गंगा के छोटे से घर में पुरुष के नाम पर अकेला उनका नाती ही था। गंगा के अतिरिक्त घर में उनकी बड़ी बहू श्रद्धा, छोटी बहू आशा, श्रद्धा की बेटी गार्गी और आशा का बेटा अविनाश था। इनके अलावा पुरुष यदि थे तो घर की दीवारों पर तस्वीर के रूप में ही थे और उन तस्वीरों के साथ लगे कई तमगे भी उनकी वीरता के किस्से कह रहे थे। गंगा और उनकी दोनों बहुएँ विधवा हो चुकी थीं।
गंगा का घर देश भक्ति का जीता जागता उदाहरण था, जिससे गाँव के और भी लोगों को प्रेरणा मिलती थी। गंगा की तरह गाँव की और भी माताएँ अपने बच्चों को, पत्नी अपने पति को देश की रक्षा के लिए सीमा पर भेजने को तैयार थीं।
गंगा की छोटी बहू देश से प्यार तो अवश्य ही करती थी किंतु अपने बेटे को सीमा पर भेजने के लिए उसका मन कतई तैयार नहीं था। गर्भावस्था के दौरान ही अपने पति को खो देने का दुःख वह भूल नहीं पा रही थी। विवाहोपरांत एक वर्ष भी तो वह सुहागन नहीं रह पाई थी। पति को खो देने के बाद अपने इकलौते बेटे को खोने का डर उसके दिल में इस तरह से समाया हुआ था कि रातों को सपने में भी उसे अपने बेटे अविनाश की तस्वीर दीवार पर लगी तस्वीरों के साथ दिखा करती थी, यही उसके डर का सबसे बड़ा कारण था। गार्गी और अविनाश अक्सर अपनी दादी के मुंह से अपने दादा, पिता और चाचा की वीरता के किस्से सुना करते थे। दोनों बच्चों की रगों में भी वही रक्त तो दौड़ रहा था। वह दोनों अक्सर कहते हम भी बड़े होकर फ़ौज में ही जाएंगे।
धीरे-धीरे गार्गी और अविनाश बड़े हो रहे थे, देश के फ़ौजी जवानों की वीर गाथाएँ सुन-सुन कर उन दोनों के मन में भी वीरता के ना जाने कितने ही दिए प्रज्वलित हो चुके थे। अविनाश जानता था कि उसकी माँ उसे फ़ौज में कभी नहीं जाने देगी लेकिन उसकी इच्छा शक्ति, दृढ़ निश्चय से पूरी तरह सराबोर थी। ऐसे नेक कार्य के लिए उठी उसकी भावनाओं को किसी के लिए भी अब रोक पाना संभव नहीं था।
गार्गी भी अपना मन पूरी तरह से बना चुकी थी कि उसे अपने परिवार की इस परंपरा को आगे बढ़ाना है। उसे भी अपने आप को भारत माता के चरणों में समर्पित करना है, देश की रक्षा करना है। उसके इस निर्णय पर उसकी माँ श्रद्धा को बहुत गर्व था।
अविनाश भी जवान हो चुका था वह हमेशा अपनी माँ को समझाता, "माँ मैं आपसे बहुत ज़्यादा प्यार करता हूँ किंतु आप से ज़्यादा प्यार मैं हम सब की माँ भारत माता से करता हूँ। आप डरो नहीं माँ, मैं भी अपने देश के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ। यदि हर माँ आप की तरह डरेगी तो भारत माँ की रक्षा फिर कौन करेगा?"
अपने बेटे की लाख दलीलों के बावजूद भी आशा का मन हाँ कहने को कतई तैयार नहीं था। गंगा अपनी छोटी बहू की भावनाओं को समझती थी उसने तो अपने पति के बाद दो बेटे भी गंवाए थे। एक माँ के दिल पर क्या गुजरती है, वह जानती थी। वह यह भी समझती थी कि हर माँ के लिए इतना बड़ा दिल करना आसान नहीं है।
गार्गी अविनाश से बड़ी थी, अतः अठारह वर्ष की होते ही उसने फ़ौज में भर्ती होने के लिए पूरी तैयारी कर ली। अब उसकी ट्रेनिंग शुरू होने का वक़्त भी आ गया। घर में सभी की मदद से गार्गी ने अपने जाने की पूरी तैयारी कर ली। पूरे जोश से सराबोर गार्गी जाने से पहले अपनी दादी और माँ का आशीर्वाद लेने के उपरांत अपनी चाची के पास आई।
आशा, गार्गी की तरफ़ हैरान होकर देख रही थी, एक लड़की होते हुए भी इतनी हिम्मत, इतना साहस गार्गी में देख कर उसके मुंह से निकल गया, "गार्गी बेटा, क्या तुम्हें डर नहीं लगता? जीजी ने भी तुम्हें जाने के लिए मना नहीं किया?"
"नहीं चाची डर कैसा? देश है तभी तो हम हैं, यदि देश ही सुरक्षित हाथों में नहीं होगा तो हम सब भी सुरक्षित कहाँ रह पाएंगे?"
"माँ हमेशा कहती है, गार्गी अपनी मातृभूमि के लिए जो भी कर सकती हो, अवश्य करो। भगवान ना करे पर देश की सेवा करते करते, तुम भी अगर वीर गति को प्राप्त हो जाओगी तो भले ही मेरी आँखों से कितने भी अश्क बह जाएँ किंतु तुम्हें तिरंगा ओढ़ाने में मेरे हाथ नहीं कांपेंगे। तुम्हारी तस्वीर तुम्हारे पिता के पास लगाने में दिल भले ही रोए, किंतु तुम्हारी माँ होने का गर्व उस दर्द को अवश्य ही कम करेगा। भगवान यदि तुम्हें लंबी उम्र देता है तो अपने बच्चों को भी यही देश भक्ति के संस्कार अवश्य देना ताकि वह भी बड़े होकर हमारे परिवार की इस परंपरा को आगे बढ़ाएँ और मातृभूमि के लिए जीना सीखें।"
अपनी भतीजी का यह रूप देखकर आशा के दिल में वीरता ने आज पहली बार दस्तक दी। आशा ने उससे कहा, "गार्गी बेटा आज तुम्हारी इस हिम्मत और देश भक्ति से ओत प्रोत इन भावनाओं ने मेरे अंदर पल रहे डर के ऊपर आक्रमण कर दिया है और मैं जानती हूँ जीत अब तो हिम्मत की ही होगी।"
आशा ने गार्गी को अपने सीने से चिपका लिया और आशीर्वाद देते हुए बोली, "गार्गी, तुम जाओ बेटा, अपने परिवार की परंपरा और कर्तव्यों को निभाओ। तुम्हारे पीछे-पीछे तुम्हारा भाई अविनाश भी तुमसे कंधे से कंधा मिलाने आ रहा है। आज पहली बार मुझे इस बात का दुःख हो रहा है कि काश मेरी और भी संतान होतीं।"
अविनाश यह दृश्य देखकर मन ही मन ख़ुश हो रहा था। उसका रास्ता अब साफ़ हो चुका था, जिस पर अभी तक उसकी माँ के डर की धुंध जमी हुई थी। अविनाश ने अपनी बहन को गले से लगाया। आँखों ही आँखों में दोनों ने जल्दी मिलने की बात कर डाली। अविनाश गार्गी को स्टेशन छोड़ने चला गया। आज गंगा और श्रद्धा छोटी बहू का हृदय परिवर्तन देख कर बहुत ख़ुश थीं।
गंगा ने छोटी बहू से कहा, "तुम्हारा यह हृदय परिवर्तन और वीरता से भरा हुआ निर्णय हमारे गाँव की कितनी ही माताओं को प्रेरणा देगा। तुम भी तो इस देश की एक वीर सैनानी हो छोटी बहू। तुम जानती हो कि कुछ लोग परदे के पीछे ही काम करते हैं। तुमने भी उसी तरह परदे के पीछे रहते हुए अपने पुत्र को जन्म देकर और उसे बड़ा करके देश के लिए समर्पित किया है। तुम्हारे दुःख को मैं समझ सकती हूँ। जो स्त्री एक ही वर्ष में विधवा हो गई हो उसके अंदर इस तरह की भावनाओं का जन्म लेना स्वाभाविक है। आज वीरता से भरे तुम्हारे इस रूप को देखकर पूरे परिवार को तुम पर गर्व है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)