उस आदमी के मरते ही उस जगह बिल्कुल सन्नाटा छा गया,तब डाकुओं की सरदार श्यामा बोली....
हमने कही थी ना कि कोई हल्ला ना मचाएं,अब सबने देख लओ ना कि का हाल भओ इ आदमी को,सो भलाई येई में हैं कि सब जने चुप्पई चाप अपनी अपनी अँगूठी,चेन और नगदी इते धरके चले जाओ...
और फिर सबने श्यामा के कहने पर अपनी अपनी अँगूठियाँ और चेन उतारकर अपनी जान के डर से जमीन पर बिछे हुए कपड़े पर रख दीं,कुछ ही देर में वहाँ नगदी और गहनों का ढ़ेर लग गया,फिर उन डाकुओं में से एक आगें आया उसने उस कपड़े की पोटली बाँधी और फिर सभी डाकू एक एक करके अपने घोड़ो पर सवार होकर रात के अँधेरे में ना जाने कहाँ निकल गए और पीछे रह गई केवल धूल....
अब उस मृतक के परिवार जन उसके पास आकर विलाप करने लगें,सारे नौटंकी के जलसे का सत्यानाश हो गया,कस्तूरी को एक भी रूपये का ईनाम नहीं मिला,आज की उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया था ,शामियाने में गैस लालटेन की रौशनी थी और वो मन ही मन डाकुओं की टोली को अपनी मातृभाषा में गरियायें पड़ी थी जो कुछ इस तरह से था ....
वें नासपीटें डाकू का आ गए सो आज एक धेला की कमाई ना भई,ना जाने औरतन का पड़ी रहत है डाकू बनबें की ,भगवान ने औरत को शरीर दओ है तो घर गृहस्थी सम्भालो और बाल बच्चे पैदा करो,ख़सम की सेवा करो,लेकिन नई बंदूक उठाने है इ औरतन को ,डाकू बनने हैं,तुम चाहें डाकू बनो चाहे डकैत,हमे का लेने देने,लेकिन तुमने आज की हमाई कमाई को सत्यानाश कर दओ....
कस्तूरी की बात शामियाने के पीछे से एक नवयुवक सुन रहा था,उसे कस्तूरी की बातें अच्छी लगी तो वो उसके सामने आकर बोला....
कोई मर गया है और तुम ऐसा कह रही हो?
तुमने सब सुन लिया क्या?कस्तूरी बोली।।
तुम इतनी जोर से जो बड़बड़ा रही थी..वो नवयुवक बोला।।
कौन हो जी तुम?जो कस्तूरी को सलाह दे रहे हो,कस्तूरी बोली।।
जी!मैं मोरमुकुट सिंह,वो नवयुवक बोला।।
ना तो तुम मुझे मोर जैसे दिख रहो और ना तुम्हारे सिर पर मुकुट है,ये कैसा नाम हुआ भला...मोरमुकुट...सिंह,कस्तूरी बोली।।
ये सुनकर मोरमुकुट सिंह हँसा फिर बोला....
बात तो तुम्हारी सही है,मोर नाम तो तुम्हारा होना चाहिए ,तुम नाचती ही बिल्कुल मोर की तरह हो,बहुत सुन्दर नाचा तुमने,मोरमुकुट सिह बोला।।
तुम्हें अच्छा लगा,कस्तूरी ने पूछा।।
हाँ!बहुत अच्छा लगा,मोरमुकुट सिंह बोला।।
तो फिर लाओ मेरी बख्शीश,आज मुझे एक भी बख्शीश नहीं मिल पाई,नासपीटे डाकू जो आ गए,कस्तूरी बोली।।
कल दूँगा तो चलेगा,मोरमुकुट सिंह बोला।।
कल की तो कल रह कर ही रह जाती है,फिर कौन याद रखता है,ये ना देने का बहाना है,कस्तूरी बोली।।
गंगा कसम!मैं अपना वादा नहीं भूलता,बस थोड़ा वक्त दे दो,मोरमुकुट सिंह बोला।।
ठीक है,वैसे भरोसा तो नहीं है लेकिन जब तुम इतना कह रहे हो तो भरोसा कर ही लेती हूँ तुम पर,कस्तूरी बोली।।
तो फिर परसों वो पहाड़ वाले शंकर जी के मंदिर में मिलना,मैं तुम्हारी बख्शीश लेकर वहीं मिलूँगा,मोरमुकुट सिंह बोला।।
ठीक है,मैं इन्तज़ार करूँगीं,तुम भूलना मत,कस्तूरी बोली।।
ठीक है तो मैं अभी जाता हूँ,वो मरने वालें मेरी जान पहचान के हैं,मुझे उनके पास जाना होगा,मोरमुकुट सिंह बोला।।
तो फिर यहाँ क्यों खड़े हो इत्ती देर से ....जाओ,कस्तूरी बोली।।
हाँ...बाबा...जाता हूँ और इतना कहकर मोरमुकुट सिंह वहाँ से चला गया....
रात काफी होने को थी,कस्तूरी शामियाने में बैठी घर जाने की बाट जोह रही थी कि कब रामखिलावन आएं उसे घर छोड़ दें,क्योंकि नौटंकी के बाद रामखिलावन ही उसे घर छोड़ने जाता था,क्योंकि रास्ते में काफी शराबी जुआँरी मिलते थे,रामखिलावन भी नहीं चाहता था कि कस्तूरी को कोई कुछ कहें क्योंकि वो उसे अपनी छोटी बहन की तरह ही मानता था,लेकिन रामखिलावन शायद कहीं उलझ गया था इसलिए अब तक ना आ पाया था,कस्तूरी ने श्रृंगार की सभी चीजें उतारकर अपने सादे लहंगा चोली पहन लिए थे और ऊपर से एक शाँल भी ओढ़ लिया था,वो अकेली शामियाने में बैठी बैठी परेशान हो रही थीं.....
कुछ ही देर में रामखिलावन शामियाने के भीतर आया उसे देखकर कस्तूरी बोली...
कहाँ रह गए थे,मैं कब से इन्तज़ार कर रही हूँ?
अरे! जमींदार सुजान सिंह से हम दोनों का मेहनताना ले रहा था,बाद के लिए छोड़ता तो रह जाते रूपऐ,इन रईसों का क्या है वैसें भी ये गरीबों का रूपया बहुत जल्दी भूल जाते हैं,इसलिए देर हो गई,ले चल अपने रूपए रख लें,रामखिलावन रूपये गिनते हुए बोला....
तब ये तो तुमने बहुत अच्छा किया,उस आदमी के खून के चक्कर में आज बख्शीश भी रह गई,कस्तूरी बोली।।
हाँ!सही कहा !अच्छा!चल !अपना सामान उठा,मैं तुझे तेरे घर छोड़कर आता हूँ,ये शामियाना और ये सब सामान मैं बाद में ले जाऊँगा,रामखिलावन बोला।।
और फिर कस्तूरी रामखिलावन के साथ अपने घर चली आई,चाँदनी रात थी इसलिए अँधेरा घना नहीं था,सभी लोंग सो चुके थे,इक्का दुक्का घर में ही उजियारा दिख रहा था,गाँव की गलियाँ सुनसान पड़ीं थीं,कहीं कहीं कुत्ते भौंक रहें थें और बाहर सिर्फ़ वही दिख रहे थे जो शराबी और जुआँरी थे,गली का रेत भरा रास्ता जिस पर चलने पर सर्र...सर्र की आवाज़ आ रही थी..
कुछ देर में कस्तूरी घर पहुँच गई और उसने अपने छोटे से खपरैल वाले घर के किवाड़ो पर लगी साँकल बजाई,उसकी बूढ़ी दादी ने आँखें मिचमिचाते हुए किवाड़ खोले और उससे बोली...
तो तुम आ गईँ,चलो भीतर चल के हाथ मुँह धो लो,तब तक हम तुमाए लाने रोटी परोसे दे रहें हेगें,
ठीक है तो कस्तूरी! और इतना कहकर रामखिलावन चला गया और कस्तूरी भीतर पहुँची....
उसने पहले आँगन में जाकर हाथ मुँह ना धुले,पहले वो उस कोठरी में गई जहाँ उसके भाई बहन कच्ची जमीन पर पयार(धान की सूखी घास)पर चादर बिछाकर और ऊपर से दो चार फटे पुराने कम्बल और शाँल ओढ़कर लेटे थे,कस्तूरी पहले अपने चारों भाई बहनों के पास गई और उनका बारी बारी से माथा चूमा....
तब उसकी दादी पानकुँवर वहाँ आई और उससे बोली....
पहले रोटी खा लों और कुबेरा (देर)ना करों,वैसें भी सबरो खाना ठण्डो हो गओ है।।
हाँ...हाँ..खाएं लेत हैं रोटी,पूरी रात तो पड़ी है..,कस्तूरी बोली।।
बिन्नू...तुम खूब जागती रहिओ, लेकिन हमें सोउन दो, हम ठहरे डुकरिया( बुढ़िया) सो हमें अब आराम करबें की जरुरत है,काहें जे मोड़ा मोड़ी हमें दिनभर हलाकान(परेशान) कर देत हैं,पानकुँवर बोली।।
सो तुम जाओ सो जाओ , हमने तुम्हें सोबें से रोकी है का,कस्तूरी बोली।।
हव(हाँ)...सो ...हम जा रऐ,तुम रोटी खा लइओ और फिर इतना कहकर पानकुँवर अपनी कोठरी में सोने चली गई...
वैसें तो पानकुँवर के पास भी रजाई नहीं है,वो भी कच्ची जमीन पर पयार बिछाकर,उस पर फटा पुराना चादर बिछाकर एक पुराना सा उधड़ा हुआ कम्बल ओढ़ लेती हैं,बुढ़ापे का शरीर है इसलिए ठण्ड बरदाश्त नहीं कर सकती तो रात भर अपनी कोठरी में अँगीठी जलाकर रखती है...
दादी के जाते ही कस्तूरी ने हाथ मुँह धुले और जैसे तैसे खाना निगला और फिर वहीं अपने भाई बहनों के पास अपना शाँल ओढ़कर लेट गई और मोरमुकुट सिंह के बारें में सोचने लगी.....
वो सोच रही थी कितना लुभावना चेहरा था,कितनी प्यारी हँसी थी,कद काठी अच्छी ,गोरा रंग और भरा पूरा शरीर,स्वाभाव का भी अच्छा था,कस्तूरी मोरमुकुट के ख्यालों में ऐसी खो गई कि उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला....
सुबह हुई और उसके सभी भाई बहनों ने उसे जगाकर कहा....
जिज्जी(दीदी)!दूसरे गाँव में मेला लगों है,हमें देखन जाने है।।
ठीक है,तो फिर नहा धो लो ,खा पी लो,फिर सब जने मेलन देखन चल हैं,कस्तूरी बोली।।
और फिर सभी पड़ोसियों की बैलगाड़ी में उनके साथ बैठकर मेला देखने चल पड़े,रास्तें में हरे भरे खेत,कहीं तो पीली सरसों तो कहीं चने के खेत तो कहीं गेहूँ के खेत ,चहचहाती चिड़ियों का झुण्ड और नहर का निर्मल जल,कच्चे रास्तों पर चलती बैलगाड़ी,जो कभी इधर से उछलती है तो कभी उधर से,गाँव की सुन्दरता देखते ही बनती थी,कुछ ही देर में सब मेले पहुँच गए....
तभी कस्तूरी की छोटी बहन मालती ने एक गोदना(टैटू) गोदने वाले देखा और गोदना गुदवाने की जिद करने लगी,कस्तूरी ने उसकी कलाई पर उसका नाम लिखवा दिया,रघु कस्तूरी के छोटे भाई को जलेबी खानी थी तो फिर कस्तूरी ने सभी को पहले जलेबी खिलाई और फिर सबने जमकर मेला घूमा,कस्तूरी ने सबको कुछ ना कुछ दिलवाया लेकिन कस्तूरी ने अपने लिए कुछ ना खरीदा,उसने केवल पाँच छः सस्ते सस्ते शाँल खरीदे,वो भी सबके लिए,शाम होने तक सब मेले से लौट आएं,तब तक पानकुँवर ने सबके लिए खाना तैयार कर लिया था,आज उसने बड़े दिनों बाद आलू-टमाटर की तरकारी बनाई थी,सबने बैठकर खाना खाया और साथ में मेले के किस्से भी सुनाएं....
और फिर अँधेरा होते ही सब लेट गए,आज सभी ने नई शाँल ओढ़ी जिससे उन सबको ठण्ड कम लगी,कस्तूरी ने सभी को कहानी सुनाई और सब सो गए....
सुबह हुई सब उठे और कस्तूरी को याद आया कि आज शाम तो उसे मोरमुकुट ने पहाड़ वाले शंकर जी के मंदिर बुलाया है और फिर कस्तूरी ने घर के कुछ काम निपटाएं और शाम होने का इन्तज़ार करने लगी....
शाम होने को थी और कस्तूरी अपनी दादी से बोली.....
कल रात बाबा भोलेनाथ सपने में आएं हते,सो हम सोच रहे हैं कि पहाड़ वाले शंकर जी के मंदिर चले जाएं दर्शन करबें.....
हाँ...हाँ...चली जा बिन्नू(बेटी)!हमसे का पूछ रही,जा भी कोऊ पूछे वाली बात है,पानकुँवर बोली।।
और फिर कस्तूरी मंदिर पहुँच गई,कुछ देर बाद वहाँ मोरमुकुट सिंह भी आ पहुँचा और उसे एक कपड़े का थैला थमाते हुए बोला....
ये लो तुम्हारी बख्शीश....
कस्तूरी ने फौरन वो झोला हाथ में लिया और उसे खोलकर देखा तो उसमें चाँदी की एक करधनी(कमरबंद )था,उस कमरबंद को देखकर कस्तूरी बोली....
करधनी लाएं हो,वो भी चाँदी की,मुझे इतनी महँगी बख्शीश नहीं चाहिए.....
तुम्ही तो उस रात गा रही थी....
सईयाँ लइदो करधनिया,मगई दो करधनिया,
मैं तोसे बिरजी....
तो तुम मेरे सइयाँ थोड़े ही हो,कस्तूरी बोली....
तो फिर क्या हूँ मैं तुम्हारा? मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
और इतना सुनते ही कस्तूरी शरमा गई.....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा......