religion and politics in English Anything by ABHAY SINGH books and stories PDF | धर्म और राजनीति

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धर्म और राजनीति

सांझ का झुटपुटा हो चला था।

सत्संग चल रहा था। शिष्यों और श्रद्धालुओं की उस छोटी सी भीड़ के बीच ऊंचे आसन से, धर्मगुरु जीवन की शिक्षा दे रहे थे।

प्रश्नोत्तरी का दौर चल ही रहा था कि धरती हिलने लगी। लोगो को महसूस हुआ कि भूकम्प आया है। जो जहां था, जैसा था उठकर एक तरफ भाग चला। अफरातफरी मच कई।

हर कोई उस पुराने जर्जर भवन से भागकर कहीं दूर सुरक्षित हो लेना चाहता था। गुरु अविचल थे। आंखें मूंद ली और ध्यानस्थ हो गए।
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कुछ देर तक भूकम्प का रेला चला, और फिर सब थम गया। लोगों ने चैन की सांस ली, और गुरु के कक्ष की तरफ लौटे। वे अब भी ध्यानस्थ थे। सब चुपचाप वहीं बैठ गए। इंतजार करने लगे।

काफी देर बाद गुरु ने आंखे खोली और बातचीत वहीं से शुरू की, जहां वह औचक ही रोकनी पड़ी रही। व्यख्यान खत्म हुआ।

एक ने पूछा-गुरुदेव। भूकम्प था, अफरातफरी थी, हम सब भयभीत थे,, भाग निकले। मगर आप नही भागे.. ??

भागा तो मैं भी था.. गुरुदेव मुस्कुराये!!! मगर तुम सब बाहर भागे।

"मैं भीतर की ओर भागा था.."
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धर्म भीतर की ओर भागना सिखाता है। जब आसपास भय का माहौल हो, धर्म कहता है कि भीतर जाओ, पहले अपने भय को जीतो। पहला युध्द उससे लड़ो, यही जिहाद है, यही संयम है, योग है, यम-नियम और अष्टांग मार्ग है।

राजनीति बाहर भागना सिखाती है। वह भय पैदा करती है, उसका चेहरा डिफाइन करती है। एक निशाना तय करती है।

उसके विरुद्ध आपको अपनी फ़ौज का हिस्सा बनाती है। सबक सिखाने, सजा देने का आव्हान करती है।

इस भय की सीढ़ी से, गद्दी मिलती है। इसी भय के परकोटे, सत्ता को सुरक्षित रखते है।

राजनीति को लाभ, भीतर सोल सर्चिंग से नही होता। वह आपको बाहर, सड़क पर, हथियार थमाकर दौड़ायेगी।
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लेकिन लम्बे समय तक भय का माहौल, इंसानी तासीर को बदल देते हैं।

जिस समाज की तासीर हिंसक, संदेही और भीतता की हो जाए, फिर उनका इलाका अंतहीन संघर्षों और अशान्ति का घर बन जाता है। साधारण विषयो पर बड़ी प्रतिक्रिया होती है। अशांति गरीबी और अराजकता लाती है। एक नकारात्मक सर्कल बन जाता है।

मामूली मसला दंगों, प्रदर्शनों, हमलों में बदल जाता है। कश्मीर इसका उदाहरण है। अफगानिस्तान उदाहरण है। दक्षिणपंथी राजनीति में डूब रहा यूरोप भी इसका उदाहरण है।

फ्रांस के मौजूदा हालात, नागरिको की, समाज की तासीर में बदलाव का उदाहरण है। आज का उत्तर प्रदेश, और वहां पैदा हो चुका बुलडोजर सम्प्रदाय उदाहरण है।

मगर राजनीति को यही मुफीद है। तो दिन बाद मणिपुर जलने दिया जाता है, नूह में आग लगाई जाती है।
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फ्रांस के गोरे हों, या मणिपुर के मैतेई, शेष भारत के हिन्दू हों या अफगान पाक के मुसलमान। वे चाहे जितने दुश्मन मार लें, जला दें, काट डालें, निर्भय नही हो सकते। उनका घर शहर देश शांत नही हो सकता।

उसके लिए धर्म और राजनीति दोनो को पहल करनी होगी। भीतर जाना सिखाना होगा।

समझना होगा कि सड़कों की मारकाट, आगजनी, दंगे जो हैं, उनके दिल के भीतर की अशांति, भय का आईना भर हैं।
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भारतीय समाज, इसका मर्म, इसका धर्म मूलतः भीतरी शांति की खोज करने वाला रहा है। इसलिए सोने की चिड़िया, और ज्ञान की भूमि रहा है।

आज इसके टेम्पर में क्रुद्ध भाव बोया जा रहा है। इसे अशान्त और अराजक बनाया जा रहा है। आसपास खोजिए। कौन है, जो आपको बाहर हथियार लेकर दौड़ा रहा है। असल शत्रु वह है।

और कौन आपको भीतर झांकने कहता है।
मित्र वही है। गुरु वही है।।

बुद्ध भी वही है।
❤️