Destiny in Hindi Motivational Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | किस्मत

Featured Books
Categories
Share

किस्मत

बृज घाट से दिल्ली तक का ढाई तीन घंटे का सफर भी मिलन को इतना लंबा लग रहा था, कि 5 मिनट में बस जो सफर तय करती थी, वह बस का सफर उसे आधे घंटे का लग रहा था, क्योंकि उसके पड़ोस में रहने वाली उसके बचपन की दोस्त नेहा की अपनी कॉलोनी में आखिरी दिवाली थी।

नेहा के पिता और मिलन के पिता एक ही सरकारी दफ्तर में कार्य करते थे और दोनों को ही सरकारी मकान एक ही कॉलोनी में अलॉटमेंट हुआ था।

नेहा के पिता ने अपने गांव का मकान बेचकर दिल्ली में 200 गज जमीन खरीद कर सुंदर मकान बनाया था और वह अपना सरकारी मकान सरकार को जमा करा कर दिवाली के दूसरे दिन अपने नए मकान में शिफ्ट होने जा रहे थे।

मिलन ने बचपन से लेकर 20 वर्ष की आयु तक होली दिवाली दशहरा आदि त्यौहार नेहा के साथ बहुत हंसी खुशी से मनाए थे, लेकिन इस बार उसे अपनी दादी की इच्छा की मैं दिवाली पर उसके दादा जी के नाम का दीपक गंगा में प्रवाहित करने के बाद अपने बच्चों के साथ दिवाली मनाऊंगी, दादी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए मिलन को दादी को गंगा स्नान और स्वर्गीय दादी जी को गंगा में दीपक प्रवाहित करवाने के लिए यूपी के बृज घाट ले जाना पड़ा था।

मिलन को बस ड्राईवर पर उस समय बहुत गुस्सा आता है, जब वह दोपहर के खाने के लिए बस एक ढाबे पर रोक देता है।

मिलन और उसकी दादी सुबह 6:00 बजे सिर्फ चाय पीकर घर से निकले थे और मिलन की मां बहन ने बहुत मेहनत से दादी पोते को सफर में खाने के लिए स्वादिष्ट मूंग दाल की कचौड़ी और आलू टमाटर हींग की सब्जी बनाई थी।

सुबह के भूखे और मूंग की दाल की कचौड़ी आलू टमाटर हींग की स्वादिष्ट सब्जी की वजह से दोनों दादी पोते को और तेज भूख लगने लगती है।

दोनों दादी पोते ढाबे पर साबुन से हाथ धोकर कुर्सी पर बैठकर अपना खाना टेबल पर रखकर जैसे ही खोलते हैं, तो एक बुजुर्ग जिसकी आयु लगभग मिलन के दादा जी की आयु की बराबर होगी मिलन से पूछता है? "बेटा यह बस दिल्ली जा रही है।" और मिलन के जवाब देने से पहले ही हाथ में चाय का कप लिए मिलन के साथ वाली कुर्सी पर बैठ जाता है।

उस बुजुर्ग के पास बैठने के बाद मिलन उसे जवाब देता है "हां यह बस दिल्ली जाएगी।"

जब वह बुजुर्ग उनकी मूंग की दाल की कचौड़ी और आलू टमाटर हींग की सब्जी से नजर नहीं हटाता है, तो मिलन कि दादी उस बुजुर्ग से बिना पूछे दो कचौड़ी थोड़ी सी सब्जी एक कागज की प्लेट में रखकर उस बुजुर्ग को देते हुए उससे कहती है "यह लो घर की बनी मूंग दाल की कचौड़ी खाओ।"

वह बुजुर्ग कचौड़ी की प्लेट पकड़ कर कहता है "वह तो देखने से ही पता चल रहा है कि घर की बनी हुई कचौड़ियां है, मैं भी सफर में बाहर का खाना नहीं खाता हूं।"

और वह बुजुर्ग जब मिलन और उसकी दादी से बात करना शुरू होता है, तो चुप होने का नाम ही नहीं लेता है।

मिलन को उसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे उसे बरसों बाद कोई इंसान मिला है, बात करने के लिए।

हद तो जब हो जाती है, जब वह बुजुर्ग बस की खाली सीटें छोड़कर मिलन और उसकी दादी के साथ वाली सीट पर बैठकर बातें करते-करते चुप नहीं होता है।

रात भर मिलन को सुबह जल्दी उठकर दादी को बृज घाट घूमा कर घर वापस आकर नेहा के साथ दिवाली मनाने की वजह से चैन की नींद नहीं आई थी।

उसे पता था, नेहा इस दिवाली के बाद उसे बहुत मुश्किल से दोबारा मिलेगी क्योंकि नेहा के मां-बाप बड़ा भाई भाभी उसे पसंद नहीं करते थे, वह उसे गैर जिम्मेदार कामचोर समझते हैं। अपने नए घर में मेरा उनको आना बिल्कुुल भी पसंद नहीं आएगा।

और बातें करते-करते वह बुजुर्ग मिर्गी का दौरा आनेे की वजह से अपनी सीट से नीचे गिर जाता है।

दिवाली का त्यौहार होने की वजह से बस में यात्री नाम मात्र के थे, एक व्यक्ति अपने छोटे-छोटे बच्चों और बीवी के साथ था, दूसरे यात्री बुजुर्ग दंपति थे।

इसलिए बस कंडक्टर ड्राईवर से नर्सिंग होम के आगे बस रुकवा कर जवान हष्ट पुष्ट मिलन से कहता है "बाबा को मिर्गी का दौरा पड़ा है। बाबा को सामने वाले नर्सिंग होम में डॉक्टर के पास ले जाओ।"

बस कंडक्टर की यह बात सुनकर वह बुजुर्ग मिलन को अपना दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन नजर आने लगता है।

दो-तीन घंटे के ईलाज के बाद वह बुजुर्ग बिल्कुल तंदुरुस्त हो जाता है और मिलन की दादी से कहता है "मुझे मिर्गी के दौरे की बीमारी बचपन से है, अब बुढ़ापे में इस बीमारी का लंबा ईलाज क्या करवाऊ।"

और मिलन से पूछता है? "दिल्ली में तुम किस जगह जाओगे।" और मिलन से उसके घर का पता सुनकर खुश होकर कहता है "मैं भी उसी कॉलोनी में जाऊंगा।"

मिलन दिल्ली जाने वाली बस रोकने की जगह एक प्राइवेट गाड़ी रुकता है और दिल्ली पहुंच कर जल्दी घर पहुंचने के लिए ऑटो अपने घर तक पहुंचाने के लिए लेता है।

अपनी कॉलोनी तक पहुंचाने का आधा किराया उस बुजुर्ग के जबरदस्ती देने के बाद भी नहीं लेता है।

रात के 12:00 बजे घर पहुंचने के बाद मिलन की नेहा के साथ आखिरी दिवाली मनाने की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है, नेहा के हमेशा के लिए कॉलोनी छोड़कर जाने के दुख की वजह से मिलन अपने कमरे में सुबह देर तक अकेला लेटा रहता है।

और मां के दो-तीन बार बुलाने के बाद अपने कमरे से बाहर आकर उस बुजुर्ग को नेहा के माता-पिता के साथ देखकर चकित रह जाता है, जो बुजुर्ग उनके साथ ढाबे से लेकर रात को 12:00 बजे उनकी कॉलोनी तक साथ आया था।

मिलन की मां मिलन को सबको प्रणाम करने के लिए कहकर रसोई घर में ले जाकर कहती है "बहन के साथ सबके लिए चाय नाश्ता लेकर जा नेहा के माता-पिता नेहा की तेरे साथ शादी करने का रिश्ता लेकर आए हैं।"

मां की यह बात सुनकर मिलन को ऐसा लगता है जैसे उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई हो। मिलन मां से पूछता है? "यह सब हुआ कैसे।"

"नेहा के माता-पिता के साथ जो बुजुर्ग है, वह अब तक 99 शादियां करवा चुके हैं और आज तक इन्होंने जो भी शादी करवाई वह सब सफल हुई है, इन्होंने ही नेहा के माता-पिता की शादी करवाई थी। यह नेहा की मां के गांव के शादी करवाने वाले नामी बिचौलिए लिए हैं, इन्हें तू इतना पसंद आया कि यह तेरी शादी नेहा से करवाना चाहते हैं। नेहा के माता-पिता को उनकी शादी ब्याह की समझ पर पूरा विश्वास है, इसलिए वह नेहा कि तेरे साथ शादी करवाने के लिए तैयार हो गए हैं।"मां कहती है

मिलन अपने मन में सोचता है, अगर किस्मत साथ दे तो सब आसानी से मिल जाता है और किस्मत जब साथ देती है, जब बुजुर्गों का आशीर्वाद साथ होता है।