्होंने काट डाला। नन्हा पौधा डर गया, उसके लिए यह बहुत ही भयानक मंजर था किंतु इंसानों के लिए प्रतिदिन घटने वाली साधारण सी घटना।  
  
सब कुछ उसी तरह चलता रहा, कुछ दिन छानबीन हुई संजीवनी को किसने काटा लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। इसी तरह अमावस की काली रातों में वृक्ष कटते रहे, पहाड़ी अपनी किस्मत पर रोती रही। नन्हे पौधे के भी आँसू धीरे-धीरे सूख गए और समय के साथ-साथ वह भी अपने पिता की ही तरह विशालकाय वृक्ष बन गया।  
  
एक दिन इंसानों का एक वृद्ध जोड़ा कड़कड़ाती धूप से परेशान हो, थक कर उस वृक्ष की शरण में आया। छायादार वृक्ष के नीचे ठंडी हवा के झोंकों में वृद्ध दंपति आराम करने बैठ गए। वहां उन्हें इतना अच्छा लगा, इतना सुकून मिला कि उनकी वहां से जाने की इच्छा ही नहीं हुई।   
  
तब वृद्ध ने अपनी पत्नी गायत्री से कहा, “कैसा ज़माना आ गया है ना गायत्री, हमने जन्म दिया, पाला-पोसा, अपने खून को पसीना किया  । उनकी हर ज़रूरतों को पूरा किया। अपनी उँगली का सहारा देकर चलना सिखाया किंतु आज जब हमारी बारी आई, जब हमें उनकी ज़रूरत है तब उन्होंने हमें अपने जीवन से ही अलग कर दिया।”   
  
गायत्री ने दुःखी होते हुए कहा, “हाँ तुम सही कह रहे हो। यही हमारे जीवन का कड़वा सच है।”  
   
वृक्ष उनकी बातें सुन रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि जन्म देने वाले माता-पिता के साथ जब यह दगा कर सकते हैं तो हमसे वफ़ा कैसे कर सकते हैं। शायद इस समय का यही कड़वा सच है।  
  
  
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)  

स्वरचित और मौलिक