Shakunpankhi - 18 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 18 - महावर भी नहीं छूटा

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शाकुनपाॅंखी - 18 - महावर भी नहीं छूटा

25. महावर भी नहीं छूटा

थावक जो तराइन के मैदान से भाग कर सूचना देने के लिए दौड़ पड़े थे उनमें से अजयमेरु जाने वाले धावक पृथ्वीराज के छोटे भाई हरिराज को सूचना दे अर्न्तधान हो गए थे। हरिराज इसी लिए शाह के हाथों नहीं लग सके। वे गुप्त मार्ग से अजयमेरु से बाहर निकल गए।
धावकों के दूसरे दल ने दिल्लिका पहुँच राजकुमार गोविन्द और कन्ह पुत्र को सूचना दी। आग की भांति यह सूचना राज प्रासाद सहित सम्पूर्ण दिल्लिका में फैल गई। नगर वासी चकित थे । यह असंभव कैसे संभव हो गया? हर कोई दूसरे से पूछता । किसी के पास इनका उत्तर नहीं था। राज भवन के कर्मचारी आतंकित थे नगरवासी लूट के डर से भयभीत श्रेष्ठी अपनी सम्पत्ति सुदूर गांव में भेज कर सुरक्षित करने की व्यवस्था में लग गए, पर राज प्रासाद विक्षुब्ध था। संयुक्ता को जैसे सूचना मिली, वे अचेत हो गईं। इच्छिनी को भी होश नहीं रहा। किसी की समझ में कुछ आ नहीं रहा था कि क्या किया जाए? राज परिवार में कोई अनुभवी नहीं बचा था।
लोग आ जा रहे थे पर भय की छाया सभी के चेहरे पर देखी जा सकती थी। एक प्रहर बाद ही कंचुकी दौड़े हुए बाहर आए। देवी कान्यकुब्ज कुमारी ने प्राण छोड़ दिया। गोविन्द, कन्ह कुमार सभी दौड़कर अन्तःपुर पहुँचे। संयुक्ता को देखकर अवाक् निःशब्द। कौन जानता था कि चाहमान वधू बनकर संयुक्ता को तीन माह तेइस दिन ही रहना है? राज कर्मचारी संयुक्ता की प्रशंसा करते न अघाते। उसे अभी वृहत् परिजनों से मिलने का अवसर ही कहाँ मिला था? पृथ्वीराज का वरण उसने अपने दम पर किया था। आज पृथ्वीराज के पहले ही वह स्वर्ग सिधार गई। यह सूचना यदि चाहमान अधिपति को मिलेगी तो उनका हृदय किस विषाद सागर में डूब जाएगा, इसे कौन बताए? राज परिवार के किशोरों पर ही व्यवस्था का दायित्व आ पड़ा। जिन शूरमाओं ने तराइन में अपन प्राणोत्सर्ग किया, उनके परिवार की सुरक्षा, आर्थिक संरक्षण सभी कुछ तो इन्हीं किशोरों को देखना है। रोते हुए कंचुकी बाहर आए। संयुक्ता के बारे में जानने के लिए लोग टूट पड़े। 'अभी तो रानी का महावर भी नहीं छूटा था। स्वर्ग सिधार गई भइए', कहकर वे पुनः डिंडकार छोड़कर रो पड़े। भीड़ के भी अधिकांश लोग सिसक उठे।
चामुण्ड, सामन्त सिंह, जामराय यादव, पावस, जैत परमार सहित सभी शूरमाओं और सैनिकों के परिवार में विषाद का अखण्ड साम्राज्य है। कोई किसी से कुछ कह नहीं पा रहा है। जिनके शव आ गए हैं, उनके दाहकर्म की विकट समस्या है। सावन में सूखे काठ । पर लोग दौड़ दौड़कर सूखे काठ इकट्ठा कर रहे हैं। जमुना का गहरा जल भी शान्त एवं स्तब्ध है।
संयुक्ता की सेविका लतिका आकर कन्ह कुमार से कह उठी। स्वामिनी ने चन्दन काठ को एक कोठरी में रखवा दिया था। कहती थी जिस किसी का शव जले, लतिका स्मरण रखना चन्दन काठ उसमें पड़े। कंचुकी ने भी सहमति जताई। चन्दन काट निकालकर बाहर कर दिया गया। जो भी शव जले उसमें एक टुकड़ा ही सही, अवश्य डाल दिया जाए।
'रानी का शव चन्दन से ही जलाया जाए तो?' कन्ह कुमार ने कहा । 'नहीं स्वामी, चन्दन काठ सभी में बांट दिया जाए जिन्हें शव जलाना है। एक टुकड़ा रानी के शवदाह में भी पड़ जाएगा, यही उनकी इच्छा के अनुरूप होगा', कंचुकी ने कहा । लतिका ने भी रोते हुए समर्थन किया। गोविन्द जैसे सुन्न हो गया हो ।
धावकों का तीसरा दल कान्यकुब्ज सीमा पर सन्नद्ध महादण्डनायक स्कन्द के पास पहुँचा। सम्पूर्ण विवरण दिया । स्कन्द को जैसे विद्युत छू गई हो? 'कैसे हो गया भट? मैं तो स्वयं यहां की व्यवस्था कर युद्ध में भाग लेने आ रहा था पर एक ही दिन में निर्णायक परिणति वह भी उससे जो निरन्तर हारता रहा।' स्कन्द तिलमिला उठे थे।
"यही भ्रम तो हम सब को ले डूबा स्वामी। हम लोगों ने उतनी सजगता नहीं बरती, तैयारी नहीं की। यह जानते हुए कि शाह कपट युद्ध कर सकता है, सचेत नहीं हुए।'
'ठीक कहते हो। महाराज ने इसे एक सामान्य युद्ध मान लिया था। वे पूरी तरह सन्नद्ध नहीं हुए। पर अब?' स्कन्द ने भट से ही पूछ लिया।
'महाराज अब आप ही बताइए। हम लोग क्या करें?" भट ने प्रतिप्रश्न किया। 'हम लोगों को पुनः सन्नद्ध होना है। महाराज बन्दी हुए हैं न? उन्हें शाह के चंगुल से छुड़ाना ही होगा।' स्कन्द कह उठे ।
उन्होंने अपने साथ लगे हुए शूरवीरों को बुलाया। तराइन युद्ध का विवरण दिया। सभी हुंकार कर उठे, 'अभी सब लोग शाह को घेरने के लिए कूच करें।' 'नहीं, मेरे पास जो सूचना है उससे मुझे लगता है कि बिना एक बड़ी तैयारी किए शाह को पराजित करना संभव नहीं है।' दण्डनायक ने सुझाया।
'अरे, इतना भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। अभी पिछले ही वर्ष हम लोगों ने आपके ही नेतृत्व में उन्हें रौंद दिया था। उनमें कितनी शक्ति है ? इसका हमें पता हैं।' महाबली उबल पड़ा।
'यह कपट युद्ध था। हमारे महाराज कपट युद्ध के शिकार हुए। दूसरे शूरमा बोल उठे ।
'यह बात तो जानते हो। हर बार हार कर शाह उससे बड़ी तैयारी के साथ आया है । हमने पिछले वर्ष पराजित किया। इसीलिए तो वह चाहमानों को हराने के लिए पागल हो उठा। सैनिकों से कुरान की शपथ दिलाई।' स्कन्द कहते गए ।
हमसे भी शपथ लेलो। बगल में गंगा माँ बह रही हैं। हम कहीं भी पीछे नहीं रहेंगे।' अनेक मूछों पर ताव देने लगे।
मैं तुम लोगों के शौर्य की प्रशंसा करता हूँ। महाराज को छुड़ाने के लिए व्याकुल हो रहे हो, इस भावना को भी समझता हूँ, पर युद्ध केवल भावनाओं पर ही नहीं लड़े जाते । अपेक्षित परिणाम के लिए एक कुशल रणनीति बनानी पड़ती है। शाह के पास इस बार एक बड़ी और कुशल सेना है। शाह को हराने के लिए हमें कुशल सैन्य व्यूह रचना होगा। अभी तो यही ज्ञात करना है कि महाराज को कहाँ बन्दी बनाया गया है? वे किन परिस्थितियों में हैं? हो सकता है गुप्त वेष बनाकर पता करना पड़े। इसलिए थोड़ा धैर्य रखो। सूचनाएँ हमें शक्ति देती हैं। हम पहले जानकारी कर लें, फिर उसी के अनुरूप कार्य किया जाएगा। महाराज को छुड़ाना है चाहे जो स्थिति बने ।' स्कन्द समझाते रहे।
'अब यहाँ से हमें अपना शिविर हटाना पड़ेगा। अजयमेरु और दिल्लिका की ओर देखना है।'



26. उचित नहीं है महाराज

कान्यकुब्ज नरेश की बैठक में कुलगुरु, सामन्त एवं मंत्रिगण आसीन थे। चर्चा का विषय था कि ग़ज़नी के शाह और चाहमानों के युद्ध की परिणति क्या होगी ?
महाराज इस युद्ध में कुछ अधिक रुचि ले रहे थे। कान्यकुब्ज के सैन्यबल में भी तुर्क, ताजिक महत्व रखते थे। महाराज को बाइस वर्ष शासन करते हो गया था। इस अवधि में कान्यकुब्ज का वैभव बढ़ा ही है, केवल पृथ्वीराज संयुक्ता प्रकरण ही उन्हें कचोट जाता था। अब राजकुमार भी वयस्क हो रहे थे। उन्हें युवराज पद पर अभिषिक्त करने की भी चर्चा होने लगी थी। जैसे ही कुलगुरु ने अपना वक्तव्य समाप्त किया, दौवारिक ने आकर सिर झुकाया कुलगुरु की दृष्टि घूमी । ‘महाराज, ग़ज़नी नरेश और चाहमान नरेश के बीच चले युद्ध का विवरण देने के लिए भट उपस्थित है।'
'उपस्थित करो', महाराज ने कहा भट ने आते ही शीश झुका कर प्रणाम किया।
'क्या सूचना देना चाहते हो?" कुलगुरु ने पूछा।
'महाराजधिराज, जो कहीं देखा सुना नहीं गया, वह होकर रहा महाराज !
असंभव संभव हो गया।' भट ने उनकी उत्सुकता बढ़ा दी।
'पर हुआ क्या? स्पष्ट कहो भट', कुलगुरु ने पूछा 'चार प्रहर में ही निर्णय हो गया।
ऐसा अद्भुत युद्ध.....।'
'तुम तो चारणों के कान काट रहे हो। बात तो बताओ।' कुलगुरु बोल उठे ।
'महाराज, जो हुआ उसको कहते जिह्वा लड़खड़ा जाती है. .. महाराज पृथ्वीराज बन्दी हुए।' भट ने किसी प्रकार कहा।
'चाहमान नरेश बन्दी हुए !' पूरी सभा चकित थी ।
'यही संभाव्य था', महाराज के मुख से निकल गया। उनके मुख मण्डल पर स्मिति का भाव उभर आया। आमात्य को संकेत कर कहा, 'आज राज प्रासाद में दीपोत्सव मनाया जाए। नगर में भी सूचित करा दिया जाए कि लोग दीप जला कर प्रसन्नता व्यक्त करें।
इस भट को पुरस्कृत किया जाए।' 'यह क्या कर रहे है महाराज?' एक सामन्त बोल उठा । 'उचित कर रहा हूँ । चाहमान नरेश की हार से मैं प्रसन्न हुआ हूँ।' महाराज अपनी बात कह कर उठ पड़े। सभा समाप्त हो गई।
'उचित नहीं हैं महाराज' कहता हुआ सामन्त निकल गया।