Jivan @ Shutduwn - 10 in Hindi Fiction Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | जीवन @ शटडाऊन - 10

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जीवन @ शटडाऊन - 10

सति-इतिकथा-

नीलम कुलश्रेष्ठ

आज सती मन ही मन निश्चय कर चुकी हैं कि वह विराटसेन का प्रणय स्वीकार कर लेंगी। वे हाथ से ढकेलने वाली चार पहियों की गाड़ी पर अपने कोढ़ी पति को तीर्थ यात्रा करवाने निकली थीं । अब उन्हें याद नहीं, कौन से तीर्थ से विराटसेन उनके पीछे लग गया था । वे गाड़ी धकेलती चलतीं तो वह दूर से उनका पीछा करता सा चलता था । उनके पति के घाव रिसने लगता तो वह रूई व कपड़ा लेकर अचानक प्रगट हो जाता । कभी उनके पति के होंठ सूखने लगते तो इससे पहले वह कोई झरना तलाशने की कोशिश करें वह पानी का लोटा लेकर प्रगट हो जाता ।

जंगल-जंगल, तीर्थ-तीर्थ अपने पति को गाड़ी में घसीटते-घसीटते उनका शरीर थकान के कारण चूर-चूर हो जाता । वह हाँफने लगती, सोचती पति को ऐसे ही गाड़ी पर छोड़कर भाग जायें लेकिन जायें तो कहाँ जाये ? ऐसी स्त्री की कौन मायके में आवभगत करेगा ? हर तीर्थ पर तीर्थ यात्रियों का दल उन्हें देखकर भावविह्वल होकर जयघोष करने लगता है,

‘सती मैया की जय ।’

‘पतित पावन सती मैया की जय ।’

कभी-कभी उन्हें विद्रूप लगता और कैसा पति ? कौन-सा पति ? जिसने न उन्हें नजर भरकर देखा, न उनकी बात सुनी, न समझी । घर चलाने के लिये उन्हें थोड़े बहुत रुपये देकर कोठों पर पड़ा रहा ।

पिता का दिया जैसा घर, सोना, चाँदी, रुपया-पैसा इन्हीं कोठों की रंगीनियों में लूटा बैठा है । घर में खाने को नहीं था, उस पर शरीर से वेश्याओं का लावा फूट पड़ा था । वे करतीं तो क्या करतीं ? उन्हें गाड़ी पर डालकर तीर्थयात्रा पर चल पड़ी थीं । मंदिरों के आस-पास खाना बनाते तीर्थयात्री उनकी हालत देखकर उनके खाने-पीने का इंतजाम कर देते ।

एक दिन उनका पति जिद कर बैठा कि वह मुन्नीबाई के कोठे पर जायेगा, “वह मुझसे बहुत प्यार करती है । मुझे इस दशा में देखकर भी गले लगा लेगी ।”

वह खीजती, गुस्सा होती अपने नगर की तरफ लौट पड़ी थी ।

मुन्नीबाई की नौकरानी ने उसके कोठे का दरवाजा खोला व उसे बुलाकर लाई । द्वार पर एक सड़े-गले रोगी को हाथगाड़ी में बैठा देखकर वह सिहर कर पीछे हट गई, “त...त...तुम कौन हो?”

“मैं तुम्हारा प्यार, जिसे तुम मुन्ना कहती थीं ।”

“ओह तुम !अपने सड़े-गले पति को मेरे कोठे पर लाने की तुम्हें हिम्मत कैसे हुई ?”

सती को वापिस गाड़ी तीर्थों की तरफ मोड़नी पड़ी । वह आहत हो रास्ते भर सिसकता रहा ।

अपने पीछे लगे विराटसेन की आँखों का, स्वस्थ शरीर का आकर्षण उन्हें खींचता रहता था । एक दिन जब उनका पति सो रहा था, वह उनकी कलाई पकड़कर बरगद के पेड़ के पीछे ले गया और बोला था, “मैंने तेरे मन की भाषा पढ़ ली है। आज रात को इसे छोड़कर दस बजे पूर्व दिशा वाले देवी के मंदिर की तरफ आ जइयो । क्या करेगी अपना जीवन इस सड़े आदमी के साथ बर्बाद करके ?”

“नहीं, ये ठीक नहीं है?”

“क्या ठीक, क्या गलत है? तेरे नगरवासियों से मैंने सब पता कर लिया है । ये वेश्यागमन में लगा रहता था । तुझे पूछता नहीं था ।”

“जैसा भी है, है तो मेरा पति ।”उन्होंने कुछ सोचा था, फिर दृढ़ निश्चय करके बोलीं, “ठीक है, मैं दस बजे मंदिर में आ जाऊँगी ।”

उनका पति तो रात के नौ बजे ही खाना खाकर गहरी नींद में खर्राटे भरने लगता है । वह सोचती हैं, अभी ही मंदिर की तरफ चल दें कहीं यह दस बजे जग गया तो ? वह धड़कते दिल से लरजते पाँवों से अपने प्रेम की तरफ खिंची जा रही हैं ।

मन्दिर के पास पहुँचते ही उन्हें ऐसा लगता है कुछ लोग बातें कर रहे हैं । उन्हें आश्चर्य होता है क्योंकि विराटसेन ने बताया था कि ये मंदिर तो सात बजे ही सुनसान हो जाता है । उन्हें उत्सुकता होती है देखें तो सही मन्दिर के प्रांगण में इस समय कौन लोग है । एक खम्भे के पीछे खड़े होकर छिपकर देखती हैं, विराटसेन अपने तीन मित्रों के साथ चौपड़ खेल रहा है ।

एक मित्र उससे पूछता है, “तुझे विश्वास है कि वह सती दस बजे आयेगी ?”

“कैसे नहीं आयेगी ? साली को महीनों से पटा रहा हूँ । इस चक्कर में कितने तीर्थ कर डाले। तू भी तो पिछली बार एक सती को पटाकर लाया था तो क्या मैं तुझसे कम हूँ ?”

“हा...हा...हा...हा...।”

विराटसेन कहता है, “ज़ालिम की क्या कसी देह है । बेकार उसे कोढ़ी के लिये बर्बाद कर रही है । हम सब मिलकर एक सती का उद्धार करेंगे । ये बड़े पुण्य का काम है ।”

“हा...हा...हा।”

एक दोस्त कौड़िया फेंकते हुए कहता है, “जल्दी कर दस बजे तो ये चौपड़ खेलना छोड़कर उससे खेलेंगे ।”

“दस जल्दी क्यों नहीं बज रहे?” एक कसमसा कर कहता है । जल्दी से इस क्षेत्र से दूर निकल जाना चाहती हैं । दौड़ते-हाँफते वह हाथगाड़ी के पास आती हैं । उनका पति सो रहा है । वह गाड़ी को ढकेलती चल देतीं हैं। धक्के से उनके पति की नींद खुल जाती है, “अरे, हम तो यहाँ से सुबह निकलने वाले थे ?”

“यहाँ से अभी भागना होगा । सुना है यहाँ डकैत आ गये हैं । इस जगह से तो जंगल अच्छा है ।”

“जंगल में तो भयानक जानवर होंगे ।”

“इन डकैतों से भयानक तो नहीं होंगे ।” कहकर वे आँसू बहाती गाड़ी ढकेलती तेजी से चलने लगती है ।

उनके पीछे-पीछे एक तीर्थयात्री दल आ रहा है । उन्हें कोढ़ी पति की सेवा करते देख भावविह्वल हो जाता है । उनका जय-जयकार करने लगता है, “सती मैया की जय...ऐसी पतिव्रता स्त्री की जय....। बोलो पवित्र सती मैया की जय....।”

श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com