फिर शाम का समय हो गया था नव्या दुल्हन बनी बैठी हुई थी ।
कुछ देर बाद ही बारात आ गई।
आलेख भी वहां पर मौजूद था।
कुछ देर बाद ही वर वधू को पंडित जी ने बुलाया।
वर माला होने के बाद ही कन्यादान के लिए आलेख को लेकर पिया मंडप पर पहुंच गई।
आलेख की जिंदगी जैसे इस पल के लिए ही रूकी हुई थी।
आलेख ने एक पिता का फर्ज अदा किया नव्या का हाथ शुभम के हाथों दे दिया।
कन्यादान महादान कहते हैं एक पिता का जीवन तभी सार्थक होता है जब वो अपनी बेटी का कन्यादान करता है।
नव्या मुस्कान लिए हंसती रही पर यह नहीं समझ पाई कि यह पिता समान कोई और नहीं उसके पिता ही है।
आलेख को पिया किसी तरह कमरे में ले गई।
आलेख ने कहा पिया अब मुझे जाना होगा समय नहीं है मेरे पास।।
मैं यहां का माहौल खराब नहीं करना चाहता हूं।
पिया ने रोते हुए कहा अरे नहीं नहीं मैं तुम्हें नहीं जाने दे सकती हुं।
देखा ना तुम्हारी बेटी बिल्कुल तुम्हारे ऊपर गई है।
बहुत जिद्दी है वो।।
आलेख हंसने लगा और फिर बोला अगले जन्म में तुम मेरी हो!
पिया ने कहा हां ज़रूर तुमने मुझे माफ कर दिया है ना।।
आलेख ने कहा मैं कभी नाराज़ हो नहीं सकता तुमसे!
और फिर नव्या तो बिल्कुल अपनी दादी की छवि है देखा तुमने वहीं हंसी, वहीं रंग, वहीं बाल घुंघराले।।
पिया ने कहा तुम आराम करो कल विदाई के बाद चले जाना।।
आलेख ने कहा अरे बाबा अब वक्त ही नहीं है ऐसा न हो कि विदाई मेरी कर दो।
पिया ने कहा क्यों ऐसा कहते हो ।।
आलेख ने अपने बैग में से वो फाइल निकाल कर दे दिया और बोला यह भेंट स्वीकार करो।
मेरी तमाम जायदाद और जो कुछ भी कमाया था वो सब मैंने तुम्हारे और नव्या के नाम कर दिया है मेरे बाद तो तुम लोग ही हो उस हवेली और जमीन की मालकिन।
अलविदा कह दिया मैंने।
फिर आलेख ने आंख बंद कर दिया।
पिया रोते हुए वहां से चली गई।
और फिर दरवाजा भी बंद कर दिया।
पिया सुबह होने का इन्तजार करने लगी।
दूसरे दिन सुबह विदाई थी।
मां का कलेजा चीख रहा था एक तरफ बेटी की विदाई और दूसरे तरफ बेटी के पिता की विदाई वो हमेशा हमेशा के लिए।
नव्या ने कहा अरे मां वो कहां गए?
चले गए क्या?
पिया ने मन में कहा क्या बताऊं कि कमरे में उनके पिता की पार्थिव शरीर पड़ा हुआ है।।
पिया ने कहा अरे बेटा वो कल ही चले गए रात को।
नव्या ने कहा हां, पता नहीं क्यों एक अजीब सी पहेली थी लग रहा था कि कोई मेरा अपना हो।।
पिया ने कुछ नहीं कहा और बेटी को
खुशी खुशी विदा कर दिया।
नव्या के जाने के बाद पिया ने आलेख का अंतिम संस्कार करने की व्यवस्था करवाई।
जो भी रिश्तेदार आए थे सब बहुत ही आश्चर्य हो रहे थे।
पिया ने आलेख को बहुत अच्छी तरह से उसके मनपसंद फुलों से सजवाया।
फिर शाम और कुछ लोग मिलकर आलेख की अंतिम संस्कार कर दिया।
पिया ने कहा हे! भगवान उसे मुक्ति मिल जाएं।
मुझे किसी भी तरह नव्या को सच्चाई बतानी होगी।
कुछ महीने बाद ही नव्या अपने घर आ गई।
और जब उसने आलेख की तस्वीर देखी और उस पर माला चढ़ाएं हुएं देखा तो उसने कहा अरे मम्मी ये क्या?
इनकी तस्वीर यहां कैसे?
और ये कब निकल गए?
पिया ने कहा नव्या मजाक मत करो मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हुं?
नव्या ने कहा हां, ठीक है।
पिया ने अलमारी से वो फाइल निकाल कर नव्या को दिया
नव्या ने देखते ही कहा अरे बाबा रे! ये सब कुछ मेरे और तुम्हारे नाम कर गए? क्यों?.
इतना तो दोस्ती में नहीं करता कोई।।
पिया ने कहा हां, बेटा वो कोई और नहीं तुम्हारे बदनसीब पिता थे।
उन्होंने बहुत दुख झेला था मैंने उनको बहुत दुख दिया।
नव्या ने कहा ये सब क्या बोल रही हो आप?. मेरे पिता थे वो !वीर तो मेरे पिता है।।
पिया ने कहा वो तुम्हारे जन्मदाता थे ।
मैं तुम्हें पुरी कहानी सुना रही हुं।।।।
फिर पिया अतीत में चली गई।
काव्या आलेख की छोटी मां की कहानी से शुरू हो कर बाबू पर खत्म!
फिर पिया ने सारी कहानी सुनाने लगीं।
नव्या की आंखें आंसुओं से भर गए थे।
किस तरह से आलेख का जन्म हुआ था वो सब कुछ बताया पिया ने।।।
कहानी सुनाते हुए एक अरसां बीत गए थे।
बाबू और पिया का सच्चा प्यार!
क्या क्या हुआ वो सब कुछ सुनते हुए नव्या रोने लगी।
वीर ने शादी के बाद पता चला कि वो तो एक नपुनसक है और उन्होंने मुझे एक बच्चा लाने को कहा कहीं से भी बस कोख मेरा होना चाहिए।
मैंने हर बार आलेख का इस्तेमाल किया बेटा मैं अच्छी नहीं हु।।
जब आलेख ने मेरा प्रस्ताव सुना तो वो साफ मना कर दिया था।
पर मेरी जिद की वजह से वो वहीं किया जो मैंने कहा।
फिर तुम्हारा जन्म हुआ।
और फिर मैंने आलेख से एक वादा लिया कि कभी भी वो अपना हक नहीं मांगेगा।
पर जानती हो उसने तुम्हें लेकर बहुत सपने देखे थे कि तुम उनकी लाड़ो हो।
नव्या ने कहा ये क्या किया मम्मी आपने तो उस इन्सान इतना दर्द दिया जो आपको प्यार करता था और उन्होंने शादी भी नहीं कि।।।
नव्या ने कहा मम्मी मुझे उस हवेली में जाना होगा।।
पिया ने कहा हां ठीक है हम कल ही चलतें है।
क्रमशः।