Saffron colour in English Short Stories by ABHAY SINGH books and stories PDF | भगवा रंग

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भगवा रंग

केसरिया हिंदू वस्त्र नही है ...

यह बौद्ध सिंबल है। बुद्ध के चीवर का रंग..
श्वेत-वसन जैन साधुओं से अलग दिखने के लिए, चैत्य विहारों मे भिक्खुओं की अलग यूनिफार्म तय हुई।के दूर से ही दिखे -

देखो, बौद्ध आ रहा है।
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सिंधु घाटी सभ्यता के बाद, 500 सौ साल एक अंधकार का युग है। क्या हुआ इस दौर मे, कोई नही जानता।

इसके बाद वैदिक संस्कृति का दौर है। ये गांव मे बसने वाले कबीले है, गौपालन करते हैं, खेती करते है। प्रकृति की पूजा करते हैं।

सूर्य देव, चन्द्र देव, अग्नि देव, पवन देव, जल देव, गंगा माता, जमुना माता, सरस्वती माता ... हर शै का एक देवता है, देवी है।

वेदों में ,वैदिक धर्म मे मंदिर का कोई कंसेप्ट ही नही।

हां जी। मंदिर वहीं बनाएंगे, वाले लोग अचरज मत खाइये। सचाई आप भी जानते है कि कोई कर्मकांड, मंदिर में नही होता। तमाम ऋषि मुनि जंगल मे रहते थे, मठ मन्दिर में नही। पेड़ के नीचे, नदी किनारे, मैदान या वन मे पवित्र अग्नि जलाइये।

और बस, स्वाहा से तथास्तु तक की यात्रा, उसी वेदि पर कीजिए।
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ये फ्रीडम है। हम आजाद है, हमारा ईश्वर भी आजाद है। ब्रम्ह किसी भवन में बंधा नही, वो मूरत में कैद नही।

वो सर्वत्र है। लेकिन इस धर्म मे एक समस्या आती है। इसमे जातियां आती हैं, जिनमे उंच नीच होती है। तिरस्कार, विषेशाधिकार, शोषण बाकायदा इंस्टीट्यूशनलाइज हो जाते है।

तो जाहिर है इसका रेबेलियन भी होना है। हुआ, और फिर इतिहास कहता है कि वैदिक धर्म से अलग कोई फलसफा और संप्रदाय बनाने वाले आजीवक थे।

लेकिन स्पस्ट रूप से पहली बार वैदिक फलसफों से अलग कोई धर्म बना, तो वो जैन थे। अहिंसा, सत्य, ज्ञान, शांति ...

और सबसे लोकप्रिय बात - समानता।
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लेकिन जैन धर्म तब एलीट, बौद्धिक, जागरूक लोगो को आकर्षित करता था।

असल समाजवाद बुद्ध लाये। समाज की निचली पिछड़ी जातियो को धम्म मे प्रवेश दिया। संघ मे स्थान दिया।

बुद्ध की शरण, धम्म की शरण, संघ की शरण..
सबको बराबर उपलब्ध थी। और समानता को प्रोनाउंस करने लिए सबकी एक यूनिफार्म थी - फ्रेश आरेंज यलो।

देयरफ़ॉर एवरीबडी हैज टू वियर,
आरेंज यलो चीवर ..
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इसके पहले सफेद रंग का बोलबाला था।
सफेद क्यों??

सफेद, कपास का रंग है। वीविंग के बाद कोई कलर न लगाया तो कपास सफेद ही रहे

लेकिन आपको कुछ चटक-मटक चाहिए, तो कपास के कपड़े को रंग लीजिए- नीला, पीला, हरा, गुलाबी, कच्चा पक्का रंग।

आम आदमी के चटक मटक वस्त्र रंगीन थे। यह रंग बिरंगापन ही असल धड़कता भारत था। इससे विरक्त, अलग रहने वाले वैदिक वानप्रस्थी, या जैन साधारण सफेद मे रहते।

ऐसे मे बुद्ध की टीम के लोग अलग कैसे दिखें।

सॉल्यूशन- भगवा !!

- क्षितिज में दूर से दिखे।
- वनो की हरियाली के बैक ग्राउंड मे दिखे,
- आम लोगो के आम वस्त्रो के बीच खिले
- अभिजात्यों के रंगों के बीच साधारण दिखे।
- कम्पटीशन में खड़े जैनियों से अलग दिखे
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और बुद्ध के साथ, बुद्ध का रंग भी इज्जत कमाने लगा। भगवे ने सम्मान कमाया।

देश देखते देखते बौद्ध होने लगा। भगवा घर घर फहराने लगा। बराबरी की बात करने वाला यह धर्म, वैदिक के समांतर, वैदिक से बड़ा जन आंदोलन हो गया।

याने पापुलर, राजनैतिक खतरा हो गया। तो इसको कन्ट्रोल की जरूरत हुई।
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एक दौर आया, जब बौद्धो को देशद्रोही घोषित कर दिया गया। बौद्ध भिक्खु खोज खोजकर मारे गए।

एक भिक्खु का सिर,
एक स्वर्णमुद्रा इनाम।

लेकिन भगवा वस्त्र, संबकांशस माइण्ड मे पवित्रता का प्रतीक तो हो चुका था। सो मारने वालो ने, भिक्खुओं की लाशो से चीवर उतार, खुद पहन लिया।

बुद्ध की धरती से बौद्ध मिट गए। लेकिन चीवर, त्याग और वैराग्य का प्रतीक बना रहा।
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वक्त का मजाक देखिए, गृहस्थ, धंधेबाज,और राजमहलो मे अधकचरे भोगी, चीवर पहनकर बैठे हैं।

स्वयं तमाम सुखों और और ऐशोआराम के बीच रहकर, भक्तजनों को वैराग्य का संदेश देते है।
बुद्ध के चीवर का रंग, आक्रामकता की पहचान बना दिया गया है।

क्योकि आप किसी को कपड़े से पहचानते है, तो वो भी आपको गमछे से पहचानता हैं।
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सामान्य धारणा है, कि गले मे भगवा गमछा है, तो उधार की सोच, उधार का फलसफा, उधार का सीमित ज्ञान होगा।

अडियल, गालीबाज, विघ्नसंतोंषी होने की संभावना है। दरअसल इज्जत रंग की नही होती, उसे पहनने वाले से रंग निखरता है।

और धूमिल भी होता है।

व्हाटसप ग्रुप से इतिहास, धर्म और राजनीति की "दूषित शिक्षा" लेकर आए इन मासूमों को कतई नही मालूम...

कि गमछे का केसरिया, पार्टी का सिंबल जरूर है
हिदुत्व का, भारत का..

ईश्वर का एकमात्र रंग नही है