Gharaunda in Hindi Adventure Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | घरौंदा

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 68

    ભાગવત રહસ્ય-૬૮   નારદજીના ગયા પછી-યુધિષ્ઠિર ભીમને કહે છે-કે-...

  • મુક્તિ

      "उत्तिष्ठत जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशि...

  • ખરા એ દિવસો હતા!

      હું સાતમાં ધોરણ માં હતો, તે વખત ની આ વાત છે. અમારી શાળામાં...

  • રાશિચક્ર

    આન્વી એક કારના શોરૂમમાં રિસેપ્શનિસ્ટ તરીકે નોકરી કરતી એકત્રી...

  • નિતુ - પ્રકરણ 31

    નિતુ : ૩૧ (યાદ)નિતુના લગ્ન અંગે વાત કરવા જગદીશ તેના ઘર સુધી...

Categories
Share

घरौंदा

शिवानी जब सात वर्ष की थी और उसका भाई शिवम तीन वर्ष का था तो उनके गांव के पास वाली नदी के ऊपर बना पुल टूटने से एक बड़ा हादसा हुआ था, इस दुर्घटना में बहुत से लोगों की जान चली गई थी, इस दुर्घटना में जान जाने वालों में शिवानी शिवम के माता-पिता भी थे।
माता-पिता की मृत्यु के बाद चाचा चाची ने बिना मां बाप के दोनों बच्चों से उनका बड़ा घर छीनकर उन्हें छोटा सा झोपड़ा रहने के लिए दे दिया था।
और दोनों बच्चों को गांव के किसी ना किसी घर से पेट भर कर खाना रोज मिल जाता था।

जब शिवानी 12 वर्ष की हो गई थी तो दूसरों के खेतों में मदद करके घरों में कपड़े बर्तन धो मांज कर गांव वालों की गाय भैंस भेड़ बकरियां चुग कर अपना और शिवम का पेट भरने लगी थी।

शिवानी दिवाली आने से पहले अपने छोटे से झोपड़ी के आगे घरौंदा बनाने की तैयारी शुरू कर देती थी, एक दिन दिवाली से आने से पहले शिवानी अपने घर के आगे घरौंदा बनाने की तैयारी कर रही थी, तो शिवम अपनी बहन शिवानी से पूछता है? "दिवाली पर घर के आगे घरौंदा क्यों बनाते हैं।"

तो शिवानी पहले शिवम को बताती है कि घरौंदा बनाना उसने कहां से सीखा और शिवम को बताती है "मां हमारे बड़े घर के सामने पूरे गांव में सबसे अच्छा घरौंदा बनती थी, मां ने ही मुझे घरौंदा बनाना सिखाया था, इसलिए दिवाली पर मैं जब भी घरौंदा बनाती हूं, तो मेरे बचपन की सारी यादें ताजा हो जाती है मुझे ऐसा लगता है कि दिवाली के त्यौहार पर मां बाबूजी हम दोनों के साथ हैं।"

फिर शिवानी शिवम को बताती है कि "घरौंदा दिवाली पर क्यों बनाया जाता है, यह भी मां ने मुझे बताया था।"

शिवानी शिवम को बताती है कि "भगवान राम सीता और लक्ष्मण जब अयोध्या लौटे थे, तब लोगों ने उनके स्वागत के लिए घरों में घी के दीपक जलाए थे और उसी दिन लोगों ने अपने घरों के आगे घरौंदा भी बनाया था और उसे खूब सजाया संवारा था लोग मानते हैं कि घरौंदा सुख और सौभाग्य के लिए बनाया जाता है, मिट्टी के बने हुए घर में मिठाई फूल खिल और बताशे रखकर लोग उसकी अपने घर की तरह पूजा करते हैं, कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि ऐसे घर बनाने से जिनका घर नहीं या जिनके घर में नकारात्मक शक्तियां हैं, वह दूर हो जाती है, घरौंदा बनाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और साथ ही घर में सुख समृद्धि भी आती है।"

शिवम को जब शिवानी दिवाली पर घरौंदा क्यों बनाते हैं जानकारी दे रही थी तो गांव का प्रधान अपनी पत्नी गांव के कुछ लोगों और शिवानी शिवम के चाचा चाची के साथ आता है।

गांव का प्रधान शिवम को कुछ पैसे देकर दुकान पर चीज खाने के लिए भेज देता है।

शिवानी से अकेले में गांव के प्रधान की पत्नी कहती है कि "मेरे भाई के पास बहुत जमीन जायदाद है, वह कोलकाता में बहुत बड़ा सरकारी अफसर है, लेकिन उसकी कोई औलाद नहीं है। मेरे भाई को पता है, कि तुम दोनों भाई-बहन के माता-पिता का निधन हो गया है और मेरे भाई भाभी ने शिवम को खेलते हुए कई बार देखा है उन्हें शिवम बहुत मासूम और प्यारा बच्चा लगा, इसलिए वह शिवम को गोद लेना चाहते हैं।"

गांव के प्रधान उसकी पत्नी और गांव वालों के समझाने के बाद शिवानी अच्छे भविष्य के लिए शिवम को उनके साथ भेजने के लिए तैयार हो जाती है और शिवानी दिवाली तक का समय उनसे मांगती है, अपने भाई शिवम से बिछड़ने से पहले उसके साथ खूब हंसी-खुशी से दिवाली मनाने के लिए।

और शिवम से झूठ बोलकर प्रधान की पत्नी के भाई भाभी के साथ अच्छी जिंदगी जीने के लिए शिवम को भेज देती है।

वह शिवम को लेकर कोलकाता चले जाते हैं शिवम पढ़ लिख कर सिविल इंजीनियर बन जाता है।

वह बचपन से जवानी तक अपनी बहन शिवानी से मिलने के लिए तड़पता है, लेकिन उसे अपने गांव का नाम पता नहीं मालूम था और उसके नए माता-पिता भी नहीं चाहते थे कि शिवम दोबारा कभी अपने गांव जाए।

सिविल इंजीनियर बनने के बाद शिवम कि पोस्टिंग एक देहाती इलाके में हो जाती है।

शिवम दिवाली आने से पहले एक गांव में सड़क का निरीक्षण कर रहा था, तो उसकी नजर गांव के घरों के आगे बने घरौंदों पर जाती है।

उस दिन अपनी बहन शिवानी की उसे और ज्यादा याद आने लगती है, शिवम अपना काम बीच में छोड़कर घरों के आगे बने घरौंदे देखने में व्यस्त हो जाता है, और घरों के आगे घरौंदे देखते-देखते उसकी नजर छोटे से घर के आगे बने घरौंदे पर जाती है, उस घरौंदे को देखकर उसकी आंखों से आंसू टपकने लगते हैं, क्योंकि वह घरौंदा बिल्कुल ऐसा ही था जैसा उसकी बहन शिवानी बनती थी।

इतने में एक मंदबुद्धि पुरुष उस घर के अंदर से कोई सामान गिरा कर घर से बाहर की तरफ भागता हुआ आता है, उसके पीछे एक महिला तेज तेज चिल्लाते हुए भागते हुए घर से बाहर आती है।

उस महिला को देखकर शिवम उसके पैरों में गिरकर रोने लगता है शिवम रोते-रोते कहता है "मैं तुम्हारा भाई शिवम हूं।"

शिवानी अपने भाई शिवम को गले लगा कर कहती है कि "मेरे भैया तूने इस गरीब बहन को कैसे पहचाना।"

"इस छोटे से घर के आगे इस घरौंदे को देखकर मैंने बहन तुझे पहचान।" शिवम कहता है

शिवम को यह देखकर और दुख होता है कि गांव वालों ने उसकी गरीब मजबूर बहन की शादी मंदबुद्धि पुरुष से करवादी, लेकिन फिर भी दोनों भाई बहन मिलने की खुशी में सारे दुख भूल कर खुशी से दिवाली का त्यौहार मनाते हैं।

शिवम सिविल इंजीनियर बनने के बाद अपने माता-पिता की मौत से सबक लेकर सड़क पुल आदि पूरी ईमानदारी से बनता है।

और अपने भाई शिवम के मिलने के बाद शिवानी के दुख के दिन खत्म हो जाते हैं।