जूनियर कॉलेज पास करके डिग्री में कदम रखा ही था, ज्यादा कुछ बदलाव नही आया था सिवाय इसके कि, जूनियर कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती करने की उम्मीद में नज़रें बिछी रही और यही उम्मीद पास होके डिग्री में पहुँचा और यहां मेरी उम्मीद को बल मिला जब एक लड़की कई दिनों से लाइन पर लाइन दिए जा रही थी
वो चौथी कतार में सबसे आखरी बेंच पर बैठती और में पहली कतार की दूसरी बेंच से उसे निहारा करता और बदले में वो भी मुझे रिस्पांस देती
मेरे जूनियर कॉलेज के दो साल की तपस्या तीसरे साल में रंग लाई, लड़की खबसूरत थी, बड़ी शालीन और सबसे बड़ी बात उसकी नज़रें मुझ से हट ती ही नही, चाहे वो अपनी सहेलियों से बात कर रही हो या क्लास में सर् के सवालों का जवाब दे रही हो, नज़रें बस मुझ पर।
बस इस पल को खोना नही चाहता था, इसलिए किसी और लड़की को देखना बन्द कर दिया , अब मेरा हर पल सिर्फ और सिर्फ उस लड़की के नाम जिसका नाम मुझे अभी तक पता भी नही था पर जल्द पता करना चाहता था ताकि उसका नाम मैं अपने बेंच पर लिख सकू
कुछ दिन बाद मेरी माँ ने जबरदस्ती मेरा आई चेक अप करवाया क्योंकि माँ के कहे अनुसार मैंने एक रात खाने में नमक की जगह चीनी डाल दी थी
चेक अप में पता चला कि दूर की नज़र कमज़ोर है पर मैं चश्मा लगाकर चश्मिश नही कहलाना चाहता था, क्योंकि उस समय चश्मिश लड़कों से दोस्ती का चलन नही था और मेरी दोस्ती तोह अभी सुरु हुई थी, चश्मा लगाकर अपने इश्क़ को परवान नही चढ़ाना चाहता था
डॉक्टर ने मुझे चश्में की जगह लेन्सेस उपयोग करने को कहा जो उस समय काफी चर्चे में था, मुझे पसंद आया और मैंने लेन्सेस के लिय हाँ कह दी
दूसरे दिन में नए अवतार में कॉलेज पहुँचा, पहली कतार की दूसरी बेंच पर मैं बैठा और वो पहले की तरह चौथी कतार की आखरी बेंच पर, यह क्या वहां कोई और ही लड़की बैठी थी जिसकी एक नज़र मुझपर थी तोह दूसरी नज़र दूसरे कतार में बैठे हुए एक लड़के पर थी,
वो लड़की भेंगी थी
उसकी दोनों नज़रें उत्तर दखिण
मुझे लगा वो मेरी वाली नही है, दूसरा, तीसरा, चौथा दिन बीत गया वही लड़की उस जगह पर बैठी दिखी
मैं फौरन वाशरूम गया और अपनी आंखों की लेन्सेस निकाली और फिरसे क्लास में जा बैठा, यह क्या वही लड़की, ड्रेस का कलर भी वही , मुझे देख रही है ठीक पहले के जैसा
अब समझ में आया कि मेरी दूर की नज़र पहले से ही कमज़ोर थी
खैर मुझे दुख नही था , किसी लड़की ने इसी बहाने मुझे देखा तोह सही वरना कोई अच्छी लड़की भूले भटके कभी हमारी तरफ देखती तक नही थी
उस लड़के से मुलाकात की जिसे उस लड़की की दूसरी निगाह देखा करती थी और वो भी मेरी तरह उस लड़की के लिए कई सपने देख चुका था
उसे एक सचाई बतानी थी... नही नही, लड़की के बारे में नही
मैंने उससे कहा" तुम्हारी आँखों की दूर की रोशनी कमज़ोर है, चश्मा पहना करो"
उसने कहा"तुम्हे कैसे पता चला"
अब मैं उसे क्या क्या बताता की पर्सनल एक्सपीरियंस से कह रहा हूँ क्योंकि उसे भी वही नज़र आ रहा है जो कुछ दिन पहले मुझे नज़र आ रहा था