Chirag ka Zahar - 16 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 16

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चिराग का ज़हर - 16

(16)

"पहली बात यह है कि तुम घर पर हो—दूसरी बात यह है कि कर्नल साहब घर पर मौजूद नहीं हैं। तीसरी यह कि थोड़ी ही देर पहले तुम दोनों नीलम हाउस से आये हो—समझ रहे हो ना मैं इतनी सब बातें जानती हूँ और इसका खुला हुआ अर्थ यह है कि तुम दोनों हर -समय मेरी नजर में हो-मगर हम तुम्हारी नजर में नहीं है इसलिये "हो सकता है कि कभी भूल चूक से हमारी गोलियाँ तुम्हारी खोपड़ियों में खिड़कियां खोल दें।"

"अरे तो तुमने मुझे धमकाने के लिये फोन किया था - " हमीद ने कहा "मैं तो यह समझा था कि तुम प्यार मुहब्बत की बातें करोगी- विरह वेदना की कहानी सुनाओगी और..."

"बात टालने की कोशिश न करो -" इस बार कठोर आवाज में कहा गया "शापूर और फिरोजा के साथ कल कर्नल विनोद नीलम हाउस जाना चाहता है उसे मना कर दो कि वह यह कदम न उठाये -।"

"यह मेरी शक्ति से बाहर है-" हमीद ने कहा ।

"आखिर तुम लोग नीलम हाउस क्यों जाना चाहते हो ?" "तुम लोग न कहो ----केवल विनोद कहो----और मेरे अन्दर इतना साहस नहीं है कि मैं उसे किसी वजह से रोक दूँ और न वह मेरी बात मान सकता है ।"

"तो फिर फल की रात कर्नल विनोद की अन्तिम रात होगी और अगर उसके साथ तुम रहे तो फिर तुम्हारी भी।"

"जो तुम्हारे साथ बीतेगी—क्यों" हमीद ने टुकड़ा लगाया मगर दूसरी ओर से सम्बन्ध कट गया था इसलिये उसने भी रिसीवर रख दिया ।

अगर हमीद चाहता तो इक्स्चेन्ज से इतना तो मालूम  कर सकता था कि किस नम्बर से काल की गई थी मगर उस पर तो काहिली के साथ ही साथ नींद भी सवार थी— उसने तो यहाँ तक सोच डाला कि टेलीफोन का तार ही अलग कर दे मगर इस विचार से ऐसा नहीं किया कि कहीं विनोद कोई महत्व पूर्ण काल न करे—मगर अब यह यात दिमाग में उथल पुथल मचाने लगी थी कि आखिर विनोद ने उसे पूरा प्लान क्यों नहीं बताया था और यह कि उसके ज्ञान का पता रोमा को कैसे लगा-फिर उसे रोमा पर क्रोध आने लगा जो एक प्रकार से उसे तीन बार चैलेन्ज कर चुकी थी इसी के साथ उसे विनोद पर भी ताव आ रहा था और फिर वह सो गया ।

सवेरे टेलीफोन की घन्टी ने ही उसे जगाया। दूसरी ओर से फिरोजा की आवाज सुनाई दी । वह कह रही थी।

"मैंने और शापूर ने रात तुम्हारे ही यहाँ व्यतीत की थी। कर्नल साहब ने हमें आदेश दिया था कि हम जब तुम्हारा घर छोड़ दें तो तुम्हें सूचित कर दें इसी लिये मैंने तुम्हें फोन किया है— इस समय मैं अपने अर्जुन पूरा वाले घर में हूँ -बस-।"

हमीद ने रिसीवर रखा और पैर पटकता हुआ बाथरूम की ओर बढ़ गया ।

विनोद ने पिछले अड़तालीस घन्टे दौड़ धूप में व्यतीत किये थे । आज से लगभग दो वर्ष पहले उसे राष्ट्र विभाग द्वारा यह सूचना मिली थी कि लन्दन और न्यूयार्क में बैठ कर एक षड़यंत्र रचा  गया है जिसकी रचना एक विदेशी औरत – वो विदेशी मर्द और एक  हिन्दुस्तानी मर्द ने की है। यहाँ की सीक्रेट सर्विस के प्रतिनिधि ने 'लन्दन से यह सूचना भेजी थी और यह विचार प्रकट किया था कि इस षड़यंत्र का सम्बन्ध फरामुज जी नीलम हाउस और फरामुज जी के अगाध धन से है।

विनोद को यह सूचना बेकार ही मालूम हुई थी— इसलिये कि जब यह सूचना मिली थी तो फराज जी को मरे हुये दो दिन हो चुके थे और नीलम हाउस में मरने वालों में से वह अन्तिम आदमी था और नीलम हाउस खाली हो चुका था। विनोद ने लन्दन और न्यूयार्क की यात्रा की थी मगर कोई खास बात नहीं मालूम हो सकी थी ! वापसी में इतना मालूम हुआ था कि फरामुज जी के साथ कार्टन और डाक्टर हेमियर आकर रहने लगे थे और उसी जमाने से फरामुज जी धनी होता चला गया था और नीलम हाउस का निर्माण आरम्भ कर दिया था।

मजे की बात यह थी कि सामान्य रूप से इनकम टैक्स से बचने के लिये आदमी अपनी आमदनी कम ही दिखाता है—मगर फरामुज जी ने अपनी आमदनी इतनी अधिक दिखाई थी कि लोगों को सन्देह होने लगा था कि उसने अपनी आमदनी गलत दिखाई है। यह और बात है कि इनकम टैक्स वाले उसका कुछ न बिगाड़ सके थे न इन्फोर्समेन्ट वाले। जो माल दूसरे व्यापारी एक रुपया प्रति यूनिट बेचते थे वही माल फरामुज जी दस रुपये प्रति यूनिट बेचता था और उसके पास ग्राहक भी इस प्रकार के थे कि उसकी ओर से संदिग्ध होने के बाद भी कोई उसके विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता था।

विनोद को उन कागजों की भी सूचना मिली थी जो की फरामुज ने कार्टन के लिये भिजवाये थे। मगर उससे कोई बात नहीं बनी थी इसलिये वापसी के बाद विनोद ने अपना सारा ध्यान नीलम हाउस ही की ओर लगा दिया था इसलिये कि उसे पूरा विश्वास था कि असलियत का पता नीलम हाउस ही से चल सकता है। न्यूयार्क में उसने एक शिकारी का भी कई बार उल्लेख सुना था । हिन्दुस्तान वापस आने के बाद वह उस शिकारी को भूला नहीं था मगर उससे मुलकात न ही की थी— फिर घटने वाली घटनाओं के चक्कर में उसके दिमाग से वह शिकारी तो नहीं उतरा था मगर उसके तलाश करने का अवसर भी न मिल सका था। उसने नीलम हाउस की तलाशी भी ली थी। उस मनहूस कमरे का निरीक्षण भी किया था मगर कोई नतीजा नहीं निकला था - फिर कल दिन से वह उस गोदाम के पीछे लग गया था जो नीलम हाउस के नीचे बना हुआ था और गोदाम के बारे में जन साधारण भी जानते थे। उसका यह परिश्रम भी बेकार ही गया होता मगर रात वाली फायरिंग ने उसकी बहुत बड़ी उलझन दूर कर दी थी। विनोद को यह तो नहीं मालूम हो सका था कि गोलियों का निशाना किसे बनाया गया था मगर उसने फायर करने वाले तथा उस टामीगन को देख लिया था जिससे गोलियां बरसाई गई थीं—फिर उसे फिरोजा भी वहीं मिली थी जिसने उसे बताया था कि वह उसी ब्लैकमेलर के आदेश पर वहाँ आई थी। उसने हमीद को भी इसकी सूचना दे दी थी और उसके विचारासकार उस ब्लेक मेलर को कम्पाउन्ड के अन्दर ही होना चाहिये था विनोद ने फायर करने वाले को मालती की झाड़ियों में छलांग लगाते हुये देखा या मगर तलाश करने के बाद भी वह हाथ नहीं लग सका था। फिर विनोद ने अपने आदमियों द्वारा वहीं से फिरोजा को अपनी कोठी पर भिजवा दिया था और उन्हें आदेश दिया था कि वह तेरह अर्जुन पूरा से शापूर को भी उसको कोठी पर पहुँचा दें। यदि शापूर आपत्ति करें तो वह उसका नाम बता दें

उसके बाद हमीद मुलाकात हुई थी और हमीद को अपनो कोठी पर पहुँचाने के बाद विनोद तारा झील की ओर रवाना हो गया था. और वहीं रात व्यतीत की थीं। चार बजे तक वह रिवाल्वर संभाले एक पेड़ की आड़ में चुप चाप बैठा रहा था फिर एक दम से खड़ा हो गया था इसलिये कि एक जीप तारा झील के पास ही आकर रुकी थी। उसमें से दो आदमी उतरे थे जिन्होंने अपने को पूरी तरह ढक रखा था । वह उसी वृक्ष के पास आकर ठहर गये जिसकी दूसरी ओर विनोद था ।

"काम आरम्भ किया जाये ?" एक ने कहा था ।

"चारों ओर देख लो―" दूसरे ने कहा था ।

"यह सतर्कता नहीं वरन  मूर्खता कहलायेगी--" दूसरे ने हँस कर कह था "इतनी रात को यहाँ आने का साहस केवल कर्नल विनोद कर सकता था और वह नीलम हाउस में उलझ गया है।"

"जो भी हो मगर मुझे ऐसा लगता है कि विनोद को कुछ मालूम हो गया है।"

"अभी तो नहीं - लेकिन यदि इसी प्रकार कुछ दिन और बेकार गुजरे तो अवश्य वह बहुत कुछ जान जायेगा।"

"तुम किससे काम ले रहे हो ?" पहले ये पूछा ।

"पंकज से।"

दोनों विदेशी मालूम हो रहे थे और बातों के साथ ही साथ टार्च के प्रकाश में अपने आसपास की धरती भी इस प्रकार देखते जा रहे थे जैसे उन्हें किसी निसान की तलाश हो ।

"वह शिकारी कौन है ?" पहले वाले ने दूसरे से पूछा ।

"उसका पता तो फरामुज ही बता सकता है ।"

"क्या तुम्हारे विचारानुसार वह सचमुच नहीं मरा?"

"हां मेरी समझ से वह जिन्दा है—कुछ दिखाई दिया ?" "नहीं यार - ऐसा लगता है जैसे सारा परिश्रम बेकार जायेगा - क्यों न हम फरामुज जी को तलाश करें।"

"फिर सवाल यह है कि वह मिलेगा कहाँ..." दूसरे ने कहा, फिर चौंकता हुआ बोला, “यार हम लोग भी गधे ही हैं। फरामुज जी ने जो पत्र लिखा था उसमें तारा झील का वर्णन था और हम लोग तारा झील को छोड़ कर इधर उधर भटक रहे हैं।"

'अरे यह बात है---तो फिर यह चक्कर छोड़ो-" पहले ने कहा “इसलिये कि न हमारे पास इतने आदमी हैं और न पूरी झील खंगाली जा सकती है।"

"वह क्यों भूल रहे हो कि आवश्यकता पड़ने पर हम सरकार से सी सदाय प्राप्त कर सकते हैं ।"

" बैंक डोर से ?" पहले ने कहा।

"बैक डोर हो चाहे फ्रन्ट डोर हो - मगर तुम सहायता प्रा.....।"

"आओ रेमन्ड के पास चलें और उसके सामने यह योजना रखें- मगर एक बात है। वह यह कि हमें सबका सहयोग नहीं मिल रहा है---।"

“कदाचित तुम्हारा संकेत कार्टन इत्यादि की ओर है-" दूसरे ने कहा !

"क्या तुम उस लड़की की ओर से सन्तुष्ट हो ?

"नहीं वह मुझे फाष्ठ मालूम होती है और इस समय विनोद के चक्कर में है।"

"तब तो बड़ा अच्छा है—उन लोगों को एक दूसरे से मिड़ा रहने दो—अपना काम बन जायेगा- अब आओ चला जाये।" दोनों जीप की ओर बढ़े। विनोद चाहता तो उन पर अधिकार प्राप्त करके यह मालूम कर सकता था कि वह किस वस्तु की तलाश में हैं मगर अब इससे आवश्यक यह प्रश्न था कि वह वस्तु है कहाँ - इसे वह दोनों भी नहीं जानते थे इसलिये विनोद ने उन्हे रोका नहीं- फिर रेमन्ड का नाम तो सामने ही था। उसने सोचा कि दिन के राज ले में भी रेमन्ड तथा इन दोनों को चेक किया जा सकता है। रेमन्ड को वह अच्छी तरह जानता था । रेमन्ड ही के मकान से हमीद को फोन करवाया गया था। उसी इमारत में हमीद को कासिम मिला था- फिर भला रेमन्ड को किस प्रकार उपेक्षित किया जा सकता था।

उसके जाने के बाद विनोद भी टार्च निकाल कर धरती पर इधर उधर देखने लगा जहां वह दोनों देख रहे थे मगर  उन्हे कोई वस्तु नजर नहीं आई जिससे कोई परिणाम निकाला जा सकता। उसने टार्च बुझा दी और झील की ओर देखने लगा।

दूसरे ही क्षण कर बरती पर लेट गया इसलिये कि झील के पूर्वीय किनारे से एक आदमी गोता खोरी के लिवास में उभरा था और उपर देखने के बाद पानी से निकल कर ऊपर आ गया था। फिर उसने अपना गोता खोरी वाला विवास उतार कर झोले में रखा और जंगल की ओर बढ़ा। विनोद भी पेट के बल रेंगता हुआ बढ़ा-- फिर जब वह आदमी जंगल में घुस गया तो विनोद उठा और पंजों के बल चलता हुआ वह भी जंगल में घुस गया। यह वही शिकारी था जिसे वह तलाश करता फिर रहा था और जिसको उसने अच्छी तरह पहचान लिया था- इसलिये कि प्रभात का उजाला फैल चुका था और चिड़ियां चहचहाने लगी थीं ।

शिकारी चलता हुआ उन लम्बी लम्बी झाड़ियों के निकट आया था जिनमें कहीं कहीं  टोले भी थे और फिर वह उन्हीं झाड़ियों में गायब हो गया था। विनोद मुस्कुराता हुआ वापस लौट पड़ा था और फिर चक्कर काट कर उस कच्ची सड़क पर आया जिस पर एक जीप  खड़ी थी और जिसकी डाइविंग सीट पर बैठा हुआ एक आदमी सो रहा था। उसकी आहट पाते ही यह चौंक कर सीधा हो गया था विनोद ने जीप पर बैठ कर उससे नीलम दाउस चलने के लिये कहा और थर्मास से काफी उडेल कर पीने लगा ।

दस बजे दिन तक यह सूचना आग के समान फैल गई कि नीलम हाउस के दिन फिरने वाले हैं - ग्यारह बजे पुलिस का पहरा हट गया और साढ़े ग्यारह बजे फिरोजा तथा शापूर कर्नल विनोद और हमीद के साथ नीलम हाउस में दाखिल हुये। फरामुज जी के उन रिश्तेदारों को भी सुचना भिजवाई गई जो पहले नीलम हाउस में रहते थे—उन नौकरों को भी बुलाया गया जो मगर ही के रहने वाले थे। वह सूचना पाते ही आ गये ।