इधर श्यामा डकैत जुझार सिंह को मारने की योजना बनाती रही और उधर जुझार सिंह अपने परिवार के साथ रातोंरात कलकत्ता के लिए रवाना हो गया...
ये बात जब श्यामा को पता चली तो उसका खून खौल उठा,लेकिन उसने सोचा कोई बात नहीं,कभी ना कभी तो जुझार सिंह पकड़ में आएगा ही क्योंकि उसकी सारी जमीन जायदाद तो अभी यहीं पर है,इधर कस्तूरी अपने जीवन से निराश हो चुकी थी और उसने आत्महत्या करने की कोशिश की,लेकिन ऐन मौके पर श्यामा की माँ ने उसे बचा लिया,अब कस्तूरी के मन में जीने की आस खतम हो चुकी थी और वो पागल सी हो गई,उसे अपने घर ले जाया गया तो उसने किसी को भी पहचानने से इनकार कर दिया,उसकी हालत देखकर उसकी दादी पानकुँवर रो पड़ी और उसके छोटे भाई बहन भी परेशान हो उठें,रामखिलावन कस्तूरी को शहर के बड़े अस्पताल भी ले गया लेकिन कस्तूरी की हालत में अब कोई सुधार ना हो सका इसलिए रामखिलावन उसे घर ले आया,लेकिन अब कस्तूरी का पागलपन इतना बढ़ने लगा कि उसे कुछ याद नहीं रहता कि वो क्या कर रही है?एक दिन तो उसके कारण घर में आग लगते लगते बची, अगर उसकी छोटी बहन माधुरी समय से ना देखती तो उस दिन कस्तूरी भी उस आग में झुलसकर मर जाती....
इस बार पानकुँवर ने सुखिया के साथ श्यामा को भी बुलाया,श्यामा वेष बदलकर कस्तूरी के गाँव पहँची और सच में श्यामा भी कस्तूरी की हालत देखकर रो पड़ी....
इधर कस्तूरी की बहन माधुरी ने श्यामा से कहा कि ....
जीजी!तुम हमें भी अपने संगे रख लो,हम भी डकैत बनेगें और अपनी कस्तूरी जीजी का बदला लेगें,
लेकिन तब श्यामा बोली....
तुम अभे चौदह साल की ही हो और तुमसे छोटे तुमाए भाई बहन भी हैं,ये ही से तुम अभे उनको और अपनी दादी को ख्याल रखों....
लेकिन जीजी!देखो तो जुझार सिंह ने हमाई जीजी को कैसों हाल कर दओ,माधुरी बोली....
तुम चिन्ता ना करों,कस्तूरी बिल्कुल अच्छी हो जेहे,हम करवा है ऊको इलाज,श्यामा बोली...
और फिर कस्तूरी को इलाज के लिए शहर ले जाया गया और डाक्टर ने सलाह दी कि अगर इसकी और घरवालों की भलाई चाहते हो तो उसे पागलखाने में रख दो,शायद यहाँ रहने से ये जल्दी अच्छी हो जाएं और फिर मजबूर होकर डाक्टर की सलाह पर कस्तूरी के घरवाले उसे पागलखाने में रखने पर मजबूर हो गए...
ऐसे ही दो तीन महीने बीते और मोरमुकुट सिंह छुट्टियों पर घर आया और उसने रामखिलावन से कस्तूरी के बारें में पूछा....
रामखिलावन ने मोरमुकुट को कस्तूरी के बारें में सबकुछ बता दिया,जब मोरमुकुट ने पूछा कि कस्तूरी अब कहाँ है तो रामखिलावन ने उसे उसका पता देने से इनकार कर दिया वो मोरमुकुट से बोला....
जाओ,मोरमुकुट सिंह!तुम भी तो अमीर घर के बेटे हो,तुम क्या जानों हम गरीबों का दर्द,तुम्हारे पास तो मनमाना रूपया है जो तुम पानी की तरह बहाते हो और हम गरीब दो बखत की रोटी के लिए भी मोहताज रहते हैं,इसलिए चले जाओ यहाँ से ,भूल जाओ कस्तूरी को और फिर कभी उसके बारें में पूछने मत आना...
और उस दिन मोरमुकुट सिंह यूँ ही उदास होकर लौट गया.....
दिन यूँ ही गुजर रहे थे ,श्यामा डकैत जुझार सिंह की राह ताँकती रही लेकिन वो गाँव ना लौटा,अब कस्तूरी के घरवालों का पूरा खर्च श्यामा ही उठा रही थी और फिर एक दिन कस्तूरी की दादी पानकुँवर भी लम्बी बिमारी के बाद चल बसी,उसे कस्तूरी के दर्द ने मार डाला....
अब माधुरी ही अपने परिवार को सम्भाल रही थी,रामखिलावन से उसने काम दिलवाने को कहा तो रामखिलावन ने उसे साफ साफ इनकार कर दिया ,वो बोला....
ना!माधुरी!तेरी एक बहन की मैं रक्षा ना कर सका,अब मैं तुझे भी उस दलदल में नहीं धकेल सकता....
तू कोई और काम कर लें,लेकिन नौटंकी नहीं....
और फिर माधुरी रामखिलावन की बात सुनकर चुप रह गई क्योंकि वो उसे अपना बड़ा भाई समझती थी और उसकी इज्जत करती थी....
समय बीत रहा था लेकिन अब भी इतने इन्तज़ार के बाद जुझार सिंह गाँव ना लौटा,ऐसे ही पाँच साल बीत गए और अब माधुरी उन्नीस साल की हो चली थी,उनका कुछ खर्च श्यामा उठा रही थी और कभी कभी रूपये पैसें से उसके परिवार की मदद रामखिलावन भी कर देता, इसी बीच गाँव में हैजा फैला, उन लोगों के गाँव और उसके आस पास के गाँवों में भी त्राहि-त्राहि मच गई,लोंग हैजे से ऐसे मरने लगें जैसे कि पेड़ से पके हुए फल पककर टपकने लग जाते हैं,अब रामखिलावन भी चिन्ता में था क्योंकि उसका बेटा,बेटी और उसकी पत्नी तो उसके साथ थे ही उसे माधुरी और उसके भाई-बहनों की भी चिन्ता हो रही थी,उस गाँव के पास के कस्बे वाले खैराती दवाखाने में लोंग समा नहीं रहे थे और जब हालात ज्यादा बिगड़ने तो वहाँ का डाक्टर भी अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग निकला.....
अब तो लोगों के लिए जो डाक्टर का रहा सहा सहारा था वो भी चला गया और गाँव के लोगों के ऊपर आफत आ गई,लोगों ने इस बला से बचने के लिए वैद्य हकीमों को ढूढ़ना शुरू कर दिया,लेकिन हैजे को सम्भालना वैद्य हकीमों के वश की बात नहीं रह गई थी और लोगों का जान से हाथ धोना कम ना हुआ....
इसी बीच रामखिलावन की बेटी हैजे से ग्रसित हुई और दो दिन के भीतर ही भगवान को प्यारी हो गई,रामखिलावन की पत्नी रोती कलपती रही लेकिन अब उसकी बेटी कहाँ लौटने वाली थी,रामखिलावन की बेटी के जाने के दो दिन बाद ही माधुरी के दोनों भाइयों को भी हैजे ने जकड़ लिया और वें भी भगवान के पास चले गए,दोनों भाइयों का जैसे तैसे लोंग क्रियाकर्म करके आएं,वैसें ही माधुरी की छोटी बहन भी हैजे की चपेट में आ गई और रात भर में वो भी चल बसी,अब रामखिलावन मौत का ऐसा मंजर देखकर बुरी तरह डर गया और उसने वो गाँव छोड़ने का फैसला किया.....
वो माधुरी,अपनी पत्नी मालती और अपने बेटे दुर्गेश के साथ शहर चला आया,उसने ये खबर श्यामा डकैत को भी पहुँचा दी कि हैजे के कारण उसने बहुत से अपनो को जाते हुए देखा है इसलिए वो गाँव छोड़ रहा है,अब वें लोंग शहर पहुँचे,लेकिन अब उनके पास कोई काम ना था,जो रही सही जमापूँजी थी वो भी कुछ दिनों में ही खर्च हो गई...
अब रामखिलावन कुछ काम ढ़ूढ़ने लगा,लेकिन उसे कुछ काम ना मिल सका,इसलिए वो सड़को पर हारमोनियम बजाता ,दुर्गेश ढ़ोलक और माधुरी उन पर ठुमके लगाती,क्या करें मजबूरी थी उनकी,पेट की आग इन्सान से क्या नहीं करवा लेती,रामखिलावन को ये सब अच्छा नहीं लग रहा था कि माधुरी सड़को पर नाचें,लेकिन क्या करता ये उसकी मजबूरी थी? रामखिलावन की पत्नी भी ये सब नहीं चाहती थी लेकिन इसके अलावा उन्हें और कोई काम भी तो नहीं आता था,ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं थे माधुरी और रामखिलावन का बेटा दुर्गेश ,क्योंकि गाँव में केवल पाँचवीं तक ही स्कूल था,दोनों को लिखना और पढ़ना थोड़ा थोड़ा ही आता था बस.....
ऐसे ही एक दिन सड़को पर नाचती हुई माधुरी पर किसी थियेटर कम्पनी वाले की नज़र पड़ी और वो अपनी मोटर से उतरकर उनके पास आया और रामखिलावन से बोला....
लड़की तो बहुत अच्छा नाचती है....
रामखिलावन को उसकी बात बहुत बुरी लगी और वो बोला....
तुम्हारा मतलब का है बाबूसाहब!वो लड़की इज्जतदार घर की है,ऐसी वैसी नजर डालोगे तो आँखें नुचवा लेगें....
भाई! तुम मुझे गलत समझ रहे हो....थियेटर का मालिक बोला...
आप जैसे लोगों को मैं अच्छी तरह जानता हूँ,रामखिलावन बोला...
नहीं!भाई!मैनें कहा ना ऐसी कोई बात नहीं है,थियेटर मालिक बोला....
तो फिर कैसीं बात है?जवान लड़की देखी नहीं कि नियत खराब हो गई तुम्हारी,रामखिलावन गुस्से से बोला....
नहीं!भाई!मैं तो ये कह रहा था कि तुम लोंग बहुत अच्छा गाते बजाते हो,क्या मेरे थियेटर में काम करोगे?
थियेटर मालिक बोला....
थियेटर मेँ काम,लेकिन हमें तो इसका कोई तजुर्बा नहीं है,रामखिलावन बोला....
मगर मुझे तो ये तजुर्बा है ना!तुम लोंग एक बार हाँ बोलो तो सही,मैं तुमलोगों को सब सिखा दूँगा,थियेटर मालिक बोला....
रामखिलावन कुछ देर सोचता रहा फिर बोला....
रातभर की मोहलत दे दीजिए,हम लोंग तनिक सोच विचार कर लें...
हाँ...हाँ....क्यों नहीं,जितना समय चाहिए उतना ले लो,लेकिन जवाब हाँ में देना,थियेटर मालिक बोला...
अब ये तो सोच विचार के बाद ही पता चलेगा कि जवाब हाँ में आता है या ना में,रामखिलावन बोला...
ठीक है तो मैं दो दिन के बाद फिर आऊँगा,तुम लोंग मुझे कहाँ मिलोगे?थियेटर मालिक ने पूछा...
जी!यही मिलेगें,इसी इलाके में ही गाते बजाते हैं हम लोंग,रामखिलावन बोला...
ठीक है तो मैं चलता हूँ और इतना कहकर थियेटर मालिक अपनी मोटर में बैठकर चल दिया...
फिर वें लोंग अपनी किराएं की कोठरी में जब रात को पहुँचे तो आपस में सलाह मशविरा किया तब रामखिलावन की पत्नी माल्ती बोली....
ना जाने कैसा आदमी हो,परदेस का मामला और माधुरी ठहरी पराई बिटिया,कुछ ऊँच नीच हो गई तो भगवान को ऊपर जाकर का मुँह दिखाऐंगें हम दोनों....
सही कहती हो माल्ती!तो अब का करें,मना कर दें बाबूसाहब को,रामखिलावन बोला।।
तब माधुरी बोली....
कैसीं बातें करते हो रामखिलावन भइया?आप कब तक मेरी मदद करते रहोगे,कब तक सहारा देते रहोगे और फिर उधर पागलखाने में कस्तूरी जीजी के इलाज में भी काफी पइसा खर्च हो रहा है,उसकी भरपाई कैसें करोगे?ऐसा करो उन बाबूसाहब की बात मान लो ....
लेकिन दुनिया का कहेगी माधुरी?रामखिलावन बोला.....
कुछ ना कहेगी दुनिया,जब हम लोंग भूखे मर रहे थे तो का ये दुनिया हमें रोटी देने आई थी,रामखिलावन का अठारह साल का बेटा दुर्गेश बोला....
तू चुप कर दुर्गेश!अभी ऐसी बातें करने के लिए तू बहुत छोटा है,रामखिलावन बोला...
कहाँ छोटा हूँ बाऊजी!माधुरी बुआ से केवल एक साल ही तो छोटा हूँ,वो भी तो बात कर रही है इस बारें में,दुर्गेश बोला....
चुप कर!जब देखो चपड़...चपड़....,मालती बोली...
माँ!अब तुम भी बाऊजी की तरह मुझ पर चिल्लाने लगी,दुर्गेश बोला...
अरे,दुर्गेश तू भी क्या भइया भाभी की बातों में लग रहा है,माधुरी बोली....
तो तुम ही बताओ माधुरी बुआ मैनें कुछ गलत बात की,दुर्गेश बोला...
ना !तू सही कह रहा है,माधुरी बोली....
तो अब का सोचा सबने,उस बाबूसाहब को हाँ कर दें,रामखिलावन बोला...
और का,इसमें ज्यादा कुछ सोचने जैसा कुछ नहीं है,माधुरी बोली....
ठीक है तो दो दिन बाद वो बाबूसाहब आऐगें तो मैं उनसे कह दूँगा कि हम सब उनके थियेटर में काम करने को राजी हैं...,रामखिलावन बोला....
हाँ!बिल्कुल सही,माधुरी बोली.....
और फिर दो दिन बाद रामखिलावन ने उस थियेटर मालिक को उसके थियेटर में काम करने के लिए हाँ कर दी,थियेटर मालिक का नाम चमनलाल खुराना था और उसका वो थियेटर उसके दादा परदादा के जमाने का था,अँग्रेजों के जमाने में उस थियेटर को बनाया गया था,पहले तो वो थियेटर बहुत चलता था लेकिन अब सिनेमा का जमाना आ गया था इसलिए उसमें अब काम करने वालों को रूचि ना थी और ना ही उसको देखने वालों को रूचि थी....
खुराना साहब को वैसें तो रूपए पैसों की कोई कमी नहीं थी,दादा परदादा उनके लिए बहुत जमीन जायदाद छोड़ गए थे,उनकी पत्नी को गुजरे लगभग दस साल बीत चुके थे,उनकी दो बेटियांँ थी जिनकी वें सम्पन्न घरों में शादी कर चुके थे,बस अपना समय काटने के लिए वो ये थियेटर चलाते थे और इसी बहाने वो अपने पुरखों की निशानी को भी जिन्दा रखना चाहते थे...
खुराना साहब ने सोचा कि शायद नए कलाकार रखने से थियेटर चलने लगें,इसलिए उन्होंने माधुरी के साथ साथ रामखिलावन को भी रख लिया,खुराना साहब ने पहले तो उन्हें अपने ही बगले के सर्वेन्ट क्वाटर में रहने की जगह देदी,फिर माधुरी को नृत्य सिखाने के लिए एक अच्छी सी शिक्षिका रख दी और एक ब्यूटीशियन भी रख दी जो माधुरी को तरह तरह से ड्रेसअप करना सिखाती और एक ऐसी अध्यापिका रखी जिसने माधुरी को हिन्दी और अंग्रेजी में पढ़ना,लिखना और बोलना सिखा दिया,दो तीन महीनों के भीतर माधुरी देसी लड़की से मेम बन गई,ये खबर श्यामा को भी पहुँचाई कि वो लोंग आजकल कहांँ रह रहे हैं,श्यामा भी माधुरी की तरक्की से खुश हुई....
चार महीने के अभ्यास के बाद आज माधुरी का पहला शो था,वो बहुत ही घबराई हुई थी तभी खुराना साहब ने उसकी हिम्मत बँधाई और वो जब स्टेज पर उतरी और उसने अपना नृत्य पेश किया तो पूरा थियेटर हाँल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा....
उधर पागलखाने में कस्तूरी से मिलने रामखिलावन के साथ साथ माधुरी भी जाती और अपनी बहन की हालत देखकर रो पड़ती और वो जुझार सिंह से बदला लेने के बारें में सोचने लगती,वो रामखिलावन से कहती कि बस एक बार जुझार सिंह उसके हाथ लग जाएं तो वो उसकी गर्दन मरोड़ देगी....
इसी तरह एक बार दोनों पागलखाने कस्तूरी से मिलने पहुँचें,कस्तूरी से मिलने के बाद उन दोनों ने डाक्टर से मिलने का सोचा,ये पता करने के लिए कि कस्तूरी की हालत में कुछ सुधार हुआ है या नहीं,तब वहाँ कि नर्स बोली....
डाक्टर साहब की तो बदली हो गई है,आज ही नए डाक्टर साहब आएं हैं,आप लोंग उनसे मिल लीजिए लेकिन अभी उन्हें आपके मरीज की हालत के बारें में कुछ पता नहीं होगा क्योंकि उन्होंने अभी यहाँ का दौरा नहीं किया है....
तब रामखिलावन बोला....
हम दोनों तब भी उनसे मिलना चाहते हैं....
वो आपको कमरा नंबर आठ में मिल जाऐगें,नर्स बोली....
और फिर दोनों कमरा नंबर आठ में पहुँचे और वहाँ मौजूद सख्श को देखकर रामखिलावन की बाँछें खिल गई और वो बोल पड़ा....
अरे!मोरमुकुट बाबू आप!
क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....