Shakunpankhi - 36 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 36 - मध्याह्न का समय

Featured Books
Categories
Share

शाकुनपाॅंखी - 36 - मध्याह्न का समय

53. मध्याह्न का समय

दक्षिण बिहार के जंगलों, पहाड़ियों को पार करते हुए बख्तियार की खल्जी सेना भाग रही है । बख्तियार ने योजना बनाई कि पूरी सेना कई टोलियों में चले जिससे किसी को पता न चले कि सेना जा रही है। सभी के हौसले बुलन्द हैं अधिक सम्पत्ति मिलने की सम्भावना उनमें नया जोश भर रही है। घोड़ों को दौड़ाते, । लूट में अस्त्र खनकाते अश्वारोही भाग रहे हैं। नदी, नदिकाओं को पार करते हुए अश्वारोहियों की टोलियाँ कभी आगे, कभी पीछे हो जातीं। कभी सरपट भागते, कभी दुलकी चाल का आनन्द लेते ।
घुड़सवारों की दौड़ । सेना कई हिस्सों में बंटी हुई । विन्ध्याचल की पहाड़ियों, जंगलों को पार करता हुआ, वह बढ़ता गया । बख्तियार के साथ कुछ अश्वारोही काफी आगे निकल गए। वे एक क्षण रुके। नदिया के निकट आ गए थे। दोपहर का समय । हल्की हवा बह रही थी। प्रासादों के कंगूरे चमक रहे थे। सेना निकट ही थी पर अलग अलग जगहों पर । किसी को अनुमान नहीं हुआ। अश्वारोहियों के छोटे छोटे समूह इधर-उधर बिखरे हुए। बीस पच्चीस के समूह । लग रहा था घोड़ों के सौदागर हों ।
सेना अपने को छिपाती हुई आगे बढ़ी। लक्ष्मण सेन केवल धोती पहनकर भोजन के लिए बैठ चुके हैं। बख्तियार ने अठारह घुड़सवारों के साथ नगर में प्रवेश किया। भोजन का समय था । पण्यशाला में भीड़ नहीं थी ।
महामात्य सैन्य अभियान में कामरूप की ओर गए हैं। कोटपाल को सूचना मिली- 'घोड़ों के सौदागर बहुत बड़ी संख्या में टुकड़ियों में नगर के आसपास दिख रहे हैं।' कोटपाल स्वयं दौड़े आए। महाराज के पास सूचना भिजवाई। महाराज को आशंका हुई। वे भोजन अधूरा छोड़कर उठ पड़े ।
धोती पहने ही मंत्रणा कक्ष में आ गए। कोटपाल ने जैसे ही बात पूरी की, उन्होंने कहा, 'धोखा हो गया। वे बख्तियार के सैनिक हैं, सौदागर नहीं। यह तो अनुमान था कि बख्तियार आक्रमण करेगा पर इतनी जल्दी असमय, वह भी छिपकर इसकी आशंका न थी। अब समय नहीं है। नगर में सुरक्षा कर्मी कितने होंगे।' 'बहुत थोड़े हैं महाराज, केवल दो सौ सैन्यबल विभिन्न दुर्गों में है, उन्हें सूचित करना होगा।
'समय कहाँ है अब । तत्काल सैन्यबल कैसे इकट्ठा हो सकेगा? जो सैन्यबल हैं, उसी को लेकर युद्ध करना ही एक विकल्प है ।'
“पर थोड़े से सैनिकों को लेकर बख्तियार का सामना करना कठिन होगा महाराज ।'
'कठिन तो है पर जो विकल्प है उसी पर विचार किया जा सकता है।'
'महामात्य भी नहीं हैं। सेना विभिन्न दुर्गों में नियुक्त है। ऐसी स्थिति में महाराज, बिना तैयारी के आपका युद्ध में कूदना संगत नहीं है।'
'तुम्हारी बात युक्तिपूर्ण तो है पर?' 'महाराज, मेरा निवेदन है कि गुप्तद्वार से आप महारानी के साथ धर्व्यग्राम चले जाएँ। हम लोग जो भी रहेंगे, प्राण रहते तुर्कों से युद्ध करेंगे। यदि बच सके तो फिर भेंट होगी, महाराज।' इतना कहते ही कोटपाल महाराज के चरणों में बैठ गया । गुप्तचर ने सूचित किया कि यज्ञ करने वाले ज्योतिषी नदिया छोड़कर कहीं चले गए हैं। 'प्रतोली द्वार पर मारकाट शुरू हो गई है।' एक सेवक दौड़कर आया ।
'महाराज, निवेदन स्वीकार करें। कोई और विकल्प नहीं है।'
'संभवतः ईश्वर की इच्छा यही है'। महाराज ने महारानी को सूचित किया । शीघ्रता से गुप्त द्वार से दुर्ग के बाहर हो गए। कोटपाल ने दुन्दुभी बजवा दी । दुर्ग रक्षक दौड़ पड़े। प्रतोलीद्वार के रक्षक कट चुके थे। बख्तियार की सेना ने नगर को छाप लिया। भयंकर मारकाट में नदिया के सैनिक खेत रहे। शाम होते होते दुर्ग पर बख्तियार का अधिकार हो गया। महाराज लक्ष्मण धर्व्यग्राम सकुशल पहुँच गए पर नदिया छोड़ने का कष्ट उन्हें उद्वेलित करता रहा। जिसके नाम से राजा और सामन्त काँप उठते थे, वह स्वयं अपने प्रिय आवास को छोड़ने के लिए विवश हुआ।
नदिया की वीथियाँ तुर्क सैनिकों से भर गई । पण्यशालाएँ बन्द हो गईं। नागरिक घरों में दुबक गए। मंदिरों की मूर्तियां तोड़ी जाने लगीं। सोने चाँदी की खोज तेज़ हो गई।



54. नमाज़ अदा करते रो पड़ा

बख्तियार ने लखनौती और जाजनगर को विकसित किया। लखनौती बिहार उड़ीसा मार्ग नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त थी। उसने देवकोट में सैनिक छावनी बनाई । बंग विजय से उसके सपनों के पंख लग गए थे। उसने तिब्बत फ़तह कर इस्लाम का झण्डा फहराने की योजना बनाई । यद्यपि उस भूमि की उसे जानकारी नहीं थी, पर सपने उगते रहे।
उसने दस हज़ार अश्वारोहियों तथा इतने ही पैदल सैनिकों को इकट्ठा किया। सैन्यबल को अपनी योजना बताई। सभी उत्साह से भर उठे। अपने सहायकों मोहम्मद और अहमद शेख को लखनौती और जाजनगर की सुरक्षा का भार सौंपकर उसने कामरूप की ओर कूच किया। बख्तियार की सेना में खल्जी ही अधिक थे। दूर दूर से खल्जी सैनिक आकर उसकी सेना में भर्ती होते थे ।
लखनौती और तिब्बत के बीच कुच, मेज़ और कचाइ जातियाँ निवास कर रही थीं। बख्तियार ने कुच जाति के एक व्यक्ति को जिसने इस्लाम कबूल कर लिया था, अपना मार्ग दर्शक बनाया।
कुच मार्गदर्शक बख्तियार की सेना को वर्धनकोट तक ले गया। यह नगर ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा था। नदी का फाट चौड़ा था । लगता था जैसे समुद्र हो । अब नदी को पार करने का प्रश्न था । कोई युक्ति सूझ नहीं रही थी । लट्ठे काटे गए। रस्सियां बँटी गई। नदी के किनारे चलकर कम फाट के स्थानों को चिह्नित किया गया। किसी प्रकार दस दिन में सेना नदी पार कर सकी। नदी के उत्तरी किनारे किनारे सेना आगे बढ़ी। पहाड़ियों के बीच नदी के किनारे ही मार्ग था। कुच मार्ग दर्शक एक स्थान पर ले गया जहाँ नदी पर एक पत्थर का पुल था जो बीस पत्थर के गुम्बदों पर बना था। बख्तियार ने अपने दो अधिकारियों एक तुर्क और एक खल्जी को उनकी सेना के साथ पुल की रक्षा के लिए छोड़ दिया और आगे की कठिन चढ़ाई की ओर बढ़ गया । कुच मार्गदर्शक अपने गाँव लौट गया। पहाड़ों, घने जंगलों, को पार करती हुई तुर्क सेना बढ़ी। पर सैनिक मार्ग की कठिनाइयों से घबड़ा उठे। उन्हें लगा कि हम ऐसी जगह पर आ गए हैं जहाँ से निकल पाना अत्यन्त कठिन है । बख्तियार सब को दिलासा देता रहा। पर सैनिक हताश हो रहे थे। पन्द्रह दिन से वे घने, बीहड़ जंगलों, पहाड़ों के बीच चल रहे थे। सोलहवें दिन वे एक मैदानी घाटी में पहुँच गए। सैनिकों के चेहरे खिल उठे। घाटी में एक दुर्ग था और उसके आसपास कई गाँव बसे हुए थे।
पर बख्तियार की सेना को देखकर सभी ग्रामवासी चौंक पड़े। उन्हें इन सैनिकों का आना, अच्छा नहीं लगा। जैसे ही बख्तियार की सेना ने दुर्ग पर आक्रमण किया, दुर्ग रक्षकों की सेना निकल पड़ी। पास के गाँवों से भी बाँसों के तीर कमान लिए ग्रामवासी दौड़ पड़े। भयंकर युद्ध शुरू हो गया। सूर्योदय से शुरू हुआ युद्ध सूर्यास्त पर बन्द हुआ। बख्तियार के बहुत से सैनिक मारे गए। बहुत से घायल हुए। ग्रामवासी पहाड़ियों जंगलों के बेटे थे। वे स्वयं को सुरक्षित रखते हुए तीर चलाने में कुशल बांस के भाले लिए रेशमी पाग बाँधे ग्रामवासी बख्तियार की सेना पर भारी पड़े। बख्तियार की सेना में खलबली मची हुई थी। इतनी भयानक पराजय कभी बख्तियार की सेना ने देखा नहीं था।
कुछ विपक्षी सैनिक पकड़ लिए गए थे। बख्तियार ने उन सैनिकों को अपने पास बुलाकर पूछा कि सैनिकों की कुल संख्या कितनी है? एक सैनिक ने बताया, 'दुर्ग और आसपास के गाँवों के जो सैनिक हैं, वे सभी आज मैदान में आ चुके हैं। हमारे सैनिक घाटियों, पहाड़ियों, जंगलों में दिनरात खेलते रहते हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि कहाँ से मार कर सकते हैं। आपको और आपके सैनिकों को कुछ भी मालूम नहीं है। आपकी सेना यहाँ से लौट नहीं सकेगी।'
"क्या?'
'हाँ, सबेरे ही करम बातन को आदमी भेजे गए है।'
'क्या मतलब?"
‘यहाँ से पाँच परसंग पर करम बातन का दुर्ग है। दुर्ग तराशे पत्थरों से बना है। उसे भेदना संभव नहीं है। दुर्ग में पचास हज़ार सैनिक हैं तेज, कुशल धनुर्धारी ।' सुबह होते होते वे सब यहाँ पहुँच जाएंगे।
'ऐं!' बख्तियार चौंक पड़ा। बख्तियार के सैनिकों ने हार का स्वाद पहले नहीं चखा था । आज वे पूरी तरह हताश थे। बन्दी सैनिकों की बातें सुनते ही सभी का रहा सहा साहस भी काफूर हो गया । बख्तियार के सहायक इकट्ठे हुए । 'किसी तरह यहाँ से निकल चलें मालिक।' सबने बख्तियार से कहा । बख्तियार भी चिन्तित था । 'जो बच गए हैं, उन्हें बचाना ही होगा।' उसने सोचा ।
'समय बहुत कम है मालिक। सुबह होते ही हम घिर जाएंगे। निकल नहीं सकेंगे।' सहायकों की आँखें भर आईं। बख्तियार ने अमीरों से परामर्श किया। सभी ने लौटने की ही इच्छा व्यक्त की।
'ठीक है, लौटेंगे हम। अगले वर्ष और अच्छी तैयारी कर आएंगे। इन्हें सबक सिखाना ही होगा।' परिस्थितियाँ बख्तियार के खिलाफ थीं।
ग्रामवासियों वनवासियों को सूचना मिली । 'कोई साबुत लौटना नहीं चाहिए।' लोग कहने लगे। ग्रामवासियों के नेतृत्व ने रात में सब को इकट्ठा किया। 'तुम लोग नदी, पहाड़ जंगल से पूरी तरह परिचित हो। मार्ग की सभी घासें जला डालो। जाओ । हमें ऐसा पाठ पढ़ाना है कि ये फिर कभी इधर मुँह न कर सकें।' रास्ते के निकट रहने वाले अपने लोगों से कहो 'घासें और ईंधन जला दें। लौटते समय तुर्क सेना को चारा, भोजन कुछ भी न मिले।' वनवासी रात में ही चल पड़े। अपने लोगों को सूचित करते भागते रहे। थोड़ी देर बाद ही रास्ते में आग, लपटें और धुआँ दिखाई पड़ने लगा। आग धुआँ देखकर बख्तियार की सेना के होश उड़ गए। मैदान फज़िर के पहले ही छोड़ दिया। पर रास्ते में आग और धुआँ ही दिखता। घोड़े भूखे थे। कहीं चरने की घास नहीं। सब कुछ जलता हुआ। किसी तरह कुछ दूर जाने पर शाम हुई। सैनिक और घोड़े दोनों भूखे थे। जो कुछ खाद्य सामग्री साथ थी उसी से काम चलाया गया। आसपास से कोई आपूर्ति संभव नहीं थी । क्षेत्र अनजाना। बख्तियार मग़रिब की नमाज़ अदा करते रो पड़ा ।