teacher bear in Hindi Short Stories by Rajesh Rajesh books and stories PDF | अध्यापक भालू

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अध्यापक भालू

असम के एक घने जंगल में सब जानवरों से ज्यादा समझदार बुद्धिमान बूढा भालू था।

आपस में एक भी शब्द बोले बिना अपनी आंखों और शरीर की भाषा से दोनों मित्र बात करते थे, बूढा भालू और लकड़हारा पन्नालाल।

जंगल से लड़कियां काटकर बेचना ही पन्नालाल लकड़हारे की रोजी-रोटी थी, पन्नालाल लकड़हारा समझदार घरेलू सुंदर पार्वती नाम की महिला का पति था और एक बेटे बेटी का पिता था।

एक बार गर्मियों के मौसम में पन्नालाल लकड़हारा जंगल में लड़कियां काटने नहीं आता है, तो बूढा भालू उसका इंतजार करते-करते थक हारकर पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाता है। उसी समय एक फॉरेस्ट ऑफिसर अपने कर्मचारियों के साथ आकर जंगल का निरीक्षण करने लगता है और जब वह अपने और अपने कर्मचारियों के कार्य से संतुष्ट नहीं होता तो अपने कर्मचारियों से कहता है "काश में जानवरों की भाषा जानता तो दुनिया का सबसे बड़ा फॉरेस्ट ऑफीसर होता है और जानवरों जंगल के लिए ऐसे ऐसे कार्य करता की नाम के साथ-साथ बहुत अधिक पैसा भी कमाता।

और दूसरे दिन जब पन्नालाल लकड़हारा आता है तो बूढा भालू पन्नालाल लकड़हारा एक दूसरे को देखकर बहुत खुश होते हैं।

पन्नालाल लकड़हारा जब लड़कियां काट काट कर इकट्ठा करता था, तब वह भालू चुपचाप उससे थोड़ा दूर बैठकर पन्नालाल लकड़हारे को देखता रहता था। पन्नालाल लकड़हारा भी सोचता था, शायद ज्यादा आयु होने की वजह से भालू की शारीरिक शक्ति कम हो गई है, इसलिए वह बेचारा एक जगह शांत बैठा रहता है।

सर्दियों के मौसम में लड़कियां बेचने से पन्नालाल लकड़हारा अपने परिवार का पालन पोषण आराम से कर लेता था, लेकिन जब गर्मियों के मौसम में उसकी लड़कियां कम बिकती थी, तो लकड़हारे पन्नालाल को परिवार के लिए एक समय के भोजन का इंतजाम करना भी बहुत मुश्किल हो जाता था।

किंतु गर्मियों का मौसम हो चाहे सर्दियों मौसम पन्नालाल लकड़हारा जो भी अपने घर से खाना लता था, तो उस खाने में एक-दो रोटी भालू के लिए अलग से लेकर आता था।

किंतु इस बार गर्मियों के मौसम में उसकी लड़कियां पहले से भी ज्यादा कम बिकती हैं, क्योंकि बहुत से लोगों ने खाना पकाने के लिए गैस चूल्हे खरीद लिए थे, और अन्य कामों के लिए बाजार में सुखी लड़कियों की जगह दूसरी चीजें आ गई थी।

इस वजह से पन्नालाल लकड़हारे की घर की आर्थिक स्थिति पहले से भी ज्यादा दाननीय हो गई थी।

फिर भी लकड़हारा पन्नालाल अपने कम खाने में से बूढ़े भालू को खाना जरूर खिलाता था और एक दिन बूढा भालू लकड़हारे पन्नालाल के पीछे-पीछे यह देखने जाता पन्नालाल लकड़हारा भोजन करने के बाद कुछ देर के लिए कहां गायब हो जाता है और जब बूढा भालू पन्नालाल लकड़हारे को घर का खाना खाने के बाद हरे हरे घास पत्ते खाता देखता है, तो पहली बार तो बूढा भालू कुछ समझ नहीं पता है, लेकिन जब पन्नालाल लकड़हारा रोज स्वयं खाना खाकर और अपने खाने में से थोड़ा खाना भालू को देकर रोज हरी-हरी घास पत्ते खाने जाने लगता है, तो बुद्धिमान चतुर बूढा भालू समझ जाता है कि पन्नालाल लकड़हारा गरीबी की वजह से घर से कम खाना लाता है और उस खाने में से मुझे भी दे देता है, इसलिए वह भरपेट खाना ना मिलने की वजह से भूखा रह जाता है और घास पत्ते खाता है।

यह बात सोचते सोचते बूढे भालू को पन्नालाल की इस समस्या का हाल भी मिल जाता है, क्योंकि उसने कई बार फॉरेस्ट ऑफिसर को यह कहते हुए सुना था कि "अगर वह जानवरों की भाषा जानता तो बहुत नाम पैसा कमाता है।" इसलिए बूढा भालू उसी दिन से पन्नालाल लकड़हारे को जानवरों की भाषा सीखना शुरू कर देता है।

और अचानक सुस्त आलसी स्वभाव से चंचल स्वभाव का हो जाने की वजह से पन्नालाल लकड़हारा समझ नहीं पता था कि बूढा भालू मेरे सामने इतनी चंचलता क्यों दिखता है, लेकिन पन्नालाल लकड़हारे को बूढे भालू के इशारे और अलग-अलग तरह की आवाज़ें निकालकर उसे सुनना बहुत पसंद आता था ,इसलिए पन्नालाल लकड़हारा भी भालू की इन हरकतों की तरफ आकर्षित होने लगता है।

और एक दिन जब पन्ना लाल लकड़हारा जानवरों की भाषा समझने लगता है, तब उसे समझ आता है भालू मुझे जानवरों की भाषा सीखना चाहता था, लेकिन ऐसा वह क्यों कर रहा था यह बात तब उसे समझ में आती है, जब एक दिन फॉरेस्ट ऑफिसर अपने कर्मचारियों के साथ घायल चीते की महरम पट्टी करने के लिए उसे ढूंढ रहे थै।

और वह घायल चीता उनके पास आने की वजह उनसे दूर-दूर भाग रहा था, काफी दिन की कोशिश करने के बाद वह फॉरेस्ट ऑफिसर चीते के ना मिलने की वजह से पूरी तरह निराश हो जाता है और उसी समय लकड़हारा पन्नालाल जानवरों की आवाज मैं चिल्ला कर चीते को अपने पास बुला लेता है, चीता भी पन्नालाल लकड़हारे के एक-एक शब्द और हरकतों से पन्नालाल लकड़हारा के पास आकर पन्नालाल को प्यार करने लगता है।

और फॉरेस्टर ऑफ़िसर के कर्मचारी उस घायल चीते की मरहम पट्टी बहुत आराम से कर देते हैं।

तब वह फॉरेस्ट ऑफ़िसर पन्नालाल लकड़हारे की अपने बड़े अफसरों से सिफारिश करके पन्नालाल लकड़हारे को वन विभाग में नौकरी दिलवा देता है।

वन विभाग में नौकरी लगने के बाद पन्नालाल को अच्छी खासी तनख़ा के साथ रहने के लिए सरकारी मकान भी मिल जाता है।

वन विभाग में नौकरी मिलने के बाद पन्नालाल की गरीबी दूर हो जाती है और जीवन में खुशियां मिलने के बाद पन्नालाल उस बूढ़े भालू को बहुत हार्दिक धन्यवाद करता है और जब भी पन्नालाल को बूढा भालू मिलता था, तो पन्नालाल उसे स्वादिष्ट भोजन अपने घर लाकर खिलाता था।