ग्रामीण विकास में हिन्दी व भारतीय भाषाओं का योगदान
यशवन्त कोठारी
भारत गांवों में बसता है। और ग्रामों का विकास भारत का विकास है। गांवों के विकास के लिए केन्द्र व राज्य सरकारे समय समय कई योजनाए चलाती है तथा ये योजनाए ग्रामीणों तक पहुँचाने के प्रयास करती है। देश में योजनाएं तो अंग्रेजी में बनती है मगर इन्हें ग्रामीणों के स्तर तक अंग्रेजी में नहीं पहुचाया जा सकता है। विभिन्न योजनाओं को गांवों तक पहुचाने के लिए हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भापाएं ही काम आती है। पूरे उत्तर भारत में हिन्दी तथा दक्षिण भारत के गांवों में दक्षिणी क्षेत्रीय भापाओं के माध्यम से इन योजनाओं की जानकारी पहुचाई जाती हैं। हिन्दी ही पूरे भारत के ग्रामीण समाज की सम्पर्क भापा है। आज पंचायती राज संस्थाओं, नरेगा, प्रधानमंत्री रोजगार योजना व ऐसी ही अन्य सैकड़ों योजनाओं की जानकारी ग्रामीणों को हिन्दी के माध्यम से ही मिलती है। ग्रामीण भारत के विकास की आधार धूरी हिन्दी व क्षेत्रीय भापाएं ही है। मैथिलीशरणगुप्त ने इसलिए लिखा था, अहा, ग्राम्य जीवन भी क्या है, तथा भारत माता ग्राम वासिनी जैसे विचार उभर कर आये थे। मगर पिछले कुछ दशकों में गांवों में तेजी से परिवर्तन आये है, अब गांव विकास की डगर पर चल कर देश की मुख्यधारा में चल रहे है और सभी योजनाओं का लाभ हिन्दी व क्षेत्रीय भापाओं के माध्यम से प्राप्त कर रहे है। कम्पूटर की क्रान्ति के कारण ग्रामीण समाज बैंक, हिसाब किताब, जौबकार्ड, आदि की जानकारी भी हिन्दी व भारतीय भापाओं में प्राप्त कर रहे है। आधुनिक युग में महात्मा गांधी गांवों के सबसे बड़े हितैपी थे। गान्धी जी के अनुसार कोइ भी सभ्य देश गांवों के कारण ही सभ्य बनता है और हिन्दी व भारतीय भापाएं गांवों को सभ्यता से रुबरु कराती है। आजादी के बाद से गांवों में भारतीय सभ्यता थी, इसे बनाये रखने में भी हिन्दी का ही योगदान है। गांवों को आत्मनिर्भर, सुन्दर और सभी सुविधाओं से युक्त बनाने तथा गांवों से पलायन रोकने मंे भी स्थानीय भापाओं का बड़ा योगदान हैं। आज प्रेमचन्द्र का होरी गांव के मुखिया से जागरुक होकर हिसाब किताब करता है तथा पूरा पैसा लेकर स्वयं को भ्रप्टाचार तथा शोपण से बचाता है।
पिछले 60-70 वर्पो में गांवों का कायाकल्प हुआ है। लेकिन फिर भी शहर का व्यक्ति गांव जाने में हिचकता है। अक्सर ये सवाल उठता है कि गांव किसके लिए है ? गांव में रहने वाले भी शहर में भागने के लिए तैयार है, मगर गांव है तो देश है, देश सभ्य है, सुसस्कृत है तो गांवों के कारण कला, संस्कृति, साहित्य बचा हुआ है तो गांवों में। ग्रामीणों के कारण ।
ग्रामीणों के विकास के लिए सरकारी प्रयासों के साथ स्थानीय लोगों को भी जोड़ने के सफल प्रयास नई सरकार कर रही है। लेकिन सरकारी प्रयासों से सब कुछ पाया जाना सम्भव नहीं है।
ग्रमीण विकास में हिन्दी व भारतीय भापाओं के योगदान को रेखाकिंत करते हुए गावों के विकास में निम्न सुझावों पर अमल किया जाना प्रस्तावित है।
1. पंचायतो में शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया जाये। सभी पंचायतों पर, एक लघु पुस्तकालय, एक वाचनालय व टीवी हो जहां पर अखबार, पत्रिकाएं आये, और पढ़ी जाये।
2. महिला साक्षरता हेतु विशेप कार्यक्रम पचंायत वार्ड स्तर पर चलाये जाये। महिलाओं को सामान्य अंकगणित व आवश्यक हिन्दी का ज्ञान कराया जाये।
3. स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सम्बन्धी सभी जानकारिया हिन्दी व क्षेत्राीय भापाओं में उपलब्ध हो।
हिन्दी के विकास से ही गान्धी जी के ग्राम स्वराज की कल्पना का विकास संभव है।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 2
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