Ek thi Nachaniya - 9 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया--भाग(९)

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एक थी नचनिया--भाग(९)

अब रामखिलावन ने माधुरी से कहा....
माधुरी !अब आगें क्या करना है?कोई तरकीब सूझ रही है....
ना!भइया!मुझे तो कुछ ना सूझ रहा,तुम ही कुछ सुझाओ,माधुरी बोली...
अब हमें जुझार सिंह के बेटे शुभांकर को अपने जाल में फँसाना होगा,तभी काम बन सकता है,रामखिलावन बोला...
वो भला कैसें?माधुरी ने पूछा...
अपने नाच का जादू चलाना होगा तुम्हें उस पर,रामखिलावन बोला...
तो क्या वो रीझ जाएगा मेरे नाच पर?माधुरी ने पूछा...
मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए,क्योंकि तुम मेरी छोटी बहन हो लेकिन क्या करूँ मजबूरी में कहना पड़ रहा है ,रामखिलावन बोला...
क्या कहना पड़ रहा है मजबूरी में?माधुरी ने पूछा...
यही कि तू जाकर शुभांकर को रिझाएं...रामखिलावन बोला...
मैं तुम्हारे मन का हाल समझ सकती हूँ रामखिलावन भइया!लेकिन तुम्हारी ऐसी कोई मनसा थोड़े ही है ,तुम तो ऐसा मजबूरी में कह रहे हो,माधुरी बोली....
तो फिर किसी ना किसी बहाने तुम्हें उससे मिलना पड़ेगा,रामखिलावन बोला...
लेकिन पहले ये तो पता करना पड़ेगा कि वो मिलेगा कहाँ?माधुरी बोली...
मैं कल ही सबकुछ उसके बारें में पता करके आता हूँ,रामखिलावन बोला....
हाँ!और मैं भी यहाँ किसी से उसके बारें में पूछती हूँ तब तो आगे का खेल शुरु किया जाएं..,माधुरी बोली...
हाँ!तो फिर अपने अपने काम पर लग जाते हैं,रामखिलावन बोला...
और फिर दोनों शुभांकर की बारें में जानने के लिए अपने अपने काम पर जुट गए....
ऐसे ही दो रोज बीते थे कि रामखिलावन का बेटा दुर्गेश सड़क पर मोटर से जा रहा था,उसे थियेटर मालिक अरिन्दम चटोपाध्याय की मोटर मिल गई थी,उसे लेकर वो कलकत्ता की सड़को पर दौड़ाने चल पड़ा,दुर्गेश अपनी धुन में मस्त था और मोटर की रफ्तार भी ज्यादा थी,अचानक ही सामने से एक मोटर आ रही थी और दुर्गेश से अपनी मोटर ना सम्भाली गई और उस दूसरी मोटर से उसकी जबरदस्त टक्कर हो गई,लेकिन भगवान का शुकर का था कि दुर्गेश को चोट नहीं आई थी बस मोटर की हालत ही बिगड़ी थी और सामने वाली मोटर का भी यही हाल हुआ था लेकिन मोटर की मालकिन जो कि एक लड़की थी वो सही सलामत थी लेकिन इस टक्कर से उस लड़की का दिमाग़ गरम हो गया और वो अपनी मोटर से बाहर उतरकर आई फिर दुर्गेश से बोली.....
क्यों? मिस्टर!जब मोटर चलानी नहीं आती तो चलाते क्यों हो?अब जो भी मेरी मोटर का नुकसान हुआ है तो तुम्हें उसका हर्जाना भरना पड़ेगा,नहीं तो जेल की हवा खाओ...
लेकिन मेरे पास तो इतने रूपये नहीं हैं,दुर्गेश बोला...
तो मैं क्या करूँ?लड़की बोली...
मुझ पर कुछ तो रहम करो,दुर्गेश बोला...
मैं ये सबकुछ नहीं जानती,इतनी बड़ी मोटर चला रहे हो लेकिन जेब खाली,अब पुलिस को बुलाओ वही निपटारा करवाऐगी,वो लड़की बोली...
तब तक आस पास बहुत से लोग भी इकट्ठा हो गए थे और उन्होंने भी लड़की का पक्ष लेते हुए कहा....
बुलाओ पुलिस को तभी इस लड़के की अकल ठिकाने आएगी....
अब पुलिस आई और दोनों को पुलिसथाने ले जाया गया,थानेदार ने पूरा मामला सुना और ये तय किया कि लड़का और लड़की दोनों के परिवारवालों को यहाँ बुलाया जाएं,तभी झगड़ा सुलझ सकता है और जो भी लड़की की मोटर का नुकसान हुआ है वो हर्जाना भी लड़के के घरवाले ही भरेगें क्योकिं लड़के के पास तो रूपये ही नहीं हैं...
अब दुर्गेश से उसके घरवालों के बारें में पूछा गया तो उसने बताया कि थियेटर मालिक अरिन्दम चटोपाध्याय को टेलीफोन करके सारी बात बता दीजिए,वें मेरे घरवालों को सब बता देगें और मेरे घरवाले यहाँ आ जाऐगें और लड़की से भी उसका पता पूछा गया तो उसने भी अपने घर का टेलीफोन नंबर बता दिया,लेकिन जब पुलिस ने लड़की के घर पर फोन लगाया तो उसके घर पर उसके पिता मौजूद नहीं थे तब लड़की बोली....
कोई बात नहीं इन्सपेक्टर साहब!मैं आपको आँफिस का नंबर बता देती हूँ अब वहाँ पर मेरा मेसेज पहुँचा दीजिए और पुलिस ने यही किया और टेलीफोन लग गया तो लड़की के अभिभावक पूरी बात सुनकर बोलें....
थानेदार साहब!बस मैं थोड़ी ही देर में पहुँचता हूँ....
और फिर थोड़ी देर के बाद उधर से दुर्गेश के पिता रामखिलावन,माधुरी और थियेटर मालिक अरिन्दम चटोपाध्याय भी पहुँच चुके थे और इधर से लड़की के अभिभावक भी आ पहुँचें और लड़की के अभिभावक थानेदार साहब से बोलें...
जी!कहिए!क्या हुआ?
तब थानेदार ने सारी बात बताई और वो शख्स बोलें...
तो इसका मतलब है कि पूरी गलती लड़के की है....
तब थानेदार साहब उस शख्स से बोलें....
जरा शांति रखिए,अभी निपटारा हुआ जाता है...
तब वो लड़की अपने अभिभावक से बोली....
शुभांकर भइया!इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,जो कुछ किया है तो इस लड़के ने किया है,
मैं जानता हूँ यामिनी! तुम कभी ऐसा कुछ नहीं कर सकती,शुभांकर बोला....
अब शुभांकर नाम सुनकर माधुरी और रामखिलावन का माथा ठनका और उस समय दोनों ने चुप्पी लगाने में ही अपनी भलाई समझी....
जब बात काफी आगें बढ़ने लगी तब रामखिलावन ने आगें बढ़कर कहा...
सारी गलती मेरे बेटे दुर्गेश की है,चलो बेटा दुर्गेश पहले यामिनी बिटिया से माँफी माँगो और मोटर का जितना नुकसान हुआ है उसका रूपया भी मैं दे दूँगा,अब बहसबाजी में क्या रखा है,मामला शांति से निपट जाएं तो ही अच्छा....
तब माधुरी बेचारी बनते हुए बोली....
जी!शुभांकर बाबू!मैं अपने भतीजे की ओर से माँफी माँगती हूँ,मेरे भाई की सेहद इन दिनों ज्यादा अच्छी नहीं रहती,उन्हें नाहक परेशान मत कीजिए,उनकी तबियत के बारें में उनका ये नालायक बेटा सोचता ही नहीं,देखिए ना बेचारे अपने सेहद को लेकर इतने मजबूर हैं कि कोई काम ही नहीं कर सकते इसलिए मुझे थियेटर में नाचना गाना पड़ता है,ताकि मैं अपने परिवार का पेट पाल सकूँ....
तभी अरिन्दम चटोपाध्याय माधुरी की बातों को सच मान बैठे और बीच में ही बोल पड़े....
आपकी सेहद इतनी खराब है,इसका आपने कभी मुझसे जिक्र ही नहीं किया...
अब हर किसी से क्या अपनी सेहद का रोना रोता फिरूँ,रामखिलावन बोला....
आपने मुझे इतना गैर समझ लिया तो कोई बात नहीं,आप क्यों देगें मोटर को ठीक करवाने के रूपये,मैं दे दूँगा,अरिन्दम चटोपाध्याय बोले....
जी!आपकी मेहरबानी!और कितने एहसान करेगें मुझ पर,रामखिलावन बोला...
इसमें एहसान की क्या बात है?अरिन्दम चटोपाध्याय बोलें....
आपकी मोटर का भी तो बहुत बुरा हाल हो गया है,रामखिलावन बोला....
कोई बात नहीं,उसे मैं ठीक करवा लूँगा,लेकिन अभी आप ये मामला सुलझा लें,ये शुभांकर बाबू हैं मैंने आपसे बताया था ना!अरिन्दम चटोपाध्याय बोलें....
अब रामखिलावन और माधुरी का शक़ यकीन में बदल गया कि ये जुझार सिंह का बेटा शुभांकर है,मतलब उनकी तलाश खतम हुई,बकरा खुद ही हलाल होने के लिए उनके पास चला आया,अब तो माधुरी ने सोचा यही मौका है शुभांकर को अपने जाल में फँसाने और उसने शुभांकर से कहा....
जो भी हुआ है उसे भूल जाइए और अपनी बहन यामिनी से भी कह दीजिए कि भूल जाएं,कल आपकी मोटर ठीक होकर आपके घर के दरवाजे पर पहुँच जाएगी,बस अपने घर का पता दे दीजिए....
माधुरी की मधुर आवाज़ ने शुभांकर का मन जीत लिया और वो माधुरी की विनती को टाल ना सका और अपनी बहन यामिनी से बोला....
यामिनी!माँफ कर दो उस नादान लड़के को,अब तो इन्होंने तुम्हारी मोटर ठीक करवाने की बात भी कह दी है,नेकदिल लोग मालूम पड़ते है....
तब यामिनी बोली...
आप कहते हैं तो ठीक है,मेरी मोटर ठीक हो जाएगी तो मुझे इसमें क्या एत़राज हो सकता है भला!
तब रामखिलावन भी मक्खन चुपड़ने में कहाँ पीछे हटने वाला था,वो यामिनी से बोला....
यामिनी बिटिया!भगवान तुम्हारा भला करें जो तुमने मेरे नालायक बेटे को माँफ कर दिया....
अब दुर्गेश का गुस्सा साँतवें आसमान पर चढ़ गया और वो बोला.....
ये क्या? सब मेरे पीछे ही हाथ धोकर पड़ गए,ये लड़की भी तो अपनी मोटर देखकर चला सकती थी,इसने अपनी मोटर दूसरी दिशा में क्यों नहीं मोड़ी?
अब यामिनी भी उबल पड़ी....
टक्कर तुमने मारी थी,मैनें नहीं !समझे तुम!
अब दुर्गेश भी बोल पड़ा...
गलती तुम्हारी थी....
नहीं!गलती तुम्हारी थी,यामिनी बोली....
बनती हुई बात को बिगड़ते हुए देखकर रामखिलावन बोला....
चुप कर नालायक!गलती करता है ऊपर से भली लड़की को तंग करता है....
बाऊजी!आप भी,दुर्गेश बोला....
तब माधुरी नाटक करते हुए बोलीं...
चुप कर नालायक!बूढ़े और बीमार बाप को परेशान करते शरम नहीं आती,शुभांकर बाबू आप अपनी बहन के साथ घर जाइए,कल शाम तक आपकी मोटर घर पहुँच जाएगी और जाते हुए घर का पता जरूर देते जाइएगा....
दुर्गेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और वो चुप हो गया,तब शुभांकर ने अपने घर का पता एक कागज पर लिखा और माधुरी के हाथ में थमाकर अपनी बहन यामिनी के साथ पुलिसथाने से बाहर निकल गया,उन दोनों के जाने के बाद थानेदार साहब से इजाजत लेकर वें सब भी पुलिसथाने के बाहर निकले,तब रामखिलावन दुर्गेश से बोला.....
शाबास!बेटा तुमने हमारी परेशानी दूर कर दी....
अभी भी दुर्गेश को कुछ भी समझ नहीं लेकिन माधुरी मुस्कुरा रही थी....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....