Wo Maya he - 42 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 42

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वो माया है.... - 42



(42)

शंकरलाल भटनागर की बेटी कुसुम से विशाल की शादी तय हो गई थी। विशाल उस समय ऐसी स्थिति में था कि वह ना रिश्ते के लिए मना कर सकता था और ना ही उसे स्वीकार कर सकता था। उसने अपने आप को पूरी तरह नियति के हवाले कर दिया था। वह सोचता था कि उसकी किस्मत में जो भी होगा उसे चुपचाप सह लेगा। उसने कुसुम से शादी कर ली। शादी के शुरुआती दो महीनों में विशाल कुसुम से खिंचा खिंचा रहता था। कुसुम इसका कारण समझ नहीं पाती थी। अपनी तरफ से विशाल का दिल जीतने की पूरी कोशिश करती थी।
कुसुम का धैर्य रंग लाया। विशाल को लगा कि जो भी है उसमें कुसुम की कोई गलती नहीं है। वह अपनी तरफ से उस रिश्ते को बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रही है। फिर वह अपने घरवालों के किए की सज़ा उसे क्यों दे रहा है। उसने अगर शादी की है तो उसका भी फर्ज़ है कि वह पति होने की ज़िम्मेदारी निभाए। उसने भी रिश्ते को स्वीकार कर लिया। जल्दी ही उनके बीच का रिश्ता सामान्य हो गया। विशाल ने कुसुम को माया के बारे में नहीं बताया।
विशाल अब खुश रहता था। अपने काम में पूरी मेहनत करता था। उसमें सफलता प्राप्त हो रही थी। कुसुम ने खुशखबरी सुनाई कि वह माँ बनने वाली है। सारे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। सब माया के श्राप के बारे में भूल गए थे। इन सारी खुशियों के बीच खबर मिली की माया ने उस घटना के कुछ ही दिनों बाद आत्महत्या कर ली थी। इस खबर ने एकबार फिर विशाल को दुखी कर दिया था। वह फिर कुसुम से दूर जाने लगा।
इस बार उसका दूर जाना कुसुम को पहले से भी अधिक परेशान करने लगा। एक दिन उसने विशाल से पूछा कि अब उसने ऐसी कौन सी गलती कर दी है कि वह उससे दूर रहने लगा है। विशाल ने उसे माया के बारे में बताया। माया के बारे में जानने के बाद कुसुम को धक्का लगा। कुछ समय के लिए वह भी विशाल से दूर हो गई। विशाल को कुसुम के साथ की आदत पड़ गई थी। उसका दूर जाना उससे सहा नहीं गया। उसने सोचा कि अब कुसुम ही उसकी ज़िंदगी का सच है। वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली हैं। उसने कुसुम से बात की। उसे समझाया कि वह गलत था। माया उसका अतीत थी। कुसुम उसका वर्तमान और भविष्य है।
कुसुम को भी उसकी बात समझ में आ गई। दोनों के बीच फिर से रिश्ता सामान्य हो गया। मोहित के जन्म के बाद सब और भी अधिक ठीक हो गया। कुसुम और मोहित से मिली खुशियों ने विशाल के दिल में बसी माया को लगभग भुला दिया। वह अब कुसुम और मोहित के साथ नई ज़िंदगी में बहुत खुश था। फिर अचानक माया की मम्मी मनोरमा से हुई मुलाकात ने सब बदल दिया। वह उस मुलाकात को याद करने लगा।
मोहित के चौथे जन्मदिन से एक महीने पहले वह किसी काम से पास के शहर गया हुआ था। वह एक दुकान से कुसुम और मोहित के लिए कुछ तोहफे खरीद कर निकल रहा था तभी उसकी नज़र सामने रिक्शे से उतरती मनोरमा पर पड़ी। वह ठिठक गया। मनोरमा की नज़र भी उस पर पड़ गई थी। विशाल ने नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ने की कोशिश की। पर मनोरमा ने उसे आवाज़ देकर रोक लिया। उसके पास आकर बोलीं,
"सुना है बहुत अच्छी जगह रिश्ता हुआ है तुम्हारा। खूब तरक्की कर रहे हो।"
मनोरमा के चेहरे से स्पष्ट था कि यह बात वह खुश होकर नहीं कह रही थीं। विशाल कुछ नहीं बोला। मनोरमा ने कहा,
"भरी जवानी जान दे दी हमारी बेटी ने। उसका कारण सिर्फ तुम थे। पहले उसे बहलाया। उसके बाद आराम से किनारा कर लिया।"
यह इल्ज़ाम सुनकर विशाल तड़प उठा। उसने कहा,
"आप गलत इल्ज़ाम लगा रही हैं चाची जी। हम माया को बहुत प्यार करते थे। उससे शादी करना चाहते थे। आप बड़े लोगों ने हमारी इतनी सी भी इच्छा पूरी नहीं होने दी। माया के मरने का हमें बहुत दुख है।"
"तुम्हें किस बात का दुख है। पैसेवाले घर की लड़की से शादी कर ली। सुखी जीवन है। वही हो रहा है जो तुम्हारे घरवाले चाहते थे।"
"आप और चाचा जी भी यही चाहते थे कि हमारी और माया की शादी ना हो। तब अगर आप लोगों ने हमारा साथ दिया होता तो हम माया का हाथ थामने में ज़रा भी देर ना करते। पर आप दोनों भी अपनी ज़िद पर थे।"
मनोरमा ने विशाल के चेहरे को कुछ देर ताकने के बाद कहा,
"तुम्हारे पापा ने बताया नहीं होगा। बता देते तो अमीर घर से रिश्ता जोड़ने की उनकी इच्छा कैसे पूरी होती।"
यह बात सुनकर विशाल को आश्चर्य हुआ। उसने कहा,
"चाची जी आप कहना क्या चाहती हैं ?"
"माया रात दिन तुम्हारा नाम लेती रहती थी। कहती थी कि या तो तुमसे शादी करेगी या मर जाएगी। हम उसके माता पिता थे। उसकी हालत सही नहीं जा रही थी। पहली बार जब हम और माया के पापा तुम्हारे घर रिश्ते की बात करने आए थे तब ही साफ हो गया था कि तुम्हारे घरवाले हमें संबंधी बनाना नहीं चाहते हैं। फिर भी बेटी की खुशी के लिए हमने एक और कोशिश की। तुम्हारे पापा को खबर दी कि उनसे मिलना चाहते हैं। उन्होंने अपने स्कूल के पास जो मंदिर है वहाँ मिलने की बात कही। हम दोनों पहुँच गए। तुम्हारे पापा को अंदाजा था कि हम क्यों मिलने आए हैं। इसलिए उन्होंने हमारे कुछ कहने से पहले ही अपना फैसला सुना दिया।"
कहते हुए मनोरमा रुक गईं। उनके चेहरे पर गुस्सा दिखाई पड़ने लगा। उन्होंने कहा,
"उन्होंने कहा कि हमने जान बूझकर माया को तुम्हारी तरफ ढकेला था। उसे सिखाया था कि तुम पर डोरे डाले। ऐसी लड़की उनके घर की बहू नहीं बन सकती है। तुम्हारे लिए उन्होंने बड़े और अच्छे घरों के रिश्ते देख रखे हैं। उनके इस अपमान के बाद हम माया की शादी तुमसे कैसे कर देते। इतना होने के बाद भी माया अपनी ज़िद पर अड़ी रही। भागकर तुम्हारे घर आ गई। तुमसे कहती रही कि उसका हाथ पकड़ कर ले चलो। पर तुम चुप रहे। हमें लगा कि शायद तुम अपने घरवालों के फैसले से सहमत हो। हम दोनों माया को लेकर चले गए। भवानीगंज छोड़ दिया। माया के लिए रिश्ता तलाशने लगे। पर उसने जो कहा था वही किया।"
सारी बात सुनकर विशाल जैसे लकड़ी का हो गया था। उससे कुछ भी कहते नहीं बन रहा था। मनोरमा ने जाते हुए कहा,
"हमारी बेटी बहुत तड़पी है। उसकी हाय लगेगी। तुम्हारे घर में खुशियां टिकेंगी नहीं।"
मनोरमा यह कहकर चली गईं। विशाल कुछ देर तक वैसे ही खड़ा रहा।
घर लौटकर आया तो उसने सबसे पहले अपने पापा से सच्चाई पूछी। उन्होंने पहले तो यह कहकर टालने की कोशिश की कि अब बीती बातों पर ध्यान ना दो। तुम्हारा सुखी परिवार है। बस उस पर ध्यान दो। लेकिन विशाल अड़ गया तो उन्होंने कहा कि जो कुछ भी किया वह विशाल और घर की भलाई के लिए किया। विशाल को बहुत धक्का लगा। लेकिन अब कुछ कर नहीं सकता था। वह फिर उदास रहने लगा था पर पूरी कोशिश करता था कि उसकी उदासी कुसुम तक ना पहुँचे।
मनोरमा से सच्चाई जानने के बाद उसके मन में एक अपराधबोध सा आ गया था। उसे लगता था कि माया के आत्महत्या की वजह वही है। यह बात उसे बहुत परेशान करती थी। उसकी कोशिशों के बाद भी कुसुम को उसकी उदासी दिखाई पड़ने लगी थी। उसने काम के बढ़ते बोझ को वजह बताकर टाल दिया।
मोहित के चौथे जन्मदिन से पहले एक रात उसे सपना आया। सपने में माया दिखाई पड़ी। वह उसी तरह गुस्से में थी जैसे आखिरी बार उसने उसे घर के आंगन में देखा था। वह कह रही थी कि तुम मुझे छोड़कर अपनी ज़िंदगी में मस्त हो गए। अब हम आ गए हैं। तुम्हारी सारी खुशियां छीन लेंगे। मोहित के चौथे जन्मदिन की रात उसने जो कहा था वह कर दिखाया।
विशाल एकबार फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा।

पुष्कर के चले जाने का दुख तो उमा किसी तरह सह गई थीं। लेकिन विशाल को जब आँखों के सामने दुखी देखती थीं तो कलेजा फट जाता था। अपने बहू और पोते की मौत के बाद से ही वह विशाल के लिए दुखी रहती थीं। पर इधर उनका दुख बहुत अधिक बढ़ गया था।
आज जिस तरह विशाल गुस्से से चिल्लाया था वह बताने के लिए पर्याप्त था कि वह अपने दुख में घुट रहा है। आज सुबह भी उसने ठीक से नाश्ता नहीं किया था। दोपहर को खाना भी नहीं खाया। यह सोचकर वह और दुखी हो गईंं। इसी बात से उन्हें बद्रीनाथ का खयाल आया। उन्होंने भी खाना नहीं खाया था। अब वह पछता रही थीं कि उन्होंने अपने पति से इस तरह बात क्यों की। अब ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। ऐसी बातें अब रिश्ते में दूरियां लाएंगी और दर्द को बढ़ाएंगी।
अब उनसे आराम नहीं किया जा रहा था।‌ उन्होंने सोचा कि चलकर बद्रीनाथ को खाना खाने के लिए मनाती हैं। उसके बाद विशाल को भी बुला लेंगी।
उमा बैठक में गईं। बद्रीनाथ अखबार पढ़ रहे थे। उन्होंने पास जाकर कहा,
"हमसे गलती हो गई। हमें माफ कर दीजिए। चलकर खाना खा लीजिए।"
बद्रीनाथ ने नज़रें उठाकर उनकी तरफ देखा। उनका हाथ पकड़ कर पास बैठाया। उसके बाद अखबार उनके हाथ में थमाकर पढ़ने को कहा। उमा खबर पढ़ने लगीं। पूरी खबर पढ़ने के बाद उन्होंने बद्रीनाथ की तरफ देखकर कहा,
"पुष्कर का ताबीज़ खो गया था....."
यह बात बैठक में घुसती हुई किशोरी के कानों में पड़ी। वह आवाक रह गईं। बद्रीनाथ ने उन्हें अखबार में छपी खबर के बारे में बताया।