SHREERAM KI SHAKTI POOJA in Hindi Motivational Stories by ANKIT YADAV books and stories PDF | श्रीराम की शक्ति पूजा (कथासार)

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श्रीराम की शक्ति पूजा (कथासार)

राम की शक्ति पूजा
[ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ]
[ Complete detailed Storyline))

सूर्य अस्त हो गया है। आज का दिन अमर हो गया, राम – रावण के युद्ध मे अभी तक किसी की पराजय नही हुई। तेज हाथो से तीखे बाणों मे तीर छुड़ता हुए वेग से युद्ध जारी है। सैकड़ो भाले युद्ध में फेक जा रहे हैं। सेनाओ की आवाज से नीला आकाश भर गया है। क्षण क्षण में planning बदल रही है। राक्षसों के विरुद्ध युद्ध लड़ने वाला वानर समूह गुस्से से हुंकार भर रहा है पर इसे कुछ हो नहीं रहा । राजीव नयन / राम की आंखों से आग बरस रही, यह आग हताशा वाली क्योंकि उनका बाण लक्ष्य तक नहीं जा रहा क्योंकि लाल आंखों वाला रावण उनसे बहुत बड़ा है। लंकापति रावण के गुस्से से वानर तहस नहस है। राम बिना पलक झपकाए विश्व को जीतने वाले बाणों की विफलता देख रहे हैं। राम लहू लुहान है पर मुट्ठी में हथियार कसकर पकड़ा है व उंगलियों से खून बह रहा है। वानर बेचैन है। सारे सुगरीव, अंगद,नल आदि बेहोश है। लक्ष्मण जी रोक दिए गए। जामवंत भी कुछ नहीं कर पा रहे। गजरते हुए प्रलय के समुद्र की तरह हनुमान गरज रहे, अकेले आत्मविश्वास से भरे है। हनुमान विशालकाय जवाला पर्वत समान प्रतीत हो रहे। जानकी के डरे हुए ह्दय मे आशा भर रावण से बचाव की केवल हनुमान से आशा है।
युद्ध विराम हुआ। दोनों सेनाएँ लोटी। राक्षस Celebrate कर रहे है। राक्षस उछल रहे हैं तो पृथ्वी टल मल हो रही है। इतना चिल्ला रहे कि आसमान विकल है। वानर सेना दुखी है, वानर सेना राम के चरण चिन्ह देखते हुए शिविर की ओर चल रहे है। ऐसे ही बौद्ध संयासी भी चलते है पर असंगठित रूप मे है। वातावरण शांत है। राम का मुख संध्या मे कमल के फूल की भाँती झुका है। लक्ष्मण भी दुखी है । राम सबसे आगे हैं ब राम के चरण कमल है। धनुष की डोरी खुली है। राम के बाल को बंद ले तो मुकुट सामन लगता है। राम ने बाल खोल दिए हैं पीठ तक बाल फैल गए,बाल छाती तक फैल गए, राम के बाल बहुत गहरे हैं। जब उनके बाल फैले तो लगा कि दुर्गम पर्वत पर रात का अंधेरा फैल गया। राम का चेहरा सांवला श,बाल काले, अमावस की रात,तो आंखों की चमक से राम केवल दिखाई पड़ते हैं।
सब पर्वत के शिखर पर पहुंचे। सुबह की रणनीति के लिए जूटे सब। यहां एक और व्यक्ति है जो प्रलय प्रवाह देख रहा था।
राम सफेद पर्वत पर हैं। हनुमान पानी राम के पास लेकर आए। हनुमान प्यारा व चालाक है क्योंकि उनको राम के पास जाने का बहाना चाहिए। बाकी वीर सरोवर पर गए पूजा करने, तुरंत लौट कर सब ने राम को घेरा, पीछे लक्ष्मण, सामने विभीषण, सुग्रीव हैं, चरणों के पास हनुमान है, सेनापति अपने स्थान पर बैठे। सब बिना पलक झपक राम के चेहरे को देख रहे जो कमल के फूल समान है। राम की मनः स्थिति । अमावश की रात है , आसमान अंधकार उगल रहा है, दिशा भी नही दिख रही, हवा तक चुप है, पीछे लगातर पहाड़ की चोटी पर केवल मशाल से प्रकाश है।
( राम के मन में घोर निराशा व कुछ नही सुझ रहा। नए विचार नही आ रहे। चिंताए गरज रही। राम चिंता मे डुबे, केवल उम्मीद चेतना मे थोड़ी सी बची है। )
जो राम हमेशा स्थिर / अविचलित रहते है, आज उनको खुद पर संशय हो गया है। बार - बार मन मे रावण की जीत दिख रही। जो हृदय आज तक शत्रु दमन मे नही थका, एक भी हजारो लाखों शत्रुओ के बीच जो राम विजयी रहे पर राम आज कल के युद्ध से डर रहे। बार बार मन में पराजय लगातार आ रही हैं। निराशा के ऐसे क्षण मे अचानक बिजली चमकी जैसे ही राम को सीता की स्मृति हुई। राम बिना पलक झपकए वो छवि रहे हैं मन में। जनकवाटिका राम को याद आई यहाँ जहां राम सीता का स्नेह मिलन हुआ था। नैनो का नैनो से जो प्रिय वार्तालाप हुआ था, पवियां खुशी से कौप रही थी, फूलों मे सुगंध थी, कोयल कुक रही थी। सारे वृक्ष अचानक मलय पर्वत के चंदन वृक्षो समान सुगंधित थे। इतना ज्यादा प्रकाश फैला था। ये सारे दृश्य सीता की आंखे देख कौपकर समाधि मे चली गई । Ram is remembering all this . राम ये याद कर सिहर गए, क्षणमर सब भूल गए। सीता को पाकर रहुँगा। ये आत्मविश्वास आया, राम अचानक हैंसे , फिर विश्वविजय की भावना राम के अंदर आई।
( This is how Ram gained confidence )
राम को सारे दिव्य बाण याद आए। राम ने देखा कि राक्षस उनको बाणों से जलते थे, राम सब याद कर रहें है।
फिर देखा कि आज तो दुर्गा युद्ध मे आई थी, मेरे सारे भयंकर तीर आज उन्होने fail कर दिए। सारे बाण दुर्गा के समक्ष मेरे नही चल पाए। जैसे ही ये याद आया, राम शंका से भर गए राम की आंखों मे सीता की आंखे खिच गई। फिर रावण की हंसी सुनी, खल - खल हैस रहा। ये दुश्य याद कर राम रो पड़े।
( This is how Ram lose confidence )
मारुति राम के चरण देख रहे थे। राम के ऑंसु देख हनुमान बिखर गए। हनुमान भक्ति व योग दोनो के चरम स्तर है।
राम के आँसु देख हनुमान को लगा कि दो तारे चमक रए आसमान में। फिर हनुमान को पता चला कि ये तो राम के आंसु है। हनुमान विकल हो गए। वही राम की कमल जैसी आंखो मे हनुमत के आंसु दिखे। हनुमान जिसके अंदर शक्ति खेलती है, उसमें आग लग गई राम के ऑसु देखकर । हनुमान का दुख देख सारी हवाएँ को हनुमान ने अपने अंदर भर लिया। सीन मे इतनी गर्मी कि इस गुस्से के साथ हनुमान उड़े। चक्रवात आने लगे। तरंग भंग हुई, हनुमान जी उड़ रहे है। समुंद्र की लहरे उठ रहे और गिर रही है। हनुमान लगातार आगे जा रहे हैं। गुप्त अंधेरा दुनिया भर में हो गया है। वज्र जैसे अंगों वाला हनुमान महाकाश पहुंचा। महाकाश जहां शिव व शक्ति रहते हैं। हनुमान जी रावण की तरह अट्टहास कर रहे। महाकाश में रावण की महिमा फैली थी क्योंकि रावण ने तपस्या कर शक्ति को खुद के वश में कर रखा था। शक्ति here = पार्वती है। दुर्गा, शिव , पार्वती सब रावण के पक्ष में है, हनुमान यहां पहुंचे हैं। हनुमान आए हैं। हनुमान राम की समस्या का solution लेने पहुंचे। हनुमान अंतरिक्ष को खाने वाले हैं। महानाश देव शिव हिले व विचार करने लगे। शिव को हनुमान की ताकत पता है शिव शक्ति से बोले -: " बेबी गुस्सा संभालो, यह वानर नहीं है यह महावीर है जो बाल ब्रह्मचारी हैं व इसका शरीर का शरण नहीं हुआ क्योंकि यह ब्रह्मचारी हैं। राम अवतारी पुरुष है व उनके यह करीब है। इन पर प्रहार करने पर देवी तुम्हारी हर भी होगी । विद्या का अजय लेकर इस हनुमान के मन को शांत करो । "
" इन पर प्रहार करने से देवी होगी तुम्हारी हार "
यह कह शिव मौन हो गए। अचानक आसमान में अंजना महाकाश में आ गई। माता बोली तुमने बचपन में सूर्य को खाया था व आज तुम ऐसा महाकाश खत्म करने आ गए। मां की इज्जत करो हनुमत। यह महाकाश है व शिव यहां रहते हैं व राम इन्हें पूछते हैं व तुम उनको क्यों निकालने आए हनुमत।
क्या राम ने तुम्हें यह करने को कहा, नहीं ना फिर क्यों यह कर रहे। राम को पता चला तो हनुमत तुम्हें वो स्वीकार नहीं करेंगे। हनुमत यह सुन विनम्र हो गए । हनुमान धीरे-धीरे महाकाश से उतरे वह राम के पैर पकड़ बैठ गए आकर। राम का बुझा चेहरा देख विभीषण बोले कि आज आपका प्रश्न चेहरा नहीं है जिसे देख सबकी थकान दूर हो जाती है। विभीषण says कि राम हम अब भी रावण से जीतेंगे आपका बाल असीमित है। लक्ष्मण है, सुग्रीव है ,अंगद है, आपके पास सब, आप क्यों निराश हैं राम । विभीषण motivates Ram . विभीषण says - राम, तुम अब महान नहीं, तुम पीठ दिखा रहे, सारी मेहनत खराब कर रहे तुम, तुम सीता को प्रेम ही नहीं करते । But ram didn't respond . Last उपाय था कि.....।
विभीषण says ' धिक्कार है तुम्हें राधव। रावण इतना बुरा कि उसने मुझे भगा दिया, वह रावण सीता को दुखी करेगी, सोच लो राम । सीता के सामने तुम्हारी हंसी करेगा। राम तुमने मुझे सिंहासन का वादा किया पर तुम तो हार गए हो। मुझे राजा का वचन तुमने नहीं निभाया, कहते तो तुम हो -"जान जाई वचन न जाई रघुकुल रीत सदा चली आई।।"
विभीषण is saying this just to motivate Ram but ram didn't respond, so विभीषण used this tricks.
राम अब भी शांत है। राम उदात का चरम चतर हैं। राम अभी तक कुछ नहीं बोले हैं। विभीषण से अब भी राम तटस्थ हैं। राम को पता है कि विभीषण motivate कर रहे हैं तो राम कैसे motivate होंगे राम सोच रहे हैं कि विभीषण को समस्या ही नहीं पता, यह बेचारा है।
उदात की दूसरी पहचान - राम विनम्रता से बोले कुछ क्षण चुप होकर, अपने कोमल स्वर से बोले - " मित्रवर विजय होगी न समर । खुद महाशक्ति रावण कि तरफ । अन्याय की तरफ खुद शक्ति है " ये कह राम की आँखे छलछला गई। राम का रोते रोते कंठ रुक गया । लक्ष्मण को ये देख बहुत गुस्सा आया। हनुमान जी बहुत शर्म से दुखी हो गए। जामवंत स्थिर है क्योंकि Mature है जामवंत । जामवंत सब समझते है। राम जी रोए - सब यह दुख देख दुखी है। Ram ने control किया व बोले - " [ ईश्वर का न्याय क्या है , रावण उनका अपना, मै पराया क्युं । ये शक्ति का खेल है। सारे संसार को जीतने वाले मेरे सारे बाण शक्ति विफल कर सूक्ष्म मन के मुनियो ने मेरे बाणो को सींचा है, प्रजापतियो ने अपने संयम से बाणों की रक्षा की ' वह बाण आज खडित हो गए। मैने देखा की रावण माहशक्ति की गोद में है। मेरे बाणों को शक्ति बार-बार खारिज करती रही। शक्ति मुझे घुरने लगी तो मैं कैसे उन पर हमला करूं मैं, मेरे लिए वह आदरणीय है। ] यह का राम चुप हो गए। जामवंत बोले आप विचलित ना हो, आप भी आराधना का उत्तर गहरी आराधना से दो, आप भी तपस्या करो। रावण अशुद्ध होकर दुर्गा को अपने पक्ष में ले आया। फिर आप तो सबसे शुद्ध व्यक्ति भी हैं।
" शक्ति की करो मालिक कल्पना, करो पुजन,
छोड़ दो समर जब तक न सिहिद हो रघुनंदन। "
[ आप पूजा करें, तब तक हम सब युद्ध लड़ लेंगे राम आप पूजा करें। ] सभा solution देख खुश हुई। राम ने माधा झुका कर जामवंत को thanks you बोला , कुछ समय बाद राम की आंखें खुली वह मन डूबा रहा एक भाव में। बिना गुस्सा बोले राम - [ हे दुर्गा माता मैं तुम पर आश्रित हूं। तुम्हारे चरणों के नीचे जो शेर वह धन्य है। मैं अब आपकी पूजा करूंगा। ] सब राम की मुस्कराहट देख रहे। रामचंद्र बोले कि देखो बंधुवर सामने जो पहाड़ है, वह पार्वती है मैं इसको पार्वती मानूंगा व जो फूल गिरेंगे, मैं उनको पार्वती का आशीर्वाद मानूंगा। पहाड़ के नीचे समुद्र को पार्वती के चरणों वाला शेर मानेंगे । 10 दिशाओं को पार्वती के 10 हाथ मानेंगे, आसमान है शिव इस महान भाव देख राम कहते हैं कि मेरा अहंकार को हम असुर मानेंगे। ( प्रकृति में ही पार्वती की कल्पना ।) [ This is राम की शक्ति यानी/ पार्वती की मौलिक कल्पना where ( दुर्गा / पार्वती = पहाड़ ).
राम ने हनुमान को बुलाया व कहां की हमें 108 कमल के फूल चाहिए कम से कम, देविद्या (मानसरोवर) से सुबह लाना, कमल तोड़ कर ले आना व यहां कमल के फूल देकर युद्ध में आप जाना ।
( इतनी detailed guidelines दी है श्री राम ने हनुमान जी को । ) जामवंत जी ने रास्ता / location बताई। हनुमान राम के चरणों की धुल ले निकले। रात शुरू होकर खत्म हो चुकी है। सुबह हो गई है। सुबह राम के मन की भी हुई है, उनके अंदर गहरा confidence अब है।
आज राम के हाथों में धनुष नहीं है। उनके बाल भी खुले हैं। राम ध्यान में लीन हैं। पूजा करते हैं, दुर्गा का नाम जपते हैं। एक दिन खत्म व राम का मन दुर्गा के चरणों में स्थिर है। 5 दिन से लगातार तपस्या चल रही व राम का चक्र आज्ञाचक्र तक आने वाला है। हाथों से एक पुष्ष चढ़ाते हैं व अनुष्ठान पूरा कर रहे। छठे दिन मन आज्ञा चक्र पर आ गया है। हर जप के साथ दुर्गा व राम का मिलन पास आ रहा है। दोनों आंखें देवी के चरणों पर टिकी है। राम के जप के साथ आकाश थरथरा रहा। दो दिन लगातार एक आसन पर राम बन रहे। बस सहस्रार चक्र आने वाला है। 8 वा दिन आ गया है। ब्रह्म ,विष्णु,महेश के आगे राम निकल गए, देवता स्तब्ध है। जितने प्रारब्ध कर्म थे, राम के सब राख हो गए। बस। फूल बचा है यह चढ़ाते ही राम व शक्ति / दुर्गा / पार्वती का मिलन होना है। मन देख रहा है । सहस्रार चक्र आने वाला है। परंतु रात के दूसरे पहर में दुर्गा पूजा का अंतिम फुल उठाकर ले गई। राम ने पलके खोली, अब भी राम शांत है। आसपास ढुढ़ा फुल को । जप पूरा इसी समय करना है आसन छोड़ नहीं सकते तो राम रोने लगे। राम कहते है कि ऐसी जिंदगी को धिक्कार जिसमे लगातार जिंदगी विपरीत परिस्थितियां बना रही है। राम को थोड़ा - 2 गुस्सा पहली बार यहाँ आने लगा है। मेरी जानकी, मै तुम्हारा उद्धार न कर पाया। राम का अचानक मन उठा, माथा के सारे आवरण पारकर बुद्धि के चरमस्तर पर राम पहुंचे। मन में अचानक राम का स्मृति याद आई व याद कर खुश हुए।
" कहती थी माता मुझे सदा राजीवनयन । "
राम को याद आया कि मेरी मां कहती थी कि मेरी आंखें कमल के फूल जैसी है तो मेरी आंखों को ही मैं शक्ति/दुर्गा/ पार्वती को अर्पित कर देता हूं। मेरे पास तो दो कमल है दो आंखें हैं। मैं अपनी एक आंखे देखकर तपस्या पूरी करूंगा। कह राम ने उठाया ब्रह्मास्त्र, राम अपनी आंख को अप्रीत के लिए तैयार है। यह होते ही ब्रह्मांड कांपा व देवी उतरी व राम को रोक लिया व देवी ने राम का हाथ थाम रोक लिया। राम ने दुर्गा को दिखा । दुर्गो के 10 हाथो मे शस्त्र है, दुर्गा इतनी सुंदर मुस्करा रही है कि उनको देखकर विश्व का सारा सौंदर्य लज्जित हो गया। दुर्गा के दक्षिण मे लक्ष्मी , दाई मे गणेश , बाए में कार्तिक है। शंकर माथे पर विद्यमान है । राघव ने वंदन किया व दुर्गा says : -
" होगी जय, होगी जय, है पुरुषोत्तम नवीन! "
कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन!
( दुर्गा /देवी/ शक्ति /पार्वती says हे पुरुषोत्तम नवीन, तुम्हारी ही विजय होगी और यह कहकर महाशक्ति राम के वदन/ मुख में लीन हो गई।।)