आज जया बड़ी खुश थी,वो दो सालों के बाद अपने घर जो लौट रही थी,अपने पति और बच्चों से मिलने के लिए वो बेकरार हुई जा रही थी,उसने कैसे ये दो साल कुष्ठ रोग चिकित्सालय में बिताए थे ये वो ही जानती थी,चिकित्सालय क्या वो तो एक आश्रम की तरह था जहाँ कुष्ठ रोगियों का मुफ्त इलाज होता था,वो कितना रोई थी अपने घर से आते वक्त लेकिन आज वो बेहद खुश है....
दो साल पहले जब उसकी तबियत खराब रहने लगी तो डाक्टर ने कहा कि ये कुष्ठ रोग के शुरुआती लक्षण हैं जैसे कि शरीर का कोई भी हिस्सा सुन्न होना जा जाना,तापमान में बदलाव महसूस ना होना,किसी चींज का स्पर्श महसूस ना होना,सुई या पिन चुभने से संवेदना का महसूस ना होना,लगातार वजन कम होने लगना,शरीर पर फोड़े या लाल व सफेद चकत्ते बनना,जोड़ो में दर्द होना,बाल झड़ना, त्वचा पर हल्के पीले रंग के घाव या धब्बे बनना.....
ये सब सुनकर जया के तो जैसे होश ही उड़ गए थे,फिर उस के ससुराल वालों ने उसे कुष्ठ रोग चिकित्सालय जाने की सलाह दी,क्योंकि डाक्टर ने कहा था कि अभी तो इस रोग की शुरुआत है ,इलाज कराने से ये जल्दी ठीक हो जाएंगी,अगर अभी लापरवाही बरती तो रोग भयंकर रुप ले सकता है,तब इनका इलाज हो पाना असम्भव हो जाएगा, वो वहाँ नहीं जाना चाहती थी लेकिन घरवालों के कहने पर वो वहाँ गई, इन दो सालों में उससे आश्रम में कोई मिलने नहीं आया क्योंकि उसने खुद मना किया था कि वो कुष्ठ रोगियों का चिकित्सालय है,घर का कोई भी सदस्य उससे मिलने ना आएं,वो खत लिखकर अपना हाल चाल बताती रहेगी,वहाँ किसी को भी आने की कोई जरूरत नहीं है.....
और यही हुआ इन दो सालों में उससे मिलने वहाँ कोई ना पहुँचा और इन दो सालों में उसके पति के केवल दो खत आए,वो अपने दोनों बच्चों का मुँह देखने को तरस गई थी,वो जब दो साल पहले दोनों बच्चों को छोड़कर गई थी तो उसका बेटा सोनू चार साल का था और उसकी बेटी गुड्डी दो साल की थी,वो कैसें अपने कलेजे को टुकडों से दूर हुई थी ये वो ही जानती है....
उसकी जेठानी और देवरानी दोनों ने उसे दिलासा देकर कहा था कि वो बच्चों की बिल्कुल भी चिन्ता ना करें,वो दोनों उसके बच्चों को बड़े प्यार और दुलार से रखेगीं और फिर अपने कलेजे पर पत्थर रखकर वो अपने पति और बच्चों को छोड़कर आश्रम चली गई थी.....
उसका पति मदन उसे कितना चाहता था,कभी भी अपनी आँखों से उसे ओझल नहीं होने देता था,जब वो दो चार दिन के लिए मायके जाती तो मदन बड़ी बेसब्री से उसकी राह ताका करता था और जब उसे और ज्यादा दिन मायके में लग जाते थे तो खुद ही उसके मायके दौड़ा चला आया करता था,जया के बिना बड़ी मुश्किल से उसके दिन और रातें कटा करतीं थीं,मायके से आने पर उसकी कोठरी के किवाड़ दिन में भी बंद रहते थे,जिससे इस बात को लेकर उसकी जेठानी बड़ा मज़ाक बनाती थी और मुहल्ले पड़ोस की औरतों से भी इस बात को बड़े चटखारे ले लेकर बताया करती थी कि.....
"हमारे देवर जी को तो जरा भी चैन नहीं है,पति हो तो ऐसा जो चौबीस घण्टे अपनी बीवी के पल्लू से ही बँधा रहता है",
अपनी जेठानी की बातें सुनकर जया झेंप जाया करती थी और पति से कहती.....
"सुनो जी! तुम मुझसे जरा दूर ही रहा करो,देखो तो तुम्हारी वजह से मुझे ना जाने क्या क्या बातें सुनने को मिलतीं हैं"
तब उसके पति मदन कहते....
"मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता जया!",
और फिर ऐसा कहकर वो उसे अपनी बाँहों में भर लेते और जया भी अपने पति की बाँहों में मोम की तरह पिघल जाती,वो कौन सा अपने पति से कभी दूर जाना चाहती थी,लेकिन निगोड़ी इस बिमारी ने उसे दो सालों तक उससे उसके पति को दूर रखा था,अब घर जाकर पूरे दो सालों की कसर पूरी कर दूँगी और यही सब सोचकर जया बस में बैठी भीतर ही भीतर मुस्कुरा रही थी और मारे खुशी के उसके पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे,उसने अपने ठीक हो जाने की खबर खत लिखकर बता दी थी तो उसके जेठ जी का उसके पास खत आया था कि मदन अपने काम में जरा व्यस्त है इसलिए वो नहीं आ पाएगा,तुम खुद ही बस में बैठकर घर चली आओ,तो जया ने सोचा मैं खुद ही घर चली जाती हूँ,सबर तो मुझसे भी नहीं हो रहा है और फिर वो आ गई...
फिर जया मन में सोचने लगी कि आश्रम के डाक्टर बाबू ने उससे चलते वक्त कहा था कि वो अब बिलकुल से ठीक हो चुकी है क्योंकि शुरुआत में ही वो यहाँ इलाज करवाने चली आ गई थी,लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था लेकिन अब यह ज्ञात हो चुका है कि कुष्ठरोग ना तो यौन-संपर्क के द्वारा फैलता है और ना ही उपचार के बाद यह अत्यधिक संक्रामक होता है क्योंकि लगभग 95% लोग प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षित होते हैं और इससे पीड़ित लोग भी उपचार के मात्र दो सप्ताह बाद ही संक्रमित नहीं रह जाते....
वो बस में अभी भी बैठी थी ,उसका गाँव बस आने ही वाला था,पन्द्रह कोस दूर ही तो रह जाता है फूलपुर से भरतपुर और बस कुछ ही देर में वो अपने घर में होगी,कुछ देर बाद भरतपुर भी आ गया तो कण्डक्टर सवारियों से बोला....
"भरतपुर वालों उतरो,भरतपुर आ गया "
और वो अपना थैला लेकर बस से उतर गई,वो गाँव की पक्की सड़क पर उतरी थी और पक्की सड़क से उसे तीन कोस और गाँव पहुँचने के लिए पैदल चलना था फिर उसने अपने मुँह पर हल्का सा घूँघट किया और चल पड़ी घर की ओर थोड़ी ही देर में वो घर के सामने थी,उसने द्वार पर लगे किवाड़ खटखटाएं तो उसकी देवरानी ने दरवाजा खोला,देवरानी को देखकर जया बहुत खुश हुई और जैसे ही उसे गले से लगाने को आगें बढ़ी तो देवरानी पीछे हो गई,देवरानी का ऐसा व्यवहार जया को खटक गया लेकिन वो बोली कुछ नहीं,फिर जेठानी आई तो जया ने उसके चरण स्पर्श करने चाहे लेकिन जेठानी भी पीछे हट गई....
फिर जेठानी बोली....
"मैं रसोई में खाना बनाने जा रही हूँ,तुम सफर से आई हो तो जाकर जरा आराम कर लो",
जया अपनी कोठरी की ओर गई तो वहाँ ताला पड़ा था,उसने जेठानी से ताले की चाबी माँगी तो जेठानी बोली.....
"देवर जी अपने साथ ले गए होगें,कोई बात नहीं तुम बैठक में चटाई बिछाकर आराम कर लो",
तब जया बोली....
"कोई बात नहीं मैं बाद में आराम कर लूँगी,चलो जीजी रसोई में मैं तुम्हारा हाथ बँटा देती हूँ",
और फिर जया के सामने उसकी जेठानी कुछ तरकारियाँ रख दीं,बोली कि इन्हें काट दो और फिर जया तरकारियाँ काटने लगी,जब तरकारियाँ कट गईं तो जेठानी ने जया से आराम करने को कहा तो वो बैठक में फर्श पर चटाई बिछाकर आराम करने लगी,वो जब उठी तब तक शाम हो चुकी थी,उसने सोचा मैं अपनी गाय गौरी से मिल आती हूँ,देखती हूँ वो मुझे पहचानती है या नहीं.....
वो गौशाला पहुँची तो उसने देखा कि गाय के सामने वही सब तरकारियाँ पड़ी थीं जो उसने काटीं थीं,इसका मतलब था कि उसकी छुई हुई तरकारियाँ रसोई में नहीं पकाईं गईं,वो अपना मसोसकर रह गई,फिर अपने बच्चों और पति का इन्तज़ार करने लगी,बच्चे आज अपने पिता मदन के साथ मेले गए थे,देवरानी ने उसे बताया था,साथ में देवरानी और जेठानी के बच्चे भी मदन के साथ गए थे और जैसे ही सारे बच्चे मेले से लौटे तो जेठानी ने अपने बच्चों के साथ सोनू और गुड्डी को भी अपनी कोठरी में बुला लिया और जया से बोली....
"ये मेरे साथ ही सोते हैं ना! दो साल से उन दोनों को मेरे साथ रहने की आदत पड़ गई है",तुम खाना खाकर अपने कमरें में जाकर आराम करो",
और फिर उस दिन उसकी जेठानी ने सबसे पहले जया को खाना खिलाकर उसे उसकी कोठरी में जाने को कहा और जया अपनी कोठरी में आ गई,उसने देखा कि दो चटाईयाँ थोड़ा दूर दूर बिछीं हैं और उसने दोनों चटाईयों के बीच की दूरी को हटाते हुए दोनों चटाईयाँ साथ में बिछा दीं,उसने मन सोचा कि जेठानी जी ने ठीक ही किया जो वो बच्चों को अपने पास ले गईं,आज वो अपने पति से जीभर कर बातें करेगी और दो साल की दूरियाँ पल भर में मिट जाएगीं,लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,उसका पति रात के दूसरे पहर कोठरी में आया और फिर उसने दूसरी चटाई को दूर खीच लिया,उस चटाई पर जया का हाथ रखा था और वो हाथ इतनी जोर से फर्श पर गिरा कि उसकी कलाइयों की एक दो चूड़ियाँ टूटकर उसके हाथ में चुभ गई,लेकिन वो दर्द उसे जरा भी महसूस नहीं हुआ क्योंकि जो दर्द उसके दिल में उठा था उसके मुकाबले वो कुछ भी नहीं था और फिर जया रात भर सुबकती रही...
और फिर सुबह होने के बाद पता चला कि ना जया उस घर में मौजूद है और ना उसका थैला,वो उस घर से चली गई थी क्योंकि उसका कुष्ठ रोग तो ठीक हो गया था लेकिन शायद उसके घरवालों के मन का अभी तक शुद्धिकरण नहीं हो पाया था......
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....