Ek thi Nachaniya - 5 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया--भाग(५)

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एक थी नचनिया--भाग(५)

कस्तूरी ने घर के किवाड़ो पर लगी साँकल खटखटाई...पानकुँवर ने दरवाजा खोला तो सामने कस्तूरी को देखकर पूछा....
इत्ती जल्दी कैसें आ गई बिन्नू?
पहले भीतर तो आन दो,फिर सबकुछु पूछ लइओ,कस्तूरी बोली।।
चलो....भीतर.... चलो,पानकुँवर बोली।।
कस्तूरी घर के भीतर पहुँची और अपनी दादी पानकुँवर से बोली....
कछु बात हो गई ती,ऐई से जल्दी आने पड़ो,
ऐसी का बात हो गई,तनिक हमें भी बता दो,पानकुँवर बोली।।
नौटंकी में कछु लफंगा घुस आएं ते,ऐई से रामखिलावन भइया ने हमें जल्दी भेज दओ,कस्तूरी ने झूठ बोलते हुए कहा...
तब तो रामखिलावन ने बड़ी सूझबूझ दिखाई जो तुम्हें भेज दओ,पानकुँवर बोली...
हाँ!और हम रातभर सोएं नहीं हैं सो हम सोबें जा रहें हैं,हमें कोऊ जगाइओ ना!इतना कहकर कस्तूरी कोठरी में सोने चली गई.....
दोपहर होने को आई थी,लेकिन कस्तूरी अब तक ना जागी थी,तब तक उसके घर के दरवाजों की साँकल किसी ने खटखटाई,पानकुँवर ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने रामखिलावन खड़ा था,रामखिलावन ने फौरन ही पानकुँवर से पूछा....
कस्तूरी कहाँ है दादी?
वो तो सो रही हैं अबे तक,पानकुँवर बोली।।
उसे जगा देव,कछु जरूरी बात करनी है ,रामखिलावन बोला।।
ऐसी का जरूरी बात करनी है तुमें,पानकुँवर ने पूछा।।
दादी बहुतई जरूरी है तबही तो कह रहें कि जगा दो कस्तूरी कों,रामखिलावन बोला....
रामखिलावन की बात सुनकर पानकुँवर फौरन ही कस्तूरी को जगाकर बाहर लाई,कस्तूरी को देखते ही रामखिलावन बोला...
कस्तूरी!ये गाँव छोड़कर चली जा बहन!वो जुझार सिंह कुत्तों की तरह तुझे सूँघते हुए कभी भी पहुँचता होगा,मैं इससे ज्यादा और तेरी मदद नहीं कर सकता....
लेकिन मैं इस वक्त कहाँ जाऊँ?कस्तूरी ने पूछा...
तू कहीं भी जा,लेकिन ये गाँव छोड़कर चली जा,रामखिलावन बोला....
लेकिन कहाँ जाऊँ मैं ?कहाँ आसरा लूँ,कस्तूरी बोली....
तभी कस्तूरी की दादी पानकुँवर बोली.....
तुम महाराजपुर चली जाओ बिन्नू!वहाँ हमारी फूफेरी बहन है सुखिया,वो बेचारी विधवा है,जगदम्बा मइया के मंदिर के टीले के उस पार उसका घर है,वो तुम्हें जरूर आसरा दे देगी,हमारा नाम बता देना तो वो तुम्हें जरूर पहचान लेगी,हमने तुम्हें कबहूँ बताई नहीं है कि उसकी बेटी है जो एक डकैत है,उसकी बेटी का नाम तो हमें याद नहीं है.....
तो ठीक है मैं ही तुझे महाराजपुर गाँव छोड़कर आता हूँ,रामखिलावन बोला....
और फिर कस्तूरी उसी वक्त रामखिलावन के संग महाराजपुर गाँव की ओर रवाना हो गई,वो वहाँ शाम तक पहुँच गई,उसने सुखिया से अपनी दादी पानकुँवर के बारें में बताया तो सुखिया ने फौरन ही कस्तूरी को गले से लगा लिया,इतने दिनों बाद किसी अपने को देखकर सुखिया का मन भर आया और रामखिलावन उसे उसी गाँव में छोड़कर वापस अपने गाँव लौट आया.....
इधर मोरमुकुट सिंह परेशान सा था, उसकी मुलाकात कस्तूरी से नहीं हुई थी,उसने रामखिलावन से भी पूछा लेकिन रामखिलावन ने कस्तूरी का पता देने से इनकार कर दिया,मोरमुकुट का जी बहुत उदास था,अब तो गाँव में कस्तूरी भी ना थी इसलिए वो वापस शहर लौट गया और पढ़ाई में अपना जी लगाने लगा....
इधर कस्तूरी सुखिया के साथ रहने लगी थी और उसे भी वो दादी कहकर ही पुकारा करती थी,उम्र में सुखिया पानकुँवर से बहुत कम थी लेकिन थी तो वो पानकुँवर की ही फुफेरी बहन इस नाते उसे कस्तूरी दादी ही कहती थी,ऐसे ही बातों ही बातों में सुखिया के मुँह से निकल गया कि उसकी बेटी डकैत है,वो कभी कभी उससे मिलने भी आती है...
कस्तूरी अब सुखिया के संग खेतों में काम करती,कहीं किसी खेत में खरपतवार निकाल देती तो कहीं किसी के खेत में गुड़ाई-निराई कर देती और जो भी मिलता वो उसे अपने घर भिजवा देती,दिन ऐसे ही गुजर रहे थे कि एक दिन रामखिलावन कस्तूरी का हाल चाल लेने महाराजपुर गाँव आया,लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका पीछा,जुझार सिंह का आदमी कर रहा है,जब रामखिलावन वापस चला गया तो रात के समय जुझार सिंह महाराजपुर गाँव पहुँचा और उस ने कस्तूरी के अपहरण की साजिश रचीं...
वो रात को अपने लठैतों के संग सुखिया के घर में घुसा और सुखिया के हाथ-पैर चारपाई से ही बाँध दिए और उसके मुँह में कपड़ा ठूँस दिया,कस्तूरी को उन्होंने बेहोश किया और उसे अगवा करके रातोंरात अपने गाँव धीरजपुर के बाहर के जंगल की कोठरी में बाँध दिया...
कस्तूरी रात के समय बेहोश हो गई थी क्योंकि वो बहुत ही हाथ पैर हिला रही थी इसलिए उसके सिर पर उन लोगों ने डण्डा मारकर बेहोश कर दिया था,कस्तूरी रात भर बेहोश रही थी,जब उसकी आँखें खुलीं तो दिन चढ़ आया था और उसने खुद को एक कोठरी में चारपाई पर लेटे पाया,उस कोठरी में एक छोटी सी खिड़की थी जिससे थोड़ा उजाला और थोड़ी हवा आ रही थी,खिड़की से उसे कुछ हरियाली भी दिख रही थी,इससे कस्तूरी को पता लग गया था कि वो जंगल में हैं जहाँ उसकी मदद के लिए कोई नहीं आ सकता....
कस्तूरी ने बहुत हाथ पैर मारें कि वो खुद को छुड़ा ले लेकिन छुड़ा ना सकी,थककर वो फिर से चुपचाप लेट गई,अब शाम होने को थी,कस्तूरी ने खुद को छुड़ाने की एक और कोशिश की और वो इस बार मुँह की पट्टी खोलने में कामयाब रही,उसने तब बचाओ...बचाओ....चिल्लाना शुरू किया,उसकी आवाज़ वहाँ लकड़ियाँ काट रहे एक बूढ़े लकड़हारे ने सुन ली,वो उस ओर आया और उसने उस कोठरी के पहले इर्दगिर्द चक्कर काटे,उसे जब खिड़की दिखी तो उसने वहाँ से झाँककर देखा,उसने वहाँ जब कस्तूरी को बँधे हुए पाया तो बोला....
घबराओ नहीं बिटिया!हम तुम्हें छुड़ाएं लेते हैं...
और फिर उस बूढ़े लकड़हारे ने उस कोठरी के किवाड़ो पर लगें हुए ताले को एक पत्थर मार मार तोड़ दिया,फिर साँकल खोलकर उसने कस्तूरी को छुड़ाया और फिर कहा....
बिटिया!पहले यहाँ से भाग चलो,रास्ते में तुम मुझे अपनी कहानी सुनाना....
रास्ते में कस्तूरी ने अपनी सारी आपबीती बूढ़े को सुना दी,कस्तूरी की बात सुनकर बूढ़ा बोला....
डरो मत बिटिया!हम हैं ना!तुम हमारी झोपड़ी में रह लो...
और फिर कस्तूरी उस बूढ़े के साथ भाग निकली,वो बूढ़ा कस्तूरी को अपनी झोपड़ी में ले गया,जहाँ वो अपनी पत्नी के साथ रहता था,कस्तूरी जैसे ही बूढ़े के साथ झोपड़ी में पहुँची तो बुढ़िया ने फौरन ही बूढ़े से पूछा....
ये किसे लिवा लाए जी?
सब बताते हैं..सब बताते हैं.....हालातों की मारी है बेचारी,बस आज रात का सहारा दे दो इसे,बूढ़ा बोला।।
अब तुम लिवा ही लाएं हो तो कहाँ जाएगी बेचारी?चल बिटिया मैं तुझे स्नान करवा लाती हूँ,मेरी धोती ले ले,बेचारी ना जाने कबसे भूखी प्यासी होगी,बुढ़िया बोली....
धन्यवाद दादी!कस्तूरी बोली।।
ए...मुझे दादी मत कह,मैं इत्ती बूढ़ी थोड़े ही हूँ,अम्मा बोल...अम्मा!
बुढ़िया की बात सुनकर सब हँस पड़े,फिर कस्तूरी बोली....
मेरी माँ नहीं है,दादी है इसलिए मुँह से दादी निकल गया...
कोई बात नहीं,चल मैं तुझे स्नान करवा लाती हूँ फिर तू कुछ खाकर आराम करना,ना जाने कब की थकी होगी....,इतना कहकर बुढ़िया कस्तूरी को स्नान के लिए पास के तालाब में लिवा ले गई....
दोनों बाहर से लौटीं तो बुढ़िया ने सबके लिए खाना परोसा,खाने में पतली सी मूँग की दाल और सूखी रोटियाँ थी,खाना देखकर बूढ़ा बोला....
बिटिया!बस यही रूखा सूखा है हमारे पास,यही खाकर संतोष कर लो....
बाबा!ये तो मेरे लिए छप्पनभोग के बराबर है,आप लोगों ने मेरी मदद की,रोटी दी,सिर छुपाने की जगह दी और कितना एहसान करेगें आप लोंग मुझ पर...,कस्तूरी बोली।।
एहसान कैसा बिटिया?जहाँ जिसका दाना पानी लिखा होता है वो वहीं पहुँच जाता है,तुम्हारा दाना पानी हमारे घर में लिखा था इसलिए तुम यहाँ आ पहुँचीं....बूढ़े बाबा ने कहा...
काफी रात तक तीनों इसी तरह बतियाते रहें फिर सो गए,सुबह हुई अब कस्तूरी ने सोचा कि वो क्या करें?कहाँ जाएं लेकिन उन बूढ़ा बूढ़ी ने उसे उनकी झोपड़ी में रहने की ही सलाह दी,ऐसे ही दो दिन गुजरे , उधर सुखिया भी परेशान थी कि वो कस्तूरी को कहाँ ढूढ़े,उसके घर पर खबर भिजवाती तो उसकी बूढ़ी दादी पानकुँवर और उसके भाई बहन परेशान हो जाते,इसलिए उसने अपनी डकैत बेटी को खबर पहुँचाई कि वो फौरन आकर उससे मिलें.....
आधी रात होने को थी,तभी गाँव का वातावरण घोड़ो की टापों की धूल से धूमिल हो उठा,लोंग अपने घरों में दुबककर बैठ गए,वो डकैतों के घोड़े थे,डकैतों की टोली सीधी आकर सुखिया के द्वार पर रुकी,महिला डकैत ने घर की साँकल खड़काई और सुखिया ने दरवाजे खोलें,महिला डकैत के देखते ही सुखिया बोली....
तू आ गई श्यामा!बहुत जरूरी काम था तुझसे...
का बात है अम्मा?तुम इत्ती हैरान काहें हो,श्यामा डकैत ने पूछा...
बिटिया!कस्तूरी हमारे घर में उन लोगों के डर से ठहरी थी लेकिन वो लोंग उसे उठाकर ले गए,सुखिया बोली....
कौन अम्मा?कौन लोंग उठा ले गए और ये कस्तूरी कौन है,श्यामा ने पूछा।।
बिटिया!तुम भीतर चलो,हम सब बताय देत हैं तुम्हें,सुखिया बोली।।
और फिर दोनों माँ बेटी घर के भीतर जाकर बातें करने लगी,श्यामा को पूरी बात पता चली तो उसका खून खौल उठा और उसने बाहर आकर अपने साथियों से कहा...
चलो!यहाँ से हमें अबहीं कस्तूरी को पता लगाने है...
घोड़े फिल धूल उड़ाते हुए महाराजपुर गाँव से रवाना हो गए,डाकुओं की टोली रातभर कस्तूरी को यहाँ वहाँ ढूढ़ती रही लेकिन उन्हें कस्तूरी कहीं ना मिली....
और उधर दिन के समय दोनों बूढ़े बुढ़िया काम पर चले गए,जंगल से लकड़ी लाने और उन्होंने कस्तूरी को झोपड़ी मेँ ही रहने की हिदायतें दी और उससे कहकर गए कि चाहे कुछ भी हो जाएं लेकिन घर से बाहर मत निकलना,कस्तूरी उनकी हर बात मानकर झोपडी में छुपी रही लेकिन जुझार सिंह के लठैत कुत्तो की तरह कस्तूरी को सूँघते हुए वहाँ आ पहुँचे,झोपड़ी के दरवाजे कमजोर थे एक ही झटके में टूटकर गिर गए और कस्तूरी एक बार फिर से जुझार सिंह के लठैतों द्वारा पकड़ ली गई....
इधर जब बूढ़े बुढ़िया शाम को घर लौटें,झोपड़ी की अस्त व्यस्त हालत को देखकर समझ गए कि कस्तूरी को फिर से वो लोंग उठाकर ले गए हैं,बूढ़े बुढ़िया को इस बात का बहुत दुख हुआ लेकिन वें अब उस समय कुछ कर भी नहीं सकते थे,
कस्तूरी को अगवा करके उन्होंने किसी सुनसान इलाके के एक खाली मकान में ले जाकर बाँध दिया गया,रात हुई तो वहाँ लालटेन का उजियारा हुआ तब वहाँ कोई उसके पास आकर बोला...
क्यों री!बहुत भगाया हमें,दो कौड़ी की नचनिया और ऐसे तेवर...
वो और कोई नहीं जुझार सिंह था.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....