It hailed as soon as I got my head shaved in English Short Stories by ABHAY SINGH books and stories PDF | सर मुंडवाते ही ओले पड़े

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सर मुंडवाते ही ओले पड़े

सर मुंडाते ओले पड़े।
प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:

आप ऐसे चाहे जैसे कहें। अंबेडकर के साथ सन 1942 में कुछ ऐसा ही हुआ। दरअसल 8 अगस्त 1942 को अंबेडकर ने शपथ ली।

अंग्रेज सरकार में मंत्री हुए। कैबिनेट का फुल फ्लेजेड मेम्बर हुए, स्वयं भारत सरकार हुए, अंग्रेज सरकार हुए।

और अगले ही दिन, 9 अगस्त को बूढ़े गांधी ने, मुम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान से, हलक का जोर लगाकर चीखा -

"अंग्रेजो, भारत छोड़ो"
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दिलीप (बिग C) मण्डल इस घटनाक्रम को कुछ यूँ लिख सकते है-

"दरअसल जातीय सवर्ण कुंठा से ग्रस्त गांधी, अंबेडकर को सरकार में एक भी दिन बर्दाश्त नही कर सके। इसलिए अभी तक तो अंग्रेज इर्विन के साथ चाय पीते, बिस्कुट खाते रहे। पर बाबा साहेब के ब्रिटिश मंत्री बनते ही,वे अंग्रेजो को भगाने का आंदोलन करने लगे"

बहरहाल, हुआ ये कि गांधी की आवाज पर पूरा देश खड़ा हो गया। जगह जगह विरोध प्रदर्शन। हर कोई इस अग्नि में अपनी समिधा दे रहा था।

यहां तक कि परम संघी बालक अटलबिहारी भी, जोश जोश में एक आंदोलनी जुलूस में खिंचे चले आये थे। (ये अलग बात की पुलिस को दूसरों का नाम बताकर खुद बच गए)

हाँ, कुछ संघी मुखबिरी कर रहे थे, मगर लार्जली, आम संघी भी तटस्थ था। खिलाफ न था।

तब अंबेडकर "सरकार" बने रहे।
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"सरकार" ने सारी कांग्रेस जेल में ठूंस दी। कोई नेता बाहर न था। इसलिए "भारत छोड़ो आंदोलन" एक लीडर लेस आंदोलन था।

जनता छोटे मोटे स्थानीय कांग्रेसी, या किसी राष्ट्रवादी गणमान्य को, नेता मानकर तमाम एक्टिविटी करती। कहीं लाठीचार्ज होता, कही गोली चलती।

बलिया में छात्रों पर गोली चली। 100 घायल, बैरिया में 19 मरे। कन्ट्रोल न हुआ, बलिया में चित्तु पांडे ने आजाद सरकार बना ली। नियंत्रण वापस लेने के लिए हुए दमन में 127 मौतें हुई। गाजीपुर में 167 मरे। बंगाल के मिदनापुर में 45 मरे सतारा में 12... घटनाएं अंतहीन हैं।

करीब 15000 लोग देश भर में गोलियों से भून दिए गए। डेढ़ लाख से अधिक गिरफ्तारी हुई। इसमे सवर्ण भी थे, ओबीसी भी थे, दलित थे, जाटव, यादव, प्रजापति.. पूछिये कौन नही था??

हां, अंबेडकर नही थे। किसी दलित की मौत की इंक्वायरी की मांग की हो, इसके रिकार्ड नही मिलते। वे पद पर जमे रहे।

खून की नदी बहती रही, वे टिके रहे। क्योकि दलित उत्थान के लिए उनका मंत्री बना रहना अनिवार्य था।
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भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार के इस कत्लेआम में बाबा साहेब अंबेडकर भी शरीक ए गुनाह थे, एकोम्प्लीस थे।

और कतई शर्मिंदा न थे। यह बात वामपन्थी इतिहास से छुपा दी गयी।
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मन्त्रिकाल 4 साल चला। अब तक भारत को आजाद करने की नीति पर, वायसराय अपनी कैबीनेट में चर्चा करते। सलाह लेते..

और भारत की आजादी के खिलाफ में सलाह देने वाला, विरोध करने वाला व्यक्ति कौन था, यह जानने के लिए आप कैबिनेट के नोट्स की लिंक मांग सकते हैं।
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इस सब्जेक्ट तीसरी पोस्ट है। 30 लिख सकता हूँ, सब्जेक्ट धरे हैं।

मगर अब ट्रोल्स नही आ रहे। जो आ रहे, वो थके, हैरान, और हल्के हैं। बुद्धिमानों तक शायद सन्देश पहुँच गया।

अगर उनका दिल भर चुका, तो इसके बाद और नही लिखूंगा। मैं वापस लिखूंगा गांधी पर, नेहरू पर। जहाँ इस देश के सँघर्ष, और हमारे हीरोज की गाथा है।

जिनके नाम के साथ छल नही, धूर्तता नही। जहां बड़ा दिल है, एक तबके जाति धर्म नही। जहां हिंदुस्तान की बात है ।

जहां सुकून है, मोहब्बत है, जुड़ाव है, जिंदगी है।जिसे पढ़कर आपको गर्व होता है। जिनकी पोस्ट पर लगी तस्वीर, आपको, मुझको तरावट देती है। अपने पिता की छांव जैसी लगती है।

हम सब उसपे लिखेंगे।
उसपे पढ़ेंगे।