Freedom in Hindi Horror Stories by Rajesh Rajesh books and stories PDF | मुक्ति

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मुक्ति

कड़ाके की ठंड में दोपहर से चलते-चलते ओंकार की बारात को नई नवेली दुल्हन के साथ ओंकार के गांव पहुंचने से पहले ही रात हो जाती है।

दूल्हे ओंकार का पिता बाबूलाल दूल्हे दुल्हन की बैलगाड़ी खुद चला रहा था।

दूसरे बैलगाड़ी वाले और बाराती ओंकार के पिता से कहते हैं "आगे जो गांव आने वाला है, उसको पार करने के बाद घना जंगल पड़ेगा और सबको पता है कि उस घने जंगल में लुटेरे यात्रियों को लूट लेते हैं और कड़ाके की ठंड शीत लहर कोहरे अंधेरी रात उबड़-खाबड़ रास्ते की वजह से बैलगाड़ियों को भी चलाने में बहुत मुश्किल आ रही है।"

दूल्हे ओंकार के पिता को बैलगाड़ी वालों और बारातियों की यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाती है, इसलिए वह आगे आने वाले गांव के पास वाले जंगल में बारातियों और बैल गाड़ी वालोंं को ठहरने के लिए कहकर कुछ बारातियों के साथ मिलकर गांव की पंसारी की दुकान से खाने-पीने का सामान और गांव वालों से खाना पकाने के लिए बर्तन लेने चला जाता है।

खाने पीने का सामान और पकाने के लिए बर्तन आने के बाद सारे बाराती मिलजुल कर स्वादिष्ट खाना पकाते हैं और खाना खाने के बाद कुछ युवा बाराती जंगल से सुखी लड़कियां लाकर आग जला देते हैं। तेज़ आग जलने के बाद सारे बाराती आग के पास तपने के लिए बैठकर हंसी मजाक की बातें करने लगते हैं।

ओंकार का पिता बाबूलाल ओंकार से कहता है "नई नवेली दुल्हन को बारातियों के सामने लज्जा आ रही होगी, इसलिए तुम दोनों बारात से थोड़ी दूर आग जलाकर बैठ जाओ।"

रात ढालने के साथ-साथ ठंड और बढ़ने लगती है, कोहरे शीत लहर की वजह से ओंकार की नई नवेली दुल्हन माया ठंड से कांपने लगती है।

ओंकार अपनी नई नवेली दुल्हन माया को ठंड से कांपता हुआ देखकर माया से कहता है "मैं अभी जंगल से सुखी लड़कियां जलाने के लिए लेकर आता हूं।"

"बारात में कोई मेरा छोटा देवर नहीं है, उसे जंगल से सुखी लड़कियां लाने भेज दो।"नई नवेली दुल्हन माया कहती है

ओंकार जब अपनी बारात की तरफ देखता है, तो सारी बारात सफर की थकान की वजह से थक हार कर गहरी नींद में सो रही थी।

ओंकार को अकेला जंगल में सूखी लकड़ियां लाने जाता देख माया उससे कहती है "मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं।"

और सुखी लड़कियां इकट्ठा करते समय माया के पैरों के आगे से नाग नागिन का जोड़ा बड़ी तेजी से निकलकर झाड़ियां में जाकर छुप जाता है।

उस नाग नागिन के जोड़े को देखकर माया डर से कांपने लगती है।

माया को डर से इतनी बुरी तरह कांपता हुआ देखकर ओंकार को नाग नागिन के जोड़े पर बहुत गुस्सा आ जाता है, इसलिए वह एक मोटा डंडा तोड़कर नाग नागिन पर हमला कर देता है।

और जब दोनों पति-पत्नी सुखी लड़कियां इकट्ठा करके उस जगह आते हैं, जहां उनकी बरात ठहरी हुई थी, तो यह देखकर दोनों हैरान हो जाते हैं कि ना तो उनकी बारात उस जगह है और ना ही बैल और बैल गाड़ियां ओंकार घबराकर अपने पिता को पुकारने लगता है।

तब अपनी बारात को ढूंढते ढूंढते माया की नजर सामने एक महादेव के प्राचीन मंदिर पर जाती है, वहां एक सिद्ध साधु आग जलाकर बैठा हुआ था।

ओंकार माया अपनी बारात के बारे में उस सिद्ध साधु से पता करने जाते हैं तो तपस्या में लीन बैठा वह सिद्ध साधु ओंकार माया को देखकर उन्हें मंदिर से दूर रुकने के लिए कहता है।

ओंकार वहीं खड़े होकर सिद्ध साधु को अपनी बारात के गुम हो जाने की सारी बात बताता है।

वह सिद्ध साधु ओंकार की बात सुनकर ओंकार और माया को उसी जगह लेकर जाता है, जहां ओंकार ने नाग नागिन के जोड़े पर हमला किया था।

वहां नागिन मरी हुई पड़ी थी, वह सिद्ध साधु ओंकार से कहता है "तुमने नाग नागिन के जोड़े पर डंडे से हमला किया उस हमले में नागिन की तुमने हत्या कर दी और नाग वहां से बचकर भाग गया, तुमने एक प्रेमी जोड़े को जुदा करके बहुत बड़ा पाप किया था, इस पाप के बदले तुम दोनों को मौत की सजा मिली है। उस नाग ने तुम दोनों को डस कर तुम्हारी हत्या कर दी है और तुम्हारी बारात तुम्हारे मृत शरीर को नदी में बहा कर यहां से चली गई है उन्होंने तुम्हारे मृत शरीर को नदी में इसीलिए बहाया कि शायद कोई महान सपेरा तुम्हारे मृत शरीर को देखकर सांप का जहर निकाल कर तुम्हें दोबारा जीवित कर दे।"

उस सिद्ध साधु की यह बात सुनकर ओंकार और माया की आत्माएं उसके चरणों में गिरकर उससे मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगती है।

सिद्ध साधु को पता था कि यह दोनों पवित्र और सीधी सादी आत्माएं हैं, इसलिए वह सिद्ध साधु उन दोनों को प्राचीन मंदिर में लाकर पूजा करके उन दोनों की आत्माओं को मुक्ति दिलवा देता है।