फिर श्यामा अपने ससुराल पहुँची,उसके वहाँ पहुँचने तक सबेरा हो चुका था,इसलिए वो बिना डरे गाँव के बाहर जंगलों में छुपी रही,वहाँ दिन भर पोखरों और तालाबों का पानी पीती रही और पेड़ो पर जो फल उसे खाने लायक मिल गए तो उन्हें खाकर अपना पेट भरती और साँझ होते ही जब अँधेरा गहराने लगा तो उसे थोड़ा डर लगा लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और जंगली जानवरों के डर से एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गई और जब रात हुई तो वो गाँव के भीतर पहुँची और उस घर के पास पहुँची जहाँ उसके दुश्मन रहते थे, जिन्होंने उसके पूरे परिवार का नाश किया था,वो घर के द्वार पर पहुँची ,घर के दरवाजे केवल अटके थे,भीतर से उनमें साँकल या कुण्डी नहीं लगी थी,उसने उन्हें जरा सा धकेला तो दरवाजे खुल गए,वो चुपके से भीतर घुसी ....
फिर वो धीरे से आँगन में पहुँची,देखा तो तीनों भाई अपनी अपनी चारपाई पर पसरे थे,आँगन में जहाँ तहाँ जूठी थालियाँ बिखरीं पड़ीं थीं,जिनमें छोटी छोटी हड्डियाँ थी,शायद वें सभी बकरे या मुर्गे का माँस खाकर सोऐ थे,साथ में आँगन देशी शराब की भी बोतलें पड़ी थी,मतलब वें सभी शराब पीकर भी सोए थे, चूँकि आँगन में लालटेन का उजियारा था इसलिए वो सब कुछ देख पा रही थी,फिर श्यामा ने बड़े भाई को ललकारा....
"उठ ! गोविन्द देख तोई मौत तोय सामने खड़ी हैं"(उठ गोविन्द....देख तेरी मौत तेरे सामने खड़ी है)
गोविन्द हड़बडा़ के उठा और पूछा....
"को है ते और इत्ती रात के इते का कर रई है,गोविन्द को मार सकें,ऐसो अभे कोऊ दुनिया में पैदा नई भयों"(कौन हो तुम और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही हो,गोविन्द को मार सके अभी दुनिया में ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ), गोविन्द बोला....
"लेकिन हमें स्यात भगवान ने तोहा मारे के लाने पैदा करो है",(लेकिन मुझे शायद भगवान ने तुम्हें मारने के लिए पैदा किया है",श्यामा बोली...
"अरे...जा..जा..तेरे जैसीं खूब पड़ीं हैं दुनिया में,ते औरत होके मोहा मार है,जो कबहुँ नई हो सकत",(अरे जा जा,तेरी जैसी बहुत पड़ी हैं,तुम औरत होकर मुझे कभी नहीं मार सकती),गोविन्द बोला...
"वो तो बखत ही बता है गोविन्द का होन वालो है?"(वो वक्त ही बताएगा गोविन्द की क्या होने वाला है), श्यामा बोली...
"लेकिन ते पहला जो बता कि ते है को"?(लेकिन पहले ये बताओ कि तुम हो कौन), गोविन्द ने पूछा...
"सुन्दर लाल खा जानत है ना ते",(सुन्दर लाल को जानते हो ना तुम",श्यामा बोली...
"अरे! ऊखाँ तो हमने पूरे परिवार सहित भगवान के इते भेज दओ",(उसको तो हमने सपरिवार भगवान के पास भेज दिया),गोविन्द बोला...
"हाँ! हम उसी सुन्दर लाल की लुगाई हैं "(हाँ मैं उसी सुन्दर लाल की पत्नी हूँ),श्यामा बोली...
"ते इते काहे हाँ आई है इत्ती रात के"?(तुम इतनी रात को यहाँ क्यों आई हो),गोविन्द ने पूछा...
"तोहा मारन और काय के लाने"(तुझे मारने और किसलिए),श्यामा बोली....
फिर श्यामा की बात पर गोविन्द हँसा और बोला...
"ते मार है हम औरन को",(तुम मारोगी ,हम सबको)
"हाँ! और आज जो काम पूरो करके ही जेहे हम इते से"(हाँ! और आज ये काम पूरा करके ही जाऊँगीं यहाँ से),श्यामा बोली...
तब गोविन्द ने अपने दोनों भाइयों को पुकारा...
"मुन्ना,बबलू उठो तो,देखो तो जा हमें मारन आई हैं"( मुन्ना बबलू,जागो देखो ये हमें मारने आई है)
गोविन्द के पुकारने पर दोनों उठे और बबलू बोला...
"का बात हो गई भज्जा?"(क्या बात हो गई भइया)
"उठाओ अपनी अपनी बन्दूकें और इहाँ बता दो कि हम औरें का चींज हैं,आज जा इते से भागन ना पाएं,इहाँ बता दो कि हमाए घरे घुसबे को का अन्जाम होत है"(उठाओ अपनी बन्दूके और इसे बता दो कि हम लोग क्या चींज हैं,भागने ना पाए यहाँ से,बता दो इसे कि हमारे घर में घुसने का क्या अन्जाम होता है),गोविन्द बोला...
और फिर गोविन्द के दोनों भाई अपनी अपनी बन्दूकें लेने दौड़ पड़े तो श्यामा ने दोनों के पैरों पर एक एक गोली चलाई और वें दोनों अपनी जगह पर अपना पैर पकड़कर बैठ गए और अपने भाइयों की ऐसी हालत देखकर गोविन्द बौखला गया और उसने भी अपनी बंदूक उठाने की कोशिश की तो श्यामा ने उस पर अपने हाथ में ली हुई बंदूक फेंक कर मार दी क्योंकि अब उसके पास गोलियाँ नहीं बचीं थीं....
और फिर उसने वहाँ आँगन के कोने में रखी कुल्हाड़ी उठाई और गोविन्द के कन्धे पर वार किया और उसका हाथ उसके कन्धे से अलग होकर धरती पर तड़पने लगा,हाथ कटने से गोविन्द चीख उठा और फिर श्यामा ने गोविन्द के सीने पर वार किया और उसके सीने से खून का फब्बारा फूट पड़ा,उसने फिर से कुल्हाड़ी उठाई और मुन्ना की गर्दन पर वार किया और मुन्ना एक ही वार में भगवान को प्यारा हो गया,मुन्ना के खून के छींटे श्यामा के चेहरे पर आ गिरे थे और उसने उन्हें अपनी सूती धोती के पल्लू से पोछा और बबलू की ओर बढ़ी और फिर कुल्हाड़ी के एक वार से बबलू का काम भी तमाम हो गया.....
अब तीनों रक्तरंजित होकर धरती पर पड़े थे और अब जाकर श्यामा के कलेजे को ठण्डक पड़ी थी,फिर श्यामा ने आँगन में रखें घड़े से पानी निकालकर पिया और मुँह धोकर ,उसने खून से सनी कुल्हाड़ी भी धोई और फिर वो हाथ में खाली बंदूक और कुल्हाड़ी लेकर,घूँघट डालकर उसी वक्त उस घर से निकल गई,वो रातभर भागती रही....बस भागती ही रही और फिर एक सुनसान जगह पर तालाब था तो उसने वहाँ अपनी सूती धोती धोकर झाडियों में टाँग दीं,क्योंकि उसमें खून के छींटे लग चुके थे और उसके पास उस धोती के अलावा और कोई दूसरी धोती भी तो नहीं थी,फिर एक गाँव के पक्के रास्ते से गुजर रहे ट्रक को रोककर वो उसके पीछे ट्राली में बैठ गई,वो भूखी प्यासी थी दो दिन हो चुके थे उसे कुछ भी खाए हुए और फिर ट्रक वाले ने ट्रक रोका और पीछे आकर बोला...
"बहन! हम तनिक भवानी माता के मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर आते हैं,आज वहाँ भण्डारा भी है,यदि प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा हो तो तुम भी मंदिर में चलो",
श्यामा भूखी तो थी ही उसने सोचा चलो माता का प्रसाद खाकर ही भूख मिटा लूँ और उसने अपनी बंदूक और कुल्हाड़ी उठाई और ट्रक से उतर पड़ी तो ट्रक वाला बोला...
"बहन! बुरा ना मानो तो ये बंदूक और कुल्हाड़ी यहीं रख दो,माता के मंदिर में ऐसे जाओगी तो ना जाने लोग क्या समझें",
फिर ट्रक वाले की बात मानकर श्यामा बंदूक और कुल्हाड़ी को वहीं रखकर माता के मंदिर की ओर चल पड़ी और वहाँ जाकर उसे पता चला कि वहाँ डाकुओं का एक झुण्ड भवानी माता के मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने आया है,उन सभी के पास बंदूकें और गोलियों का पट्टा था और सबने कमर में एक एक छुरा भी खोंस रखा था,वें वहाँ भवानी माता मंदिर के पीछे बह रही नदिया से नाव के सहारे यहाँ तक पहुँचे थे और सभी भण्डारे के खाने को खा रहे थे,श्यामा भी अपना पत्तल लेकर उन सभी लोगों से दूर बैठकर खाने लगी,उसने अभी भी घूँघट ओढ़ रखा था ताकि उसे कोई पहचान ना पाए ,सभी खाना खाने बाद हाथ मुँह धोकर अभी बैठें ही थे कि वहाँ उन्हें उनके खबरी ने आकर खबर दी कि पुलिस की जीप बस वहाँ पहुँचने ही वाली है और ये सुनकर वहाँ डाकुओं के बीच अफरातफरी मच गई.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....