Wo Maya he - 52 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 52

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वो माया है.... - 52



(52)


अपनी बेटी कुसुम की शादी के बाद शंकरलाल ने अपना सारा व्यापार विशाल पर छोड़ दिया था। वह बस अपने और अपनी पत्नी के खर्च के लायक रकम लेते थे। उसके बाद किसी तरह का हिसाब किताब नहीं मांगते थे। विशाल ने भी सबकुछ बहुत अच्छी तरह से संभाल‌ लिया था। ईंट के भट्टे और बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन मैटीरियल के बिज़नेस से अच्छी कमाई हो जाती थी। साथ में विशाल ठेकेदारी का काम भी करने लगा था।
उस समय वह अपनी कमाई में से कुछ पैसे घर खर्च के लिए बद्रीनाथ को देता था। बाकी के पैसे भवानीगंज के सरकारी बैंक में अपने और बद्रीनाथ के ज्वाइंट अकाउंट में जमा करा देता था। लेकिन वह कभी अपनी सही कमाई नहीं बताता था। अपनी कमाई का एक हिस्सा वह गंगाराम बैंक में खोले गए अकाउंट में जमा करा देता था। उसे लगता था कि भविष्य में वह अपने परिवार के साथ अलग जीवन बिताना चाहेगा तो यह पैसे काम आएंगे।‌
कुसुम और मोहित की मौत के बाद विशाल अपने दुख में डूब गया था। उसने अपने ससुर शंकरलाल के बिज़नेस के साथ साथ ठेकेदारी का काम भी देखना बंद कर दिया था। शंकरलाल अपनी इकलौती बेटी और नवासे की अचानक हुई मौत से टूट गए थे। उन्हें और उनकी पत्नी को इतना अधिक धक्का लगा था कि दोनों कुछ सोचने समझने की स्थिति में नहीं रह गए थे। उन लोगों ने कभी कुसुम और मोहित की मौत का सही कारण जानने का प्रयास भी नहीं किया। सदमे के कारण दोनों अधिक दिनों तक जीवित भी नहीं रहे। उनकी मौत के बाद ईंट का भट्टा बंद हो गया। ज़मीन अभी खेती के लायक थी। उस पर विशाल खेती करवाने लगा। बाकी बिज़नेस से जो मिला उसमें से कुछ ज्वांइट अकाउंट में जमा करा दिया। बाकी गंगाराम बैंक के अकाउंट में।‌
विशाल ने अकाउंट को चालू रखा था। समय समय पर उस अकाउंट में आवश्यक पैसे जमा करता रहता था। ज़रूरत‌ पड़ने पर निकाल भी लेता था।‌ वैसे तो उसने अपने आप को हर चीज़ से दूर कर लिया था। पर उसे लगता था कि ज्वाइंट अकाउंट के पैसे वह अपनी आवश्यक्ता के अनुसार खर्च नहीं कर सकता है। जीवन में उसे ना जाने कब पैसों की ज़रूरत पड़ जाए। तब उसके पास अपने पैसे होंगे। जिन्हें वह अपने अनुसार खर्च कर पाएगा। इसलिए उसने गंगाराम बैंक वाला अकाउंट चालू रखा था।
बद्रीनाथ ने आज उससे गंगाराम बैंक के अकाउंट के बारे में पूछा था। हालांकि उसने यह कहकर बात टाल दी थी कि वह अपने दोस्त के कहने पर लोन संबंधी जानकारी लेने गंगाराम बैंक गया था।‌ लेकिन उसका बैंक में अकाउंट था। वह सोच रहा था कि इस बार तो उसने झूठ बोलकर टाल दिया। लेकिन उसके पापा के मन में बात आ गई है तो कभी ना कभी सच सामने आएगा ही। अतः उसे उस खाते में जमा रकम का कोई दूसरा बंदोबस्त करना पड़ेगा।
विशाल एक और बात को लेकर सोच में पड़ गया था।‌ वह सोच रहा था कि इतनी सावधानी के बावजूद भी शिवराज ने उसे बैंक‌ में देख लिया था। कहीं किसी और ने भी तो उसे बैंक में या कौशल से मिलते नहीं देखा। यह सवाल मन में आते ही वह परेशान हो गया था। उसने अखबार में पढ़ा था कि पुलिस उस आदमी को तलाश रही है जो पुष्कर के कत्ल के बाद फोन पर बात रहा था। वह डर गया था। कौशल ने उससे ही बात की थी। उसे पुष्कर के कत्ल के बारे में बताया था। उसे डर था कि कौशल के पकड़े जाने पर पुष्कर के कत्ल का सीधा शक उस पर आएगा।
बैंक अकाउंट का तो वह बाद में भी कुछ कर सकता था। असली परेशानी इस बात की थी कि कहीं कौशल पकड़ा ना जाए। इस बात से उसका दिमाग इतना अधिक परेशान हो गया था कि उससे अपने कमरे में लेटा भी नहीं जा रहा था। एक अजीब सी छटपटाहट उसके मन में हो रही थी। वह उठकर कमरे में टहलने लगा। जब इससे भी मन शांत नहीं हुआ तो उसने सोचा कि बाहर घूम कर आता है।
वह नीचे आया। घर में शांति थी। किशोरी के कमरे से धीरे धीरे भजन गाने की आवाज़ आ रही थी। वह अक्सर बिस्तर पर लेटी हुई कोई ना कोई भजन गाती थीं। विशाल ने बद्रीनाथ के कमरे में जाकर झांका। वह सो रहे थे। उमा भी उनके पास ही लेटी थीं। पता नहीं चल रहा था कि वह सो रही हैं या जाग रही हैं। विशाल ने पता करने की कोशिश भी नहीं की। वह चुपचाप दरवाज़े की तरफ गया। दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया।‌
उमा जब रामायण से लौटी थीं तो किशोरी की तरह उनका मन भी यह सोचकर दुखी था कि उनके घर में अब कभी किसी तरह की खुशी नहीं आएगी। उन्होंने अपने मन की बात बद्रीनाथ से कही तो उन्होंने बाबा कालूराम के बारे में बताया। यह सुनकर उन्हें भी तसल्ली हुई थी कि शायद अब इस घर में खुशियों के आने का रास्ता खुले।
उस दिन बद्रीनाथ ने उन्हें समझाया था कि माया उन लोगों के साथ कुछ नहीं करेगी। उसका मकसद सिर्फ घर की खुशियां छीनना था जो उसने कर दिया।‌ उमा इस बात से तो निश्चिंत थीं कि माया उन लोगों की जान नहीं लेगी। पर इस बात का उन्हें दुख था कि माया के श्राप से मुक्ति दिलाने वाला कोई नहीं है। जब कभी किसी भी तरह से घर में खुशियां आने का अवसर आएगा तो माया का श्राप घर में खुशियां आने नहीं देगा।
उमा का पूरा जीवन अपने परिवार के इर्द गिर्द केंद्रित रहा था। उनकी अपनी व्यक्तिगत कोई खुशी नहीं थी। परिवार की खुशी ही उनकी खुशी थी। जब उनके दोनों बेटे छोटे थे तभी से वह इस बात का सपना देखती रही थीं कि इन दोनों के बड़े हो जाने पर घर का आंगन ढेर सारी खुशियों से भर जाएगा। घर में दो बहुएं आएंगी। उनके पोते पोतियों की हंसी घर में गूंजेगी। लेकिन आज घर का आंगन सूना था। खुशियों की जगह एक मनहूसियत सी छाई रहती थी। बच्चों की हंसी की जगह दिल को चीर देने वाली खामोशी थी। यह बात उन्हें और अधिक खलती थी कि खुशियां मिलने के बाद उनसे छिन गईं। इसके लिए वह खुद को दोष देती थीं। उनका मानना था कि विशाल और माया के मामले में चुप रहना उनकी गलती थी। माया एक अच्छी लड़की थी। उनके परिवार ने उसका अनादर किया था। मन ही मन उसे बहू बनाने की इच्छा रखते हुए भी उन्होंने चुप्पी साध ली थी। उनकी वही चुप्पी माया के श्राप का कारण बनी थी।
वह सोचती थीं कि क्या कभी वह दिन आएगा जब बिना किसी डर के वह घर में खुशियों का स्वागत कर पाएंगी। आज बाबा कालूराम की बात सुनकर एकबार फिर मन में हल्की सी उम्मीद जागी थी। पुष्कर तो चला गया था। अब उनकी उम्मीदें दोबारा विशाल पर टिकी थीं। अब अगर घर गुलजार हो सकता था तो उसके ही कारण।‌
उमा सो नहीं रही थीं। चुपचाप अपनी आँखें बंद किए बिस्तर पर लेटी थीं। मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं कि ईश्वर अब सब सही कर दें। माया के श्राप से इस घर को मुक्ति मिल जाए। विशाल अपना दुख भुलाकर नए सिरे से अपना जीवन जीने के लिए तैयार हो जाए। उन्हें ऐसा लगा जैसे कि मुख्य दरवाज़ा किसी ने खोला है। विशाल अक्सर इस तरह दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल जाता था। उसके बाद देर तक ना जाने कहाँ भटकता रहता था। वह उठकर आंगन में आईं। दरवाज़े तक गईं। हमेशा की तरह विशाल ने दरवाज़ा बाहर से भेड़ दिया था। उन्होंने दरवाज़ा खोलकर बाहर झांका।‌ विशाल जा चुका था। उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।

इंस्पेक्टर हरीश को आधिकारिक रूप से यह सूचना मिल गई थी कि पुष्कर और चेतन की हत्या का केस क्राइम ब्रांच के हवाले किया जा रहा है। इस केस की ज़िम्मेदारी विशेष जांच अधिकारी के तौर पर साइमन मरांडी को सौंपी गई है। अतः इंस्पेक्टर हरीश दोनों हत्याओं का केस सुलझाने में उनकी पूरी सहायता करें।
इंस्पेक्टर हरीश सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ इसी विषय में बात कर रहा था। उसने सब इंस्पेक्टर कमाल से कहा,
"अब दोनों हत्याओं का केस हमारे हाथ से निकल कर क्राइम ब्रांच के पास चला गया। मैंने पूरी कोशिश की थी कि केस में कुछ ऐसा पता कर सकूँ जो महत्वपूर्ण हो और जांच हमारे पास ही रहे।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने महसूस किया कि क्राइम ब्रांच को केस सौंपे जाने को इंस्पेक्टर हरीश अपनी हार की तरह ले रहा है। उसने समझाते हुए कहा,
"सर आपने अपनी जांच में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उस आदमी की तस्वीर आपके पास है जिसे चेतन ने पुष्कर के कत्ल के बारे में किसी से बात करते हुए सुना था।"
"अगर वह आदमी हाथ लग जाता तो इस केस में बड़ी सफलता हाथ लगती। पर अब तो केस संभालने के लिए साइमन मरांडी को भेजा जा रहा है।"
"सर साइमन मरांडी एक काबिल ऑफिसर हैं। उनके नेतृत्व में हम और अच्छी तरह काम कर पाएंगे।"
सब इंस्पेक्टर कमाल की बात सुनकर इंस्पेक्टर हरीश कुछ सोचने लगा। कुछ देर बाद बोला,
"सुना है साइमन बहुत अकड़ू किस्म के ऑफिसर हैं। कैसे निभाएंगे उसके साथ ?"
"सर बहुत से लोग ऐसा कहते हैं। मेरे चचाजात भाई भी पुलिस में हैं। उन्होंने साइमन के साथ काम किया है। उनका कहना एकदम अलग है। वह कहते हैं कि साइमन कम बोलते हैं और बिना लाग लपेट के बात करते हैं। इसलिए लोगों ने उन्हें अकड़ू कहना शुरू कर दिया है। नहीं तो वह एक अच्छे इंसान हैं।"
"चलो फिर देखते हैं कि हम दोनों का अनुभव क्या रहता है। साइमन कल ही इस केस की ज़िम्मेदारी लेने आ रहे हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश खुद को मन ही मन साइमन के साथ काम करने के लिए तैयार करने लगा।