दो तीन दिनों में ही सभी ने इस योजना के बारें में विचार कर लिया और ये भी सोच लिया कि कब क्या करना है और फिर पता लगाया गया कि जुझार सिंह का आँफिस कहाँ है और उसके साथ कौन कौन काम करता है,इन सबके बीच ये भी पता चला कि जुझार सिंह ने अपनी पर्सनल जवान सेक्रेटरी को अपने चंगुल में ले रखा है,जिसका नाम वीना है और उसके साथ वो कभी कभी घूमने भी जाता है,ये सुनकर रामखिलावन बोला....
"कुछ शरम लिहाज नहीं बचा है जुझार सिंह के,घर में जवान बच्चे हैं लेकिन अभी बुढ़ऊ का रसियापन नहीं गया"
"ये तो हमारे लिए फायदे की बात है,कभी जरूरत पड़ी तो हम सभी उससे वीना का नाम लेकर फायदा उठा सकते हैं",माधुरी बोली...
"ये तुम सही कह रही हो",रामखिलावन बोला....
जुझार सिंह के बारें में पूरी जानकारी इकट्ठी करने के बाद एक दिन दोपहर के समय खुराना साहब सूट बूट पहनकर जुझार सिंह के आँफिस पहुँचे और रेसेप्शन पर जाकर जुझार सिंह से मिलने की इजाज़त माँगी,कुछ ही देर में उन्हें जुझार सिंह से मिलने की इजाज़त मिल भी गई और वें उसके केबिन में पहुँचें,खुराना साहब ने देखा कि जुझार सिंह इस उम्र में भी बड़ा रोबीला दिखता है,बड़ी बड़ी मूँछे के साथ सिर के खिचड़ी बाल, लेकिन चेहरे की चमक अब भी बरकरार थी,चेहरे पर झुर्रियों का नामोनिशान भी नहीं था, अच्छी कद काठी और चेहरे पर गर्वीलापन इस उम्र में भी कायम था.....
फिर खुराना साहब ने जुझार सिंह से नमस्कार कहकर हाथ मिलाया और जुझार सिंह ने उन्हें कुर्सी पर बैठने को कहा फिर जुझार सिंह ने खुराना साहब से पूछा....
"जी! कहें! आप किस सिलसिले में मुझसे मिलना चाहते थे",
"जी! मेरा नाम मुंशी खूबचन्द निगम है और मैं आपके पास एक प्रस्ताव लेकर आया था",खुराना साहब बोले....
"जी! कैसा प्रस्ताव"?,जुझार सिंह ने पूछा...
"मैं चाहता हूँ कि बुदेंलखण्ड इलाके के ग्वालियर शहर में एक सिनेमाहॉल खोला जाएँ",खुराना साहब बोले...
"तो खोल लीजिए सिनेमाहॉल ग्वालियर शहर में",जुझार सिंह बोला....
"लेकिन एक दिक्कत सामने आ रही है",खुराना साहब बोले...
"भला! कैसी दिक्कत"?,जुझार सिंह ने पूछा...
"वो इलाका मेरा जाना माना नहीं है यही दिक्कत है",खुराना साहब बोलें...
"तो उसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ"?,जुझार सिंह ने पूछा....
"सुना है आप उसी इलाके के हैं,इसलिए शायद वहाँ के बारें में ज्यादा जानते होगें",खुराना साहब बोले...
"शायद आपको मालूम नहीं कि वहाँ डाकुओं का बहुत खौफ़ है",जुझार सिंह बोला....
"अजी! काहे का खौफ़! अभी पिछले दिनों वहाँ की मशहूर डकैत श्यामा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, उस इलाके में वही एक मशहूर डकैत थी तो पुलिस ने उसे भी धर दबोचा,अब जो छोटे मोटे डाकू बचे है तो अब पुलिस उन्हें भी गिरफ्तार करने में ज्यादा देर नहीं लगाएगी",खुराना साहब बोले...
"क्या कहा आपने! श्यामा डकैत को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है",जुझार सिंह बोला....
"हाँ! और क्या? आप शायद अखबार नहीं पढ़ते इसलिए आपको नहीं मालूम चला होगा,जब वो गिरफ्तार हुई थी तो उस इलाके में तहलका मच गया था,लेकिन आपको इन सब डाकू-डकैतों से क्या लेना देना,आप तो ठहरे इतने बड़े बिजनेस मैन,इन सब बातों से आपका क्या वास्ता"?,खुराना साहब बोलें.....
"हाँ! मुझे इन सबसे क्या लेना देना,मैं तो अपने बिजनेस पर ज्यादा ध्यान देता हूँ",जुझार सिंह बोला...
"वही तो मैं भी आपसे कह रहा था कि आपको मेरे इस प्रस्ताव के बारें में सोचना चाहिए,बहुत अच्छा कारोबार करेगीं उस इलाके में फिल्में,मेरी मालकिन ने आपका नाम सुझाया था इसलिए मैं आपसे इस मसले पर मिलने चला आया",खुराना साहब बोलें....
"तो क्या आप मालिक नहीं हैं"?,जुझार सिंह ने पूछा...
तब खुराना साहब बोले....
"नहीं! जी! मैं तो मैनेजर हूँ,मेरी मालकिन तनिक बूढ़ी हो चली हैं इसलिए कहीं ज्यादा आती जाती नहीं हैं, इसलिए उनके सारे काम मैं ही सम्भालता हूँ,मालिक के जाने के बाद बेचारी बहुत अकेली पड़ गईं हैं,बेटा बहू प्लेन क्रैश में मारे गए ,ले देकर एक पोता बचा है तो वो भी विदेश में रहता है और यहाँ अपनी दादी के पास रहने को राजी नहीं है,अमीरों की औलाद है तो उसे विलायत की हवा लग गई है,ऊपर से शायद किसी गोरी मेम से उसका चक्कर भी चल रहा है,
अब बेचारी बूढ़ी औरत क्या क्या देखें,कपड़ो की मिलों की देख रेख करें कि जेवरों की दुकान सम्भालें या फिर अपनी हवेली और जमीन जायदाद देखें,पुराने रईस लोंग हैं,पीढियों से जमींदारी चली आ रही है,रुपयों का तो जैसे अम्बार सा लगा है,बस उन्हें खर्चने वाला कोई नहीं है,सिनेमाहॉल इसलिए खोलना चाहती हैं कि ये उनके पति की अन्तिम इच्छा थी कि उनके नाम से एक सिनेमाहॉल खुले,ताकि आने वाली पीढ़ी उन्हें और उनके पति को याद रख सकें,लाचार और मजबूर औरत की अगर ये ख्वाहिश पूरी हो जाती तो बेचारी शान्ति से मर पाएगी और उनकी ये ख्वाहिश पूरी करने में आप ही मेरी और उनकी मदद कर सकते हैं"
"मालूम होता है कि आपकी मालकिन बहुत ही अमीर महिला हैं",जुझार सिंह बोला....
"अजी! क्या फायदा ऐसे रुपए पैसों का जहाँ सुकून ना हों",खुराना साहब बोलें.....
"बिलकुल सही कहा आपने",जुझार सिंह बोला....
"तो फिर क्या सोचा आपने",?खुराना साहब ने पूछा....
"देखिए! मैं जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहता,मुझे दो चार दिन की मोहलत दीजिए,तो सोचकर बताता हूँ आपको अपना फैसला",जुझार सिंह बोला....
"तो मुझे आप अपना टेलीफोन नंबर दे दीजिए,मैं खुद ही आपसे दो चार दिन बाद टेलीफोन करके पूछ लूँगा", खुराना साहब बोलें....
"जी! बहुत अच्छी बात है,अपना टेलीफोन नंबर तो मैं दूँगा आपको,लेकिन इससे पहले मैं आपकी मालकिन से एक मुलाकात करना चाहूँगा",जुझार सिंह बोला....
"जी! बहुत अच्छी बात है,आप जब कहें तो मैं उनसे आपकी मुलाकात करवा दूँगा",खुराना साहब बोलें....
"ठीक है तो आप दो चार दिन बाद मुझे टेलीफोन करें,ये रहे मेरे टेलीफोन नंबर ,आँफिस और घर दोनों के",जुझार सिंह बोला....
"जी! बहुत बढ़िया! अच्छा लगा आपसे बात करके",खुराना साहब बोले...
"जी! मुझे भी अच्छा लगा! आप कुछ लेगें,ठण्डा या गरम",जुझार सिंह ने पूछा....
"जी! नहीं ! मैं कुछ नहीं लूँगा,बहुत बहुत शुक्रिया! और मेरे इस प्रस्ताव के बारें में सोचिएगा जरूर,बहुत ही मुनाफे का सौदा है और डाकूओं से खौफ़ खाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि श्यामा डकैत तो अब गिरफ्तार हो चुकी है और उसकी बूढ़ी हड्डियों में वो दम भी नहीं रहा",खुराना साहब बोलें....
"मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप श्यामा डकैत पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं"?,जुझार सिंह ने पूछा....
"वो तो मैं यूँ ही कह रहा था सिंह साहब! आप खफ़ा क्यों होते हैं"?,खुराना साहब बोले....
"नहीं! मैं खफ़ा नहीं हूँ,मैं भी यूँ ही कह रहा था",जुझार सिंह बोला....
"तो अब मैं चलता हूँ मेरे प्रस्ताव पर जरा गौर फरमाइएगा,नमस्कार !"
और फिर खुराना साहब जुझार सिंह को नमस्ते बोलकर वहाँ से चले गए.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....