- ये कैसे हो सकता है? बिजली लगभग चिल्ला पड़ी।
- कैसे हुआ, ये कहानी तो सिर्फ़ तुम बता सकती हो, मैं तो बस इतना कह सकती हूं कि ऐसा हो गया है। अभी भी वक्त है अगर तुम संभालना चाहो। न चाहो तो ये भी तुम्हारी प्रॉब्लम है।
- मगर...
- अगर मगर तुम जानो। हां, अगर किसी मदद की ज़रूरत पड़े तो मुझे बता देना। कह कर गुस्से में लगभग पैर पटकती हुई डॉक्टर भीतर अपने चैंबर की ओर चली गईं। वे अभी भी इस बात को लेकर अपमानित सा महसूस कर रही थीं कि उन्होंने किसी पेशेंट से उसकी बॉडी चैक करने के बाद अपना डायग्नोसिस बताया और मरीज़ ने पलट कर सवाल उठा दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है? कोई डॉक्टर ये कैसे बता सकता है? उसका काम तो यही बताना हुआ कि रोगी को क्या हुआ! और फिर उसका इलाज..।
बिजली कुछ देर तो जड़वत बैठी रही किंतु चमकी के झिंझोड़ने पर उसकी चेतना लौटी।
दोनों बहने खामोशी से बाहर निकल आईं।
कुछ - कुछ चिढ़ चमकी को भी हो रही थी क्योंकि बिजली को डॉक्टर के पास लाकर चमकी ने ही तो डॉक्टर को बताया था कि इसके पेट में दो दिन से दर्द हो रहा है। उसे क्या मालूम था कि बिजली ने उससे इतनी बड़ी बात छिपाई। वो तो बहन को एक दो दिन दर्द से छटपटाते देख कर डॉक्टर के पास ले आई थी।
कुछ देर की चुप्पी के बाद वो भी बिजली को आड़े हाथों लेते हुए बोल पड़ी - उस लड़के ने तेरी साइकिल की चेन ही चढ़ाई थी कि और भी कुछ चढ़ाया? कम से कम मुझे तो बताती।
इस कटु उक्ति से बिजली तिलमिला उठी।
बिजली भी तो अपमान से भरी बैठी थी। एक तो डॉक्टर ने उसके पेट की जांच कर के कह दिया कि उसे गर्भ ठहर गया है। ऊपर से ये चमकी जले पर नमक छिड़क रही है!
लेकिन खुद बिजली को अब तक भी डॉक्टर की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। सच में ऐसा कैसा हो गया। ऐसा नहीं था कि राजा ने इतने दिनों में उसके साथ रहते हुए कोई सीमा पार नहीं की थी। कभी कभी उससे मिलने के कुछ कमज़ोर क्षणों में दोनों ने जीवन साथी बनने का भरोसा एक दूसरे को देते हुए एक दूसरे के तन पर अपना पूरा अधिकार जताया ज़रूर था लेकिन राजा ने हर बार कोई दवा उसे देकर ये भरोसा भी उसे दिलाया था कि इससे कुछ नहीं होगा।
तो क्या राजा ने उसे दगा किया? या फ़िर राजा खुद ही अनाड़ी निकला जो किसी दोस्त की अधकचरी सलाह पर विश्वास कर बैठा। देखो कैसे बिजली का शुभचिंतक बन कर उससे खिलवाड़ कर गया।
हर बार लड़की ही क्यों छली जाती है? कुदरत भी बेईमान है। आदमी औरत दोनों के एक से कुसूर में औरत को ही संगीन सजा सुनाती है। उस राजा का तो कुछ नहीं बिगड़ा। न जाने कहां घूमता फिर रहा है आराम से। बिजली की ज़िंदगी के ही दीपक बुझ गए।
और क्या? बुझ ही तो गए। अब किस - किस को क्या क्या जवाब देगी। सबसे पहले तो बापू ही उसका गला घोट देंगे।
चमकी और मां तो चलो औरत हैं। उफनेंगी, बरसेंगी, कोसेंगी... पर फिर हार के मदद करने लगेंगी, पर बापू का क्या? अड़ोस पड़ोस का क्या? और मैडम जी का क्या?
कहां तो वो कह रही थीं कि लड़की को शादी ही जल्दी नहीं करनी चाहिए और कहां अब बिजली ये करके उनके सामने जायेगी। कैसे नजरें मिलाएगी उनसे?
क्या करे? क्या फिर भाग जाए घर से? शाम के इस धुंधले अंधेरे में चमकी से कोई झूठ - सच कह कर भाग निकले?
पर भाग कर जायेगी कहां? उसका कौन है जो ऐसी मुसीबत में उसे सहारा देकर इस कष्ट से उबार लेगा! जो था, उसका भी तो कोई अता - पता नहीं, कहां है। यूं बिजली ने उसका घर - गांव देखा तो है? सब घर वालों से एक बार मिल भी आई है। पर अब इस हाल में कौन उसे गले से लगाएगा?
तो क्या कोई नदी- नाला देखे?