गांधी, छाता और सावरकर!!
ये घटना कम लोग जानते हैं। बात 1919 की है। गांधी पोर्टब्लेयर की सेलुलर जेल के प्रविष्ट हुए। देर तक नाखून चबाते हुए, मुलाकाती कक्ष में इंतजार करते रहे।
सावरकर से मिलने की इजाजत बड़ी मुश्किल से मिली थी। यह मुलाकात बेहद गुप्त होने वाली थी।
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उद्देश्य एक ही था। सावरकर को जेल छोड़ने के लिए राजी करना। आजादी के आंदोलन के लिए वीर को जेल से छुड़ाना बहुत जरूरी था।
दरअसल गांधी को मालूम था, हिन्दू राष्ट्र बनाने का माद्दा किसी मे है तो वह दामोदर का वीर सपूत ही है।
याने विनायक" दामोदर"सावरकर..
ढेंSss टेनेन।
दरअसल गांधी तो खुद तुष्टिकरण वाली पार्टी में फंसकर रह गए थे। नेहरू ने एडविना की सलाह पर उन्हें फ़ांस लिया था, और मनमर्जी फैसला करवा लेता था।
कहता था, मुझे एक दिन प्रधानमंत्री बनना है। मगर गांधी के मन मंदिर मे तो हमेशा से, सिर्फ और सिर्फ, सावरकर की मूरत थी।
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ख्यालों में डूबे गांधी की तन्द्रा टूटी। हृष्ट पुष्ट, अतीव तेज से लबरेज उस सुंदर गौरवर्णीय युवक मुलाकाती कक्ष में प्रवेश किया।
गांधी उनका सौंदर्य अपलक देखते रह गए। ऐसी शांति और करुणा टपक रही थी, कि लगा, स्वयं बुध्द उनके सामने खड़े हों।
वीर, उस वक्त अपनी कोठरी में नाखूनों से खुरचकर अपनी साढ़े नौ हजारवीं कविता लिख रहे थे, जब एबरप्टली उन्हें यहां बुलवा लिया गया।
तो कविता में व्यवधान से क्रोधित वीर ने कठोर स्वर में पूछा- क्या बात है एम आर गांधी, क्यो आये हो यहाँ??
- मैं चाहता हूँ कि आप इस जेल से छूट जाओ
- मगर मैं क्यो छूट जाऊं। यहां बेसिकली मुझे कोई दिक्कत नही है। एक्चुअली इट्स क्वाइट फन, मेरा वजन भी दो किलो बढ़ गया है।
- दिक्कत मुझे हैं। आप यहां रहोगे, तो राष्ट्रधर्म कैसे निबाहोगे।
- आई हैव माई ओन वेज, यू डोंट वरी- सावरकर ने रोशनदान पर बैठी बुलबुल पर कनखियों से निगाह मारकर कहा
"देश को तुम्हारी जरूरत है वीर। सारा हिंदुस्तान तुम्हारी राह देख रहा है। उसका दिल न तोड़ो"-
अब गांधी का स्वर भर्रा गया था।
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हम्म। सावरकर सोच में पड़ गए। फिर बोले- ओके, इफ यू इंसिस्ट। लेकिन यहां से निकला कैसे जाए।
उदास गांधी को अब चैन आया। धोती में खोंसे हुए सात पत्र निकाले। कहा- ये माफीनामे मैंने लिख दिये हैं। आपको बस दस्तखत करके, पोस्ट कर देना है। हर दिन एक पत्र..बाकी मैं सम्हाल लूंगा।
वीर, कौतुक से उन खतों का मजमून पढ़ने लगे। गांधी ने फिर चाल फेंकी- ज्यादा पढ़ने की जरूरत नही वीर। मैनें जेल से मुक्ती के बाद, बढ़िया पेंशन भी मिल जाए, इसके लिए विक्टोरिया के पीए से सेटिंग कर ली है।
- माफीनामे??- सावरकर अब तक आग बबूला हो चुके थे।
कतई नही। अगर मैंने माफी मांगी तो सारा देश मुझपर थूकेगा मि. गांधी। जिधर जाऊंगा, इतनी थूक बरसेगी मानो आसमान खुद बरस बरस कर मुझ पर थूक रहा हो।
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डोन्ट वरी एट ऑल- गांधी मुस्कुराये।
और एक पोटली खोली। उसमे एक फोल्डिंग छाता था। बोले- हे वीर। जब जेल से छूट जाओ, तो इसका इस्तेमाल करना।
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इतिहास गवाह है कि मौसम कोई भी हो, सावरकर ने वह छाता हमेशा अपने साथ रखा।