इधर माधुरी का जादू पूरी तरह से शुभांकर पर चढ़ने लगा था,वो माधुरी से सच में मौहब्बत करने लगा था और ये बात माधुरी को मन ही मन खटक रही थी कि शुभांकर उसे सच्चे मन से चाहता है और वो उसके साथ केवल उसके पिता से बदला लेने के लिए झूठे प्यार का नाटक कर रही थी,लेकिन माधुरी आखिर कर भी क्या सकती थी,जुझार सिंह ने अपने अतीत में जो कुकर्म किए थे अब उन सब कुकर्मों के हिसाब चुकाने का वक्त आ गया था,इसलिए माधुरी भावनाओं में ना बहकर अपने दिमाग से काम ले रही थी.....
उधर रामखिलावन और माधुरी पहले श्यामा डकैत से मिलने जेल पहुँचे और उसका हाल चाल पूछा, श्यामा डकैत जेल में जरूर थी लेकिन अभी भी उसके हौसले बुलन्द थे,उसके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई थी और वो रामखिलावन से बोली....
"ऐसी कोऊ जेल नइया रामखिलावन भज्जा! जो श्यामा को ज्यादा दिनन तक रख सकें,श्यामा तो हवा को झोखा है ना जाने कब उड़ जेहे है जेल से और इन पुलिस वालन को कछु पता ना चल है"(ऐसी कोई जेल नहीं बनी जो श्यामा को कैद करके रख सके,श्यामा तो हवा का झोखा है,कब उड़ जाएगी और पुलिस वालों को कुछ पता नहीं चलेगा)
तब रामखिलावन बोला....
"लेकिन श्यामा जिज्जी! अब तुमाही उमर हो चुकी है,अब तुम सरेंडर कर दो,जे भाग दौड़ अब तुमाहे बस की नईया"(लेकिन श्यामा जीजी! अब तुम्हारी उमर हो चुकी है तुम सरेंडर कर दो,भाग दौड़ अब तुम्हारे वश की नहीं रह गई है",
तब श्यामा बोली...
"नई! रामखिलावन! अब तो जा जिन्दगी हमने चम्बल के नाम कर दई है,अब हमाई जान जेहे तो चम्बल में ही जेहे,(नहीं !रामखिलावन! मैने ये जिन्दगी चम्बल के नाम कर दी है,अब मेरी जान जाऐगी तो चम्बल में ही जाएगी)
तब मालती बोली....
"जिज्जी! सरेंडर कर देतीं तो कुछ साल में जेल से छूट जातीं और हम औरन के संगे रहतीं तो हमें भी अच्छो लगतो"(जिज्जी! सरेंडर कर देती तो कुछ ही साल में जेल से छूट जातीं और बाकी की जिन्दगी हमारे साथ रहतीं तो हम सबको भी अच्छा लगता)
तब श्यामा बोली....
"ना!मालती!हमने भवानी कक्का खा बचन दओ तो कि हम मरते दम तक बीहड़ में ही रेहें"(ना! मालती! हमने भवानी काका को वचन दिया था कि हम मरते दम तक बीहड़ में रहेगें",
तब रामखिलावन बोला....
"ठीक ही जिज्जी! लेकिन एक विनती है,हमाई बात मानो तो कहें"(ठीक है जीजी! लेकिन एक विनती है अगर मेरी बात मानो तो कहूँ",
तब श्यामा ने पूछा...
"हाँ...हाँ...कहो कि का बात है"(हाँ! कहो कि क्या बात है)
तब खिलावन बोला....
"जीजी! जब तब हम सबई जने इते वापस ना आ जाएं तो जेल से ना भागिओ"(जब तक हम सब लोग वापस यहाँ ना आ जाएँ तो जेल से ना भागिओ"
और फिर श्यामा ने रामखिलावन से उस बात का कारण पूछा तो रामखिलावन ने श्यामा को अपनी सारी योजना कह सुनाई,ये सुनकर श्यामा बहुत खुश हुई और रामखिलावन से बोली कि ठीक है जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा और फिर श्यामा ने सबका हाल चाल पूछा,इसके बाद रामखिलावन और मालती का श्यामा से मिलने का वक्त खतम हो गया तब लेडीस कान्स्टेबल उनलोगों से वहाँ उनके मिलने का वक्त खतम होने की बात कहने आई और फिर मालती और रामखिलावन श्यामा से मिलकर वापस आ गए और उन्होंने कस्तूरी और मोरमुकुट सिंह से मिलने का सोचा फिर वें दोनों अस्पताल की ओर बढ़ चले...
दोनों अस्पताल पहुँचे और कस्तूरी से मिले और इस बार कस्तूरी उन्हें स्वस्थ नजर आई,कस्तूरी ने रामखिलावन को पहचाना तो नहीं लेकिन वो इस बार उससे ठीक से बात कर रही थी,ये देखकर रामखिलावन बहुत खुश हुआ कि कस्तूरी में अब पहले से बहुत ज्यादा बदलाव आ गया था और अब उसकी हरकतें पहले जैसी नहीं रही थीं जैसी हरकतें वो उससे मिलने के बाद किया करती थी,ये देखकर रामखिलावन और मालती की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और फिर मालती और रामखिलावन डाक्टर मोरमुकुट सिंह से मिलने पहुँचे,मोरमुकुट सिंह रामखिलावन को देखकर बहुत खुश हुआ और रामखिलावन से पूछा...
"आप लोग कस्तूरी से मिले या नहीं",
"हाँ! डाक्टर बाबू! उसी से मिल कर आ रहे हैं,आपने तो कमाल ही कर दिया,हम सबने तो कस्तूरी के ठीक होने की आशा ही छोड़ दी लेकिन आपने जो चमत्कार कर दिखाया है और इस बात के लिए हम सब लोग आपके हमेशा के लिए ऋणी हो गए हैं",रामखिलावन खुश होकर बोला....
"नहीं! ऐसा कुछ नहीं है रामखिलावन भइया! ये तो मेरा फर्ज था और मैं भी चाहता हूँ कि कस्तूरी पहले की तरह खिल खिलाने लगे,हँसने लगे,इतने सालों के बाद वो मुझे मिली है तो अब उसे मैं ठीक करके ही रहूँगा और कोशिश करूँगा कि उसे सब याद आ जाए,मुझे भी वो पुरानी वाली कस्तूरी चाहिए जो हँसती खिलखिलाती थी,सबका ध्यान रखती थी",डाक्टर बाबू बोलें....
तब मालती ने मोरमुकुट सिंह से कहा....
"डाक्टर बाबू! आपकी बड़ी कृपा जो हमारी कस्तूरी अब ठीक हो रही है",
"इसमें कृपा की कोई बात नहीं है भाभी! यही तो मेरा काम है,जब मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है तो आप नहीं जानते कि एक डाक्टर को कितनी खुशी मिलती है,अब तो मैं ये चाहता हूँ कि वो जल्दी से ठीक होकर पहले की तरह आप सभी के साथ रहने लगे",मोरमुकुट सिंह बोला....
"वो ठीक तो हो जाएगी,लेकिन जो जख्म उसके मन में लगें हैं,वो उन्हें कैसें भूल पाएगी"?,मालती बोली....
"जब उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाएगा तो वो खुदबखुद अपने सारे दुख दर्द भूल जाएगी", मोरमुकुट सिंह बोला...
"लेकिन उस अभागी से शादी करेगा भी कौन? उसकी सच्चाई पता होने पर कोई भी उसका हाथ थामने को तैयार नहीं होगा",मालती बोली...
"आप उन सबकी चिन्ता ना करें,बस ये दुआँ करें कि वो जल्दी से ठीक हो जाएं",मोरमुकुट सिंह बोला...
"हम सभी तो यही चाहते हैं कि वो जल्दी से अच्छी हो जाए",मालती बोली....
ऐसे ही सभी के बीच बातें हो रहीं थीं तो मालती ने रामखिलावन से कहा कि वो डाक्टर बाबू से वो बात भी कर लें ,जिस सिलसिले में वें दोनों यहाँ आएं हैं,तब रामखिलावन ने संकोच करते हुए मोरमुकुट सिंह से कहा....
"डाक्टर बाबू! आपसे एक बात करनी थी",
"हाँ! कहिए ना!",मोरमुकुट सिंह बोला....
"लेकिन थोड़ा संकोच सा लग रहा है",रामखिलावन बोला....
"संकोच कैसा रामखिलावन भइया! मैं तो आपके छोटे भाई जैसा हूँ",मोरमुकुट सिंह बोला...
"तुम्हें किसी का पोता बनना है",रामखिलावन बोला....
"पोता बनना है,कहना क्या चाहते हैं आप,जरा खुलकर कहिए ना!",मोरमुकुट सिंह ने हँसते हुए पूछा....
"हाँ! कलकत्ता में हमें जुझार सिंह मिल गया है और उसी मसले में आपको ऐसा करना होगा", मालती बोली...
"तो पूरी बात बताइए कि मुझे करना क्या होगा"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
और फिर रामखिलावन और मालती ने मोरमुकुट सिंह को पूरी बात बताई तो मोरमुकुट सिंह उनकी मदद करने को तैयार हो गया.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....