Wo Maya he - 55 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 55

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वो माया है.... - 55



(55)

अदीबा अखलाक के केबिन में बैठी थी। अखलाक कुछ चिंता में था। पाँच मिनट हो गए थे पर उसने अभी तक कुछ बोला नहीं था। अदीबा इंतज़ार कर रही थी कि वह कुछ कहे। कुछ देर बाद उसने अदीबा से कहा,
"अखबार के सर्कुलेशन में कमी आई है। हमने जो साइमन मरांडी के बारे में छापा है वह सभी अखबारों में छपा है। इस बार लोगों को हमसे कुछ नया नहीं मिला।"
यह कहकर वह अदीबा की तरफ देखने लगा। अदीबा ने कहा,
"सर अब केस में जो नया मोड़ आएगा हम उसकी जानकारी ही तो लोगों तक पहुँचाएंगे।"
अखलाक यह सुनकर हंस दिया। उसका यह करना अदीबा को अच्छा नहीं लगा। अखलाक उसके चेहरे से समझ गया। उसने कहा,
"क्या करूँ मैं तुम्हारी बात सुनकर हंसी आ गई।"
अदीबा ने कुछ नाराज़गी के साथ कहा,
"मैंने कोई चुटकुला तो नहीं सुनाया सर।"
अखलाक ने भी उसी सुर में कहा,
"जो तुमने कहा वह चुटकुला ही था। खबर रोज़ाना की शुरुआत से तुम साथ हो। जानती हो कि हम लोगों को सिर्फ जानकारी नहीं देते हैं।"
अदीबा भी झुकने के मूड में नहीं थी। उसने कहा,
"पत्रकारिता का मतलब तो यही है कि जो हो रहा है उसे वैसे ही लोगों के सामने लाना।"
यह सुनकर अखलाक एकबार फिर हंसा। अदीबा उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"सर आज आप हंसी मज़ाक के मूड में हैं। लेकिन मेरा मूड बिल्कुल भी वैसा नहीं है।"
वह जाने लगी तो अखलाक ने रोकते हुए कहा,
"बैठ जाओ....मज़ाक के मूड में मैं भी नहीं हूँ। लेकिन तुम बार बार ऐसी बातें कर रही हो। पत्रकारिता की परिभाषा बता रही हो मुझे। परिभाषाएं किताबों में होती हैं। उन्हें याद करके इम्तिहान के पर्चे में लिखते हैं। बाकी दुनिया का काम उन परिभाषाओं से अलग होता है। क्या तुमने अब तक इसी परिभाषा के हिसाब से काम किया है ‌?"
अखलाक का यह सवाल सुनकर अदीबा का गुस्सा ठंडा पड़ गया था। वह अपनी कुर्सी पर बैठ गई। अखलाक ने कहा,
"हम शेफ की तरह हैं जिसे अपनी डिश को सर्व करने से पहले उसकी ड्रेसिंग करनी होती है।‌ चाहें कोई भी फील्ड हो एक ही मंत्र है। क्लाइंट को आकर्षित करो। हमारे क्लाइंट्स पाठक हैं। हमने उन्हें आकर्षित नहीं किया इसलिए पढ़ने वालों की संख्या कम हो गई। अब तुम्हारा काम है जानकारी के साथ साथ ऊपर से मसाला भी छिड़को। जैसे भी हो दिशा से मिलो। उससे मिलकर कुछ ऐसा लाओ जो लोगों को लुभाए।"
अदीबा को भी बात समझ में आ गई थी। दिशा से संपर्क ना कर पाने से वह भी परेशान थी। पर वह जानती थी कि अब कुछ भी करके दिशा से मिलना होगा। उसने उठते हुए कहा,
"ठीक है सर.....अब मैं भी ऐसा मसाला लेकर आऊँगी कि लोग हमारे अखबार को पढ़ने के लिए उतावले रहेंगे।"
अखलाक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अदीबा उसके केबिन से निकल गई।

इंस्पेक्टर हरीश ने देवीप्रसाद से जो भी जानकारी मिली थी सब साइमन को बता दी। साइमन ने उससे कहा कि उसने काफी कुछ पता कर लिया है। कोशिश करे कि डॉ. आकाश कुमार के बारे में कुछ पता करे जिससे उस दिन क्या हुआ था इस बात का सही सही पता चल सके। इंस्पेक्टर हरीश सोचने लगा कि क्या करे जिससे डॉ. आकाश कुमार के बारे में पता चल सके। उसने एकबार कोचिंग सेंटर जाकर यह पता करने का मन बनाया कि उस घर का वर्तमान मालिक कौन है। उसे लग रहा था कि शायद उसके माध्यम से वह सबसे पहले मालिक तक पहुँच सके। पहला मालिक मिल गया तो उससे डॉ. आकाश कुमार के बारे में पता चल सकता है।
इंस्पेक्टर हरीश कोचिंग सेंटर के ऑफिस में पहुँचा। बाहर नेमप्लेट लगी थी 'मैनेजर उदय प्रकाश पाठक'। वह अंदर चला गया। उसे देखकर उदय प्रकाश अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा,
"क्या बात है सर..... किसी केस में कोचिंग का कोई बच्चा लिप्त पाया गया है तो हम ज़िम्मेदार नहीं हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"आप ज़िम्मेदार क्यों नहीं हैं ? आप एक संस्था चला रहे हैं। उसमें पढ़ने वालों की ज़िम्मेदारी आपकी है।"
उदय प्रकाश अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"आजकल बच्चे अपने माँ बाप के नियंत्रण में तो रहते नहीं हैं। फिर हम उन्हें कैसे नियंत्रण में रख सकते हैं। ऐसे में उनकी कोई ज़िम्मेदारी हम पर नहीं है। हाँ कोचिंग के अंदर कुछ गलत बर्दाश्त नहीं करते हैं। अब बाहर जाकर कुछ करें तो हम क्या कर सकते हैं।"
"पाठक जी मैं यहाँ आपकी कोचिंग के किसी बच्चे की वजह से नहीं आया हूँ।"
यह सुनकर उदय प्रकाश ने कहा,
"माफ करिएगा सर.....दो बार ऐसा हो चुका है कि बाहर कहीं मारपीट हुई। उसमें हमारी कोचिंग के भी बच्चे थे। बात हम तक आ गई। यहाँ के अखबार ने कोचिंग का नाम भी घसीट दिया। बस इसलिए हमें लगा....खैर उसे छोड़िए। आप शायद किसी के दाखिले के लिए आए हैं। हमने जो कहा आप उसे....."
उदय प्रकाश चुप ही नहीं हो रहा था। इंस्पेक्टर हरीश ने उसे बीच में रोकते हुए कहा,
"किसी का दाखिला नहीं कराना है। कुछ जानकारी चाहिए थी।"
उदय प्रकाश ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए कहा,
"किस तरह की जानकारी सर ?"
"इस कोचिंग के मालिक आप हैं ?"
"नहीं सर हम मैनेजर हैं। कोचिंग तो हमारे जीजा जी केशव द्विवेदी जी की है।"
"इस मकान के मालिक केशव द्विवेदी जी हैं।"
"हाँ सर....आप क्यों पूछ रहे हैं ?"
"उन्हें बता देंगे। आप बस उनका एड्रेस और नंबर लिखकर दीजिए।"
"सर जीजा जी तो शहर में रहते हैं। यहाँ से दस किलोमीटर दूर है। उनके और भी कारोबार हैं।"
"आप उनका पता और नंबर लिखकर दे दीजिए। उनसे संपर्क करना मेरा काम है।"
उदय प्रकाश ने एक कागज़ पर केशव द्विवेदी का नंबर और पता लिख दिया। कागज़ पकड़ाते हुए पूछा,
"मैटर सीरियस है क्या सर ?"
"बहुत सीरियस है......"
उदय प्रकाश को परेशान देखकर उदय प्रकाश मुस्कुरा दिया। उसने कहा,
"घबराइए मत पाठक जी। आप पर और इस कोचिंग पर कोई आंच नहीं आएगी। बाकी अपने जीजा जी से पूछ लीजिएगा।"
इंस्पेक्टर हरीश कागज़ लेकर ऑफिस से निकल गया। उदय प्रकाश अभी भी परेशान सा बैठा था। उसने फौरन अपना फोन निकाल कर कॉल लगाई।


विशाल ने पप्पू के स्टॉल से खबर रोज़ाना का अंक लिया।‌ वह तालाब वाले मंदिर के चबूतरे पर जाकर उसे पढ़ने लगा। खबर रोज़ाना में पुष्कर की हत्या के बारे में एक ही जानकारी थी कि केस को क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया गया है।‌ क्राइम ब्रांच की तरफ से विशेष जांच अधिकारी साइमन मरांडी को भेजा गया है।‌ साइमन पुष्कर और चेतन की हत्या की जांच करेगा। इसके अलावा साइमन मरांडी के बारे में जानकारी दी गई थी। केस क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया गया है यह पढ़ने के बाद विशाल और अधिक परेशान हो गया था। खासकर साइमन मरांडी की केस सॉल्व करने की काबिलियत के बारे में जो कुछ लिखा था वह उसकी परेशानी को और बढ़ा रहा था।
वह कुछ देर चबूतरे पर बैठा सोचता रहा। कुछ देर बाद उठा और चल दिया। कांस्टेबल अरुण वर्मा दो दिन से विशाल के पीछे लगा था। वह जानता था कि विशाल अपने घर से उल्टी दिशा में जा रहा है। वह भी उसकी नज़रों में आए बिना उसके पीछे पीछे चल रहा था। चलते हुए विशाल पुराने शिव मंदिर के पीछे गया। उसने रुक कर इधर उधर देखा। कांस्टेबल अरुण सही समय पर एक पेड़ के पीछे छुप गया था।‌ विशाल ने अपनी तसल्ली की उसके बाद मंदिर के पिछले हिस्से में बने टीन शेड कमरे की तरफ बढ़ गया। उसने दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खुला तो विशाल जल्दी से अंदर घुस गया। दरवाज़ा बंद हो गया। कांस्टेबल अरुण सधे कदमों से कमरे के पास गया।
कांस्टेबल अरुण अंदर की बात सुनने के लिए इधर उधर देखने लगा। उसे एक खिड़की दिखाई पड़ी। उसके पल्ले में लगा कांच कोने से टूटा था। उसने अंदर झांका। बल्ब की रौशनी में किसी की पीठ दिखाई पड़ी। लाल रंग की टी शर्ट थी। इसका मतलब वह विशाल नहीं था। विशाल ने नीले रंग की कमीज़ पहन रखी थी। लेकिन पीठ के अलावा कुछ दिख नहीं रहा था। यह जानने के लिए कि वह कौन है और विशाल वहाँ क्या करने गया है कांस्टेबल अरुण अंदर से आती आवाज़ सुनने लगा।‌ विशाल की आवाज़ सुनाई पड़ी,
"कौशल तुम समझ नहीं रहे हो। दिन पर दिन खतरा बढ़ रहा है। हमने अखबार में पढ़ा है कि केस क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया है। जांच के लिए नया अधिकारी आया है। साइमन मरांडी नाम है उसका। बहुत तारीफ छपी है उसकी।"
एक दूसरी आवाज़ सुनाई पड़ी,
"मुझे खुद यहाँ से भागना था। पर क्या करूँ उस बेवकूफ ने मोटरसाइकिल ले जाकर टेंपो से भिड़ा दी। मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया। उस सबके चक्कर में मेरा मोबाइल भी टूट गया था। दो दिन भयंकर तकलीफ सहने के बाद दूसरे नंबर से तुम्हें कॉल करके मदद के लिए बुलाया।"
एकबार फिर विशाल की आवाज़ आई,
"हम समझ रहे हैं तुम्हारी समस्या। लेकिन अब प्लास्टर कटने तक यहाँ रहोगे तो खतरा हो सकता है। इसलिए कहने आए हैं कि जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ यहाँ से। हमें बहुत डर लग रहा है। अभी हम जा रहे हैं। लेकिन तुम जितनी जल्दी हो सके निकलो।"
यह सुनकर कांस्टेबल अरुण वहाँ से हटकर फिर पेड़ के पीछे चला गया।‌ कमरे का दरवाज़ा खुला। विशाल बाहर आया। एक और आदमी भी दिखा। उसने चेक वाली शर्ट और बरमूडा पहना हुआ था।‌ कांस्टेबल अरुण समझ गया कि यह आदमी कौशल नाम के उस आदमी के साथ है।‌ विशाल तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया। उसके जाते ही दरवाज़ा बंद हो गया। कांस्टेबल अरुण ने अपना फोन निकाला और सुमेर सिंह को कॉल किया।‌