Prem Gali ati Sankari - 80 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 80

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प्रेम गली अति साँकरी - 80

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इंसान हो अथवा साथ में रहने वाला कोई भी छोटा, बड़ा प्राणी क्यों न हो, यदि अचानक अनुपस्थित हो जाता है तो एक सूनापन छोड़ ही जाता है | विक्टर, कार्लोस के डॉक्टर की सलाह पर उन्हें होमयोपैथिक पशु चिकित्सा केंद्र में भेजने की बात हुई | इससे पहले तो उनके बचपन से ये ही वैटरनरी डॉक्टर डॉ. अशोक सब्बरवाल इन दोनों का इलाज कर रहे थे | ये ही दोनों को समय-समय पर इंजेक्शन और एलोपैथिक दवाइयाँ देते रहे थे | अब इन्होंने ही सलाह दी थी कि दोनों की इम्यूनिटी बहुत कमजोर हो गई थी इसलिए बेहतर था कि उनके एलोपैथिक वैटरनरी अस्पताल में न रखकर होम्योपैथी इलाज करना ठीक था | 

वैसे तो इस स्थिति में इनके लिए भी रिस्क था किन्तु होम्योपैथी डॉक्टर के समझाने से पापा-अम्मा मान गए और विक्टर, कार्लोस के डॉक्टर की सलाह से दिल्ली के पास ही किसी गाँव में एक होम्योपैथिक वैटर्नरी अस्पताल में उन्हें दाखिल करवाने के लिए उन्हें तइया होना पड़ा | हम सबने देखा, उस होम्योपैथिक अस्पताल से जो वहाँ के कर्मचारी उन दोनों को ले जाने आए थे, सभी बहुत एहतियाद से आए थे | वे ऊपर से नीचे तक पूरे प्लास्टिक शीट्स से कवर्ड थे | उनके डॉक्टर भी साथ थे जो उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाने उनके साथ ही जा रहे थे | 

विक्टर, कार्लोस के शरीर में अंदर ही अंदर बेहद कमज़ोरी आ चुकी थी लेकिन वे जाने के लिए टस से मस होने के मूड में नहीं थे | चौकीदार की पत्नी राधा साइड में खड़ी होकर, अपने पल्लू में मुँह छिपाकर सुबक-सुबककर रो जा रही थी | उसके दोनों बच्चे उसकी दोनों ओर उसके पीछे छिपने की कोशिश में आँसू बहा रहे थे | इस प्रकार का दृश्य मैंने क्या, हम सबने ही पहली बार देखा था और हम सबको लग रहा था कि संस्थान की रौनक ये दोनों फिर से वापिस आ भी सकेंगे या नहीं ?

“नैगेटिव क्यों सोचना ----”पापा ने सबके उदास चेहरों पर दृष्टि फिराते हुए कहा | 

“इलाज तो करवाना ही है, वो भी इनके डॉक्टर साहब की सलाह ही से न!तो ऐसे मत करो | स्थिति ऐसी हो गई है, मेरी होम्योपैथी सेंटर के डॉक्टर से बड़ी लंबी बात हुई है | इनको ज़्यादा टाइम लग सकता है पर बिलकुल ठीक हो जाएंगे | ”पापा ने सबको बताया | 

“होम्योपैथिक दवाई बिलकुल ऐसे ही जानवरों पर भी प्रभाव डालती है जैसे इंसान पर | बस, इसमें समय ज़्यादा लगता है | ”पापा बेचारे खुद उदास तो थे ही लेकिन अपने अनुसार सबको समझाने की कोशिश करते जा रहे थे | 

विक्टर, कार्लोस बड़े समझदार थे, समझ पा रहे थे कि उन्हें कहीं पर भेजा जा रहा है | थोड़ी देर उछल-कूद करने के बाद वे गाड़ी में मुँह लटकाकर बैठ गए | उनकी गाड़ी का दरवाज़ा जाली का था, उसके सहारे बैठकर पहले वे दोनों अपनी ताकत के अनुसार ज़ोर-ज़ोर से भौंकते रहे फिर जैसे थकने लगे टुकर-टुकर आँखों से सबको देखते रहे | उनकी आँखें आँसुओं से भरी थीं | बस, शायद उन्हें एक सहारा उ दिखाई दे रहा था, वो थे उनके अपने डॉक्टर जो उन्हें छोड़ने उनके साथ ही जा रहे थे | इस गाड़ी में पीछे विक्टर, कार्लोस को जाली वाले बंद दरवाज़े के अंदर बैठा दिया गया था | ड्राइवर के साथ वहाँ के दो और कर्मचारी थे जो आगे ड्राइवर के साथ ही बैठे थे | 

इनके डॉक्टर अपने एक कर्मचारी के साथ अपनी कार में थे जिन्हें ये विक्टर, कार्लोस उदास आँखों से देख पा रहे थे | डॉक्टर इन जानवरों का मनोविज्ञान समझते थे इसलिए उन्होंने दूसरी गाड़ी के ड्राइवर से कहा कि वे अपनी गाड़ी आगे रखें | विक्टर, कार्लोस अपने पीछे डॉक्टर को देखकर चुप रहेंगे वर्ना तो इन्होंने गाड़ी में चढ़ने में सबके नाकों कहने चबवा दिए थे जबकि ये दोनों ही अब काफ़ी कमजोर हो चुके थे | 

जिस अस्पताल में इन दोनों को ले जाया जा रहा था वह दिल्ली से लगभग दो घंटे की दूरी पर था | डॉक्टर ने बताया था को वह ट्रीटमेंट प्लेस बिलकुल साफ़-सुथरा और बड़ा हाइजनिक था | पापा को इस बात की बड़ी चिंता थी क्योंकि ये दोनों ही बड़ी सफ़ाई, हवादार और खुले हुए वातावरण में रहने के आदि थे | डॉक्टर ने पापा-अम्मा को आश्वस्त किया था कि वहाँ पहुंचते ही वीडियो कॉल करेंगे जिससे पापा आश्वस्त हो सकेंगे | उन्होंने अस्पताल पहुंचते ही वीडियो कॉल की, पूरा अस्पताल व और जानवर दिखाए | उन्होंने विक्टर, कार्लोस के रहने की जगह भी दिखाई और वहाँ के काफ़ी बुज़ुर्ग डॉक्टर से भी बात करवाई जिनसे पहले पापा की बात नहीं हो सकी थी | सब जानवरों के रखने की अलग-अलग जगहें बनी हुई थीं, छोटे-बड़े सब जानवर थे

विक्टर, कार्लोस के जाने के बाद कितनी उदासी पसर गई, महाराज कॉफ़ी बनाने चले गए थे, हम सब लॉन में में में चुप्पी ओढ़े बैठ गए | भाई का वीडियो कॉल आया किन्तु पापा-अम्मा ने उसे विक्टर, कार्लोस के बारे में नहीं बताया | वे सभी उनसे अटैच थे, कुछ कर तो सकते नहीं थे दूर बैठकर तो क्या फ़ायदा था, बेकार ही परेशान होते | 

संस्थान में काफ़ी लोगों के साथ रहना एक-दूसरे के लिए मानसिक रूप से सहायक सिद्ध होता था | फूड पैकेट्स लगातार बनवाकर भेजे जा रहे थे और सामने सड़क पार का मुहल्ला पापा-अम्मा यानि संस्थान के प्रति कृतज्ञता महसूस कर रहा था | पापा के पास फोन्स आते रहते और यदि किसी भए लिए भी हममें से कोई सहायक सिद्ध हो सकता तो पापा का निर्देश होता कि वह उस काम को अवश्य करे जिसकी ज़रूरत है | 

विक्टर, कार्लोस वीडियो कॉल करते ही पापा व उत्पल को फ़ोन में देखते ही उछल-उछलकर गोल-गोल घूमने लगते और पापा को पता चल जाता कि वे दोनों यहाँ से तो अब बेहतर हो रहे हैं, उनका बहुत अच्छा ध्यान रखा जा रहा था लेकिन वहाँ के डॉक्टर्स भी हँसकर कहते कि बड़े घरों के लाडले बच्चों की तरह उनका पालन-पोषण किया गया है | वह कहते हैं न पैम्पर चिल्ड्रन, ऐसे ही ये दोनों पैम्पर डॉग्स थे जिन्हें कभी किसी ने गलती से कुत्ता कह भी दिया तो पापा नाराज़ हो जाते थे | कहते, नाम से नहीं बुला सकते?