(17)
जल्दी जल्दी पूरी इमारत को सफाई हुई। फरामुज जी के सेक्रेटरी तथा आफिस के कर्मचारियों को फोन करके बुलवाया गया। फरामुज जी का जाती वकील भी आ गया। कागजों की अल्मारियाँ खुलवाई गई और फिर नीलम हाउस का कारोबार इस प्रकार आरम्भ हो गया जैसे वहां कुछ हुआ ही नहीं था। किसी के मन में भूत प्रेत का डर नहीं था—और इसका कारण विनोद का यह एलान था कि 'वह उस समय तक नीलम हाउस में स्थायी रूप से रहेगा जब तक नीलम हाउस के गिर्द फैलाये गये षड़टंत्रों का पता लगा कर वह अपराधियों के हाथों में हथकड़ियाँ नहीं डाल देगा। एक समाचार पत्र के संवाददाता ने उससे प्रश्न किया ।
"क्या आपको विश्वास है कि नीलम हाउस में जो कुछ भी हुआ था वह क्रिया नहीं थी बल्कि कुछ अपराधियों का किया धरा था ?"
"बिल्कुल विश्वास है" विनोद ने कहा, "मैं बीसवीं शताब्दी के इस ऐटमी युग में भूत प्रेत या किसी भ्रमात्क शक्ति के बारे में सोच ही नहीं सकता ।"
आत्म विश्वास से भरा हुआ विनोद का वह उत्तर, उसकी विगत कृतियां और उसकी योग्ताओं ने हर एक के मन से भूत वाली बात निकाल दी थी । हमीद का तो रङ्ग ही बदल गया था । उसने विनोद के इस प्रोग्राम के बारे में कुछ पूछा ही नहीं था । और विनोद भी एक कठोर और गम्भीर स्वभाव का आफिसर मालूम होने के बजाय एक चंचल प्रकृति का गृह स्वामी नजर आ रहा था। वह हंस हंस कर नौकरों को आदेश दे रहा या । पुराने नौकरों में तीन ही चार थे—शेष नौकर जो भी रखे गये थे उनके बारे में विनोद ने फरामुज जी के ही स्तर का विचार रखा था अर्थात उनकी वही आयु जो फरामुज जी ने अपने जीवन काल में निर्धारित की थी। विनोद ने यह भी आदेश दिया था कि मनहूस कमरे में उसके अतिरिक्त कोई नहीं जायेगा और यह कि रात मैं वह उसी मनहूस कमरे में सोयेगा ।
हमीद काफी देर तक नौकरानियों को देखता रहा मगर उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह उनमें से किसी को छेड़े इसलिये कि उनके तेवर यही बता रहे थे कि अगर उन्हें छेड़ा गया तो उत्तर चप्पल से देगी या झाडू से। उसके बाद अचानक उसे नूरा का ख्याल आया ! वह सोचने लगा कि नूरा को इमारत में होना चाहिये थी— फिर वह अपने क्वार्टर में क्यों पड़ी हुई हैं ---
वह तेज कदमों से चलता हुआ नूरा के क्वार्टर तक आया । सिपाही तो थे नहीं— मगर दरवाजा भिड़ा हुआ था। बिना आवाज दिये अन्दर दाखिल होना अशिष्टता थी इसलिये वह दरवाजे को अंगुलियों से खटखटाने लगा । लगभग तीन मिनिट बाद: अन्दर से एक भिनभिनाती हुई आवाज आई।
"कौन है—क्या है ?"
"कैप्टन हमीद..." हमीद ने उत्तर दिया ।
मगर दरवाजा नहीं खुना और जब फिर तीन मिनिट व्यतीत हो गये तो हमीद ने झल्ला कर दरवाजे को धक्का दिया और कमरे में दाखिल हुआ। कमरे में कोई नहीं था। पिछली खिड़की खुली हुई थी और चार पाई पर कोई सोया हुआ था। उसके अधरों पर मुस्कान थिरक उठी और उसने कहा ।
"तो तुम अवसर पाकर भाग निकलों और धोखा देने के लिये अपनी गुड़िया को सुला गई — मगर यह सौदा भी बुरा नहीं है । मैं आज तुम्हारी गुड़िया ही उठा ले जाऊंगा और देखूंगा कि इसका मैक्नीज्म क्या है?
फिर जैसे ही उसने कम्बल हटाने के लिये हाय बढ़ाया उसे ऐसा लगा जैसे कोई हँस रहा हो। उसने किचकिचा कर कम्बल खींच लिया । हंसी तेज हो गई मगर हमीद को ऐसा लगा जैसे पूरा कमरा नाचने लगा हो। उसका कण्ठ सूख गया- टांगे थरथराने लगी थीं। इसका केवल यही कारण नहीं था कि चारपाई पर नूरा या गुड़िया के स्थान फर एक लाश थी । लाशों से वो आये दिन सामना होता ही रहता था---- कारण था लाश की दशा- बस ऐसा ही लग रहा था जैसे किसी को पानी में उबाल कर मार डाला गया हो। पूरा शरीर सूजा हुआ था। शरीर का कोई अंग अपनी असली दशा में नहीं था। पैर से कमर तक चादर पड़ी हुई थी और शेष भाग नंगा था। लाश की शनाख्त नहीं हो सकती थीं । इस मध्य हमीद के कानों में हंसी की आवाजें पड़ती रही थीं जो क्रमशः तेज होतो गई थीं मगर उसे इसका एहसास नहीं हुआ या- एहसास तो उम समय हुआ जब हंसो की आवाजें बन्द हो गई । वह बड़े जेार से चौंका और दरवाजे की ओर मुड़ना ही चाहता था कि नजर एक औरत पर पड़ी जिसके चेहरे पर भोलापन था। पहले तो वह उसे पहचान ही नहीं सका था - फिर उसे याद आ गया कि यह तो रोमा है । वह कह रही थी ।
"कैप्टन ! तुम बेचारी नूरा को कत्ल करके जा रहे हो तुमने इसे इसलिये कत्ल किया कि इसने तुम्हारी वासना का शिकार होने से इनकार कर दिया था—कत्ल करके इस प्रकार भागना पुलिस वालों को ही शोभा देता है-"
"हमोद का दिमाग तो उसके काबू में था नहीं कि वह सोच सकता- कुछ कहता। उसने क्वार्टर से निकल भागना चाहा मगर रोमा उसका मार्ग रोक कर खड़ी हो गई और बोली ।
"तुम इस प्रकार नहीं जा सकते कैप्टन —तुम्हें उत्तर देना होगा ।" हमीद ने फिर कुछ नहीं कहा और रोमा को धक्का देकर दरवाजे की और बढ़ा ।
" जाओ — मगर यह सुनते जाजो कि क्वार्टर में आटोमेटिक कैमरे लगे हुये है—टेप रेकार्डर गुप्त रूप से रखा है । तुम्हारी बातें और तुम्हारे सारे कार्य सुरक्षित हो गये होंगे ।"
मगर हमीद ने उसकी पूरी बात नहीं सुनी। वह लड़खड़ाना हुआ अस्ल इमारत की ओर जा रहा था। कम्पाउन्ड में भी चहल पहल थी और इमारत के अन्दर भी मगर खुद उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। वह जल्द से जल्द विनोद से मिलकर उस लाश के बारे में बताना चाहता था— कहना चाहता था कि अगर उस लाश का पता यहां वालों को हो गया तो फिर सब यहाँ से भाग निकलेंगे और नीलम हाउस फिर सुनसान हो जायेगा ।
"क्या बात है मिस्टर कैप्टन -" शापूर ने उसे टोकते हुये कहा "आप गेंद तलाश कर रहे हैं या बल्ला--- या दोनों―?"
हमीद का दिल चाहा कि उल्टा थप्पड़ जमा दे मगर इस समय वह उलझना नहीं चाहता था इसलिये उसने उसकी बात पर ध्यान दिये बिना पूछा ।
"कर्नल साहब कहाँ हैं ?"
"ओह ! तो आप भी उनके साथ जान देना चाहते हैं तो जाइये । वह उसी मनहूस कमरे में तपस्या कर रहे हैं-" शापूर ने हसते हुये कहा ।
हमीद झपट कर उसी ओर आया । मनहूस कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और विनोद सामने ही बैठा हुआ नजर आ रहा था- बस उसके चेहरे पर धूल पड़ी हुई दिखाई दे रही थी और थकावट के लक्षण मी ल थे— मगर चूँकि अभी तक उसके सर पर वही लाश ही सवार थी इस लिये उसने कुछ पूछने के बजाय बस इतना ही कहा ।
"मैं आपसे एकान्त में कुछ बातें करना चाहता हूँ !"
"क्या किसी नौकरानी के हाथों मार खा कर आ रहे हो ?" विनोद ने उसकी हुलिया देख कर हंसते हुये पूछा ।
मगर हमीद की दशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ । उसने फिर यही कहा । एकान्त में आपसे बातें करना चाहता हूँ।"
विनोद का माथा ठनका। उसने सोचा कि अवश्य कोई न कोई गूढ़ बात है । वह चुपचाप उठा और कम्पाउन्ड के ऐसे भाग में आया जहां किसी के आने की आशा नहीं थी ।
"हां अब बताओ क्या बात है ?' विनोद ने पूछा । "
"नूरा के कमरे में लाश है-" हमीद ने कहा ।
"लाश !” विनोद बड़े जोर से चौंका
"जी हां— मगर मैं नहीं कह सकता कि वह नूरा ही की लाश है या किसी और की है - हमीद ने कहा- फिर पूरी बात बता दी ।
"क्या तुम्हें विश्वास है कि तुमसे बातें करने वाली रोमा ही थी ?" विनोद ने पूछा।
"जी हाँ— हो सकता है कि उसका कोई दूसरा नाम हो-मगर नूरा और कासिम दोनों ने ही उसका यही नाम बताया था और रात खुद उसने भी अपना यही नाम बताया था।
'रात-- क्या मतलब ?” विनोद ने चौंक कर पूछा । हमीद ने रात में फोन पर रोमा की कही हुई बातें दुहरा दी।
"तुम यहाँ से खिसक जाओ और अब मेकअप में रहना, हो सकता है। कि रोमा से फिर तुम्हारी मुलाकात हो । रात को तुम यहां आजाओगे -
"बस जाओ ।"
विनोद नीलम हाउस के तहखाने की तलाशी ले चुका था मगर अभी तक किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सका था। यह केस उसके लिये भूलभुलैयां साबित हो रहा था । सारे षड़यंत्रकारी उसकी नजरों में आ चुके थे मगर यह नहीं मालूम हो सका था कि आखिर षड़यंत्र है क्या -? लोगो के कत्ल क्यों किये गये? उसने तारा झील के बङ्गले में अपने आदमी नियुक्त कर दिये थे जो ट्रान्समीटर पर उस शिकारी के बारे में रिपोर्ट दे रहे थे । रेमन्ड के मकान के चारों ओर भी उसने आदमी तैनात कर रखे थे और खुद इसलिये नीलम हाउस में जाकर रहने लगा था, और फिरोजा तथा शापूर को रहने के लिये विवश किया था कि षड़तंत्र कारी फिर कुछ करें और वह उन पर हाथ डाले मगर फिर भी नूरा के क्वार्टर में लाश-----उस ने तहखाने में ट्रान्समीटर भी लगा दिया था ।
वह जल्दी के नूरा के क्वार्टर की ओर बढ़ा। उसने बड़ी कोशिश के बाद वहाँ से पुलिस का पहरा हटवाया था। एस० पी० तो किसी प्रकार तैयार ही नहीं हो रहा था मगर डी० आई० बी० साहब के बीच में आने के कारण वह विवश हो गया था और अब उसी नूरा के क्वार्टर में लाश - जा नूरा की भी हो सकती है। आखिर वह एस० पी० को कैसे मुँह दिखायेगा - डी० आई० जी० साहब से क्या कहेगा ?
यही सब सोचता हुआ वह नूरा के क्वार्टर में दाखिल हुआ था और लगभग आधा घन्टे के बाद बाहर निकला था। उसका शरीर पसीने से भीग रहा था मगर अब चेहरे पर चिन्ता के लक्षण नहीं थे । वह अपने कमरे के निकट पहुँचा ही था कि एस० पी० के आने की सूचना मिली । वह बराम्दे ही में रुक गया। दूसरे ही क्षण एस० पी० उसके सामने था ! उसके साथ दो विदेशी थे और वह औरत भी थी जिसके बारे में विनोद सुन चुका था। फिरोजा और शापूर भी आ गये थे और दोनों भाई बहन जिन आंखों से दोनों विदेशियों को देखा था उससे विनोद ने यही अनुमान लगाया था कि दोनों विदेशों उनके लिये अपरिचित नहीं है। एस० पी० के अधरों पर विजयी मुस्कान खेल रही थी। उसने कठोर स्वर में विनोद से पूछा ।
"हमीद कहाँ है ?
"क्यों— कोई खास बात ?” विनोद ने लापरवाही का प्रदर्शन करते हुये कहा " मगर आप यहाँ कैसे -?"
" मेरे आने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है ।" "यह तो ठीक है मगर मैं आपको डी० आई० जी० साहब के कमरे में होने वाली बातों की याद दिला रहा है।
“परिस्थिति जटिल हो चुकी है मिस्टर विनोद ! मेरे पास हमीद के विरुद्ध वारन्ट है"
"हमीद के विरुद्ध वारन्ट !” विनोद ने आश्चर्य के साथ कहा "किस नवैयत का वारन्ट— ?"
“कत्ल के इल्जाम में। सवेन्ट क्वार्टर्स में नूरा श्रोड की लाश है और यह कत्ल केवल इसखिये हुआ कि तुमने पुलिस हटवा दी थी वर्ना हमीद की इतनी हिम्मत न पड़ती-" एस० पी० ने कठोर स्वर में कहा।
"केस बाकायदा रजिस्टर कर लिया गया है -"
"एफ० आई० आर० किसने दर्ज कराई थी ?” विनोद ने पूछा।
"कार्टन श्रोड और रोमा ने ।" एस० पी० ने एक विदेशी और उनके साथ वाली औरत की ओर संकेत करके कहा।
"और आपका परिचय ?" विनोद ने दूसरे विदेशी की ओर संकेत करके पूछा । "मिस्टर डोंगे" एस० पी० ने कहा, "यह तीनों अपने देश के प्रतिष्ठित नागरिक हैं-और इन्होंने इमीद को सवेन्ट्स क्वार्टर्स से निकलते हुये देखा था। अगर यह पूछोगे कि वह यहां क्या करने आये थे तो उत्तर यह है कि मिस्टर कार्टन नूरा के सम्बन्धी है और रोमा नूरा की सहेली है । यह लोग नूरा से मिलने आये थे।"
"मुझे तो यह सब कहानी मालूम हो रहा है।” विनोद ने कहा "फिरोजा और शापूर को आतंकित करके यहां से भगाने के लिये एक कहानी जो बहुत ही फूहड़पन के साथ गढ़ी गई है।"
"आओ चले - साबित हुआ जाता है कि यह कहानी है या सच्चाई है—–।”