(10)
हमीद झल्ला कर बाहर निकल आया। दोनों सिपाही खड़े थे। उसने उनसे पूछा। "कुछ पता चला वह चारों किस और गये और कौन थे ?
"जी नहीं, फायरिंग करते हुये वह न जाने कहाँ गायब हो गये-" एक ने कहा "मगर हमारा विचार है कि वह यही कहीं छिपे हुये हैं और उन्हें तलाश करना केवल हम दो आदमियों के वश की बात नहीं है। आप - फोर्स भेज दीजियेगा ताकि यहां उन्हें तलाश किया जा सके-"
"ठीक है— मैं देखता हूँ" हमीद ने कहा "तुममें से एक आदमी तो यहीं रहेगा और एक आदमी इस क्वार्टर के पीछे उस समय तक रहेगा जब तक मेरे भेजे हुये दो आदमी यहा न पहुँच जायें।"
"जी अच्छा-मगर मिस साहिबा से कह दीजिये कि वह पीछे वाली चार खिड़की बन्द करदे --" दूसरे सिपाही ने कहा ।
"मिस साहिबा की निगरानी के लिये मैने तुम में से एक आदमी को पिछले भाग की ओर रहने के लिये कहा है । यह मिस साहिबा मुझे बहुत खतरनाक मालूम होती हैं ।"
बात समाप्त करके हमीद जैसे ही कम्पाउन्ड की ओर बढ़ा—उसे फिर एक अट्टहास सुनाई पड़ा तीव्र नारी अट्टहास -
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सन्ध्या हो गई थी ।
आर्लेक्चनू में कम ही लोग नजर आ रहे थे— कदाचित इसलिये कि आज ठण्ड बहुत अधिक थी और लोगों ने बाहर निकलने के बजाय अपने घरों में ही हीटर लगा कर सर्दी मगाने का निश्चय किया था ।
कारण जो भी रहा हो लेकिन भीड़ भाड़ नहीं थी । अन्दर गर्मी भी अवश्य थी मगर बाहर तेज कुहरा पड़ रहा था । किनारे की एक मेज पर चार व्यक्ति बैठे हुये थे, जिनमें से दो की नजरें सदर दरवाजे पर लगी हुई थीं और दो की पीठ सदर दरवाजे की ओर थी ! चारों में एक लड़की थी और तीन पुरुष - तीनों पुरुषों में दो विदेशी थे और एक देशी था। दोनों विदेशी कुछ भल्लाये हुये. लग रहे ये । दोनों में से एक कहा रह था।
"दो महीने से अधिक हो गये । इन्तजार की भी एक सीमा होती है।"
"मुझे विश्वास है कि वह आता ही होगा और उसके आने के बाद हम निश्वय कोई निर्णय कर लेंगे" देशी ने कहा ।
"एक रास्ता और भी है-" लड़की ने कहा ।
"क्या ?” तीनों ने एक साथ पूछा और लड़की को घूरने लगे ।
"शापूर को खत्म कर दिया जाये" लड़की ने कहा ।
"तो फिर यह काम तुम्हें ही करना होगा" देशी ने कहा ।
"सुनो-" एक विदेशी ने कहा "हम लोग अकारण खून बहाना पसन्द नहीं करते। भला शापूर को मार डालने से हमें क्या लाभ पहुँचेगा"
"नीलम हाउस पर पूरा अधिकार" लड़की ने मुस्कुरा कर कहा ।
"और इस अधिकार से क्या लाभ होगा ?"
"लाभ यह होगा कि नीलम हाउस की तलाशी इत्मीनान के साथ ली जा सकेगी" लड़की ने कहा ।
"तुम्हारा विश्वास निर्मूल है-" देशी ने कहा "नीलम हाउस है की आड़ में फरामुज जी दिन प्रतिदिन धनवान होता चला गया था और उसी रहस्य को छिपाये रखने के लिये उसने अन्तिम साँस तक हार नहीं मानी थी।"
"मैं इसका समर्थक तो हूँ कि फरामुज जी को ज्ञान था - मगर बात का समर्थक नहीं हैं कि वह नीलम हाउस में है -।"
" फिर कहां हो सकता हैं ।"
"तारा झील के किनारे वाले जंगलो में ।"
"फरामुज जी का एक शिकारी दोस्त लगभग प्रति दिन तारा झील का चक्कर लगा रहा है।"
"और उस शिकारी के पीछे कर्नल विनोद लग गया है-" लड़की मुस्कुरा कर बोली ।
"अच्छा याद आया - कर्नल विनोद का क्या किया जाये ?"
"उसे भटकने दो । वह लन्दन और न्यू यार्क की सैर करके वापस आ गया है । वहाँ भी कुछ नहीं मालूम कर सका और यहाँ भी भटकता रहेगा।"
"मगर कर्नल विनोद के कदम भी नीलम हाउस पहुँच चुके हैं-"
"मैं तो विनोद से अधिक हमीद से भयभीत हूँ ।"
"वह क्यों ?"
"अचानक मुलाकात - वह पीछे लगा हुआ है-"
इतने में सदर दरवाजा खुला और ऐसा लगा जैसे पूरे हाल में भूकम्प आ गया हो । बैरों की पूरी फौज हरकत में आ गई थी और हाल में जितने लोग बैठे हुये थे उन सब की नजरें दरवाजे की ओर उठ गई थीं—और सभी के अधरों पर मुस्कान थिरकने लगी थी । आने वाला भीम काय कासिम था।
वह इस समय सुमई रंग का बहुत शान्दार सूट पहने हुये था जो उसके भारी भरकम और शक्तिशाली शरीर पर बहुत खिल रहा था। वह एक मेज पर बैठ गया और बेरे जो उससे अच्छी तरह परिचित थे, उस मेज के पास आकर खड़े हो गये और एक ने बड़ी शिष्टता से पूछा ।
"जनाब ! खाना या काफी ?"
"कुश भी लाओ - " कासिम ने कहा । उसका मूड बहुत अच्छा नजर आ रहा था ।
"मैं समझा नहीं जनाब?" बैरा ने कहा।
"क्या नाहीं समझे ?” कासिम ने आंखें निकाल कर कहा ।
"मेरा मतलब यह था जनाब कि अगर आपको भूख लगी हो तो।"
"भूख – अगे बाप गे— " कासिम अपने पेट पर हाथ फेरने लगा । भूख का नाम सुनते ही उसकी भूख चमक उठी थी । उसने जल्दी से कहा,
" ठीख है-खाना लाओ – ”
थोड़ी ही देर में कासिम की मेज खाने की प्लेटों और क़ाबों से भर गई और वह प्लेट खिसका कर लम्बे लम्बे हाथ मारने लगा ।
हाल में बैठे हुये तमाम लोग उसे कनखियों से देख रहे थे मगर वह दोनों विदेशी तो बिल्कुल ही आश्चर्य चकित हो उठे थे- फिर जब भी कासिम ने काब से बकरे की मुसल्लम रान उठा कर दांतों से नोचना आरम्भ किया तो दोनों विदेशियों में से एक ने कहा ।
"यह देव समान आदमी कौन है ?"
"इसका नाम कासिम है-" देशी ने कहा । " आश्चर्य जनक - ऐसा आदमी आज तक मैंने नहीं देखा था।"
"इससे भी विचित्र इसकी खुराक मालूम होती है-" दूसरे विदेशी ने कहा "क्या यह मेज पर लगा हुआ सब खाना खा जायेगा -?"
"हाँ - और यह कोई नई बात नहीं है। यह प्रतिदिन इतना हो खाता है-" विदेशी ने कहा ।
"ओह ! मगर क्या यह अपने इस डील डौल और इस खुराक से अनुसार शक्ति भी रखता है ? पहले वाले विदेशी ने पूछा ।
"इसकी शक्ति का अनुमान इसी से लगा सकते हो कि एक वार इसने एक उनमत्त भैसे की दोनों सींगे बीच सड़क पर पकड़ ली थीं और सींगों को इस प्रकार ऐंठा था कि भैंसा डकारता हुआ सड़क पर गिर कर बेबस हो गया था। वह भैसा कुछ इस प्रकार उनमत्त हो रहा था कि उसकी फुफकार सुन कर सड़क पर भगदड़ मच गई थी।"
"अरे नहीं-" एक विदेशी ने कहा ।
“विश्वास करो -" देशी ने कहा "असाधरण शक्ति रखता है। सवार सहित मोटर सायकिल सड़क के एक किनारे से उठा कर दूसरे किनारे तक ले जाता है— बस इसकी एक कम्जोरी है-"
"वह क्या ?"
"औरत- देशी ने कहा और हँस पड़ा।
“सच !” विदेशी ने दिलचस्पी लेते हुये कहा ।
"हाँ- सुन्दर मगर तगड़ी लड़कियों और औरतों के सामने यह केचुये से भी हीन हो जाता है । ऐसी लड़कियाँ और औरतें इसे मूर्ख बनाकर जितनी रकम चाहती हैं ऐंठ लेती हैं।"
"क्या बहुत धनी है?"
"यहाँ के करोड़ पति सेठ आसिम का एक मात्र पुत्र है-और कैप्टन हमीद का जिगरी दोस्त है- "यह तो बहुत अच्छा हुआ" एक विदेशी ने चहक कर कहा उसकी आंखें चमकने लगी थीं ।
"क्या मतलब?" देशी ने चौंकते हुये पूछा ।
"इसी के माध्यम से कर्नल विनोद या केप्टन हमीद का अपहरण किया जायेगा फिर हमारे सारे काम अपने आप बन जायेंगे ।" मैं अब भी नहीं समझा-" देशी ने कहा ।
"यह मोटा कैप्टन हमीद का जिगरी दोस्त है ना ?" विदेशी ने कहा।
"हाँ ?"
"इस की सब से बड़ी कम्जोरी औरत है ना ?"
'हा...!'
"और जब यह हमीद का जिगरी दोस्त है तो फिर विनोद भी इसे जानता हो जानता होगा।"
""प्रकट है" देशी ने कहा
"तो फिर बात साफ है-" विदेशी ने कहा "इसी से विनोद या हमीद को फोन करके बुलवाया जायेगा और फिर उनका अपहरण ।"
"मगर इस मोटे से फोन करायेगा कौन ?” देशी ने पूछा ।
"रोमा !” विदेशी ने अपनी साथी लड़की की ओर देखते हुये कहा, "वह किस प्रकार ?"
हम 'कमाल है- इतनी सीधी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही हैं-" विदेशी ने कुछ झल्लाहट के साथ कहा "रोमा इस मोटे से मिलेगी- अपने मोहजाल में फांसेगी और फिर इसी से फोन करवा कर विनोद या हमीद को बुलायेगी- दोनों में जो भी आयेगा उसका अपहरण होगा और इस प्रकार हमारे सब काम बन जायेगे ---क्यों रोमा ?”
"बिल्कुल ठीक- मैं इसके लिये तैयार हूँ" रोमा ने मुस्कुरा कर कहा और कासिम की ओर देखनी लगी।
कासिम भोजन कर चुका था और बैरों ने मेज साफ करके काफी की ट्री रख दी थी वह काफी बना रहा था. साथ ही साथ एक हाथ से पेट भी सहलाये जा रहा था। कभी कभी जबरदस्त किस्म की डकार भी लेता था।
रोमा ने गर्दन मोड़ कर अपने साथियों की ओर देखा फिर मुस्कुराती हुई उठी और मन्द गति से चलती हुई कासिम की मेज के निकट पहुँच कर बड़े हो मधुर और मादक स्वर में बोली ।
"क्या में आपकी मेज पर बैठ सकती हूँ?"
"नाहीं कासिम ने झटकेदार आवाज में कहा, मगर दूसरे ही क्षण बौखला कर खड़ा हो गया और हकला ढकला कर बोला "माफ कीजियेगा | मैंने समझा था कि कोई और है- बैठिये बैठिये यह मेरो खुश खिस्मती है कि।"
"शुक्रिया - " रोमा ने मुस्कुराते हुये कहा "मगर आप खड़े क्यों हो गये ?"
"ज....ज जी आपका इस्तखबाल करने के लिये जो हो - आप बैठिये।”
"एक बार फिर शुक्रिया' रोमा ने मुस्कुराते हुये कहा और कासिम के सामने वाली कुर्सी पर बैठती हुई बोला “आप भी बैठिये !"
"जी हां" कासिम ने कहा और धप से बैठ गया— मगर इस धब से बैठने के कारण शरीर का हर अंग जोर से हिल गया था फिर काफी की वह पाली क्यों न हिलती जो उसके दाहिने हाथ में थी— नतीजा यह हुआ कि प्रर्याप्त मात्रा में काफी छलक कर उसके सूट पर गिर पड़ी और वह फिर खड़ा हो गया। जल्दी से प्याली ट्रे में रखी और जेब से रूमाल निकाल कर कपड़े साफ करने लगा !
"क्या हुआ ?" लड़की ने पूछा ।
"ही ही ही कुश नाही" कासिम ने झेंपी झेंपी हंसी के साथ कहा और फिर बैठ गया ।
"मेरा ख्याल है कि आप कुछ नर्वस से हो गये हैं-" रोमा ने कहा "अगर मेरा यहां बैठना आपको बुरा लगता हो तो मैं उठ जाऊँ–”
"नाई' – नाई यह आर किया कह रही है।" कासिम ने जल्दी से कहा, “अल्ला कसम आपके यहाँ बाठने से मुझे इत्ती खुशी हुई है कि बयान नहीं कर सकता मगर आप ने किया सोच कर यह कहा था ?"
"सिर्फ इसलिये कि आपने अभी तक मुझे काफी के लिये भी नहीं पूछा-" रोमा ने मुस्कुरा कर कहा ।
“अरे हाँ यह गलती तो हो गई-अल्ला कसम में वालेकुल भूल गया था- माफ कर दीजिये--" कासिम ने कहा, फिर गर्दन घुमा कर एक बेरा की ओर देखता हुआ दहाड़ा "अन्धे हो किया— देखते नाहीं कि यह बैठी हैं— जल्दी से लाओ।"
बेरा तो काफी लेने के लिये दौड़ा और रोमा ने कासिम से कहा । "मुझसे भी एक गलती हो गई है—उम्मीद है कि आप मुझे माफ कर देंगे ।"
"किया - कासी गलती ?" कासिम ने बौखला कर पूछा ।
'अभी तक मैंने आपसे आपका नाम नहीं पूछा-" रोमा ने कहा । "तोबा तोबा-भला यह भी कोई गलती है-" कासिम ने ही ही ही करते हुये कहा "मेरा नाम कासिम है
"ओह तो आप ही कासिम साहब हैं-सेठ कासिम साहब ।"
"जी हां- साहब हूँ। " कासिम बात काटता हुआ बोला "मैं उनका वालिद साहब हूँ।
"यह क्या बात हुई ?" रोमा ने आश्चर्य के साथ कहा।
"किया आप वालिद साहब के मायने नाहीं समझती-बाप को कहते हैं "
"आप आसिम साहब के बाप हैं?" रोमा ने पूछा । "नाहीं तो मैं साला खुद उनका बाप आगे बाप गे..." कासिम ने जल्दी से मुँह बन्द कर लिया ।
"क्यों - आप बोलते बोलते चुप क्यों हो गये ?" रोमा ने अपनी
हँसी दबाते हुये कहा । “जी—मैं यह कह रहा था कि वह मेरे किबला वालिद साहब है। " कासिम ने कहा।
"आप बड़े दिलचस्प ' आदमी हैं । आपसे मिल कर मुझे जो खुशी हुई है उसे मैं..."