"कहाँ चले देवर जी? अरे! हमारा नेग तो देते जाइए",दीपाली ने अपने देवर सुबोध से कहा....
"भाभी! दोनों दीदियों ने तो लूट ही लिया है,लीजिए जो बचा खुचा है तो आप भी ले लीजिए",सुबोध बोला...
"अरे! भाई! मैं तो मज़ाक कर रही थी,तुम तो मेरे बेटे के समान हो,तुमसे क्या नेग लेना,जाओ तुम बेफिक्र होकर अपने कमरे में जाओ,आरती भी तुम्हारा बेसब्री से इन्तजार कर रही होगी",दीपाली बोली....
"थैंक्यू भाभी! जो आपने मेरे लिए आरती को पसंद किया",सुबोध बोला...
तब दीपाली बोली....
"थैंक्यू किस बात का सुबोध! बड़ी बहू होने के नाते ये तो मेरा फर्ज था कि इस घर के लिए ऐसी लड़की लेकर आऊँ जो बहुत सुन्दर,सुशील और संस्कारी हो और मुझे ये सब गुण अपनी ममेरी बहन आरती में दिखे और उसने भी तुम्हें पहली ही नज़र में पसंद कर लिया था और फिर मम्मी पापा के अलावा और भी रिश्तेदारों को आरती बहुत पसंद आई इसलिए इस रिश्ते में कोई अड़चन ही नहीं आई,फिर आरती है भी तो कितनी खूबसूरत",
"लेकिन फिर भी भाभी आरती को ढूढ़ा तो आपने ही था इसलिए इसका सारा श्रेय आपको ही जाता है",सुबोध बोला....
"बस...बस...रहने दे,अब मेरे गुणगान करना बंद कर,ये बातें तो बाद में भी होतीं रहेगीं,जा पहले अपनी नई नवेली दुल्हन के पास जा,वो तेरा इन्तजार कर रही होगी",दीपाली बोली....
"जी! भाभी",
और ऐसा कहकर सुबोध जाने लगा तो दीपाली ने पूछा....
"कोई गिफ्ट लिया है उसके लिए या नहीं",
"हाँ! भाभी! सोने की अँगूठी लाया हूँ",सुबोध बोला...
"तब ठीक है जा! और उसे ज्यादा मत सताना",दीपाली मुस्कुराते हुए बोली....
और इधर सुबोध शरमाते हुए अपने कमरे की ओर चला गया,सुबोध के जाने के बाद दीपाली भी सोने के लिए वहीं हाँल में लगे अपने बिस्तर पर जा लेटी,अभी ज्यादातर मेहमान घर पर ही थे,कुछ ही मेहमान गए थे,इसलिए दीपाली ने अपना कमरा शादी में आई लड़कियों को दे रखा था और खुद बुजुर्ग महिलाओं के साथ हाँल में बिस्तर लगाकर सो रही थी,पुरुषों का ठिकाना पड़ोस के घरो में हो गया था,इसलिए वें सभी वहीं आराम कर रहे थे,शादी की सारी जिम्मेदारी बड़ी बहू होने के नाते दीपाली ने ही सम्भाली थीं,वो इतने दिनों से काम कर करके थक के चूर हो चुकी थी इसलिए बिस्तर पर लेटते ही फौरन उसकी आँख लग गई,
अभी दीपाली को सोए हुए कुछ ही देर हुई थी कि एक जोर की चीख सुनाई दी,चीख इतनी तेज थी कि सभी अपने अपने बिस्तर पर हड़बडा़कर बैठ गए,दीपाली भी नीद से जाग उठी और सबसे बोली....
"कौन चीखा",
तभी बड़ी बुआ जी बोलीं....
"दीपाली! हम में से तो कोई नहीं चीखा,चीख तो शायद सुबोध के कमरें से आई है",
"सुबोध के कमरें से,ये भला कैसें हो सकता है?",दीपाली बोली....
"हाँ! भाभी! सुबोध के कमरें से ही चीख आई है",दीपाली की बड़ी ननद सुरेखा बोली....
"सच! में!",दीपाली ने दोबारा पूछा...
"हाँ! वहीं से चीख आई है",सुरेखा ने दोबारा जवाब दिया....
तब दीपाली की सास कुमुद बोली....
"दीपाली! जाकर देख तो कि क्या बात है?, हम लोंग जाऐगें तो अच्छा नहीं लगेगा,नई बहू से कुछ भी पूछते ठीक नहीं लगेगा,वो तो तेरी बहन है तो तू उससे आसानी से कुछ भी पूछ सकती है,क्योंकि चीखी तो आरती ही थी ये मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ",
"ठीक है तो मैं अभी जाकर देखती हूँ कि क्या बात है"?,दीपाली बोली....
और फिर दीपाली सुबोध के कमरे की ओर गई और उसने दरवाजे पर धीरे से दस्तक देते हुए पूछा.....
"आरती....सब ठीक है ना!",
और फिर दीपाली के ऐसा पूछने पर आरती ने दरवाजा खोला और दीपाली से लिपटकर जोर जोर से रोने लगी,आरती को रोता देखकर दीपाली बहुत जोर से घबरा गई और उससे पूछा....
"क्या हुआ आरती! तू रो क्यों रही है,सुबोध ने तुझसे कुछ कहा क्या"?
"नहीं दीदी! वें कुछ कह ही नहीं पाए",आरती बोली....
"तेरे कहने का मतलब क्या है आरती? साफ साफ बोल मैं कुछ समझी नहीं",दीपाली ने घबराकर पूछा...
"दीदी!जैसे ही उन्होंने मेरा घूँघट उठाया तो बेहोश होकर बिस्तर पर लुढ़क गए,इसलिए डर के मारे मेरी चीख निकल गई",आरती बोली...
"ये क्या कह रही है तू"?,दीपाली ने पूछा....
"हाँ! दीदी! उन्होंने मेरी उँगली में अँगूठी पहनाते हुए कुछ बातें की और फिर जैसे ही मेरा घूँघट उठाया तो बेहोश हो गए",आरती बोली....
"चल मैं जाकर देखती हूँ कि क्या हुआ है सुबोध को",दीपाली बोली....
और फिर दीपाली सुबोध के पास गई और पानी की बूँदें उसके चेहरे पर डालकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी लेकिन सुबोध होश में नहीं आया तो वो भागते हुए हाँल में गई और फौरन टेलीफोन करके डाक्टर साहब को बुलाया,इसके बाद घर के सभी लोगों को बताया कि सुबोध बेहोश हो गया,तो सभी भागकर सुबोध के कमरे में पहुँचे,थोड़ी देर में डाक्टर साहब अपने स्कूटर से वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने सुबोध का इलाज शुरू किया और कुछ देर बाद सुबोध होश में आ गया,तब डाक्टर साहब बोलें....
"शायद शादी की थकावट से ऐसा हुआ होगा,इन्हें आज की रात आराम करने दीजिए,कल तक ये बिलकुल स्वस्थ हो जाऐगें",
फिर डाक्टर साहब चले गए,उनके कहने पर दीपाली ने आरती को अपने कमरें में सुला दिया और सुबोध दूसरे मेहमानों के साथ जा लेटा क्योंकि सुबोध को अकेले उस कमरें में लिटाना उचित नहीं था क्योंकि उसकी तबियत ठीक नहीं थी और इसी तरह पूरी रात बीत गई फिर सुबह हो गई और इस तरह पूरा दिन बीत गया और फिर से रात आ गई,आज रात फिर दीपाली आरती को दुल्हन बनाकर उसके कमरें में बैठा आई और सुबोध से उसके कमरें में जाने को कहा और पहली रात की तरह सुबोध फिर आरती के पास पहुँचा और फिर से वही चीख सुनाई दी और आज फिर से सभी डर गए,दीपाली फिर कमरें में पहुँची तो आज भी वही हाल था,सुबोध फिर बेहोश था और फिर डाक्टर साहब को बुलाया गया,लेकिन इस बार डाक्टर साहब ने कहा कि सुबोध के बेहोश होने की वजह थकावट नहीं है,आप इन्हें किसी साइकैट्रिस्ट को दिखाइए,वें ही इनकी बीमारी की ठीक ठीक वजह बता पाऐगें.....
ये बात सुनकर वहाँ मौजूद महिला मेहमानों के बीच खुसर पुसर होने लगी,वें आपस में कहने लगी कि हो ना हो ये कोई ऊपरी चक्कर है या दुल्हन ही किसी रुह प्रेत को अपने साथ ले आई है तभी ऐसा हो रहा है,वो रुह इन दोनों का मिलन ही नहीं होने दे रही है.....
दीपाली ने ये सब सुना तो सबसे बोली....
"शान्त रहिए आप लोग,ये क्या बेसिर पैर की बातें कर रहे हैं आप लोग ,कल ही हम लोग सुबोध को किसी साइकैट्रिस्ट को दिखाते हैं,सारी बातें पता चल जाऐगीं कि क्या बात है"?
फिर दूसरे दिन सुबोध अपने बड़े भाई और पापा के साथ साइकैट्रिस्ट के पास गया और डाक्टर ने उससे बहुत से सवाल पूछे....
और सुबोध ने सब कुछ साफ साफ बता दिया कि अभी उसकी उम्र केवल तेईस साल है,ना उसका पहले किसी लड़की के साथ कोई अफेयर था और ना ही कोई शारिरिक सम्बन्ध,उसने तो पहले ही मन में सोच लिया था कि वो अपने घरवालों की पसंद से ही शादी करेगा,अब डाक्टर को पूरी बात समझ में आ रही थी और उन्होंने आरती को भी अपने पास बुलवाने को कहा और जब डाक्टर साहब आरती से मिले तो उन्हें पूरी बात ठीक तरह से समझ आ गई थी क्योंकि आरती बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थी,सुबोध से कई गुना खूबसूरत और फिर डाक्टर साहब सबसे बोलें.....
"सुबोध को वीन्सट्राफोबिया या कैलिगनीफोबिया हुआ है"
"इस बिमारी में होता क्या है डाक्टर साहब?",सुबोध के बड़े भाई प्रमोद ने पूछा...
तब डाक्टर साहब बोले.....
"इस फोबिया में पुरूषों को खूबसूरत महिलाएं पसंद तो होतीं हैं लेकिन ऐसी महिलाओं से उन्हें डर लगता है,खूबसूरत महिलाओं को देखकर या उनसे अकेले में बात करने के ख्याल से भी वें बुरी तरह घबराते हैं,इस फोबिया से पीड़ित लोगों को सुंदर महिलाओं से इतना ज्यादा डर लगता है कि वो ऐसी महिलाओं से मिलने या बात करने के ख्याल भर से ही बुरी तरह से घबरा जाते हैं,कभी कभी तो बेहोश भी हो जाते हैं,इस बिमारी के लक्षण है,शरीर बुरी तरह काँपना,दिल की धड़कन बढ़ जाना,साँस लेने में दिक्कत होना,पसीना आना, उल्टी, सिरदर्द,रोना और बेहोश हो जाना ,कभी कभी तो दिल का दौरा भी पड़ जाता है",
"तो इसका कोई इलाज",सुबोध के पापा ने पूछा....
"इस बिमारी का कोई इलाज नहीं है,अगर मरीज के साथ जबर्दस्ती की भी गई तो उन्हें हार्टअटैक हो सकता है और मरीज की जान भी जा सकती है,ये एक मानसिक बिमारी है जो कभी भी दूर नहीं हो सकती", डाक्टर साहब बोले...
"तो अब क्या करें हम सब,उसकी तो अभी अभी शादी हुई है",सुबोध के बड़े भाई प्रमोद ने पूछा....
"ये तो अब आप सभी को तय करना पड़ेगा कि आगें क्या करना है?",डाक्टर साहब बोले....
और फिर सभी घर लौट आएं,सभी चिन्ता में थे कि अब ऐसा क्या किया जाए जिससे सुबोध और आरती की खुशियाँ बरकरार रहें,इस बात को लेकर सभी चिन्ता में डूबे थे और सुबोध की माँ का तो रो रोकर बुरा हाल था,वो अपने बेटे को जीवित भी देखना चाहती थी और खुश भी,बड़े अरमानों के साथ वो आरती को सुबोध की दुल्हन बनाकर लाई थी,लेकिन अब उन दोनों की खुशियों को नजर लग चुकी थी और तभी आरती ने सभी को रोते रोते अपना फैसला सुनाया कि वो सुबोध से तलाक लेगी,ऐसी शादी को जोड़े रखने का कोई मतलब नहीं जिसमें उसके पति की जान जा सकती हो,वो रोते हुए सबसे बोली.....
"मैंने ये फैसला अपने दिल पर पत्थर रखते हुए लिया है,मैं भी सुबोध जी से अलग नहीं होना चाहती,मैने उन्हें अपने दिल में देवता का स्थान दिया है,लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरी ये खूबसूरती मेरे देवता की जान की दुश्मन बन जाएगी,मैं एक रात की दुल्हन बनकर जीवन भर रह लूँगी लेकिन मैं उनकी जान की दुश्मन नहीं बन सकती कृपया मुझे आप सभी माँफ कर देना",
आरती की इस बात पर सबका मन भर आया और सभी औरतों की आँखों में आँसू आ गए,लेकिन इसके सिवाय और कोई चारा ना था,आरती एक रात की दुल्हन ही सही,लेकिन उसका सुहाग जिन्दा तो रहेगा.....
समाप्त......
सरोज वर्मा.....