भाग १२
अब तक आपने देखा की राजकुमारी शिवन्या सुबह उठकर साध्वी के वस्त्र धारण कर लिए, क्योंकि उन्हें नगर में जाकर देखना था की प्रजा में कोन कोन साधु साध्वी से आदर भाव से बात करता है।
शिवन्या अपने कक्ष से बाहर निकली सैनिक उन्हे देख कर चौक गए की अंदर राजकुमारी शिवन्या गई थी वह ऐसे साध्वी के वस्त्र धारण करके बाहर क्यों आई है , लेकिन वह राजकुमारी थी सैनिकों ने इसलिए उनसे कुछ पूछा नहीं , राजकुमारी नीचे आती है , रानी निलंबा ओर राजा विलम नीचे ही खड़े थे , राजा ने शिवन्या को देखा उन्हों ने तो राजकुमारी को ऐसे भेष में पहले कभी नही देखा था , रानी निलंबा ने कहा पुत्री आपको देख कर कोई भी नही कह सकता की आप राजकुमारी शिवन्या है ,
राजा ने कहा आप ऐसे साध्वी बनी है निसंदेह इसके पीछे कोई कारण होगा , रानी ने कहा वह जो भी हो, जाइए राजकुमारी आपका जो भी कार्य आप करना चाहती है उसे करिए, राजकुमारी शिवन्या ने कहा मां पिताजी में आज हमारी हर एक प्रजा के घर जाऊंगी और भिक्षा मांगुगी , राजा ने कहा क्या पुत्री यह आप क्या कह रही है आप इस राज्य की राजकुमारी है आप भिक्षा केसे मांग सकती है , ओर अगर आप सारी प्रजा के घर जाएंगी वह भी चल कर आप बहुत थक जाएंगी, तब रानी निलंबा ने कहा नही महाराज आप शिवन्या को जाने दीजिए हमारी पुत्री ऐसे थक कर बैठने वालो में से नही है,
तब शिवन्या ने कहा जी पिताजी मुझे देखना है की हमारी प्रजा हमारे नगर में आने वाले साधु संतो से केसे पेश आते है , कोन कोन उनका आदर नहीं करता अगर कोई ऐसा मिला जो साधू संतो का अपमान करता है तो उन्हें सजा दी जायेगा , यह बात सुनकर राजा विलम कहते है ठीक है पुत्री आप जाइए और पता कीजिए इस बात पर में आपको नहीं रोकूंगा , यह सुनते ही शिवन्या फिर चल पड़ी अपनी नगर यात्रा के लिए , वह महल के द्वार से निकलते हुए नगर की गलियों में चलने लगी कड़ी धूप हो रही थी उन्हों ने अपने पैरो में कोई पादुका नहीं पहनी थी थोड़ी देर में उनको पाव जलने लगे पर उनको यह किसी भी हाल में करना था।
नगर का पहला घर आया उन्हों ने दरवाजा खटकाया , एक स्त्री बाहर निकली राजकुमारी ने कहा "
भिक्षाम देही" माते , तब उस स्त्री ने कहा अभी लाई आप यही रुकिए उस स्त्री ने राजकुमारी को भिक्षा दी राजकुमारी को उस स्त्री का स्वभाव पसंद आया, उन्हों ने भिक्षा लेने के लिए एक पुराना थाल अपने साथ ले लिया था , वह आगे बढ़ती गई वह एक एक घर में जा रही थी सब लोगो को वह बोलती भिक्षाम देहीं सब लोग उनको भिक्षा दे रहे थे , वह आगे बढ़ती गई पर अब उनको प्यास लग रही थी उनको जल की अवस्यकता थी और उनके पैर भी थक चुके थे इस कड़ी धूप में चल कर उनके पैरो में छाले हो चुके थे।
वह एक घर के पास पहुंची उन्हों ने उस घर का दरवाजा खटखटाया अंदर से एक ४० या ४५ साल का आदमी बाहर आया , राजकुमारी ने कहा सुनिए बंधु जरा जल पीला दीजिए और थोड़ी भिक्षा भी दे दीजिए , उस आदमी ने कहा अरे ऐ साध्वी....... तेरी हिम्मत केसे हुए यह भिक्षा मांगने की, नही है कोई जल वाल , पता नही कहा से मुंह उठा कर चले आते है , निकल जाओ यहां से राजकुमारी के ये सारे शब्द कान में पड़ते ही उनका खून खौलने लगा , गुस्से के वजह से पर मुंह में पसीना पसीना हो गया उन्हों ने बहुत प्रयत्न किया पर इस बार गुस्सा नही रोक पाई, अपने हाथ में पकड़े हुए भिक्षा के थाल को बाजू में रखा और फिर उस आदमी के पास गई, उसकी तरफ देखा और जोर से खींच कर एक चाटा मारा।
चाटा मारने की आवाज इतनी तेज थी की जिन्होंने भी यह देखा उनकी भीड़ लग गई आजू बाजू , उस आदमी ने कहा तेरी इतनी हिम्मत एक मामूली सी साध्वी हो के तूने मुझे मारा वह आदमी भी राजकुमारी को चांटा मारने ही वाला था लेकिन उससे पहले शिवन्या ने उनका हाथ पकड़ लिया और जो उन्हों ने अपने मुंह के आगे काली चुनरी बांधी थी वह उतार दी , चुनरी के पीछे राजकुमारी को देख कर वह आदमी की आंखे फटी की फटी रह गई और पूरे नगर वाले चौंक गए राजकुमारी को साध्वी के भेष में, और वह आदमी घुटनो के बल पर नीचे बैठा और फूट फूट कर रोने लगा।
जब राजकुमारी शिवन्या १० साल की थी और वह अपनी पहली नगर यात्रा पर गई थी तब जिस व्यक्ति ने अपनी मां को धक्का मार कर गिराया था यह वही आदमी था यह आदमी इतने सालो में भी सुधरा ना था, राजकुमारी ने बचपन में ही इस आदमी को चेतावनी दी थी लेकिन लगता है आज शिवन्या इस आदमी को नही छोड़ने वाली क्योंकी गुस्सा उनका सातवे आसमान पर था , शिवन्या ने कहा मेने यह साध्वी का भेष इसलिए धारण किया था ताकि मुझे पता चले कोन कोन भिक्षा मांगने पर एक साधु को भिक्षा देते है और उनसे आदर से पेश आते है , लेकिन तुम तुम तो आज भी नही सुधरे , बचपन में तो तुम्हे जाने दिया था जब तुमने अपनी मां को धक्का मार कर गिराया था तब ही तुम्हे मार देना चाहिए था मुझे।
इस आदमी ने कहा राजकुमारी जी मुजसे बहुत बड़ी गलती हो गई माफ कर दीजिए मुझे🙏 शिवन्या ने कहा अगर आज तुम्हे माफ किया तो ये सारी प्रजा भी अपनी गलती पर ऐसे ही माफी मांगने लगेगी और माफी उनको दी जाती है जिन्हो ने गलती से गलती की हो तुम जेसे दुराचारी को तो आज सजा मिलेगी ही मिलेगी, राजकुमारी शिवन्या ने उस आदमी का कस कर हाथ पकड़ा और घसीटते हुए महल ले गई , उन्हों ने पिताजी से कह कर तुरंत राज सभा बुलाई , सारी प्रजा आज वहा मौजूद थी राजकुमारी ने कहा पिताजी में इनसे भिक्षा मांगने गई थी इन्होंने मुझे यानी की साध्वी को देख कर उनका बहुत अपमान किया इनके मन में साधु संतो के लिए जरा भी आदर नहीं है , ओर ये अपनी मां की इज्जत भी नही करते थे इनको कड़ी से कड़ी सजा दी जाए राजा विलम ने यह सुनते ही उस आदमी को आजीवन कारावास की सजा दे दी , राजकुमारी ने कहा देख लो प्रजा जन इस राज्य में कोई भी व्यक्ति किसी का भी अपमान करेगा या प्रेम से नहीं रहेगा उनका भी अंत में यही हाल होगा।
एक साधु को क्या चाहिए होता ही की लोग उनका आदर करे उनसे प्रेम से बार करे उन्हे भिक्षा दे वह पूरे पूरे दिन भगवान की तपस्या में लीन रहते है हम उनके लिए इतना तो कर ही सकते है , तब एक बड़ी उम्र के आदमी बोले यह बहुत ठीक किया बेटी आपने उस आदमी ने हमारा जीना मुस्किल कर रखा था कभी किसी से ढंग से बात नही करता था ,
राजा विलम कहते है चलिए जो हुआ अच्छा हुआ गुनहगार को सजा भी मिल गई ये आज की सभा यही समाप्त होती है।
आज की यह कहानी यही तक रखते है कहानी का अगला भाग जल्द ही आयेगा😊
ओर यह कहानी आने में बहुत देर लग गई उसके लिए दिल से माफी चाहूंगी 🙏🙏