Chirag ka Zahar - 1 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 1

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चिराग का ज़हर - 1

इब्ने सफ़ी

(1)

और अब उस इमारत में कोई नहीं रहता था । केवल एक लड़की विस्तृत कम्पाउन्ड के अन्दर बने हुये सर्वेन्ट क्वार्टर में अकेली रहती थी।

भूत ग्रस्त इमारतों के बारे में हजारों कहानियां पढ़ी गई थीं- सुनी गई थीं। एक ही जैसी कहानियां हर भूत ग्रस्त इमारतों के बारे में सुनने में आई थीं, मगर इस इमारत नीलम हाउस की कहानी सबसे भिन्न थी— इसलिये कि यह इमारत नीलम हाउस जो अब बिल्कुल उजाड़ थी केवल दो ही महीने पहले इतनी आबाद और हंगामों से परिपूर्ण थी कि पूरे नगर में इसी का वर्णन होता रहता था ।

किसी उत्सव - किसी तफरीही पार्टी या नीलम हाउस में किसी महत्व पूर्ण व्यक्ति के आगमन के अवसर पर नीलम हाउस को किसी दूल्हन के समान इस प्रकार सजाया जाता था कि रास्ता चलने वाले भी रुक जाते थे और घन्टों खड़े रह कर उसकी शोभा निरखते रहते थे- इतना ही नहीं वरन खुद नगर के रहने वाले भी ऐसे अवसरों पर नीलम हाउस की सजावट देखने के लिये पिल पड़ते थे ।

इस इमारत का नाम नीलम हाउस इसलिये रखा गया था कि इमारत के स्वामी मिस्टर फरामुज को बड़ी लड़की का नाम नीलम था और मिस्टर फरामुज नीलम को बहुत अधिक चाहते थे । कहा जाता या कि वही नीलम एक दिन किसी दुर्घटना का शिकार हो गई थी। इमारत के नाम का विचार रखते हुये नीलम हाउस को आस्मानी रंग में रंगा गया था। बार दीवारी से लेकर इमारत के मध्यवर्ती गुबंद तक का रंग हलका आस्मानी नजर आता था और जब आकाश पर सितारों के दीप जल उठते थे तो नीलम हाउस के अन्दर प्राचीन पाश्चात ढंग की कन्दीले जगमगा उठती थी ऐसी कन्दीले जिनके शो बाल- हरे गुलाबी और नीले थे। उनके अन्दर बहुत छोटे छोटे कुमकुमे लगे हुये थे। दूर से ऐसा ही लगता था जैसे नीलम हाउस किसी सम्राट का राजमहल हो। मगर यह सब आज से दो महीने पहले की बात थी— अब तो नीलम हाउस में केवल एक लड़की थी और वह भी सर्वेन्ट बवार्टर में रहती थी। सूर्य अस्त होते हो वह स्वीच आन कर दिया करती थी । तमाम कम्बीले जल उठती थी— पहले ही के समान रोशनी हो जाती थी — मगर अब उस रोशनी को देखने कोई नहीं आता था। राहगीर जो उसकी छटा देखने के लिये एक जाते थे वह भी जब नीलम हाउस के सामने पहुँचते थे तो नीलम हाउस की ओर देखे बिना जल्द से जल्द उसे पार कर जाने की कोशिश करते थे । उनको चाल में तेजी आ जाती थी— ऐसा लगता था जैसे वह नन्हीं मुन्नी रोशनियां हजारों सांपों की चमकती हुई आंखें हों-जो भी उनके निकट गया वह सांप उन्हें उस लेंगे।

दो महीने पहले नीलम हाउस में नौकरों की पूरी बटालियन थी- मगर अब सब ही नीलम हाउस को छोड़ कर भाग निकले थे— और सच्ची बात तो यह थी कि जब मालिक ही नहीं रह गये थे तो फिर नौकर कैसे रहते - हां यह हो सकता था कि कुछ वफादार नौकर मालिकों के बाद भी रह जाते — मगर जब गुप्त और आकस्मिक मौत ने मालिकों के बाद नौकरों की ओर हाथ बढ़ाया और एक के बाद एक करके तीन नौकर भी मर गये तो शेष नौकरों का साहस छूट गया और वह भाग निकले ।

इस इमारत नीलम हाउस में आज से दो महीने पहले सोलह नौकर इसलिये सर्वोन्ट क्वार्टर्स में हर समय चहल पहल रहती थी। सोलह में दस मर्द थे और छः औरतें थीं—और चूंकि नौकरों को हर प्रकार का सुख प्राप्त या इसलिये वह मालिकों से भी अधिक इश्क करना सीख गये थे उनमें से हर एक उन्हीं छः औरतों से अपने अपने ढंग से इश्क करता था।

नीलम हाउस के मालिक से मिलने के लिये औरतें भी जाती थीं- मालिक की लड़कियों को लिया मी आता बी-रिनेदारों तथा मित्रों को औरतें और लड़कियां भी जाती थीं और उन समस्त जाने बालियों में कुछ ऐसी भी होती थी जिनकी आँखें नोकरों को निमंत्रण दिया करती थीं— मगर नौकर बड़ी सुहृदयता से मुस्कुरा कर उनके निमंत्रण को ठुकरा दिया करते थे ।

यह छः पुरुष नौकर अनपढ़ और गंवार नहीं थे बल्कि शीक्षित और सभ्य थे। तीन ग्रे कुएट थे और तीन मैट्रिक पास थे ।

यही दशा नौकरानियों की थी। जाने वाले मर्द या नीलम हाउस में रहने वाले लोग यदि कभी उन्हें नौकरानी समझ कर अपनी बाचना का शिकार बनाना चाहते थे तो वह भी बड़ीं सुशीलता के साथ उन्हें ठुकरा दिया करती थीं— मगर अपने साथी पुरुषों से न केवल बे तकल्लुफ थीं बल्कि कभी कभी उनके लिये ठण्डी आहे भी भरती थी।

नीलम हाउस का मालिक फरामुज जी था । उसकी यह आज्ञा थी कि अट्ठारह वर्ष से कम आयु की लड़कियां और पचीस वर्ष से कम आयु के लड़के नीलम हाउस में नौकर नहीं रखे जा सकते और साथ ही साथ यह आज्ञा भी थी कि पैंतीस वर्ष से अधिक आयु की औरतें और चालीस वर्ष से अधिक आयु के मर्द नीलम हाउस में नौकर नहीं रह सकते - मतलब यह था कि रखे गये नौकर इन अवस्थाओं पर पहुँचने के बाद रिटायर कर दिये जायेंगे ।

इस आज्ञा के अन्तर्गत हो नौकरानियां और नोकर रखे गये थे, मगर किसी को रिटायर नहीं किया गया। रिटायर करने की नौबत ही नहीं आई थी—क्योकि नौकरों को रखे हुये कुल दो ही वर्ष हुये -और फिर आज से दो महीने पहले घटनाओं का क्रम आरम्भ हो गया था और दो महीने समाप्त होते होते नीलम हाउस खाली हो गया था।

फराज जी पारसी था । सामान्य रूप से हर पारसी खुशहाल होता है। फराज जी भी खुशहाल हो कहा जा सकता था यदि उसे केवल अपनी बीबी -दो लड़कियों और तीन लड़कों का ही पालन पोषण करना होता — मगर ऐसा था नहीं। उसे अपनी चार बहनों वीन भाइयों – भाइयों की बीवियों और बच्चों-दो बहनों के पतियों तथा बहनों के बच्चों का खर्च भी सहन करना पड़ता था- इसलिये वह सदैव आर्थिक संकट में फँसा रहता था। फिर अचानक धीरे धीरे फराज जी की दशा बदलने लगी थी। आमदनी बढ़ने लगी थी— फलस्वरूप पहले जमीन खरीदी गई उसके बाद मकान बनना आरम्भ हुआ और दो वर्ष ही में मकान भी बन गया। कई कारें आ गई एक लड़की शिक्षा प्राप्त करने के लिये अमरीका पहुंच गई और एक लड़का लन्दन चला गया।

आरम्भ में फरामुज जी का विजिनेस बहुत ही साधारण था। प्रकट में केवल कराकरी की एक दुकान थी— मगर कुछ ही दिनों में कई दुकाने खुल गई कराकरी के साथ कपडे का कारोवार भी आरम्भ हो गया या और फराज जी दिन प्रतिदिन आश्चर्य जनक रूप से धनवान होता चला गया था।

मगर अचानक काया पलट हो गई। दो महीने पहले जिस नीलम हाउस में हर समय जिन्दगी हंसती खेलती नजर आती थी आज उसी नीलम हाउस में उल्लू बोल रहा था ।

दो महीने पहले महामारी नहीं आई थी— मगर नीलम हाउस में लोग एक एक करके मरने लगे थे। चोंके तो सभी थे मगर किसी को भी यह नहीं मालूम हो सका था कि मौत का कारण बना है।

नीलम हाउस में अन्तिम मरने वाला खुद फरामुज जा था जो अपने परिवार के सब लोगों की लाशें ठिकाने लगाने के बाद भी नहीं भागा था जब कि उसके सारे रिश्तेदार भाग निकले थे ।

फराज जी की मौत की सूचना पाते ही उसके रिश्तेदार आगये थे-दिन ही दिन में लाश ठिकाने लगा दी गई थी और सन्ध्या होने से पहले ही वह सब फिर नीलम हाउस से भाग निकले थे।

मरने वालों में फराज जी की लड़कियाँ-लड़के-फरामुज की एक बहन और खुद फराज जी थे। बस वही दो बच्चे बच गये थे जो अमरीका और लन्दन में थे।

इस प्रकार केवल दो महीने के अन्दर नीलम हाउस वीरान हो कर रहा गया था— केवल एक नूरा बोड रह गई थी जो प्रतिदिन सन्ध्या को स्वीच आन करके रोशानियां जला दिया करती थी।' नीलम हाउस में जितने लोग मरे थे उन सब ने मरने से पहले एक ही बात बताई थी और वह बात यह थी । 'रात में अचानक किसी समय पूरे नीलम हाउस की रोशनियाँ बुझ जाती और गहरा अंधकार फैल जाता फिर अपने आप एक चिराग प्रकट होता - प्राचीन ढंग का दीप जिसमें कोई वस्तु भरी रहती और एक बत्ती होती—उस चिराग की रोशनी दूसरे दीपों के मुकाबिले में तेज होती। उसो रोशनी में खोफनाक और भयानक परछाई समान आदमी नजर जाते-फिर वह उस कमरे की तलाशी लेने लगते ओर बढ़ता तो वह फूंक मार कर चिराग बुझा दी और उससे निकलने वाला धुआं फैलने लगता । जब कोई उनकी और बढता तो वह फूंक मारकर चिराग बुझा लेते। और उससे निकलने वाला धुआं फैलने लगता।

फिर दूसरे दिन सवेरे वह आदमी मर जाता जिसने उन छाया समान आदमियों का सुराग लगाने की चेष्टा की होती।

फराज जी ने तो रिवाल्वर निकाल कर उन छात्रा समान आदमियों पर फायर भी कर दिये थे— मगर उन परछाइयों का कुछ नहीं बता बिगाड़ था। बल्कि दूसरे दिन सवेरे खुद फराज जी ही मर गया था। वह मौत भी बड़ी भयानक होती थीं— शरीर एक दम से सूज जाता था।

मगर नूरा का बयान इससे बिल्कुल भिन्न था। उसका कहना था कि वह कोठी के अन्दर दिन में भी जाती रही थी और रात में भी- मगर न तो उसे कभी वह चिराग दिखाई दिया था और न कभी कोई भयानक परछाई या कोई आदमी दिखाई दिया था। उसका यह भी बयान था कि कोठी के अन्दर जाते हुये उसे कभी भी भय नहीं मालूम हुआ था-चाहे वह दिन रहा हो चाहे रात रही हो।

फरामुज की मौत की सूचना पाकर उसकी लड़की फिरोजा अमरीका वह से और उसका लड़का शापूर लन्दन से आये और नीलम हाउस ही में ठहरे। शापूर ने इस विचार से भी वीरता का प्रदर्शन किया कि लन्दन में रह चुका था और दूसरे वह हिन्दुस्तानी अन्धविश्वास की हंसी भी उड़ाना चाहता था और सबको कायर और डरपोक सिद्ध करते हुये अपनी वीरता का एलान भी करना चाहता था। उसकी बहन फिरोजा ने भी उसका साथ दिया था।

दिन तो आराम से गुजरा था मगर रात में उसे भी वह सब कुछ देखना पड़ा जो मरने वालों या नीलम हाउस में रहने वालों ने देखा था- मगर उसने उन परछाइयों को टोका नहीं।

सवेरे उसने जो कुछ बताया था वह अत्यन्त आश्चर्य जनक था। उस ने बताया कि उसे उसके पिता फराजजी तथा वह दूसरे लोग नजर आये थे जो मर चुके थे। वह सब हंस रहे थे— अट्टहास लगा रहे थे—ऐसा लग रहा था जैसे वह सब मरे न हों बल्कि जीवित हों। वह अपने बाप की ओर लपका ही था कि चिराग बुझ गया और वह सब अट्टहास लगाते हुये एक ओर चले गये—उसके बाद उसे इसका साहस नहीं हुआ था कि वह भी उधर ही जाता जिधर वह अन्धकार में बढ़ते चले गये थे। वह घबड़ा कर पीछे हट आया था।

और फिर दूसरे दिन दोनों भाई बहन ने कोठी छोड़ दी थी । उसके बाद शापूर ने इसकी कोशिश करनी आरम्भ कर दी कि जो भी नीलम हाउस में रहना चाहे उसे नीलम हाउस न केवल बिना किराये के दिया जायेगा वरना पांच सौ रुपये मासिक उसे खर्च के लिये दिये जायेंगे। इस जमाने में जब कि मकानों की इतनी कमी है-इस घोषणा के बाद तो आदमियों का ताँता लग जाना चाहिये था— मगर आदमियों ने अपनी जिन्दगी इतनी सस्ती नहीं समझी थी कि दौड़े जाते। दो एक जियालों ने साहस किया था मगर रात का दृश्य देखने के बाद वह भी भाग निकले थे।

मगर नूरा जमी रही—उससे कहा भी गया कि वह नीलम हाउस छोड़ दे मगर वह नहीं मानी। उसने खुले शब्दों में कह दिया कि वह भयभीत नहीं है। रह जाती है मौत तो उससे किसी को छुटकारा नहीं- उसके भी दिन जब पूरे हो जायेंगे वह मर जायेगी चाहे नीलम हाउस में रहे या कहीं और जब तक दिन पूरे नहीं होते तब तक वह मरेगी भी नहीं चाहे जहां भी रहे।

और यह बात सच भी थी। नूरा निर्भय होकर नीलम हाउस में रह रही थी और बड़े इत्मीनान से निश्चिन्त हो कर रात में सो जाया करती थी ।

यह सारी बातें पुलिस को आकृष्ट करने के लिये काफी थीं। चूंकि कर्नल विनोद और कैप्टन हमीद नहीं थे इसलिये नीलम हाउस का केस सीनियर इन्स्पेक्टर आसिफ को सौंप दिया गया था ।