Prem Gali ati Sankari - 78 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 78

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प्रेम गली अति साँकरी - 78

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महामारी की दूसरी लहर में बुरा हाल देखने को मिल रहा था और अम्मा ने रतनी से बचे हुए कपड़ों और पापा के द्वारा मँगवा दिए गए सॉफ़्ट कपड़े के थान में से ढेरों ढेर मास्क बनवाए | ये मास्क ऐसे थे जिन्हें धोया जा सकता था | शीला दीदी ने कहा कि वे घर में ही सेनेटाइज़र बना सकती हैं | देखने में यह आ रहा था कि सेनेटाइजर्स की नई-नई ब्रांडस बाज़ार में धड़ल्ले से आ रही थीं | सभी कंपनियों ने सेनेटाइज़र बनाकर टी.वी पर उसका ‘एड’ देना शुरू कर दिया था | ऐसा लगता था कि व्यापारियों ने जरूरत की मंहगी चीजें बनाकर इस महामारी को भी कैश करने के तरीके ढूंढ लिए थे | इससे अम्मा-पापा को बड़ा कष्ट हो रहा था | उन्होंने सबके साथ मिलकर तय किया कि वे समर्थ हैं और इस कठिन समय में वे जितना हो सकेगा दूसरी चीज़ों के साथ जहाँ तक हो सकेगा भोजन की व्यवस्था भी करेंगे | सड़क पार के मुहल्ले में दूसरी लहर में बुरा हाल हो रहा था और पापा-अम्मा का उसके निवासियों के लिए कुछ करने का निश्चय और भी दृढ़ हो गया था | उन्होंने महाराज से कहा कि वे खाने का अधिक सामान मँगवाकर अधिक से अधिक फूड-पैकेट्स बनाएं | उस समय संस्थान में सहयोग करने वाले काफ़ी लोग थे जिनमें उत्पल भी सबसे आकर खड़ा हो गया था | संस्थान से फूड पैकेट्स बनकर जाने लगे, ज़रूरत के हिसाब से मास्क और सेनेटाइज़र भी और मास्क, दस्ताने, पूरा प्लास्टिक शीट से कवर होकर उत्पल, दिव्य और महाराज का बेटा रमेश हर रोज़ खाना बाँटने जाने लगे | 

अम्मा-पापा शाम के समय गार्डन में कुर्सियाँ निकलवाकर बैठ जाते और सबको वहीं बुला लेते | वहीं सब चर्चाएं होतीं | स्थिति कैसी भी हो, आगे की योजनाएं तो बनानी ही पड़तीं हैं | महाराज के गाँव के घर में उनकी पत्नी थी | बेटा भी पत्नी सहित शहर में रह रहा था, इस बवंडर के शुरू होते ही वह पत्नी सहित गाँव चला गया था | पापा ने बाकायदा सरकारी आज्ञा लेकर और महाराज से बात करके ड्राइवर भेजकर महाराज के पूरे परिवार को संस्थान में बुलवा ही लिया गया था | अब तो उनकी बेटी भी खासी बड़ी हो गई थी और रमेश की पत्नी भी साथ ही थी लेकिन वह कुछ माह के गर्भ से थी, वह बहुत सहायता करना चाहती लेकिन उससे वही हैल्प ली जाती जिससे उस पर कुछ अधिक प्रेशर न हो | वैसे इतने लोगों को मिलाकर संस्थान में काफ़ी लोगों की बढ़ोत्तरी हो गई थी और काम आसानी से हो रहा था | शाम की बैठकों में यह भी विचार किया जाता था कि अगर यह महामारी अधिक दिनों तक फैली रही तो हम कैसे और कितने दिनों तक इस प्रकार से काम कर सकेंगे?

इस दूसरे दौर ने हमारे परिवार के कई करीबी मित्रों को अपनी चपेट में ले लिया था | पापा के कई डॉक्टर मित्र कोरोना के रोगियों की देखभाल करते हुए चपेट में आ चुके थे लेकिन डॉक्टर्स, नर्सें और सफ़ाई कर्मचारियों के सिर पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी जिसे वे भरसक निबाहने की कोशिश कर रहे थे | 

“ये सब भी तो हमारे जैसे ही लोग हैं जो अपनी जान खतरे में डालकर लगे हुए हैं सबकी भलाई में ---” उत्पल ने कहा | वैसे इस टॉपिक पर न जाने कब से चर्चाएं होती ही रहती थीं | 

चाहे संस्थान में कितने ही लोग थे किन्तु जैसा परिवर्तन पूरे वातावरण में था, उसका प्रभाव सबके मनोमस्तिष्क पर पड़ना बड़ा स्वाभाविक ही था | इस समय इस महामारी की वास्तविकता से लड़ने के लिए सभी सरकारें जूझ रही थीं | 

एक अप्रेल से लेकर 31 मई तक का समय बड़ा कठिन था | बीमारी की प्रतिरोधक शक्ति के लिए सभी देशों के वैज्ञानिक दिन-रात शोध में लगे थे और उनको टीके की शोध करने में सफलता भी मिली | व्यवस्था के अनुसार टीके लगने शुरू हो गए | 

16 नवंबर 2021 को भारत में 287 दिनों में वायरस के सबसे कम मामलों की संख्या की पुष्टि हुई और भाई ने अम्मा-पापा से मिलने का प्रोग्राम बनाने की कोशिश की | सब कुछ ठीक ठाक हो गया किन्तु न जाने अचानक किसी विशेष कारण से आखिरी समय में उसका वीज़ा कैंसल हो गया और उसे अपना आने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा | यही दिखाई दे रहा था और सोचना भी पड़ रहा था कि इंसान के हाथों में कुछ भी नहीं, वह तो किसी अदृशीय शक्ति के हाथों का खिलौना भर है | 

यह इंसान का स्वभाव है कि थोड़ी सी छूट मिलते ही वह अपनी सीमाओं से बाहर जाने लगता है | थोड़ी सी छूट मिलने पर लोगों ने मास्क की ओर से व दूरी बनाने की ओर से लापरवाही करनी शुरू कर दी थी | लोगों को लगने लगा कि वैक्सीन की एक डोज़ लेने के बाद ही वो इम्यून हो गए हैं लेकिन ऐसा तो नहीं होता है न, यह तो विश्व में बिखरी हुई ऐसी बीमारी थी जिसका अभी तक जड़-मूल भी लोगों को समझ नहीं आया था वैसे कोई छोटी सी बीमारी होने से भी मनुष्य में प्रतिरोधक शक्ति इतनी नहीं बढ़ जाती कि तुरंत ही वह पहले की तरह पहलवान बनकर खड़ा हो जाए और व्यर्थ के युद्ध-क्षेत्र में कूद पड़े | दूसरी लहर ने भारत में ही नहीं पूरे विश्व में  बहुत तबाही की | हम भारत में थे तो यहाँ की दशा देखकर हम पीड़ित हो रहे थे और प्रतिदिन ईश्वर से अपनी, अपनों की व सबकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना, यज्ञ आदि कर रहे थे | 

वायरस के नए वैरिएंट्स अधिक संक्रामक थे | भारत में ही नहीं यू.के के नए स्ट्रेन में भी यही पाया गया था | ऐसी स्थिति में वायरस और लोगों के व्यवहार में एक साथ हुए बदलाव ने दूसरी अधिक खतरनाक लहर को जन्म दे ही दिया | केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जानकारी दी थी कि भारत में कोरोना वायरस के एक नए ‘डबल म्यूटेन्ट’वायरल का पता चला था | ऑक्सीज़न के लिए, दवाई के लिए तड़पते मरीजों के कारण कहर बरपा हो रहा था |