(14)
“आश्चर्य है." सामान तो कोई गायब नहीं हुआ फिर कौन आया? यह देश भी विचित्र है। यहां सिनेमा देखना भी जुर्म है। कल मैं दूतावास के माध्यम से रिपोर्ट भी लिखवाऊँगा और प्रोटेस्ट नोट भी भेजूंगा।"
हमीद ने इन्जिन स्टार्ट करके मोटर सायकिल आगे बढ़ाई । कुछ ही दूर जाने के बाद पुलिस की एक जीप कार आती हुई नजर आई । उसीने बताया कि कासिम साहब की गाड़ी अगले चौराहे के पास खड़ी है ।
हमीद ने कासिम को उसकी कार के पास उतार दिया और खुद नीलम हाउस की ओर बढ़ता चला गया ।
ठीक साढ़े दस बजे वह नीलम हाउस के निकट पहुँचा । नीलम हाउस रङ्ग बिरंगी रोशनियों से जगमगा रहा था। कम्पाउन्ड में सिपाहियों का गश्त जारी था। इन्स्पेक्टर आसिफ अपनी आवाज के कारण पहचाना जा सकता था। वह अपना रोव डालने के लिये सिपाहियों पर बिगड़ रहा था।
हमीद ने चार दिवारी के निकट एक कोने में अपनी मोटर सायकिल छिपाई और फिर कम्पाउन्ड की ओर बढ़ा। तब उसे एहसास हुआ कि उससे एक बहुत बड़ी गलती हो गई—उसने फिरोजा से यह नहीं पूछा था कि वह नीलम हाउस में किस जगह उससे मिलेगी ।
अभी आधा घन्टा शेष था । उसने सोचा कि ठीक ग्यारह बजे से तलाश आरम्भ करेगा और नीलम हाउस के अन्दर भी जाकर देखेगा- फिर यह प्रश्न सामने आया कि आखिर यह आधा घन्टा कहाँ और किस प्रकार व्यतीत किया जाये इस प्रश्न का उत्तर भी फौरन ही मिल गया-नूरा श्रोड के यहाँ ।
हमीद की बांछें खिल उठी। नूरा ने आज सन्ध्या को उससे आर्लेक्चनू में मिलने के लिये कहा था मगर नहीं मिली थी— उससे मुलाकात करने का यह सुन्दर बहाना था। साथ ही साथ वह नूरा से यह भी मालूम करना चाहता था कि कल जो उत्पात हुआ था उसकी कोई रिपोर्ट उसने दर्ज कराई थी या नहीं और यह कि उसने नूरा के क्वार्टर के पिछले भाग की ओर दो सिपाहियों की ड्यूटी लगानी चाही थी वह लगी या नहीं-?"
वह चक्कर काट कर दूसरी ओर से आया और आसिफ की नजरों से बचता हुआ उस बरामदे में आया जिसमें नूरा का क्वार्टर था । इस समय भी उसके क्वार्टर के पास दो सिपाही बरामदे में बैठे हुये आपस में बातें कर रहे थे। वह दोनों हमीद को नहीं पहचानते थे इसलिये एक ने पूछा।
"आप कौन साहब हैं और यहां किस लिये आये हैं ?"-
"तुम्हें आफिसरों से बात करने की भी तमीज नहीं है हमीद ने आफिसराना ज्ञान से कहा, फिर पूछा “इस क्वार्टर के पिछले भाग पर किसी की ड्युटी है या नहीं ?"
"ज...ज...जी है- -" उसने कहा और दोनों उठ कर खड़े हो गये।
"ठीक है-बैठो -" हमीद ने कहा और पर्दा हटा कर नूरा के क्वार्टर में दाखिल हो गया ।
इस समय वह गुड़िया चारपाई पर नजर नहीं आ रही थी जिनका कौतुक वह देख चुका था और न मेज पर वह तस्वीर ही नजर आ रही थी। उसने हमीद को देखते ही कहा था। "तुम्हारे कारण मेरी सन्ध्या नष्ट हो गई ।"
"तुमने तो अब तक न जाने कितनों की रातें नष्ट की होंगी- मैंने तुम्हारी एक ही सन्ध्या नष्ट की।" हमीद ने मुस्कुराते हुये कहा फिर कुर्सी पर बैठकर बोला, "मैं तुम्हारा इन्तजार ही करता रह गया।"
"मैं कैसे आती-" नूरा ने मान भरे स्वर में कहा "अगर केवल उन्हीं दोनों सिपाहियों की बात होती जो बरामदे में रहते हैं तो मैं उन्हें चकमा दे कर आ सकती थी— मगर तुम्हारे कारण बड़े बड़े मेरे चक्कर में पड़ गये।"
"क्या किसी ने प्रेम प्रदर्शन भी कर डाला?" हमीद ने बनावटी बोखलाहट के साथ पूछा। "इसके अधिकार तो मैंने तुम्हारे नाम सुरक्षित कर रखे हैं –"
नूरा ने हँस कर कहा "तुम्हारे जाने के बाद से कर्नल विनोद ने भी मेरी निगरानी करवाई और एस० पी क्राइम्स ने भी निगरानी करवाई- इसके अतिरिक्त चार घन्टे से बूढ़ाबटेर मेरे पीछे लगा हुआ है। हर दस मिनिट के बाद वह या उसका कोई आदमी आकर कुशल पूछ जाता है ।"
"तुम ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी?" हमीद ने पूछा ।
"किस बात की?"
"तीसरे पहर वाले दुर्घटना की -।"
"क्या वह कोई दुर्घटना थी ?" नूरा ने बड़ी मासूमियत से पूछा ।
"तुमने क्या समझा था ?"
"मैंने तो यही समझा था कि वह तुम्हारा रचा हुआ कोई ड्रामा था। तुम मुझे भय भीत करना चाहते थे।"
"अच्छा!" हमीद ने मुस्कुराते हुये कहा, "मैं नहीं कह सकता कि हम दोनों में से कौन ड्रामा कर रहा है मैं या तुम— मगर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि न मेरे पास कोई मायावी गुड़िया है न किसी ड्रामाई स्थिति में रह रहा हूँ - अरे हाँ वह तुम्हारी गुड़िया क्या हुई ?"
"जहाँ में नहीं जा सकती वहां अपनी गुड़िया को भेज देती हूँ। वह मेरा प्रतिनिधित्व बडी सुन्दरता से करती है।"
"तो आज तुम कहीं नहीं जा सकीं?" हमीद ने पूछा ।
"कैप्टन हमीद से मिलने- "नूरा ने मुस्कुरा कर कहा फिर गम्भीरता के साथ बोली, "मैंने गुड़िया को छिपा दिया है ।"
"अस्ल बात तुमने उड़ा दी" हमीद ने कहा "रिपोर्ट दर्ज करा दी थी या नहीं?"
"नहीं।" नूरा ने कहा ।
"तुम्हारी सहेली रोमा की तस्वीर नजर नहीं आ रही है।"
"क्या वह भी तुम्हें पसन्द आ गई है ?" नूरा ने कटाक्ष करते हुये पूछा ।
"मैंने, सुनिए पूछा था कि रोमा ने आज मेरे एक दोस्त कासिम के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है। वह कासिम को लेकर एक देश के दूतावास के एक आफिसर के घर में घुस गई थी और वहीं से कासिम द्वारा टेलीफोन करवा कर मुझे वहाँ बुलवाया था। कुशल यह हुवा कि में वहाँ पहुँचा था तो वह आफिसर कहीं गया था। लौट कर अपने घर नहीं पहुँचा था और रोमा भी वहां मौजूद नहीं थी। मैं जल्दी से कासिम को लेकर वहां से भाग निकला था ।"
"वह तुम जानो और रोमा जाने" नूरा ने कहा "मैं तो इतना जानती हूँ कि वह मेरे मालकिन के घर में रहती है वैसे जब वह मिलेगी तो मैं उससे उसके इस दुर्व्यवहार के बारे में अवश्य पूछूंगी--।”
"तुम्हारा यह बयान भी गलत है कि रोमा तुम्हारी मालकिन के साथ रहती है- " हमीद ने कहा
"फिरोजा ने मुझे बताया है कि रोमा और कार्टन दोनों ही केवल उसके परिचित हैं। दोनों में कोई उसके साथ रहता नहीं। हाँ, कभी कभी वह दोनो उसके यहाँ आते अवश्य है और फिर चले जाते हैं ।"
"फिरोजा से तुम्हारी मुलाकात हुई थी ?" रोमा ने पूछा
"हाँ ।"
"इस समय वह कहां होगी ?"
"अपने घर पर " हमीद ने मुस्कुरा कर कहा, फिर उठता हुआ बोला "मैं केवल यह देखने आया था कि तुम्हारे सौन्दर्य और आकर्षण में कोई अन्तर तो नहीं पड़ा।"
“क्या देखा ?” रोमा ने मुस्कुरा कर बड़े मोहक ढंग से पूछा । यही कि तुम्हारे कपोलों के गुलाब पहले से अधिक रंगित और विकसित हैं — अधरों की कलियां उतनी ही कुसुमित हैं—नेत्रों के दीप उतने ही प्रज्वलित हैं और बालों की घटाली में और कालिमा भर आई है----तुम्हें शब्द घटाली पर कोई आपत्ति तो नहीं है-" वह हंस पड़ी फिर मुस्कुराती हुई बोली ।
"तुम बातें बड़ी सुन्दर कर लेते हो" वह कह कर हँस पड़ी । हमीद, झुक कर फर्शी सलाम झाड़ने ही जा रहा था कि नूरा ने कहा।
'मुझे तुमसे अत्यन्त आवश्यक काम था। " रोमा ने कहा इस बार उसके स्वर में इतनी गम्भीरता थी कि हमीद को भी गम्भीर होना पड़ा। वह फिर बैंठ गया और रोमा की आँखों में देखता बोला |
"मुझसे इतने गंम्भीर स्वर में बात न किया करो। मेरा दिल धडकने लगता है बताओ क्या काम है?"
"तुम और तुम्हारा चीफ दोनों ही नीलम हाउस में क्यों दिलचस्पी ले रहे है ?" नूरा ने पूछा ।
"इसलिये कि यह हमारा कर्तव्य...."
तुम लोगों का कर्त्तव्य तो उस समय होता जब नीलम हाउस का केस तुम्हारे हाथों में होता.." नूरा ने बात काट कर कहा लेकिन मैं जानती हूँ कि नीलम हाउस का केस इन्स्पेक्टर आसिफ को सौंपा गया है।"
"इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता-" हमीद ने कहा "केस चाहे जिसे भी सोंपा जाये - मगर हम दोनों चौबीस घन्टे आन ड्युटी रहते रहते हैं और हमारे सर पर यह बोझ डाला गया है कि हम हर समय अपनी आंख और कान खुले रखें-कानून की महानता स्थिर रखें और अपराधों की जड़े खोखली करते रहें-।"
"क्या तुम्हें इनका विश्वास है कि फरामुज जी मर गया है ?" नूरा ने पूछा और हमीद एक दम चौंक कर उसे घूरने लगा-फिर बोला।
"हम तो यही समझते चले आये हैं----मर तुम्हारे इस प्रश्न ने अब उलझन में डाल दिया है- क्या तुम यह बताना पसन्द करोगे कि तुम ने यह प्रश्न क्यों किया है?"
"फरामुज जी की लाश जिस दशा में मिली थी उस दशा में शनाख्त कठिन ही नहीं वरन असम्भव थी। केवल शरीर के आकार और कपड़े के आधार पर कोई फैसला नहीं करना चाहिये--"
"इसका यह अर्थ हुआ कि तुम फरामुज जी को जिन्दा समझती हो ?" हमीद ने कहा ।
"वही क्या मैं तो यह समझती हूँ कि जितने लोग मरे हैं वह सब बेचारे दूसरे लोग हैं—फरामुज जी तथा उनके घर के दूसरे लोगों की मौत का बहाना तराशा गया है।"
हमीद कुछ देर तक मौन रहा फिर नूरा से पूछा । "यह बात तुमने मुझे से क्यों कही है ?"
"केवल इसलिये कि मैं तुम्हारी सहायता करना चाहती हूँ।"
"मेरी सहायता !" हमीद फिर उसे घूरने लगा उसके बाद बोला "क्या अपराधियों के पकड़ने के सम्बन्ध में ?"
"सुनो कैप्टन! कौन अपराधी हैं और क्या अपराध है - इसे तुम जानो और तुम्हारा चीफ जाने मैं तो एक दूसरे मामले में तुम्हारी सहायता करना चाहती हूँ ।"
“किस मामले में ?" हमीद ने पूछा । उसकी उत्सुक्ता बढ़ती जा रही थी ।
"तुम लोग जो तलाश कर रहे हे। उस सम्बन्ध में..." नूरा ने कहा।
"हम लोग क्या तलाश कर रहे हैं ?"
"यह कर्नन विनोद से पूछना जो पिछले दो दिन से इस नीलमहाउस का एक एक कमरा सूंघते फिर रहे हैं ।"
"तो इस सम्बन्ध में तुम क्या सहायता करोगी ?"
'यह तो समय बतायेगा — मगर सहायता उसी समय कर सकती हूँ जब यह मालूम हो जाये कि कर्नल को किस वस्तु की तलाश है ।"
"इतना ऊँचा उड़ने की कोशिश न करो मिस नूरा-कहीं ऐसा न हो कि तुम खुद अपने ही कहे शब्दों की जंजीर में जकड़ जाओ...." हमीद कहा, फिर अत्यन्त गम्भीर स्वर में बोला "तुमने अब तक जो बातें हम से कहीं हैं उनसे यह साफ प्रकट होता है कि तुम बहुत सारी ऐसा बातें जानती हो जो अभी तक आवरण में हैं—और तुम्हारे विचारानुसार उन बातों को कर्नल विनोद भी नहीं जानता। अगर तुम सचमुच हमारी अर्थात कानून की सहायता करना चाहती हो तो वही सारी बातें बता दो जिन्हें तुम्हारी समझ के अनुसार तुम्हारे अतिरिक्त और कोई नहीं जानता — इस चक्कर में मत पड़ो कि कर्नल विनोद क्या तलाश कर रहा है।
प्रथम इसके कि नूरा कुछ कहती- हमीद को एसा महसूस हुआ जैसे कोई हंस रहा है-नारी हाँसी-आवाज नूरा की आवाज से मिलती जुलती थी- नूरा मौन थी । उसके चेहरे पर कोई लक्षण भी नहीं थे ।
"तुम्हारी गुड़िया भूखी है— उसे शीशी का दूध पिलाओ-" हमीद अट्टहास लगाते हुए कहा....“कदाचित तुमने उसे चारपाई के नीचे छिपा रखा है।"
"नहीं कैप्टन ! चारपाई के नीचे तो कर्नल विनोद के बनाये गये निशान हैं---गुड़िया बेचारी तो बक्स के पीछे लेटी है।" हमीद ने घड़ी पर नजर डाली। ग्यारह बज चुके थे। वह झटके के साथ उठा और बोला ।
"अच्छा- अब मैं चला —कल मुलाकात होगी ।" "मैं नहीं चाहती कि तुम अकारण मुझसे मिलो—अगर तुम मुझे यह बता सको कि कर्नल विनोद को किस वस्तु की तलाश है तो फिर कल क्यों—आज ही रात में फिर किसी समय मुझसे मिल सकते हो -"नूरा ने कहा, फिर मुस्कुरा कर बोली “कहो तो एक सनसनी पूर्ण सूचना दूँ।
"वह क्या ?"
"तुम्हारे चीफ कर्नल विनोद कम्पाउन्ड के अन्दर मौजूद हैं-" नूरा ने कहा ।
हमीद के लिये यह सूचना सचमुच सनसनी पूर्ण थी, मगर उसने अपने चेहरे पर किसी भी प्रकार का भाव अंकित नहीं होने दिया था। चुपचाप दरवाजे की ओर बढ़ गया था मगर दरवाजे से बाहर निकलते समय जब उसने गर्दन मोड़ कर नूरा की ओर देखा था तो उसे नूरा के चेहरे पर बड़ी गहन कठोरता नजर आई थी ।