गधे हो तो गुजरात के, वरना न हो ..
शानदार, गुड लुकिंग गधे, जिन्हें अंग्रेजी में "Wild Ass" कहा जाता है। अमिताभ बच्चन मानते है कि गुजरात का गधा, ऐसा गधा है, जो सारे गधों का नाम रोशन करता है।
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फिलहाल "नो पॉलिटिक्स, ओनली वाइल्डलाइफ" वाली इस पोस्ट में बात जंगली गधों की, जिनका राज एक वक्त पाकिस्तान के सिंध, राजस्थान, अफगानिस्तान जैसे अखण्ड भारत के विभिन्न इलाक़ों तक फैला था।
मगर वक्त के साथ इनका इलाका सिकुड़ गया और अंतिम ठिकाना गुजरात मे कच्छ के रन में था।
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जंगली गधों का वैज्ञानिक नाम "Equas Hemionous Khur" होता है।
नाम किसी रोमन राजा से कम नही, और शान भी उससे कम नही। कम लोग जानते है कि ये गधा जब दौड़ने पर आए, तो घोड़ो को भी मात कर सकता है।
इसकी स्पीड 60 से 70 प्रतिघन्टा तक जा सकती है। इस तरह वह सामान्य गति से चल रही कार को भी पीछे छोड़ सकता है।
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जंगली गधों की भूख अनंत होती है, सुबह से शाम तक वे चरते हैं। हरी झाड़ी, पत्ते, फल सब कुछ चट कर जाते हैं।
मगर इन्हें मिट्टी का खारापन पसंद है। मीठेपन से इनका गुजारा नही। अब यह जानना जरा कठिन है कि ये खारेपन में पनपते है, या खारापन इनको पनपाता है।
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गधे के शिकार के किस्से कम हैं,पर अकबरनामा में सम्राट अकबर द्वारा जंगली गधों के शिकार का चित्र मिलता है।
इसके बाद तुजके जहांगीरी में जहांगीर द्वारा भी जंगली गधों के शिकार का वर्णन है। ऐसे में मुगलों के प्रति जंगली गधों में गुस्से और नफरत का स्थायी भाव होना लाजिम है।
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गुजरात के गधों में, सुर्रा नाम की बीमारी से बड़ी मात्रा में मारे जाने का इतिहास है। यह बीमारी मक्खियों से फैलती है।
मक्खियों के कारण, एक्सटिंशन याने विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गए गुजराती गधों को बचाना, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन में भारत की अनुपम उपलब्धि है।
1960 के दशक में, जब भारत मे नेहरू युग था, गुजरात मे इन गधों की संख्या में गिरावट नोटिस की गई थी।1969 में हुई गधा गणना में इनकी सँख्या 600 से भी कम मिली।
ज्यादातर इनकी मौत कच्छ के रन में, भोज्य घास भूमि घटने और पानी की कमी से होना शुरू हुआ।
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इंदिरा काल मे, और इसके बाद जंगली गधों के संरक्षण के भरपूर प्रयास हुए। इनके चारे और पानी का प्रबंध हुआ।
इमरजेंसी और उसके बाद के दौर याने 1976-77 में गुजरात मे जंगली गधों की संख्या में आशातीत वृद्धि पाई गई।
इसके बाद जंगली गधे गुजरात के दूसरे जिलों में भी दिखने शुरू हो गए। आज गुजरात के जंगली गधे, आखिरकार खतरे से बाहर आ गए।
अब ये गुजरात से बाहर दूसरे प्रदेशों में भी दिखाई दे जाते हैं। राजस्थान में जंगली गधों को बसाने की योजना पर काम चल रहा है।
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युवावस्था में नर गधे, आम तौर पर परिवार छोड़कर अलग चले जाते हैं। उम्रदराज गधे, मादाएं औऱ बच्चे, संघ में याने झुंड में बने रहते है।
इनके पास जाना, जानलेवा और खतरनाक हो सकता है। इसलिए कि मानवीय सामीप्य में ये हिंसक होते है।
इसके लिए यह अवश्य जान लें, की इस जीन पूल के दूसरी वेरायटी अफ्रीका, मंगोलिया और सीरिया में पाई जाती है।
न जानने वालों को यह भी बताना उचित होगा कि मंगोलिया चंगेज खान के लिए प्रसिद्ध है। सीरिया का खुद गूगल कर लें।
रन तो वीरान है ही।
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कुल मिलाकर गधों को घोड़ो की तरह शांत, या सामान्य गधों की तरह उपयोगी समझना बड़ी भूल हो सकती है। ये दिखते वैसे है, मगर हैं नही।
हालिया बरसों में गुजरात टूरिज्म ने अपने टूर वीडियोज में रन स्थित वाइल्ड आस सेन्चुरी को काफी प्रमोट किया है। कुछ दिन तो गुजारो गुजरात मे, यह कहकर अभिताभ बच्चन करोड़ की सलाह मुफ्त देते है।
गधों को देखने के लिए वहां जाना ठीक है, बनिस्पत उन्हें अपने प्रदेश में बुलाने के। हालांकि बुद्धिमान लोग उन्हें टीवी पर देखकर दूर से नमस्ते भी करते हैं।
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फिर भी उनकी ताकत, एकता, संगठन और जिजीविषा अपने आप मे अतुल्य है। इसलिए आप कह सकते हैं।
अमिताभ बच्चन कहते है- "अगली बार कोई आपको गधा कहे, तो बिल्कुल बुरा न मानियेगा, बल्कि थैंक्यू बोलियेगा। क्योकि - गुजरात का सरताज, इंडियन वाइल्ड आस। गधा कोई गाली नही, तारीफ की थाली है "
अब मेरी नही तो सदी के महानायक की तो माननी पड़ेगी। बोलिये मेरे संग।
गधे हों, तो गुजरात के, वरना न हों ..