Wo Maya he - 39 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 39

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वो माया है.... - 39



(39)

सूरज‌ बहुत परेशान था। चेतन के ना होने से उसे बहुत दिक्कत हो रही थी। अब उसे खुद भी ग्राहकों की टेबल पर जाकर उनसे ऑर्डर लेना पड़ रहा था। पुलिस स्टेशन से लौटकर वह काम में लग गया था। अभी अभी वह एक ग्राहक का ऑर्डर लेकर आया था। उसने ढाबे पर काम करने वाले रामदीन को वह ऑर्डर बताकर कहा कि टेबल पर पहुँचा दे। वह कुछ देर अपने कमरे में आराम करने जा रहा है।
अपने कमरे में आकर वह बिस्तर पर लेट गया।‌ लेटे हुए उसने बिस्तर पर पड़ा खबर रोज़ाना उठा लिया। वह उस पेज पर गया जहाँ चेतन की हत्या पर रिपोर्ट छपी थी। वह उसे पढ़ने लगा। यह तीसरी बार था जब वह रिपोर्ट पढ़ रहा था। रिपोर्ट में चेतन और पुष्कर की हत्या को जोड़ने का प्रयास किया गया था। साथ में ताबीज़ वाली बात थी। उसे ताबीज़ वाली बात परेशान कर रही थी।‌ उस दिन चेतन ने जो कुछ सुना था तब वह कुछ अजीब सा लगा था। चेतन की हत्या के बाद ताबीज़ वाली बात से जोड़ने पर लग रहा था कि दोनों हत्याओं के पीछे कोई शैतानी शक्ति काम कर रही है। यह बात सूरज को डरा रही थी। उसने अखबार रख दिया और आँख बंद करके लेट गया। वह अपने दिमाग को शांत करने की कोशिश कर रहा था। अचानक ही उसके खयाल में एक खौफनाक दृश्य उभरा।‌ एक भयानक सा दिखने वाला व्यक्ति चेतन की छाती पर अपने तेज़ नाखूनों वाले पंजे से वार कर रहा था। उसने अपनी आँखें खोल लीं। वह उठकर बैठ गया। तभी दरवाज़े के बाहर से रामदीन ने पुकारा,
"सूरज भइया....."
रामदीन की आवाज़ सुनकर सूरज ने कहा,
"क्या बात है ? कुछ देर आराम क्यों नहीं करने देते हो।"
रामदीन कमरे की दहलीज़ पर खड़ा हो गया। उसने कहा,
"भइया पुलिस आई है। बाहर खड़ी आपकी मोटरसाइकिल देख रही है।"
पुलिस की बात सुनकर सूरज‌ बिस्तर से उठ गया। उसने कहा,
"पुलिस स्टेशन तो होकर आए थे। अब क्या काम पड़ गया।"
यह कहकर वह बाहर निकलने लगा तभी दरवाज़े पर कांस्टेबल शिवचरन दिखाई पड़ा। शिवचरन ने कहा,
"सूरज....सब इंस्पेक्टर कमाल तुमको बाहर बुला रहे हैं।"
सूरज उसके साथ चला गया। बाहर सब इंस्पेक्टर कमाल उसकी मोटरसाइकिल के पास खड़ा था। सूरज ने उसके पास पहुँच कर कहा,
"क्या बात है साहब ? कुछ देर पहले ही तो हम पुलिस स्टेशन से लौटे थे। अब आप फिर आ गए।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने उसकी बात पर ध्यान दिए बिना पूछा,
"यह मोटरसाइकिल तुम्हारी है....."
"जी साहब..हमारी ही है। क्यों बात क्या है ?"
"चेतन के कत्ल वाली रात तुम अपनी मोटरसाइकिल लेकर पुलिस स्टेशन की तरफ गए थे।"
सब इंस्पेक्टर कमाल का यह सवाल सुनकर सूरज चुप हो गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे ? अपने बयान में उसने यही कहा था कि वह उस दिन ढाबे के बाहर ही नहीं निकला था। लेकिन जिस तरह से सब इंस्पेक्टर कमाल ने उससे पूछा था उससे लग रहा था कि उनके पास कोई सबूत है। सूरज को चुप देखकर सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"चुप क्यों ‌हो ? बताओ उस रात तुम अपनी मोटरसाइकिल लेकर पुलिस स्टेशन की तरफ गए थे कि नहीं ?"
सूरज ने सोचा कि वह वही कहता है जो पहले कहा था। उसने कहा,
"हम पहले ही बता चुके हैं कि उस रात हम ढाबे के बाहर ही नहीं गए।"
"तो अपनी मोटरसाइकिल किसी को दी थी।"
इस सवाल को सुनकर सूरज‌ और परेशान हो गया। वह समझ गया कि कोई खास बात है। अब अगर वह यह कहता है कि उसने मोटरसाइकिल किसी को दी थी तो पुलिस उसके बारे में पूछेगी।‌ वह और अधिक फंस जाएगा। वह फिर कुछ नहीं बोला। सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"चलो हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलो।"
"लेकिन क्यों साहब ?"
"सब बता देंगे। चुपचाप हमारे साथ चलो।"
सूरज ने कुछ सोचकर कहा,
"साहब अभी बिजनेस का टाइम है। अभी कैसे चलें ? हम दोपहर बाद भीड़ कम होने पर आ जाएंगे।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने गुस्से से कहा,
"चुपचाप चलो.... नहीं तो मुझे पता है कैसे ले चलना है।"
सब इंस्पेक्टर कमाल के अंदाज़ से सूरज को अनुमान हो गया कि मामला गंभीर है। उसने पास खड़े रामदीन को बुलाकर कुछ निर्देश दिए। उसके बाद पुलिस के साथ चला गया।

पुलिस स्टेशन पहुँचने पर सूरज को सीसीटीवी फुटेज के बारे में बताया गया। इंस्पेक्टर हरीश ने सूरज के कंधे पर हाथ रखा हुआ था। इंस्पेक्टर हरीश ने उसके कंधे पर अपना दबाव बढ़ाते हुए कहा,
"तुमने तो कहा था कि उस दिन तुम ढाबे के बाहर ही नहीं निकले थे। फिर फुटेज में तुम मोटरसाइकिल पर चेतन के पीछे जाते कैसे दिखाई पड़ रहे हो ? अब एकदम सच सच बताना नहीं तो फिर मुझे अपने साथी सब इंस्पेक्टर कमाल को कहना पड़ेगा। वह बहुत अच्छी तरह से सच निकलवा लेता है।"
सूरज समझ गया था कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। उसने सच स्वीकार करते हुए कहा,
"हम अब सब सच बताते हैं। मोटरसाइकिल पर हम चेतन को तलाशने निकले थे। उस दिन हमने चेतन को पीटा था। हमें लगा कि वह आपके पास आ रहा होगा। इसलिए हमने सोचा था कि उसे रास्ते में ही रोककर समझा बुझाकर वापस ले जाऊँगा।"
सूरज ने उस दिन जो कुछ हुआ सब विस्तार से बता दिया। सब बताने के बाद उसने कहा,
"हमको वह रास्ते में दिखा ही नहीं। हम पुलिस स्टेशन के पास तक जाकर वापस चले गए थे। हमने चेतन की हत्या नहीं की।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"फुटेज में दिखाई पड़ रहा है कि चेतन के गोदाम के सामने से गुज़रने के आठ मिनट के बाद ही तुम मोटरसाइकिल पर सवार गोदाम के सामने से गुज़रे। तुम मोटरसाइकिल पर थे। आसानी से चेतन तक पहुँच सकते थे। फिर चेतन तुम्हें दिखाई कैसे नहीं पड़ा ?"
सूरज ने कहा,
"साहब हम एकदम सच बोल रहे हैं। चेतन हमें नहीं दिखा। हम पुलिस स्टेशन के पास तक गए फिर वापस लौट गए। हम देर तक इंतज़ार करते रहे कि शायद चेतन पुलिस के साथ आए। पर वह नहीं आया। सुबह हमने वह कहानी बनाकर सुना दी।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"चेतन हर महीने किसी से मिलने जाता था यह बात गलत थी।"
सूरज ने सर झुका लिया। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"अब बताओ कि चेतन ऐसी कौन सी बात जानता था जो मुझे बताना चाहता था।"
सूरज ने अपना सर उठाकर इंस्पेक्टर हरीश को देखा। उसने कहा,
"चेतन ने उस आदमी को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना था।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"किस आदमी को ?"
"आपने जिस आदमी की तस्वीर ढाबे के सीसीटीवी फुटेज से निकाली थी। जो दिशा और पुष्कर को घूर रहा था।"
इंस्पेक्टर हरीश यह सुनते ही उत्साहित हो गया। उसने कहा,
"चेतन ने उसे क्या कहते सुना था ?"
सूरज ने डरते हुए कहा,
"इंस्पेक्टर साहब हमें लगता है कि पुष्कर और चेतन की हत्या करने वाला कोई इंसान नहीं है।"
इंस्पेक्टर हरीश यह जानने को उत्सुक था कि चेतन ने क्या सुना था। सूरज बहकी बहकी बात कर रहा था। इंस्पेक्टर हरीश ने झुंझला‌ कर कहा,
"क्या बकवास कर रहे हो ?"
"साहब हम बकवास नहीं कर रहे हैं। आपने देखा था ना कि दोनों के सीने पर कैसे निशान थे। किसी इंसान के पास ऐसे धारदार नाखून तो होते नहीं हैं।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"ऐसे हथियार भी होते हैं।"
"होते होंगे साहब। लेकिन दोनों हत्याओं में कोई हथियार नहीं था। यह काम किसी शैतानी शक्ति का है।"
सूरज की बातें सुनकर इंस्पेक्टर हरीश का धैर्य जवाब दे रहा था। उसने सूरज को एक थप्पड़ मारकर कहा,
"अपनी बकवास बंद करो। वह बताओ जो चेतन ने सुना था।"
सूरज ने इंस्पेक्टर हरीश को गुस्से से देखा। उसने कहा,
"आपको हमारी बात बकवास लग रही है। पर हम जो कह रहे हैं वैसी ही बात उस अखबार में भी कही गई है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"इधर उधर की बात मत करो। अब अगर वह बात नहीं बताई तो अच्छी तरह ठुकाई करूँगा।"
"साहब हम जो बात बताएंगे वह भी उसी तरफ इशारा करेगी।"
सब इंस्पेक्टर कमाल भी अब सूरज की बातें सुनकर चिढ़ रहा था। उसने कहा,
"वह बात किस तरफ‌ इशारा करेगी वह हम लोग समझ लेंगे। तुम सिर्फ यह बताओ कि चेतन ने सुना क्या था ?"
सूरज ने दोनों की तरफ देखा। उसके बाद बोला,
"उस दिन जब पुष्कर की लाश मिली थी तब सब घबराए हुए थे। चेतन भी ढाबे के बाहर था। तभी उसकी नज़र उस आदमी पर पड़ी जो पुष्कर और दिशा की टेबल के पास खड़ा चाय पीते हुए उन्हें घूर रहा था। वह आदमी एक तरफ होकर किसी से फोन पर बात कर रहा था। चेतन धीरे से उसके पास गया। चेतन ने उसे फोन पर कहते सुना कि पुष्कर का ताबीज़ खो गया था। उसे मौका मिल गया और वह अपना काम कर गई।"
यह कहकर सूरज रुक गया। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे।‌ सूरज ने कहा,
"खबर रोज़ाना अखबार में भी ताबीज़ वाली बात लिखी है। हम कह रहे हैं कि यह काम किसी शैतानी शक्ति का है। वह किसी बात से पुष्कर से नाराज़ थी। इसलिए उसे मार डाला।"
इंस्पेक्टर हरीश को यह बात सुनकर अजीब लग रहा था। उसने कहा,
"तुम्हारा वहम है यह। अगर कोई शैतानी शक्ति है जो पुष्कर से नाराज़ थी। इसलिए उसकी हत्या कर दी। पर उसने चेतन को क्यों मारा ?"
"क्योंकी उसने जो कुछ सुना था वह पुलिस को बताने जा रहा था। अब वह शक्ति हमें भी नहीं छोड़ेगी।"
यह कहकर सूरज रोने लगा। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल दोनों उसके इस तरह रोने से और अधिक परेशान हो गए थे।