बस अड्डे के पास वाला बाजार गांव से बहुत दूर था, इसलिए पूरा गांव उमेश की दुकान से मिलावटी घटिया किस्म (क्वालिटी) का खाने पीने का सामान लेने के लिए मजबूर था।
गांव के उमेश की दुकान से मिलावटी घटिया सामान खरीद कर खाने के नुकसान के साथ-साथ उमेश की दुकान से गांव वालों को कई सुविधाएं और फायदे भी थे जैसे कि अगर कोई मेहमान देर रात को किसी गांव के व्यक्ति के घर आ जाता था, तो रात को ही गांव का वह व्यक्ति उमेश की बंद दुकान को खुलवाकर सामान खरीद ले लेता था, अगर सामान खरीदने के पैसे भी नहीं होते थे, तो भी दुकानदार उमेश उधार सामान दे देता था और सबसे महत्वपूर्ण बात उमेश की दुकान गांव के कोने पर होने की वजह से उमेश दुकानदार गांव के अंदर हर आने जाने वाले व्यक्ति पर पूरी नजर रखता था, गांव की छोटी से छोटी प्रिया अप्रिय घटना की पूरी जानकारी उमेश दुकानदार के पास आसानी से मिल जाती थी और अचानक किसी को पैसों की जरूरत पड़ जाती थी, तो सारे नहीं तो थोड़े बहुत पैसे उधार देकर दुकानदार उमेश उसकी मदद कर देता था।
इसलिए पूरे दिन में कम से कम एक बार गांव के लोग यह जरूर बोलते थे की गांव के कोने की दुकान पर चले जाओ या गांव के कोने की दुकान पर जा रहा हूं।
गांव के दो लोगों को उमेश की गांव के कोने की दुकान से सबसे ज्यादा फायदा हुआ था पहला था गांव का धनीराम नाम का व्यक्ति क्योंकि जब धनीराम कि बेटी की होने वाली नंनद अपने पति के साथ धनीराम की बेटी को देखने आई थी, तो धनीराम के होने वाले दामाद का जीजा अपनी पत्नी यानी कि धनीराम कि बेटी की होने वाली ननंद से गांव के कोने की की दुकान के पास खड़े होकर कह रहा था "मुझे भी अपने सास ससुर से दो लाख का दहेज मांगना पड़ेगा अगर तुम्हारे मां-बाप ने दहेज देने से इन्कार किया तो तुम्हारे भाई ने जैसे अपनी पहली पत्नी को दहेज ना मिलने के कारण जिंदा जलाकर मार दिया था वैसे ही मैं तुम्हें जिंदा जलाकर मारने के बाद दहेज के लिए दूसरी शादी कर लूंगा।"
अपने पति की यह बात सुनने के बाद धनीराम की बेटी की होने वाली नंनद उससे झगड़ा करने लगती है और दोनों पति-पत्नी झगड़ा करते हुए अपने गांव की तरफ चले जाते हैं।
दुकानदार उमेश की सारी बातों में सच्चाई होती थी, इसलिए धनीराम विदुर दहेज के लालची लड़के से अपनी बेटी की शादी का रिश्ता तोड़ देता है।
दूसरा फायदा मुकेश को हुआ था जब उसकी पत्नी को बेवकूफ बनाकर गांव-गांव घूम कर गरम कंबल बेचने वाली महिला उसके नवजात शिशु को चोरी करके ले जा रही थी, तो उस गरम कंबल बेचने वाली महिला पर शक होने पर गांव के कोने की दुकान के दुकानदार उमेश ने उस महिला को पकड़ लिया था।
उमेश दुकानदार के दो लड़के थे, एक शराबी जुआरी था दूसरा पत्नी के बहकावे में आकर बुढ़ापे में अपने मां बाप को छोड़कर अपनी ससुराल में रहने चला गया था। उमेश दुकानदार की पत्नी को अपने पति बच्चों दुनियादारी से कोई लेना देना नहीं था वह अपने घर से ज्यादा तीर्थ स्थानों पर रहती थी।
एक दिन उमेश की दुकान का मिलावटी सरसों का तेल खाकर आधे से ज्यादा गांव के लोग बीमार हो जाते हैं, तब गांव के लोग उमेश दुकानदार को पंचायत में बुलाकर पंचायत का फैसला सुनाते हैं कि "हम सब मिलकर पहले तेरी दुकान को सील करवाएंगे उसके बाद तुझे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाएंगे।"
"मुझे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने से पहले मेरी एक बात ध्यान से सभी गांव वाले सुन ले मैंने आज तक किसी को उधार सामान देने से मना नहीं किया है और जब किसी ने मेरे सामान का लाभ छोड़ो पूरी कीमत भी नहीं दी, तब भी मैंने उस व्यक्ति की मजबूरी समझ कर उसे चुपचाप सामान दे दिया, बच्चे तो पूरे दिन मेरी दुकान से टॉफी बिस्कुट सुबह से शाम तक मुफ्त में खाते रहते हैं और कभी-कभी तो दुकान के सामान के उधार पैसे मांगने पर लोगों ने मेरे साथ झगड़ा किया मेरे साथ मारपीट भी की, लेकिन तब भी मैंने अपने लाभ की चिंता किए बिना गांव वालों को खाने पीने का सामान देने से मना नहीं किया है क्योंकि गांव में एक भी परिवार भूखा ना सोए और मैं रात दिन गांव की चौकीदारी करता हूं, आपस में किसी का झगड़ा करवाने के लिए चुगली नहीं करता हूं, बल्कि लोगों की बात सुनकर उनको समझा कर उनके दिल से नफरत खत्म करता हूं और जैसे फौजी रात दिन देश की सरहद की रखवाली करते हैं, वैसे ही मैं दिन रात दुकान खोलने के लिए तैयार रहता हूं कि कोई भूखा ना सोए भूखा उठे जरूर और जहां तक खानेेेेे पीने के सामान की घटिया किस्म (क्वालिटी) का सवाल है, तो जब आप मुझे अच्छे बढ़िया सामान के पूरे पैसे दोगे तो मैं बढ़िया किस्म का (क्वालिटी) का खाने-पीने का सामान थोक विक्रेताओं सेेेे खरीद कर लाऊंगा और मेरे साथ थोक विक्रेताओं सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वह खाने-पीने के सामान की पूरी जांच पड़ताल करें। मुझे पता है मेरी ही किस्मत खराब है क्योंकि मैंने अपने बीवी बच्चों गांव वालों का पूरा खयाल रखा पहले मेरे बीवी बच्चों ने मेरा दिल दुखाया आज पूरा गांव मिलकर मुझे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की सोच रहा है।" दुकानदार उमेश पूरे गांव वालों से कहता है
उमेश दुकानदार की यह बात सुनकर गांव के पंच परमेश्वर पूरे गांव से विचार विमर्श करके गांव केेेेेेे कोने की दुकान के दुकानदार उमेश को फैसला सुनाते है कि "एक दुकानदार का फर्ज होता है, अपने लाभ के साथ-साथ ग्राहकों की सेहत का भी ध्यान रखे और तुम इस कार्य में पूरी तरह असफल रहे, लेकिन तुम सब की भलाई की सोच रखते हो और गांव के कोने की दुकान से गांव वालों को खाने-पीने का सामान खरीदने के अलावा और भी कई सुविधाएं और फायदे हैं, इसलिए पूरा गांव मिलकर तुम्हारी दुकान के सुधार के लिए दिन रात जी जान से कार्य करेगा ताकि सबको सेहतमंद खाने-पीने का सामान मिल सके।"
पूरे गांव से मान सम्मान मिलने के बाद उमेश दुकानदार के बीवी बच्चों को भी समझ आ जाता है कि हम गलत थे मेरा पति सही है हमारे पिता सही है।