resolution of good luck in Hindi Moral Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | सौभाग्य का संकल्प

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सौभाग्य का संकल्प


सौभाग्य का संकल्प
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सारिका का ब्याह हुए छः महीने हो गए ।भरा पूरा परिवार था, जिसमें सास ससुर, जेठ जेठानी और उनके बच्चे हैं।
जेठानी सरकारी स्कूल में जॉब करती है लेकिन सारिका विशुद्ध गृहणी ही थी।घर का काम सब मिलकर आपसी सामंजस्य से निपटा लेती थीं। किसी को किसी से कोई बराबरी या ईर्ष्या द्वेष जैसा कोई भाव नहीं था।
जेठानी स्कूल चली जाती तो सारिका अपनी सासू मां से पूछ कर कभी कभी पड़ोस की हम उम्र कंचन के यहाँ चली जाती थी।
धीरे -धीरे सारिका के सीधेपन का फायदा उठाते हुए कंचन ने उसके कान भरनाशुरू कर दिया।
एक दिन वे दोनों आंगन में बैठ कर बात कर रही थीं कंचन बोली , 'सारिका ,तुम्हें नहीं लगता तुम्हारे घर में तुम्हारी जेठानी को ज्यादा महत्व दिया जाता है?
सुनकर सारिका सकते में नहीं आई, और बड़े विश्वास से बोली ,मगर मुझे तो ऐसा तो कुछ नहीं लगता।घर में हम दोनों को बराबर लाड़ -प्यार मिलता है।
अरे बहना! वो नौकरी करती है ,घर में पैसे कमा कर देती है।उससे फर्क तो पड़ता है । कंचन ने सारिका को भरमाने की कोशिश की !
मैं सब समझती हूं, तुम हमें न ही समझाओ तो ही अच्छा है- सारिका ने बेरुखाई से कहा
शायद तू बुरा मान गई, पर तेरी सास हमेशा तेरी बुराई ही करती है, मैं जानती हूं तू दिन रात कोल्हू के बैल की तरह काम करती है और वो तेरी जेठानी की तारीफों के पुल बांधती रहती है।
इसमें गलत क्या है? मेरी जेठानी तारीफ के काबिल है, तुझे पता है, दीदी मुझे देवरानी नहीं अपनी बेटी मानती हैं, नौकरी करती हैं, पैसे खर्च करती हैं, फिर भी आफिस से लौटकर हमेशा काम में मेरा हाथ ही बंटाती हैं, मेरे बिना कुछ कहे ही मेरी जरूरत की हर चीज लाकर देती हैं, अपने साथ बैठाकर खिलाती पिलाती हैं।
अपने बच्चों के लिए जो भी लाती हैं,वो सब मेरे लिए भी लाती हैं, बच्चे भी मुझे चाची नहीं दीदी ही बोलते हैं।
जब मैं कहती हूं कि दीदी अब मैं बच्ची नहीं हूं,तो जानती है, वो क्या कहती हैं, मुझे पता है तू बड़ी हो गई है पर मेरे लिए बेटी जैसी ही है। अभी तेरी उम्र क्या है? शादी हो जाने से बचपन और अल्हड़पन अचानक खोने से मन कभी कभी बंधन महसूस करने लगता है, जिससे जीवन में बहुत सी दुश्वारियों का प्रवेश हो जाता है। तुम आराम से रहो, कोई बंधन मत समझो, जो करना हो करो, न करने का मन हो तो न करो, कोई कुछ कहता है तो मुझे बताओ, मैं सब संभाल लूंगी।
इतना ही नहीं जब मेरी सास कभी मुझे कुछ कहती भी हैं तो दीदी उन्हें ही समझाती हैं, जाने दो मां, बच्ची है, धीरे धीरे जब जिम्मेदारियों का बोझ पड़ेगा तो सब समझ जायेगी।
मगर वो जिम्मेदारी का समय कब आयेगा बहू?
जब वो मां बन जायेगी? हंसते हुए दीदी बात खत्म कर देती है।
तब मेरी सास दीदी से कहती हैं, लगता है बहू कि तू मेरी सास है और मैं तेरी बहू। और दोनों खूब हंसती हैं, तब ससुर जी के चेहरे पर जो संतोष भरी खुशी दिखती है, उसका अहसास तू कभी नहीं कर पायेगी।
और सासू मां हम दोनों को ढेरों दुआएं देती हैं और भगवान से प्रार्थना करती हैं कि हमारे बच्चों पर किसी की नजर न लगे।
जेठ जी को कुछ चाहिए होता है तो वे मुझे ही बोलते हैं सारिका बेटा जरा ये दे जाओ।
और तो और उनके दोस्त तो हंसते भी हैं कि यार तुझे तो बैठे बिठाए इतनी बड़ी बेटी मुफ्त में मिल गई।
हां यार ! सारिका के आने से मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि मैं दो नहीं तीन बच्चों का बाप हूँ।
कंचन को अपनी सारी योजनाएं धराशाई होती नजर आने लगीं।
तब शेफाली ने कहा तुम देवरानी जेठानी में तो कभी बनती नहीं है।वो इसलिए कि तुमने उसे देवरानी नहीं नौकरानी समझ रखा है, तेरा पति थोड़ा ज्यादा कमाता है इसीलिए न! कभी उसे भी छोटी बहन, दोस्त समझकर देख, देवर में छोटे भाई की जगह रखकर देख ,सबके साथ तुझे भी अच्छा लगेगा। तेरी सास नहीं हैं, तो तू तो उनकी बहू नहीं बेटी बनकर उनका ध्यान रख, फिर देख उनका अकेलापन भी दूर हो जायेगा और वे खुश भी रहेंगे, बच्चों को उनके पास जाने के लिए छोड़ दे, तेरे बच्चों का भाग्य बदल जायेगा और उनमें संस्कार भी आ जायेगा।तू क्या समझती है कि बच्चों को उनके दादा से दूर रखकर तू अच्छा कर रही है, कभी नहीं, दादा दादी से ज्यादा लाड़ प्यार तो मां बाप भी नहीं दे पाते।
इस मामले में मैं सौभाग्यशाली हूं कि अपने मां बाप की अकेली संतान हूं, तो भाई बहन का लाड़ प्यार नहीं जान सकी थी, लेकिन दादी के साथ मेरा बचपन बीता, दादी के साथ तो मैं सबसे ज़्यादा खुश रहती थी, और जानती हो मेरी मां भी बहुत निश्चिंत रहती थीं और अब ससुराल में जेठानी के रूप में बड़ी बहन का लाड़ प्यार दुलार पाकर समझ में आया कि बहन ऐसी होती है। जेठ जी के रूप में बड़ा भाई भी मिल गया। इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा? सास ससुर में अपने मां बाप का अक्स दिखता है मुझे। एक घर से विदा होकर दूसरे घर आ गई हूँ मैं। बस यही फर्क लगता है मुझे कल और आज में। मेरे माँ बाप भी खुश हैं , उन्हें अपनी बेटी की चिंता जो नहीं करनी पड़ रही है।
फिर सारिका ने कहा कि देख कंचन अच्छा सोच, अच्छा कर, फिर सब अच्छा ही होगा। फिर तुझे भी अपने सौभाग्य पर गर्व महसूस होगा।
कंचन ने सारिका से कहा - तेरा बहुत बहुत धन्यवाद, तूने बड़ी सहजता से मेरी आंखें खोल दी, अब मैं किसी की बुराई नहीं करुंगी, अपनी देवरानी से छोटी बहन, एक दोस्त,देवर को बड़ी बहन सा लाड़ प्यार दूंगी। ससुर जी को पिता की तरह समझकर उनकी सेवा करुंगी, बच्चों को उनसे दूर नहीं करुंगी, बड़ी बहू नहीं बड़ी बेटी बन जाऊंगी मैं।
बहुत अच्छा, यदि तू ऐसा कर सकी तो सबसे ज्यादा खुशीम मुझे होगी-कहकर शेफाली अपने घर की ओर जाने के लिए खड़ी हो गई।
कंचन शेफाली को दरवाजे तक छोड़ने आई।आज वह अपने को बहुत हल्का महसूस कर रही थी, उसकी आंखें सारिका के विचारों से भीग गईं।
अब वो मन ही मन खुद को बदलने का संकल्प कर रही थी।

सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश