अब दुर्गेश अपने बाऊजी और माधुरी के व्यवहार से खींझ पड़ा और माधुरी से बोला....
बुआ!तुम इतने दाँत क्यों निकाल रही हो आखिर बात क्या है?
तब माधुरी बोली.....
तूने बहुत बड़ा काम किया है आज,हम कबसे शुभांकर का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन आज तू शुभांकर को हमारे सामने ही ले आया....
लेकिन तुम लोंग शुभांकर को क्यों ढूढ़ रहे थें,दुर्गेश ने पूछा....
बहुत लम्बी कहानी है,फिर कभी सुनना,अभी यहाँ से चलते हैं,मोटर भी तो ठीक करवानी है ना!माधुरी बोली...
हाँ!नहीं तो वो नकचढ़ी फिर से चिल्लाएगी,दुर्गेश बोला...
इधर अरिन्दम चटोपाध्याय को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है?लेकिन वें बोले कुछ नहीं,सब होटल आ गए और वहाँ आकर उन्होंने योजना बना शुरू कर दी,बहुत देर के सलाह मशविरा के बाद योजना बनकर तैयार हुई,अब दुर्गेश को भी सबकुछ पता चल गया था और अरिन्दम जी को भी सब समझ आ गया और अरिन्दम जी उन सभी का साथ देने को राजी भी हो गए,अब अरिन्दम जी बोलें.....
पहले तो वो मोटर ठीक करवानी पड़ेगी...
जी!हाँ!मैं भी यही सोच रहा था,रामखिलावन बोला....
तो फिर किसी भी हालत में कल दोपहर तक मोटर ठीक हो जानी चाहिए,तभी तो मैं शाम को उसे लेकर शुभांकर के घर जा पाऊँगी,माधुरी बोली.....
माधुरी बुआ!अगर तुम मोटर शुभांकर के घर वापस देकर आओगी तो फिर वापस कैसें आओगी?दुर्गेश ने पूछा...
वही तो मेरी नायाब योजना है,तुम देखते जाओ मैं क्या करती हूँ,माधुरी बोली....
मुझे पता था कि तुम कुछ ना कुछ सोच ही लोगी,रामखिलावन बोला....
और फिर माधुरी की वो रात जैसे तैसे बीती और सुबह सुबह वो अपनी योजना के साथ बिल्कुल तैयार थी,यामिनी की मोटर को तो अरिन्दम जी ने अपनी पहचान के मैकेनिक से दोपहर तक ठीक करवा दी थी,शाम को माधुरी बहुत अच्छे से तैयार हुई,उसने शिफाँन की आसमानी रंग की पारदर्शी साड़ी पहनी,बहुत कम मेकअप किया, अपने लम्बे बालों को खुला छोड़ा और चल दी मोटर में बैठकर शुभांकर के घर,मोटर चलानी तो उसने पहले ही सीख ली थी जब उसने खुराना साहब के साथ काम करना शुरु किया था,कुछ देर के सफ़र के बाद वो शुभांकर की कोठी के सामने थी,उसने मोटर कोठी के गेट के सामने खड़ी की और मोटर से उतरकर गेट पर पहुँच गई फिर उसने दरबान से कहा कि वो शुभांकर बाबू से मिलना चाहती है,ये उनकी छोटी बहन यामिनी की मोटर है,उसे वो लौटाने आई है......
फिर दरबान माधुरी की बात पहुँचाने कोठी के भीतर गया और शुभांकर बाबू से बोला....
छोटे साहब!कोई मैडम जी आपसे मिलना चाहतीं हैं,शायद यामिनी बिटिया की मोटर लौटाने आईं हैं....
दरबान की बात सुनकर शुभांकर बोला.....
हाँ...हाँ....उन्हें भीतर आने को कहो और उनसे मोटर की चाबी लेकर ड्राइवर को दे दो वो मोटर पार्किंग में खड़ी कर देगा.....
शुभांकर का संदेशा लेकर दरबान बाहर आया और शुभांकर के कहे अनुसार उसने माधुरी तक उसकी बात पहुँचा दी,माधुरी ने मोटर की चाबी दरबान को दी और वो भीतर पहुँची और बड़े ध्यान से कोठी की साज सज्जा को देखने लगी....
तब तक शुभांकर भी वहाँ आ पहुँचा और उसने माधुरी से कहा....
मालूम होता है आपको हमारा घर पसंद आ गया....
तब माधुरी शरमाते हुए बोली....
जी!आपका घर है ही इतना खूबसूरत कि किसी को भी पसंद आ जाएगा....
आइए...आइए....आप खड़ी क्यों हैं,इधर बैठिए ना!शुभांकर ने डाइनिंग की ओर इशारा करते हुए कहा...
और फिर माधुरी कुर्सी पर बैठ गई...
माधुरी के बैठते ही शुभांकर ने अपनी नौकरानी को आवाज़ देते हुए कहा....
रामरती काकी!मेहमान के लिए गरमागरम चाय और नाश्ते का इन्तजाम करो...
जी!छोटे बाबू!अभी लाएं,उधर से रामरती की आवाज़ आई....
तब माधुरी बोली....
इस सबकी क्या जरूरत है?आप तकलीफ़ मत कीजिए...
जी!तकलीफ़ किस बात की,तकलीफ़ तो आप उठाकर यहाँ आईं हैं यामिनी की मोटर वापस करने,शुभांकर बोला....
तभी रामरती की आवाज दोबारा आई और उन्होंने शुभांकर से पूछा...
छोटे बाबू!कित्ते जन हैं....?
काकी!बस एक ही है,शुभांकर बोला....
और फिर दोनों के बीच औपचारिक सी बातें शुरु हुई,शुभांकर ने माधुरी से कहा....
माँफ कीजिएगा,कल की बहस के बीच मुझे आपका नाम जानने का मौका ही नहीं मिला...
जी!मेरा नाम माधुरी है,माधुरी बोली...
बड़ा ही सुन्दर नाम है और आप करतीं क्या हैं?शुभांकर ने पूछा...
जी!मेरे काम के विषय में सुनकर शायद आपको अच्छा ना लगे,माधुरी बोली....
जी!ऐसा कौन सा काम है जिसके बारें में सुनकर मुझे बुरा लगेगा,शुभांकर बोला...
जी!मैं एक थियेटर आर्टिस्ट हूँ,माधुरी बोली....
ये तो बहुत अच्छी बात है माधुरी जी!कोई काम अच्छा या बुरा नहीं होता,आप मेहनत करके पैसा कमातीं हैं,किसी के घर डाका तो नहीं डालतीं,ईमानदारी और मेहनत से किया गया कोई भी काम बुरा नहीं होता,आप मत सोचिए की थियेटर करना बुरा है,शुभांकर बोला....
आपके विचार जानकार अच्छा लगा,काश आपकी तरह हर कोई सोच पाता,माधुरी बोली....
तभी रामरती काकी भी चाय और नाश्ता लेकर डाइनिंग हाँल में आ पहुँची और माधुरी के देखते ही बोली....
इ का बबुआ!हम तो समझत रहें कि कौन्हू तुम्हार दोस्त होई,लेकिन इ तो बिटिया निकली,लेकिन कुछ भी हो बिटिया है बड़ी सुन्दर....
तब शुभांकर माधुरी से बोला....
इनसे मिलो!ये हैं हमारी रामरती काकी!मेरी माँ के स्वर्ग सिधारने के बाद इन्होंने ही हम दोनों बहन भाई को सम्भाला है....
तब माधुरी बोली....
नमस्ते!काकी!
खुशी रहो बिटिया!ऐसे ही हँसती खिलखिलाती रहों,लो अब चाय पिओ,ठण्डी हो रही है और ये गरमागरम मटर चाट खाओ,साथ में मठरी और बिस्कुट भी है,कुछ कमी हो तो और बता देना,काकी बोली...
ना!काकी!ये तो बहुत ज्यादा है,माधुरी बोली....
कोई बात नहीं,जितना मन करें उतना खाइए,शुभांकर माधुरी से बोला....
जी!आप भी तो कुछ लीजिए ना!माधुरी बोली...
जी!मैं भी लेता हूँ और फिर इतना कहकर शुभांकर भी चाय पीने लगा....
तब बातों बातों में माधुरी ने शुभांकर से पूछा....
आपकी छोटी बहन यामिनी नहीं दिख रही,
जी!वो इस वक्त कथक सीखने जाती है,बस आने वाली होगी,शुभांकर बोला....
माधुरी ने अपनी चाय खतम की और शुभांकर से बोली....
अच्छा!तो मैं अब चलूँगी...
अरे!यामिनी से भी मिलतीं जातीं तो अच्छा रहता,शुभांकर बोला....
तब तक तो बहुत देर हो जाएगी और मेरे पास अब मोटर भी नहीं है,माधुरी बोली...
मैं ड्राइवर से कहकर आपको आपके घर छुड़वा दूँगा,शुभांकर बोला...
लेकिन मैं तो होटल में ठहरी हूँ,यहाँ कुछ दिनों के लिए थियेटर करने आई थी,माधुरी बोली....
कोई बात नहीं तो ड्राइवर होटल तक छोड़ आएगा,शुभांकर बोला.....
तभी रामरती काकी चाय के बरतन उठाने आई और माधुरी से बोली....
बिटिया!अब आज रात का खाना खा के ही जाना,
नहीं काकी!तब तक बहुत देर हो जाएगी,माधुरी बोली....
मैनें कहा ना!ड्राइवर छोड़ आएगा,आप नाहक ही चिन्ता कर रही हैं,अभी कुछ ही देर में यामिनी भी आई जाती है तो आज रात का खाना साथ मिलकर खाएगें,चलिए जब तक मैं आपको अपना कमरा दिखा देता हूँ,शुभांकर बोला...
और फिर माधुरी शुभांकर के साथ उसका कमरा देखने चली गई....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...