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इंस्पेक्टर हरीश को ताबीज़ के पीछे की कहानी बताने के बाद दिशा सोच रही थी कि इसका कोई फायदा भी होगा या नहीं। चेतन की हत्या के बारे में उसने सुना था। उसकी और पुष्कर की हत्या का तरीका एक जैसा था। यह आश्चर्यजनक बात थी। उसने दोनों केस के संबंध में उड़ाई जा रही अफवाहों के बारे में भी सुना था। इसलिए उसे लग रहा था कि यह नई बात कहीं केस को और अधिक उलझा ना दे।
वह जानती थी कि पुष्कर की हत्या का संबंध माया से नहीं है। अक्सर पुष्कर की रहस्यमई मौत उसे परेशान करती थी। वह जानना चाहती थी कि पुष्कर को किसने और क्यों मारा है ? उस अनजान जगह अचानक ऐसा कौन आ गया जिसकी पुष्कर से किसी भी तरह की दुश्मनी रही हो। वह जानने को तड़प उठती थी कि किसने उसकी खुशियों में आग लगाई है।
अपनी मम्मी को समझा बुझाकर वह दिल्ली चली आई थी। उसने अपनी नौकरी दोबारा शुरू कर दी थी। वह उसी फ्लैट में रह रही थी जो उसने और पुष्कर ने किराए पर लिया था। इस फ्लैट में दोनों मिलकर अपनी गृहस्ती बसाने वाले थे। अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करने वाले थे। लेकिन जब वह इस फ्लैट में रहने आई तो अकेली पड़ गई थी। पुष्कर हमेशा के लिए उसका साथ छोड़कर जा चुका था। इस फ्लैट में आने के बाद से उसे पुष्कर की जुदाई और अधिक खलने लगी थी। अक्सर रात को बिस्तर पर लेटी रोती रहती थी। रोते रोते ही रात गुज़ार देती थी।
उसने तो सोचा था कि वह और पुष्कर अपने जीवन के आने वाले हर दिन को प्यार के रंग से रंग देंगे। घर का हर एक कोना उन दोनों के प्यार की महक से महकेगा। जैसे विंड चाइम हवा के छूकर निकलने से खनकती आवाज़ करता है। वैसे ही खुशियों की हंसी उनके घर में खनकेगी। पर उसने जो सोचा था उससे उल्टा हो गया। उसकी तकिया उसके आंसुओं से भीग रही थी। उसकी सिसकियों से घर का हर कोना सहमा हुआ था।
कभी कभी उसे लगता था कि इस फ्लैट में आने का निर्णय ही गलत था। पुष्कर के बिना उन खुशियों का कोई वजूद नहीं हो सकता था। अच्छा होता कि वह कहीं और रहती। किसी वर्किंग वुमन हॉस्टल में या किसी के घर पेइंग गेस्ट बनकर। तब शायद पुष्कर की कमी उसे इतनी अधिक ना खलती। फिर वह सोचती थी कि पुष्कर का हमेशा के लिए चले जाना एक ऐसा दर्द है जो कहीं भी और कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा।
इंस्पेक्टर हरीश का फोन आने के बाद से ही दिशा उसी तरह बैठी थी। एकबार फिर पुष्कर की यादें उसके दिमाग में किसी फिल्म की तरह चल रही थीं। वह उस दिन को याद कर रही थी जब पुष्कर उसे यह फ्लैट दिखाने लाया था। तब यहाँ आते हुए रास्ते भर वह उससे बहस करती आई थी। उसका कहना था कि पिछले कुछ समय से दोनों एक दूसरे के साथ ही रह रहे थे। जिस फ्लैट में दोनों रह रहे थे वह उन दोनों के लिए ठीक था। फिर क्या ज़रूरत थी कि शादी के बाद दोनों नए फ्लैट में जाएं। उस दिन दिशा ने उसे बचत के बारे में भी लेक्चर दिया था। उसका लेक्चर सुनने के बाद पुष्कर ने हंस कर कहा था कि तुम तो अभी से पत्नियों जैसी बात करने लगी।
जब उसने यह फ्लैट देखा था तो उसकी सारी शिकायतें दूर हो गई थीं। फ्लैट उसे बहुत पसंद आया था। फ्लैट को देखते हुए वह इंटीरियर के कई तरह के सुझाव दे रही थी। अंत में उसने पुष्कर को चूमकर कहा कि उसने फ्लैट किराए पर लेकर बहुत अच्छा किया। उस समय पुष्कर ने उसे सीने से लगाकर कहा था कि एकदिन वह उसके लिए उसके सपनों का घर बनाएगा। यह सब याद करते हुए दिशा की आँखें भर आईं। उसने रोते हुए कहा,
"पुष्कर तुम झूठे थे। मुझे कई झूठे सपने दिखाए फिर छोड़कर चले गए।"
यह कहकर वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
जी भरकर रो लेने के बाद दिशा उठी। वॉशरूम में जाकर उसने अपना मुंह धोया। उसे भूख लग रही थी। लेकिन कुछ बनाने का मन नहीं कर रहा था। उसने फोन उठाकर खाना ऑर्डर कर दिया। दो दिन हो गए थे उसकी अपनी मम्मी से बात नहीं हो पाई थी। उसने अपनी मम्मी को कॉल किया। उसकी मम्मी ने फोन उठाया तो उनकी आवाज़ से लग रहा था कि उनकी तबीयत बहुत खराब है। दिशा के पूछने पर उन्होंने कहा कि शाम को हल्का बुखार आ गया था। उनकी बात सुनकर दिशा ने कहा,
"मम्मी आवाज़ से तो ऐसा नहीं लग रहा है कि हल्का बुखार है। आपने टेंप्रेचर नापा था।"
"ऑफिस से लौटी तो हरारत सी महसूस हुई। इसलिए लेट गई थी। टेंप्रेचर नहीं लिया।"
अपनी मम्मी का जवाब सुनकर दिशा ने कहा,
"मम्मी अभी टेंप्रेचर लीजिए। मैं थोड़ी देर में फोन कर रही हूँ।"
पाँच मिनट के बाद दिशा ने वीडियो कॉल की। स्क्रीन पर मनीषा का चेहरा देखकर वह परेशान हो गई। उसने कहा,
"मुझसे कह रही थीं कि हल्का बुखार है। चेहरा देखकर लग रहा है कि बुखार में जल रही हैं। कितना टेंप्रेचर है ?"
"सौ के ऊपर है...."
"ठीक ठीक बताइए....."
मनीषा ने कहा,
"एक सौ दो है। पर परेशान मत हो। मेरे पास दवा है। मैं खा लेती हूँ।"
मनीषा बोलते हुए कांप रही थीं। दिशा और अधिक परेशान हो गई थी। उसने कहा,
"मम्मी आपकी हालत ठीक नहीं है। आप काकू को फोन करके बुला लीजिए।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है। मैंने कहा ना कि मेरे पास दवा है। बस दूध के साथ कुछ खा लेती हूँ। उसके बाद दवा खा लूँगी। तुम परेशान मत हो।"
"मम्मी काकू को बुलाने में परेशानी क्या है। जब भी बुलाओ आ जाते हैं।"
"इसका मतलब यह तो नहीं है कि जब भी कुछ हो उन्हें बुला लें। उनकी भी अपनी ज़िंदगी है। मैं दवा खा लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। अब फोन रखती हूँ।"
फोन कट गया। दिशा कुछ देर तक स्क्रीन को ताकती रही।
दो दिनों से मनीषा को शाम के समय तेज़ बुखार चढ़ जाता था। कल भी उन्होंने दवा खा ली थी तो ठीक हो गई थीं। फोन काटने के बाद मनीषा उठकर किचन में गईं। फ्रिज से दूध निकाल रही थीं कि उन्हें चक्कर सा महसूस हुआ। वह अपने कमरे की तरफ चल दीं। पर चला नहीं जा रहा था। इसलिए हॉल में सोफे पर बैठ गईं। अब उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि बुखार तेज़ी से बढ़ रहा है। उन्हें मदद की ज़रूरत है। उनका फोन कमरे में था और उठकर जाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह सोफे पर लेट गईं।
मनीषा बुखार से तड़प रही थीं। उन्हें लग रहा था कि दिशा की बात मान लेनी चाहिए थी। अब उठने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी। वह सोच रही थीं कि कुछ अच्छा महसूस करें तो जाकर शांतनु को फोन करें। दरवाज़े की घंटी बजी। उसके बाद शांतनु की आवाज़ आई,
"मनीषा दरवाज़ा खोलो। मैं हूँ....."
शांतनु की आवाज़ सुनकर मनीषा को बहुत तसल्ली हुई। उन्होंने पूरी ताकत लगाई। सोफे पर बैठ गईं। फिर आवाज़ लगाई,
"शांतनु दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रही हूँ। तुम वहीं रहना।"
"मैं यहीं हूँ मनीषा.....बस तुम दरवाज़ा खोल दो मैं संभाल लूँगा।"
मनीषा ने हिम्मत जुटाई। पहले खड़ी हुईं। फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगीं। बड़ी मुश्किल से दरवाज़े तक पहुँच कर कुंडी खोली। शांतनु अंदर आए तो मनीषा फर्श पर बैठी थीं। उनकी हालत देखकर शांतनु ने कहा,
"हे दुर्गा माँ..... तुम्हारी तो हालत बहुत खराब है। अच्छा हुआ डिम्पी ने मुझे फोन कर दिया।"
उन्होंने सहारा देकर मनीषा को उठाया। उन्हें उनके कमरे में ले जाकर लिटा दिया। उसके बाद थर्मामीटर लेकर बुखार नापा। एक सौ चार बुखार था। उन्होंने फौरन अपने डॉक्टर दोस्त को फोन किया। अपने दोस्त की सलाह लेने के बाद शांतनु ने पहले मनीषा को कुछ खिलाया फिर दवा दी। उनके सर पर ठंडे पानी की पट्टी रखी। कुछ देर बाद बुखार उतरा। मनीषा सो गईं।
शांतनु हॉल में आकर सोफे पर बैठ गए। कुछ देर पहले दिशा ने फोन करके मनीषा के बारे में पूछा था। तब उन्होंने कहा था कि अभी मनीषा को उनकी ज़रूरत है। कुछ देर बाद फोन करके हाल बताएंगे। उन्होंने दिशा को फोन किया। दिशा ने फौरन ही फोन उठा लिया। उसने मनीषा का हाल पूछा। शांतनु ने उसे समझाते हुए कहा,
"मैंने डॉक्टर रस्तोगी से बात की थी। अभी मनीषा को दवा दे दी है। बुखार कम हुआ है। वह सो रही है। कल उसे डॉक्टर रस्तोगी के क्लीनिक पर ले जाऊँगा।"
"थैंक्यू काकू.... वीडियो कॉल पर मम्मी का चेहरा देखकर मैं घबरा गई थी। आप ना होते तो क्या होता।"
"यह तुम्हारी मम्मी ना बहुत ज़िद्दी है। ज़रा ठीक हो जाए। फिर उसे डांट लगाऊँगा। जब मैं घर आया तो दरवाज़ा खोलने की स्थिति में भी नहीं थी। बड़ी मुश्किल से दरवाज़ा खोलकर फर्श पर बैठ गई।"
"मुझसे कह रही थीं कि दवा खा लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी। आप जब डांटिएगा तो मेरी तरफ से भी डांट लगाइएगा।"
"लगा दूँगा। तुम अब मनीषा की फिक्र मत करना। मैं हूँ, तुम्हें हालचाल देता रहूँगा।"
दिशा से बात करने के बाद शांतनु सोफे पर लेट गए।
अगले दिन सुबह शांतनु मनीषा को लेकर डॉक्टर रस्तोगी के क्लीनिक पर गए। डॉक्टर रस्तोगी ने बताया कि वाइरल फीवर है। उन्होंने कुछ दवाएं लिखकर दीं। जब तक मनीषा पूरी तरह ठीक नहीं हो गईं शांतनु उनकी देखभाल करते रहे।