Sabaa - 31 in Hindi Philosophy by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सबा - 31

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सबा - 31

राजा को बड़ा अजीब सा लगा। यदि वो अपने देश में होता तो शायद अपने दोस्तों के साथ मिल कर खूब हंसता। गांव में होता तब तो हालत खराब ही हो जाती। लेकिन वो अपने घर - गांव से बहुत दूर, समंदर पार एक ऐसे देश में था जहां उसे जानने वाला दो लोगों के सिवा कोई न था। और यहां तो सालू भी नहीं था।
कीर्तिमान को देख कर राजा यकायक ये तय नहीं कर पा रहा था कि वह उसके हुलिए पर हंसे या उसकी वेदना से द्रवित होकर उसे गले से लगा ले।
कीर्तिमान इस वक्त बहुत ही अजीब सा लग रहा था। उसने लड़कियों की वेश - भूषा धारण कर रखी थी। और लड़कियां भी वो भारतीय संस्कारी देवी स्वरूपा लड़कियां नहीं, जिनके पहनावे की दाद सारी दुनिया देती है, बल्कि वो जो पुरुषों को खुश करने के लिए, उनके हाथ का खिलौना बनने के लिए अंधेरी रात के बियाबानों में कुछ भी पहन कर भटका करती हैं। उन्हें मालूम होता है कि बदन पर चाहे जो भी धारण करो, चंद पलों के बाद तो पानी के बुलबुलों सा फूट कर हट ही जाना है और फिर तो वही लिबास काम आयेगा जो पैदा होते वक्त विधाता ने पहना कर भेजा है।
कीर्तिमान का चेहरा गुलाबी गालों पर बड़ी आंखों की काली सुरमई लकीरों के साथ कुछ सुनहरे- रुपहले कणों से सजा होने पर भी दारुण, कातर, निरीह सा लग रहा था।
उसकी जांघें अनावृत थीं लेकिन उन पर केशों का एक रेशा तक दिखाई न देता था। उन्हें बड़े करीने से साफ़ किया गया था।
उसके वक्षों का उभार राजा की निगाह में नकली था क्योंकि राजा पिछली कई रातें इसके साथ गुजार चुका था और जन्नत की हकीकत से वाकिफ था।
उम्र भी क़रीब पांच- सात साल कम कर ली गई थी गोया खरीदारों को चढ़ती उम्र के अहसास चढ़ी वयस्कता के बनिस्बत ज़्यादा कीमती नज़र आते हैं।
राजा कुछ न बोला।
लेकिन चौंकने की असली बात तो अब थी जब कीर्तिमान ने राजा के सामने उसके पहनने के लिए वस्त्र लाकर रखे।
ये भी लड़कियों के ही कपड़े थे। शोख चटख रंगों के झिलमिलाते कपड़े।
- ये पहन लो, तैयार हो जाओ तुम भी। कीर्तिमान ने कहा।
राजा को ये कोई मज़ाक जैसा लगा। कुछ हंसते हुए बोला - ये क्या भैया? किसी नाटक नौटंकी में ले चल रहे हो क्या?
- पहनो तो, देखना तुम मुझसे भी ज्यादा हसीन लगोगे? कीर्तिमान ने एक आंख हल्के से दबा कर कहा।
- पर क्यों? राजा की आवाज़ अब कुछ रुआंसी सी हुई। उसे ये समझ में नहीं आ रहा था कि परदेस में ऐसा कोई मज़ाक कहीं उसके लिए भारी न पड़ जाए।
उसने अपने चेहरे पर हाथ फिरा कर देखा जहां दो दिन पहले शेव कर लेने के बावजूद कुछ हल्के से रोंए महसूस हो रहे थे।
लेकिन राजा ने ये भी देखा कि कीर्तिमान किसी मज़ाक के मूड में बिल्कुल नहीं है। वह पूरी गंभीरता और जल्दबाजी से राजा को तैयार हो जाने का निर्देश दे रहा था।
राजा अच्छी तरह जानता था कि इस वक्त वो कीर्तिमान के साथ उसके घर में है और कीर्तिमान उससे कुछ वर्ष उम्र में भी बड़ा ही है। दूसरे कीर्तिमान की शान शौकत और रईसाना रंग ढंग राजा देख चुका था। उसे चुपचाप कीर्तिमान की बात मान लेने में ही भलाई नज़र आई। वह भी बेमन से ही सही, पर गंभीर हो गया।
फिर भी उसने एक बार हल्का सा प्रतिरोध किया। बोला - हम कहां चल रहे हैं? मैं ऐसे ही चलता हूं न!
कीर्तिमान संजीदगी से बोला - ऐसे नहीं जा सकते! वो लेस्बियन क्लब है, महिलाओं के महिलाओं से लव का अड्डा। हेलेना...
- ओह! तो हम वहां जा ही क्यों रहे हैं? राजा को अचरज हुआ।
- तुम्हारे सालू अंकल का आदेश है कि तुम्हें वो दिखाया जाए। कीर्तिमान ने लापरवाही से अपने बालों में एक खूबसूरत क्लिप लगाते हुए कहा।
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