कौन कहता है अब समाज मे लड़की लड़का बराबर है। आज भी सभी अंतिम फैसले पुरुष के हीं होते है।हाँ! मे मानती हू कुछ परिवारों मे, कुछ फैसले महिलाए करती है. पर यह भी पूरा सत्य नहीं है. कहा गलती होती है माँ -बाप सें बच्चों कि परवरिश मे जो लड़कियां बहुत सें अधिकारों सें वंचित रह जाती है,और लड़के उन अधिकारों के अधिकार सें इतने शक्तिशाली हो जाते है कि वो एक दिन अपने उन्ही माँ -बाप को उनके,हीं घर सें हाथ पकड़ कर बाहर निकाल देता है। आज बहुत सें माँ बाप भी एक ऐसे हीं एक राक्षस के साथ घुट रहे है पर वो माँ बाप है,जो अपना सब कुछ उस राक्षस मे खोजते है, सपने, उम्मीदें, प्यार, बुढ़ापे का सहारा पर उनको कहा पता है,कि वो तो एक दिन के लिए तैयार हो रहा है कि कब माँ बाप को बाहर फेके।पर फिर भी माँ बाप कि आज भी बेटे हीं चाइए,ना कि बेटियां. ज़ब ऐसे बेटे हो तो माँ बाप बिना औलाद के रहे तो ये अच्छा है। आज भी शिक्षा बस उच्च विश्वविद्यालयों मे अपना अस्तित्व बनाए रखने को है, ना कि संस्कारो का मंदिर।आज भी वृद्ध आश्रम कि संख्या मे खूब वृद्धि हो रही है और ये सब उन राक्षसों कि बजह सें हो रहा है ये वो लोग है जो आज के समाज मे और ज्यादा कुख्यात अपराधों को जन्म देने वाले होते हैं. ऐसे लोगों से माँ बाप बिना औलाद के, बहन बिना भाई के सुखी है। बहु बुरी नहीं होती पुरुष प्रदान समाज मे रहने वाला वो पुरुष बुरा है जिसने सभी अधिकारों पर अपना रोप जमाये हुए है और कहता है लड़कियां समाज को सुधार भी सकती है या बिगड़ भी, पर समाज के प्रधान तो पुरुष बन कर बैठा है तो समाज भी तुम हीं सुधार. आज बहुत दुखी है नारी कहा जाए और किस पर उतारे अपने मन का बोझा. इस दयनीय स्थिति का मुख्य कारण कौन है और कहा है? कब बदलेगा ये सब कौन है जो ये करेगा. सभी धर्म इस बात मे समानता रखते है कि महिलाए,पुरुष प्रधान समाज मे अपना कद पुरुष के साथ नहीं,पुरुष के पीछे रखती है। कितनी हैरान करने कि बात है ना कि कुछ समनाता तो है सभी धर्म मे पर ये बहुत दुख कि बात है कि ये समानता किस को रास आएगी आज भी बहुत सें महिलाए अपने हक के लिए समाज कि उन आलोचना का शिकार हो रही है जो असहनीय है. पर उन आलोचनाओं कि गार्ज को पर कर के एक दिन उस छोटे सें शब्द "समानता "के हिमालय पर जरूर फतय हासिल करेगी, पर ये लड़ाई केवल उड़ नारी कि है आज के इस दलदल जैसे समाज मे अपना एक अलग मुकाम पाना है उन सब सें लड़कर जो उसकी सफलता कि सीढ़ियों मे काटे बिछाये बैठे है पर हर सफलता आसानी सें कब और किसे मिली है जो अब हम को मिल जाएगी. पर हौसलों कि उड़ान, पँखों कि उड़ान सें ज्यादा मजबूत होती है, समय लगेगा पर सफलता एक दिन जरूर मिलेगी ज़ब पुरुष प्रधान समाज नहीं, समानता वाला समाज होगा ज़ब सभी मे महिलायो कि समान भागीदारी होंगी.........................................