एक है गिरगिट, और एक उसकी जुबान।
दुन्नो जानलेवा..
बहुत हो गई पॉलिटिक्स। अब नो पॉलिटिक्स, ऑनली वाइल्डलाइफ सेशन में आपका स्वागत है।
इस बार आप गिरगिट के बारे में अपनी जानकारी मुफ्त में बढ़ाने वाले है।
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तो मितरों, अंग्रेजी में पढ़े लिखे लोग गिरगिट को केमेलियोंन भी कहते है।
ये नाम ग्रीक शब्द केमेल (भूमि) और लायन (शेर) से मिलकर बना है। अर्थात केमेलियोंन का मतलब, धरती पे फिरने वाला शेर है।
तो शेर अकेला चलता है, केमेलियोंन भी अकेला ही चलता है। इसे आसपास दूसरे गिरगिट पसंद नही होते।
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सरीसृपों में गिरगिट की चाल अनोखी है।
वो अगले पांवों पर तनकर, सीना उठाकर मटकता सा चलता है। गिरगिट यूं तो कार्डेटा का मेम्बर है, याने रीढ़ की हड्डी होती तो है, लेकिन यूज नही होती।
वो सीधा खड़ा नही होता, और यही उसकी ताकत है। सर झुकाकर, घात लगाकर, मौका पाते ही शिकार करता है।
शिकार का हथियार अविश्वसनीय है, यूनिक है। प्राणी जगत में इस हथियार से हत्या,गिरगिट और मनुष्य ही कर सकते है।
वो हथियार है- जुबान।
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गिरगिट की जुबान उंसके बदन से दोगुनी लम्बी होती है। यूं समझिये की अगर गिरगिट इंसान होता तो उसकी जुबान 12 फ़ीट या तीन मीटर होती।
इतनी लंबी जुबान होने का अहसास बाहर से देखने वाले को हो नही पाता। जुबान मुंह के भीतर रोल होकर रखी होती है।
सही शिकार, सही मौका देखकर तीर की तरह फेंकी जाती है। चिपचिपी, लसलसी,लम्बी जुबान में कीड़े मकोड़े चिपक कर गिरगिट के मुंह मे खिंचे चले जाते है,
निवाला बनने के लिए।
मोरल- कीड़े मकोड़े ही गिरगिट की जीभ में लिपटते है।
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गिरगिट छोटे या मध्यम आकार के होते हैं। कुछ मौका पाकर मुटा भी जाते है। वजन हल्का होता है जो मौका देखकर फुदक कर भागने के लिए उपयुक्त है।
परिवेश में घुल जाना, गिरगिट की सुरक्षा है। इसे केमोफलेजिंग कहते है। असल मे गिरगिट जहां होता है, वैसा बन जाता है। पत्तो में हरा, तनों में भूरा, फूलों में रंगीन।
यूं समझिये कि पूर्वाचल पहुचे तो छोरा, गंगा किनारे वाला दिखेगा मगर पठानों के बीच हो, तो पठान का बच्चा दिखेगा।
गिरगिट का असल रंग, असल पहचान समझना मुश्किल ही नही नामुमकिन भी है।
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मगर ठहरिए। रंग बदलना उसकी स्मार्टनेस नही, भय है।
असल मे उसकी स्किन के नीचे पिगमेंट्स की सतह होती है, जिसके साथ होते है ग्वानीन के क्रिस्टल।
उसकी स्किन फैलती सिकुड़ती है, इससे क्रिस्टलों की सघनता बढ़ती घटती है।इससे गिरगिट पर पढ़ने वाले प्रकाश के प्रकीर्णन की प्रकृति बदल जाती है और दिखाई देते हैं बदले हुए रंग।
पर जैसा कहा मैंने यह उसका गुण कम, भय ज्यादा है।
असल मे गिरगिट एग्जोथर्मिक होता है। याने उसकी खुद की आत्मिक गर्मी कम होती है, और वह अपना जीवन संरक्षित रखने के लिए माहौल की गर्मी पर निर्भर करना है।
ऐसे में उसे माहौल के अनुसार रंग बदल कर शरीर से उसकी गर्मी के अंतर को शून्य करता है। सरलता से ऐसे समझिये की गिरगिट को जीना है तो उसे माहौल की गर्मी चाहिए।
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तो मानवीय गिरगिट अपने जीने के लिए माहौल को गर्म कर देते है। खूनी लाल उन्हें पसंद होता है।
गिरगिटों की ज्ञात जंगली प्रजातियों में से आधी मेडागास्कर में पाई जाती है। और शहरी प्रजातियों में ज्यादातर राजधानी के समीप।
जंगली प्रजातियां इंसानों के लिए खतरनाक नही होती। मगर ट्राई न करें, विशेषकर शहरी प्रजाति से। ये जानलेवा होती है।
उसकी बदलती रँगीन त्वचा से मेसम्राइज्ड जीव, अक्सर उसकी चिपचिपी लम्बी जीभ का वार झेल नही पाते।
गिरगिट का निवाला बनने से बचें। खासतौर पर जब आपकी हैसियत कीड़े मकोड़ों की हो चुकी हो।
क्योकि वो है गिरगिट,
और वो रही उसकी जुबान।
दुन्नो जानलेवा ...