(9)
"आप यहां कितने दिनों से हैं ?" हमीद ने पूछा ।
"सात आठ महीने हो गये।"
'जब यहां के सारे नौकर भाग गये तो फिर अप क्यों रुकी रह गई ?"
'केवल इसलिये कि मैं दूसरों के समान नहीं हूँ।"
"मैं ममझा नहीं?" हमीद उसे घूरता हुआ बोला ।
"मैं यह कह रही थी कि जिसने मेरी नियुक्ति की थी जब वही आकर मुझे अलग कर देगा तो मैं यहां से चली जाऊंगी।"
"आप के खर्च कैसे पूरे होते हैं? ' हमीद ने पूछा।
"मुझे बड़ा अच्छा वेतन मिलता था इसलिये मैंने पैसे बचा रखे थे- इसके अतिरिक्त फरामुज जो मेरे नाम से अच्छी खासी पूंजी छोड़ गये हैं।"
'आपको यहां भय नहीं मालूम होता ?"
"बिल्कुल नहीं" नरा ने कहा ।
पुलिस के सिपाही आपने बुलवाये हैं या एस० पी० ने अपनी इच्छा से नियत किये हैं?"
" मैंने अपनी रक्षा के लिये बुलवाये हैं।"
"इसका यह अर्थ हुआ कि आपको किसी प्रकार का खतरा है ?"
"आपका विचार सच है-" नूरा ने कहा ।
"किससे खतरा है !"
"उन लोगों से- जिन्होंने इस जगमगाते और भरे पूरे नीलम हाउस को वीरान कर दिया है, किसी स्टेज पर वह मुझे भी कत्ल कर सकते हैं।"
"वह कौन लोग हैं ?"
"अगर मुझे यह मालूम हो गया होता तो इस समय वह लोग जेल में होते- नूरा ने कहा, फिर बड़े तीखे स्वर में बोली "कैप्टन ! इस प्रकार के प्रश्न मुझसे न किजिये कि मुझे आप पर ही सन्देह न होने लगे ।
"थोड़ी देर पहले आपका खिड़की के मार्ग से अन्दर दाखिल होना यह साबित करता है कि आप बराबर खिड़की की राह से बाहर जाती और आती रहती हैं?"
"आपका विचार सच है- नूरा ने कहा
"कहाँ जाती हैं?"
"मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती, किन्तु मेरे मौन रहने से आपके मन में सन्देह भी उत्पन्न हो सकता है इसलिये बता रही है कि कभी कभी मुझे इनको आवश्यकता पड़ती रहती है कि मैं अपने मित्रों - हमदर्दों तथा साथियों से मिलती रहूँ।"
"वह हमदर्द -मित्र और साथी कौन लोग हैं?" हमीद ने पूछा ।
"पुलिस के अधिकारी गण—' नूरा ने कहा ।
" जैसे—?" हमीद ने चौकते हुये पूछा।
एस० पी० तथा कुछ दूसरे अधिकारी गए जिनका नाम मैं प्रकट करना नहीं चाहती और आशा करती हूँ कि आप भी मुझे इसके लिये विवश नहीं करेंगे — इसके अतिरिक्त मुझे शापूर- फिरोजा तथा रीमा से भी मिलना पड़ता है।"
"संन्ध्या को आप ही बिजली जलाती हैं ?" हमीद ने पूछा ।
"जी हां।"
"इस नीलम हाउस का वह कमरा जो मनहूस कमरा कहा जाता हैं उसमें ताला बन्द रहता है और उस ताले की कुंजी पुलिस के पास रहती है- फिर उस मनहुस कमरे के बल्ब कैसे जल उठते है?"
"यहाँ का पूरा सिस्टम फरामुज जी की जीनियेस का कारनामा है- मैं तो बस केवल इतना जानती हूँ कि जैसे ही मैं मैन स्वीच आन करती हूँ पूरा नीलम हाउस रोशन हो जाता है-अर्थात नीलम हाउस के हर बल्ब और टयूब जल उठते हैं।"
"आपको इसका अनुमान तो होगा हो कि जिन लोगों के कारण नीलम हाउस उस दुर्दशा को पहुँचा है वह कौन लोग हो सकते हैं और वह क्या चाहते हैं?"
"आप फिर बहकने लगे कैटन।" नूरा ने कहा "मैं केवल इतना जानती हूँ कि कुछ लोग ऐसे थे जिनकी ओर से फरामुज जी भयभीत थे इसके आगे न मैं यह जानती हूँ कि वह लोग कौन थे और न यही जानती हूँ कि फरामुज जी के डरने का क्या कारण था-"
"आप को यह मालूम था कि फरामुज जी ने कुछ कागजात लन्दन और न्यूयार्क भिजवाये थे ?"
"जी नहीं— मैं नीलम हाउस की एक साधारण नोकरानी थी। फरामुज जी की प्राइवेट सेक्रटरी नहीं थी।" "लेकिन कोई न कोई ऐसा तो अवश्य रहा होगा जो फरामुज जी के हर रहस्य को जानता था?"
"जी नही वह अपनी बातें अपने ही तक रखते थे !"
"फरामुज जी की इस असाधारण प्रगति का रहस्य क्या था ?"
"यह तो मैं नहीं बता सकती कैप्टन" इस बार नूरा मुस्कुरा पड़ी।
"क्या आप को अब भी विश्वास है कि फरामुज जी जीवित है-?"
नूरा कुछ कहने ही जा रही थी कि उसी कमरे में सिसकियां गूंजी। बड़ी ही मादक और आनन्द दायिनी सिसकियां।
हमीद ने सर घुमा कर चारों ओर देखा। उसी समय उस पर तो हैरतो के पहाड़ टूट पड़े—चार पाई पर लेटी हुई गुडिया किसी जवान औरत के समान अगड़ाई लेती हुई धीरे धीरे उठ रही थी। हमीद ने नूरा की ओर गर्दन घुमाई । वह उस गुड़िया के बारे में नूरा से कुछ पूछना चाहता था मगर उसी समय दो आदमी खिड़की की राह से कूद कर अन्दर आ गये । दोनों के हाथों में लम्बे लम्बे रिवाल्वर थे और दोनों के चेहरे नकाबों से ढके हुये थे।
"इतनी देर में गुड़ियां पूरी तरह उठ बैठी थी मगर उसकी मादक सिसकियाँ अब भी चालू थी।
नूरा का चेहरा भय के कारण पीला पड़ गया था और वह दयनीय दृष्टि से हमीद की ओर देख रही थी- मगर हमीद तो खुद ही विवश था। वह दोनों इतने आकस्मिक ढंग से अन्दर आये थे कि वह जेब से अपना रिवाल्वर भी नहीं निकाल सका था। और अब निकालने का अवसर नहीं था इसलिये कि उन दोनों में से एक के रिवाल्वर की नाम उसकी ओर उठी हुई थी और दूसरे की नूरा की ओर ! वह अपनी असहायता के लिये बाहर बैठे हुये दोनों सिपाहियों को पुकार भी नहीं सकता था । पुकारने का अर्थ यही होता कि वह उनके रिवाल्वर का निशाना बन जाता बाद में नूरा का जो भी परिणाम होता । दोनों में से एक ने हमीद को सम्बोधित करते हुये कोमल स्वर में कहा ।
"मिस्टर हमें तुम से कुछ लेना देना नहीं है इसलिये खड़े रहना।"
यह बात अंग्रेजी में कहो गई थीं— मगर लेहजा यह बता रहा था कि बोलने वाला हिन्दुस्तानी नहीं है— मगर अंग्रेजी भी अच्छी तरह नही जानता।
फिर दूसरे ने कुछ कठोर स्वर में नूरा से कहा ।
"अगर तुमने जरा सी भी गड़ बड़ की तो तुम और तुम्हारा यह साथी दोनों ही मौत के घाट उतार दिये जायेंगे।" "तुम लोग चाहते क्या हो ?" नूरा ने पूछा ।
"हम तुम्हें परेशान नहीं करना चाहते बस तुम्हें हम अपने साथ ले जायेंगे।"
"इन्हें कहाँ ले जाओगे ?" हमीद ने ऊँची आवाज में पूछा। ध्येय आवाज ऊँची करने का यह था कि बाहर वाले सिपाही सुन ले और अन्दर आ जायें---मगर उसका चाहा हुआ नहीं हुआ।
"इसे हम अपने हेड क्वार्टर तक ले जायेंगे" एक कह रहा था। "कुछ दिनों तक वहीं रखेंगे फिर मुक्त कर देंगे। '
"मुझे नहीं ले चलोगे ?" हमीद ने पूछा ।
"तुम कौन हो ?"
"खुदाई फौजदार" हमीद ने चहक कर कहा “मुझे कैद होने का बड़ा शौक है-।"
वह दोनों यह निर्णय नहीं कर सके कि हमीद की बात का नोटिस लें या न लें - इसके बदले एक तो नूरा की ओर बढ़ा और दूसरा रिवाल्वर ताने खड़ा रहा। पहले उसने नूरा के हाथ बांधे - फिर मुँह की में कपड़ा ठूंसने ही जा रहा था कि गुड़िया की मादक सिसकियां नारी चीखों में बदल गई । वह एक ही रट लगाये हुये थी । "बचाओ-बचाओ— बचाओ।"
वह दोनों बौखला गये। इससे पहले भी उन्होंने गुड़िया को उपेक्षित नहीं किया था, मगर वह यह सोच भी नहीं सकते थे कि गुड़िया इस प्रकार चीखना आरम्भ कर देगी। गुड़िया की चीखों से उन दोनों का ध्यान उसी ओर हो गया था और हमीद ने इसी से लाभ उठाया। उसने एक को कलाई पर हाथ डाल कर भरपूर हाथ जमाया था और दूसरे को टांग मारी थी ।
उधर वह दोनों सिपाहो जो बरामदे थे में और हमीद के कारण निश्चिन्त हो कर बराम्दे से निकल कर कम्पाउन्ड में टहलने लगे थे। "बचाओ-बचाओ" की आवाजें सुन कर नूरा के क्वार्टर की ओर दौड़ पड़े थे ।
दो आदमी खिड़की के बाहर खड़े थे ! उन्होंने फायर कर दिये थे। अगर हमीद असावधान रहा होता तो न केवल उसकी खोपड़ी में छेद हो गया होता बल्कि नूरा भी मौत की गोद में पहुँच जाती- उसने जल्दी से नूरा को एक ओर ढकेला था और खुद भी फर्श पर गिर पड़ा था इसलिये दोनों गोलियां खाली गई थीं ।
फिर बाहर से फायर नहीं हुये - कदाचित सिपाहियों के दौड़ने की आवाजें सुन कर वह भाग निकले थे- फिर सिपाही जैसे ही अन्दर दाखिल हुये वैसे ही अन्दर वाले दोनो भी उठ कर खिड़की की ओर दौड़े। हमीद भी उनके पीछे लपका मगर वह खुद न समझ सका कि उसके पाँव किस प्रकार उलझे और वह किस प्रकार गिरा—परिणाम यह हुआ कि वह दोनों भी खिड़की से छलांग लगा कर बाहर निकल गये और दोनों सिपाही मुँह ही ताकते रह गये । "बाहर निकल कर उन्हें घेरो-" नूरा चीखी।
वह दोनों सिपाही दरवाजे से बाहर निकल गये और हमीद ने खिड़की के रास्ते बाहर की ओर छलाँग लगानी चाही मगर उसी समय बाहर से फिर गोलियों की एक बौछार आई और वह रुक गया ।
"मेरे हाथ खोल दीजिये" नूरा ने हमीद से कहा “मैंने आपसे कहा था ना कि यह गुड़िया ड्रामा नहीं बल्कि तथ्य है-और वह तथ्य तथा इस गुड़िया का कमाल आप ने अपनी आंखों से देख लिया-।"
"फिलहाल तो मैं आपका कमाल देख रहा हूँ" हमीद ने मुस्कुरा कर कहा ।
"आप इस गुड़िया से प्रभावित नहीं हुये ?" नूरा ने पूछा ।
"मैं इस आयु पर पहुँच चुका हूँ जहाँ रबर और प्लास्टिक की गुड़िया का नहीं बल्कि आप जैसी हाड़ मांस की गुड़िया का प्रभाव पड़ता है—" हमीद ने कहा, फिर पूछा "यह लोग कौन थे ?"
"उन्हीं लोगों में से समझिये, जिन्होंने इस नीलम हाउस को वीरान किया है।"
"इससे पहले भी आप पर आक्रमण हुआ था ?" हमोद ने पूछा।
"जी नहीं यह पहला संयोग था।"
"अगर आप यह खिड़की बन्द रखतीं तो शायद यह नौबत न आती।"
"मुझे सदैव अपने ऊपर भरोसा रहा है और रहेगा — इसलिये मुझे इसका भी विश्वास है कि स्थिति चाहे जैसी भी हो मैं उस पर अधिकार पा लूँगी।"
" जो भी हो— मगर आप की रक्षा के विचार से अब यह खिड़की बन्द होने जा रही है और आज ही से दो सिपाहियों की ड्यूटी इस खिड़की को दूसरी ओर भी रहेगी है।"
"यह तो आपका विचार है ना!" नूरा ने खिल्ली उड़ाने वाले हमीद ने घूर कर नूरा को देखा, फिर गुर्रा कर बोला ।
"हां यह मेरा विचार है-और यह होकर रहेगा।"
"मैं भी देखूंगी कैप्टन, नूरा ने कहा।
"मैं अदालत से इस अनाधिकार कारावास के विरुद्ध प्रार्थना करूंगी"
"आप का जो दिल चाहे कीजियेगा — मगर हम आपको इस प्रकार मरने की छूट नहीं दे सकते –।”
नूरा कुछ बोली नहीं बस मुस्कुराती रही।
"आपका पास्पोर्ट कहां है ?" हमीद ने पूछा ।
"मेरे पास है-" नूरा ने कहा ।
"मैं उसे देखना चाहता हूँ- " हमीद ने कहा ।
"मैंने उसे बैंक में जमा करा दिया है।"
"किस बैंक में मुझे बैंक की रसीद दिखाइये -।"
प्रथम बार नूरा के चेहरे पर घबराहट के लक्षण उत्पन्न हुये। कुछ क्षणों तक वह बोल ही नहीं सकी ।
"हाँ मिस नूरा- हमीद ने उसे सम्बोधित किया "केवल रसीद और बैंक का नाम ?"
"बैंक का नाम फरामुज शहरयार – और रसीद मिली ही नहीं- नूरा ने कहा मगर उसका सर झुका हुआ था और हमीद उसके चेहरे पर पराजय के लक्षण साफ देख रहा था। उसका लेहजा भर्राया हुआ था। वह कहती जा रही थी, "हमारे पैसे—हमारे पास्पोर्ट तथा हमारा सब कुछ मिस्टर फरामुज जी ही के पास रहता था— मगर अब मैं नहीं कह सकती कि हम लोगों का सब सामान कहाँ है— इस विचार से मैं अवश्य अपराधी मानी जा सकती हूँ कि मेरे पास मेरा पास्पोट नहीं है—और इस सम्बन्ध में मैं आपसे सहायता की प्रार्थना करूंगी।"
"अच्छी बात है-" हमीद ने कहा "आप आज सन्ध्या सात बजे मुझसे आर्लेबचन में मिलियेगा।”
"क्यों ?' नूरा ने पूछा ।
हमीद ने फौरन हो उत्तर नहीं दिया। कुछ सोचने लगा फि बोला |
"नहीं- आप यहीं रहेंगी— मगर कम से कम आज इस कमरे से कदम बाहर नहीं निकालेंगी । कल मैं आप को बताऊंगा कि आपके साथ कैसा व्यवहार होगा ।"
बात समाप्त करके वह जाने के लिये दरवाजे की ओर मुड़ा - मगर दरवाजे से बाहर निकलने भी नहीं पाया था कि उसे एक नारी अट्टहास सुनाई पड़ा। वह झल्ला कर मुड़ा और नूरा की ओर देखा जो होंठ भी और सर झुकाये खड़ी थी- फिर जैसे ही उसकी नजरें हमीद की नजरो से टकराई – उसने कुछ कैंप कर और कुछ बौखलाहट के साथ गुड़िया की ओर संकेत किया जो बैठी हुई थी और जिसका एक हाथ कर उठा हुआ था।