जीवन ज्योति अनाथआश्रम में कल दो और बच्चों को लाया गया। डरी-सहमी छह साल की बच्ची से जब उसका नाम पूछा गया तो उसने कोई ज़वाब नहीं दिया। फ़िर आठ साल के बच्चे से पूछा गया तो वह भी कुछ नहीं बोला। अनाथआश्रम की मैनजमेंट कमेटी ने सभी को निर्देश दिए कि दोनों बच्चों को कुछ समय दिया जाए। अब दोनों बच्चे एकसाथ गुमसुम बैठे रहते, हालाँकि उनके खाने-पीने का पूरा ख़्याल रखा जाता। उन्हें दूसरे बच्चे अपने साथ खेलने के लिए भी कहते, मगर वह सिर हिलाकर मना कर देते । अब रमा देवी जिनके ऊपर सभी बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी है । उन्होने उन दोनों बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें दीं । फ़िर रमा देवी ने देखा कि लड़का उस छोटी लड़की को कहानियाँ पढ़कर सुना रहा है और वह लड़की मुस्कुरा भी रहीं हैं। अब धीरे-धीरे समय के साथ वे दोनों बच्चे सामान्य होते गए। दोनों बच्चो से दोबारा पूछने पर लड़की ने अपना नाम नोनू बताया और लड़के ने चिंटू बताया।
चिंटू और नोनू अच्छे दोस्त बन गए। और इन दोनों दोस्तों की कहानी भी एक जैसी थीं । उत्तरप्रदेश के एक छोटे से शहर में भूकंप आया था। जिसमे दोनों बच्चों के माता-पिता गुज़र गए । और पुलिस इन्हें जीवन ज्योति छोड़ गई। अभी इन दोनों बच्चों के रिश्तेदारों की तलाश की जा रहीं हैं । यहीं वज़ह है कि सदमे के कारण उन्हें केवल अपने घर का नाम ही याद रहा। डॉक्टर ने दिलासा दिया था कि वक़्त के साथ वे और बेहतर होते जायेंगे ।
जीवन-ज्योति ग़ाज़ियाबाद का बड़ा प्रसिद्ध अनाथालय माना जाता है, यहाँ बच्चों को पालने के साथ-साथ उनके अंदर छुपी प्रतिभा को भी निखारा जाता है । चिंटू नोनू को हर कहानी सुनाने के बाद कहता कि हैप्पी एंडिंग, यह सुनकर नोनू खुश हो जाती । चिंटू उसे ख़ुश देखकर खुश होता । नोनू उससे प्यार से पूछती कि क्या हमारी कहानी की भी हैप्पी एंडिंग होगी । आठ साल के चिंटू को समझ नहीं आया कि हमारी कहानी क्या है, मगर वो कहता, हाँ होगी । दोनों बच्चों के मासूम से बचपन को देखकर रमा देवी की आँखें भर आती । और वह चाहती कि ये दोनों बच्चे एकसाथ अपनी जिन्दगी की कहानी लिखें। मगर होनी को कौन टाल सका है । एक दिन पुलिस ने आकर रामदेवी को बताया कि चिंटू के तो रिश्तेदार उसी शहर में रहते थें, इसलिए सब मारे गए। मगर नोनू के दादाजी के एक दोस्त है, जो कल नोनू को यहाँ से ले जाने के लिए आ रहें हैं । नोनू और चिंटू ने यह सुना तो वे रोने लग गए। नोनू ने मना कर दिया कि वह चिंटू को छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। रमा देवी ने दोनों को प्यार से समझाते हुए कहा कि बेटा, जिनके रिश्तेदार होते हैं । हम उन्हें यहाँ नहीं रख सकते ।
अगले दिन नोनू के नए दादा जी, राधेश्याम, उसे ले जाने लगे तो वह रोते हुए चिंटू को बोली, हमारी कहानी की हैप्पी एंडिंग नहीं हुई, चिंटू । चिंटू ने रोते हुए ज़वाब दिया कि तू फ़िक्र न कर नोनू , हमारी कहानी की हैप्पी एंडिंग होगी। दोनों बच्चों को एक दूसरे से जुदा होते हुए देखक रमा देवी और बाकी बच्चों की आँखों में भी आँसू आ गए।
राधेश्याम उसे मुंबई ले गए। जहाँ वह अपने बेटा-बहू और पोते-पोतियाँ के साथ रह रहे थें । नोनू के दादाजी ने कुछ दिन तो उसकी बात चिंटू से फ़ोन पर करवाई। मगर बाद में नोनू का स्कूल का एडमिशन और अन्य गतिविधियों के कारण यह बातचीत का सिलसिला भी खत्म होता गया । और समय के साथ दोनों का बचपन भी उनसे अलविदा कहता हुआ दूर चला गया ।
अब पूरे बीस साल बीत चुके हैं। चिंटू पढ़ाई में होशियार निकला। स्कॉलर्शिप की बदौलत उसने सिविल इंजीनियरिंग कर ली । आज उसका अपना घर है, गाड़ी है। उसके पास जीवन की हर सुख-सुविधाएँ मौजद है। वह हर हफ़्ते रमा देवी से मिलने जाता और दूसरे अनाथ बच्चों की मदद करने से भी पीछे नहीं हटता । रमा देवी उसकी क़ामयाबी देखकर गर्व महसूस करती । वह चाहती है कि वह अब शादी कर लें। शादी के नाम पर उसे नोनू का ध्यान आ जाता है । उसे मिलने वह मुंबई भी पहुँचा, मगर अब उस पते पर सालों से कोई नहीं रहता। उसने नोनू का पता लगाने की हर संभव कोशिश। मगर कोई फायदा नही हुआ। फ़िर उसने यह सोचकर उम्मीद छोड़ दी कि सभी कहानियों की हैप्पी एंडिंग नहीं हो सकती। अब दो साल और गुज़र गए और एक दिन अपने बॉस के कहने पर वह पुणे में निकिता से मिला। उसकी ख़ुद की आर्ट गैलरी है। निकिता के परिवार में उसका एक बड़ा भाई और भाभी है। उसके बॉस ने पहले ही चिंटू के बारे में उन्हें सब बता दिया था । उन्हें वो पसंद था इसलिए उन्होंने और निकिता ने उससे ज़्यादा कुछ नहीं पूछा ।
आज चिंटू की शादी है। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो अरेंज मैरिज करेंगा । लकवाग्रस्त होंने के कारण रमा देवी उसकी शादी में शामिल नहीं हो पाई । मगर चिंटू ने उनसे वादा किया कि वह निकिता को उनसे मिलवाने जरूर लाएगा । शादी में आए सभी मेहमानों ने दोनों को बहुत सारे तोहफ़े दिए। दुल्हन के जोड़े में बैठी निकिता सभी तोहफ़ो को बड़े ध्यान से देख रहीं है । एक तोहफे पर लिखा है, निर्मल। अरे ! यह तो निर्मल भैया ने अमेरिका से भेजा है । उसने तोहफ़ा खोला और अपने बचपन एक कोलाज में देखकर उसकी आँखे भर आई । तभी चिंटू अंदर आया और अपनी दुल्हन की आँखों में आँसू देखकर बोला, क्या बात है, कौन रुला रहा है, तुम्हे। देखो चिराग, मेरा बचपन उसने कोलाज उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। वह यह देखकर हैरान हो गया कि यह तो उसकी नोनू है और दूसरी तस्वीरों में वह अपने उन्हीं दादाजी और कुछ अन्य बच्चों के साथ खड़ी है । यह कैसे हो सकता है ? क्या मतलब ? तुम मेरी नोनू हो ? नोनू? तुम्हें यह नाम कैसे पता ? इसका मतलब तुम ! तुम ! चिंटू हो ? चिंटू! कहकर वह उसके गले लग गई । पर यह कैसे हुआ ? तुम्हारे दादाजी ? पुणे ? और यह संजीव भैया । मुंबई आने के पांच साल बाद दादाजी का देहांत हो गया और उनके मरने के बाद उनके बेटे अमेरिका जाना चाहते थें पर उनके बड़े बेटे ने मुझे साथ ले जाने से साफ़ इंकार कर दिया । निर्मल भैया, जो उनके छोटे बेटे थें, उन्होंने मुझे अपने दोस्त संजीव भैया को दे दिया । उनकी कोई संतान नहीं थीं इसलिए उन्होंने मुझे आसानी से गोद ले लिया । पर मैं उन्हें पापा तो कह नहीं पाई । हाँ, भैया कहना शुरू कर दिया । इस तरह, मैं मुंबई से पुणे आ गई।
अगले दिन वो रमा देवी से मिलने आश्रम पहुंचे । जब उन्हें पता चला कि निकिता ही उनकी नोनू है तो उन्होंने दोनों को गले लगाते हुए कहा, आखिर किस्मत ने तुम्हारी कहानी की हैप्पी एंडिंग कर ही दी । यह सुनकर तीनो ज़ोर से हँसने लगे ।