Wo Maya he - 58 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 58

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वो माया है.... - 58



(58)

जगदीश नारायण के साथ बद्रीनाथ भवानीगंज पुलिस स्टेशन पहुँचे थे। जगदीश नारायण ने इंस्पेक्टर हरीश से बात की। उससे कहा कि वह विशाल के वकील हैं। वह उस बयान की कॉपी चाहते हैं जो पूछताछ के दौरान विशाल ने दिया है। इंस्पेक्टर हरीश ने बताया कि पुष्कर केस के लिए क्राइम ब्रांच द्वारा विशेष जांच अधिकारी साइमन मरांडी नियुक्त किए गए हैं। वह कुछ समय में पहुँचने वाले हैं। उसके बाद ही पूछताछ होगी।
जगदीश नारायण ने कहा कि वह और बद्रीनाथ विशाल से मिलना चाहते हैं। इंस्पेक्टर हरीश ने उन्हें मिलने की इजाज़त दे दी। बद्रीनाथ को देखकर विशाल भावुक हो गया।‌ जगदीश नारायण ने समझाया कि यह वक्त भावुक होने का नहीं है। वह उसकी मदद के लिए यहाँ आए हैं। इसलिए वह उनके सवालों का सही सही जवाब दे। उनसे कुछ ना छिपाए जिससे वह उसकी मदद कर सकें। विशाल बातचीत के लिए तैयार हो गया। जगदीश नारायण ने पूछा,
"तुम कौशल को जानते हो ?"
विशाल ने सर झुका लिया। जगदीश नारायण ने कहा,
"विशाल हमने कहा है कि जो है खुलकर बताओ। इस तरह से काम नहीं चलेगा।"
विशाल ने कहा,
"हाँ.....जानते हैं।"
"कितने समय से जानते हो ?"
"पुष्कर की शादी होने के बाद मिले थे।"
"उससे पहले उसे नहीं जानते थे।"
"नहीं......"
जगदीश नारायण ने यह बात एक नोटबुक में लिख ली। उन्होंने आगे पूछा,
"तुम लोगों की मुलाकात भवानीगंज में ही हुई थी। क्या वह यहीं का रहने वाला था ?"
"मुलाकात भवानीगंज में ही हुई थी। वह कुछ साल यहाँ रहा था। फिर काम की तलाश में पंजाब चला गया था। वहीं रह रहा था।"
"तो फिर कैसे मिले तुम दोनों‌ ?"
"उसके दोस्त पवन के ज़रिए हमें उसके बारे में पता चला। हमने उसे मिलने बुलाया।"
"तुमने उसे मिलने बुलाया। पैसों की बात हुई। तुमने उसे पैसे दिए भी।"
विशाल ने धीरे से हाँ कहा। जगदीश नारायण ने कहा,
"अब मुख्य बात पर आओ। मामला क्या था जिसके लिए तुमने उसे पंजाब से बुलाया। पैसे दिए। उसे दिशा और पुष्कर के पीछे क्यों भेजा था ?"
यह सवाल करके जगदीश नारायण विशाल को गौर से देखने लगे। विशाल बहुत ही असहज लग रहा था। जगदीश नारायण ने कहा,
"तुम बताओगे नहीं तो हम मदद नहीं कर पाएंगे।"
विशाल ने बद्रीनाथ की तरफ देखा। बद्रीनाथ लगातार उसके चेहरे पर नज़र रखे थे। उन्हें विश्वास था कि कौशल से मिलने का जो भी कारण था वह गलत उद्देश्य के लिए था। विशाल को अपनी तरफ देखते हुए देखकर उन्होंने कहा,
"अब हमसे किस बात का संकोच कर रहे हो विशाल। तुम्हारे पास कौशल को बुलाने और पैसे देने का कोई तो उद्देश्य रहा होगा। जगदीश को तुम वह कारण साफ साफ बताओ। हमें कैसा लगेगा इसकी चिंता मत करो।"
विशाल कुछ क्षण चुप रहा। उसके बाद सारी बात बताई। जो कुछ विशाल ने बताया वह बद्रीनाथ के लिए विश्वास करने योग्य नहीं था। पर वह जानते थे कि यही सच है। अपना सच कबूलते हुए विशाल की आँखें भर आई थीं। दो बार बोलते हुए रुक गया था। बद्रीनाथ सब सुन रहे थे और सोच रहे थे कि एक पिता होने के नाते वह विशाल को जानते ही नहीं हैं। वह उठकर बाहर चले गए। सब जान लेने के बाद जगदीश नारायण ने कहा,
"उम्मीद है तुमने पूरी और सच बात बताई है। अगर कुछ और हो तो खुलकर बता दो। हमें उसके आधार पर ही केस तैयार करना है।"
"हमने सारी बात सच सच बताई है। क्या आप मुझे बचा पाएंगे ?"
"हमारी कोशिश यही होगी।"
यह कहकर जगदीश नारायण ने नोटबुक में जो लिखा था उस पर सरसरी नज़र डाली। उसके बाद उठकर बाहर चले गए। बाहर आकर उन्होंने इंस्पेक्टर हरीश को धन्यवाद दिया। उसके बाद थाने से निकल गए।

बद्रीनाथ जब घर पहुँचे तो वहाँ केदारनाथ और सुनंदा आए हुए थे। बद्रीनाथ आंगन में बैठ गए। केदारनाथ ने उन्हें बताया कि तिवारी का फोन उनके पास गया था।‌ उसने बताया कि पुलिस विशाल को अपने साथ ले गई है। यह खबर सुनते ही वह स्कूल से छुट्टी लेकर सीधे यहीं आ गए। उन्होंने फोन करके सुनंदा को भी बुला लिया। केदारनाथ ने कहा,
"भइया हमारे परिवार पर एक के बाद एक मुसीबत आ रही है। अब तो माया का उत्पात बहुत अधिक बढ़ गया है। भाभी ने बताया कि कोई बाबा कालूराम हैं। हम तो कहते हैं आप आज ही उनसे मिल लीजिए। आप कहेंगे तो हम साथ चले चलेंगे।"
विशाल ने जो कुछ बताया था उसके बाद से बद्रीनाथ बहुत अधिक परेशान हो गए थे। इस समय उनका मन कर रहा था कि चुपचाप किसी कोने में बैठकर रोएं। उन्होंने केदारनाथ की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया था। केदारनाथ ने भी उनकी मनोदशा पर ध्यान दिए बिना अपनी बात जारी रखी। उन्होंने कहा,
"पुलिस के हाथ ऐसा क्या लग गया कि विशाल को गिरफ्तार करके ले गई। जिज्जी बता रही थीं कि पुलिस ने किसी कौशल नाम के आदमी को पकड़ा था। उसने विशाल का नाम लिया। बात क्या है ?"
बद्रीनाथ अपना चेहरा दोनों हाथों में छुपाए चुपचाप बैठे थे। केदारनाथ ने कहा,
"आप तो किसी वकील के पास गए थे। विशाल से भी मुलाकात की। कैसा है वह ? कुछ बताया उसने ?"
केदारनाथ परेशान थे। जानना चाहते थे कि बात क्या है। इसलिए एक के बाद एक सवाल कर रहे थे। बद्रीनाथ को चुप देखकर बोले,
"भइया कुछ तो बताइए कि क्या हुआ ? हमें बड़ी फिक्र हो रही है।"
बद्रीनाथ ने अपना चेहरा ऊपर उठाया। केदारनाथ देखकर दंग रह गए। उनका चेहरा आंसुओं से भींगा हुआ था। उन्होंने कहा,
"क्या बताएं केदार..... कुछ ठीक नहीं है। तुम्हारे भाई की किस्मत में सुख नहीं है। अब तो बस जैसे तैसे यह जीवन कट जाए।"
यह कहकर बद्रीनाथ उठे। सीढ़ियां चढ़कर विशाल के कमरे में गए और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। केदारनाथ स्तब्ध रह गए। उमा और सुनंदा परेशान हो गई थीं। किशोरी ने कहा,
"हे भोलोनाथ..... आप क्यों हमारे भाई को इतना कष्ट दे रहे हैं। हमसे नहीं देखा जाता है। हमको उठा लीजिए।"
उमा बोलीं,
"माया का श्राप ज़रा सा भी चैन नहीं लेने दे रहा है। हे भगवान कब तक यह सब देखना पड़ेगा।"
सुनंदा ने उन्हें तसल्ली देने की कोशिश की। उमा ने कहा,
"घर से बिना कुछ खाए हुए गए थे। सोचा था कि लौटकर आएंगे तो खिला देंगे। हमें फोन करके बताया था कि वकील के साथ विशाल से मिलने पुलिस स्टेशन जा रहे हैं। ना जाने क्या हुआ है पुलिस स्टेशन में कि इतना परेशान हैं।"
जो कुछ हुआ केदारनाथ उससे दुखी थे। उन्हें लग रहा था कि वह अपनी पूछताछ में कुछ जल्दी कर गए। उनके भाई पर एक के बाद एक मुसीबतें आ रही हैं। अभी तो पुष्कर के जाने का घाव हरा था। अब विशाल की यह नई समस्या खड़ी हो गई। ऐसे में कोई भी अपना मानसिक संतुलन कैसे बनाए रख सकता है। उन्हें कुछ वक्त देना चाहिए था। कुछ देर आराम से बैठ लेते। कुछ खा पी लेते तब पूछना चाहिए था। अब केदारनाथ पछता रहे थे। उन्होंने कहा,
"भाभी....आप थाली लगा दीजिए। हम जाकर भइया को खिला देंगे।"
उमा उठने लगीं तो सुनंदा ने उन्हें रोक दिया। वह खुद रसोई में गईं और थाली लगाकर ले आईं। केदारनाथ थाली लेकर ऊपर चले गए। सुनंदा किशोरी को भी खाना खा लेने के लिए समझाने लगीं।

बद्रीनाथ तखत पर लेटे हुए थे। वह तकिए में मुंह छुपाकर रो रहे थे। केदारनाथ थाली लेकर कमरे के दरवाज़े पर खड़े थे। अपने भाई के रोने की आवाज़ उन्हें बहुत तकलीफ दे रही थी। वह समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें ? कुछ देर दुविधा में खड़े रहने के बाद उन्होंने सोचा कि अपने भाई को तसल्ली देना ज़रूरी है। उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया। साथ में आवाज़ दी,
"भइया.... दरवाज़ा खोलिए। खाना लाए हैं।"
बद्रीनाथ को अपने भाई की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह उठकर बैठ गए। केदारनाथ की आवाज़ आई,
"भइया....खाना खा लीजिए। आप कुछ खाकर नहीं गए थे। भाभी परेशान हैं।"
बद्रीनाथ ने उठकर दरवाज़ा खोला। केदारनाथ थाली लेकर अंदर चले गए। उन्होंने थाली मेज़ पर रखकर कहा,
"आप हाथ मुंह धो लीजिए।"
बद्रीनाथ वॉशरूम में चले गए। हाथ मुंह धोकर बाहर आए। थाली लेकर खाना खाने लगे। केदारनाथ चुपचाप बैठे थे। वह इस समय कुछ बोलना नहीं चाहते थे। खाना खाते हुए बद्रीनाथ को इस बात का बुरा लग रहा था कि वह केदारनाथ पर झल्लाकर ऊपर आ गए थे।‌ खाते हुए उन्होंने कहा,
"माफ करना केदार हम‌ अभी कुछ सोचने समझने लायक नहीं हैं। बेवजह तुम पर झल्ला उठे।"
"भइया ऐसी बातें मत करिए। हम आपका दुख समझते हैं। आप खाना खाकर कुछ देर आराम कीजिए। जब मन कुछ शांत होगा तो बात करेंगे।"
बद्रीनाथ चुपचाप खाना खाने लगे। केदारनाथ अपने भाई के चेहरे की तरफ देख रहे थे। उन्हें लगा जैसे कि वह अपनी उम्र से कहीं अधिक बूढ़े दिख रहे हैंं। उन्हें बद्रीनाथ के शब्द याद आए कि उनकी किस्मत में सुख नहीं है। अब तो बस जैसे तैसे ज़िंदगी बिताने की सोच रहे हैं। केदारनाथ के दिल में अपने भाई के लिए दर्द उठा।
खाना खत्म होने के बाद केदारनाथ नीचे से उनके लिए पानी लेकर आए। उन्हें पानी पिलाने के बाद बिस्तर पर लिटा दिया। जाते हुए दरवाज़ा बाहर से भेड़ दिया।
वह नीचे आए तो किशोरी भी खाना खा चुकी थीं। केदारनाथ ने उन्हें भी उनके कमरे में ले जाकर लिटा दिया। उन्होंने सुनंदा से कहा कि वह उमा के पास रहें। वह घर जाकर दोनों बेटियों को देख आते हैं।